भारत जैसे विशाल और विभिन्नताओं से भरे देश की राजनीति भी बड़ी दिलचस्प रही है. आजादी के नायक जवाहरलाल नेहरु को देश की जनता ने सोलह साल तक प्रधानमंत्री के पद पर बनाए रखा.
नेहरु की मृत्यु के बाद जनता ने उनकी बेटी इंदिरा गाँधी को भी अपना भरपूर समर्थन दिया. लेकिन ये समर्थन तब पूरी तरह से गिर गया जब लोगों ने इंदिरा सरकार द्वारा लगाई गयी इमरजेंसी की वजह से, उन्हें और उनकी पार्टी को नकार दिया.
जनता के जनादेश पर लगातार लगभग तीस साल पूरे देश में ‘कांग्रेस' का एकछत्र राज रहा. ऐसे में इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो, भारत में 1977 में पहली बार दूसरी पार्टी या फिर पहली गठबंधन की सरकार सत्ता में आई.
लेकिन आपको बता दें, गठबंधन की शुरुआत 1967 में राज्यों से शुरू हो गयी थी. बात अगर वर्तमान समय की करें तो आज भारत में एक गठबंधन की ही सरकार है. ऐसे में, भारत के इतिहास में गठबंधन की सरकारों के बारे में जानना दिलचस्प रहेगा.
जानते हैं, समय के साथ भारत के राजनीति पटल पर बनी अलग-अलग गठबंधन सरकारों के विषय में-
सही मायनों में ये होती है गठबंधन की सरकार!
गठबंधन का अंग्रेजी शब्द ‘कोअलिशन’ (Coalition) है जिसे लैटिन भाषा से लिया गया है, जिसका मतलब होता है साथ चलना या बढ़ना.
अन्य शब्दों में ‘कोअलिशन’ का अर्थ एकजुट होकर किसी एक गठबंधन में बंधना है. ऐसे में, अलग-अलग लोगों का एकजुट होना ये दिखाता है कि वो सब मिलकर एक संस्था का निर्माण कर रहे हैं.
अब इसी शब्द यानी ‘कोएलिशन’ का राजनीतिक संदर्भ में भी इस्तेमाल किया जाता है. जिसका मतलब राजनीतिक सत्ता को हासिल करने के लिए अलग-अलग राजनीतिक पार्टी या ग्रुप के एक टेम्पररी गठबंधन बनाने से है.
ऐसे में, भारत में आमतौर पर गठबंधन एकदम अलग रहीं या फिर आपस में प्रतिद्वंदी रही दो या दो से अधिक पार्टियों के बीच का गठजोड़ बनता है. जिसे सरकार या प्रशासन चलाने और राजनीतिक पद आपस में बांटकर सत्ता चलाने के लिए बनाया गया होता है.
आप सोच रहे होंगे कि इस सरकार और एक स्थिर सरकार में क्या अंतर है. आमतौर पर माना जाता है कि यह एक निजी फायदे के लिए बनी हुई सरकार होती है, जिसमें कोई भी पार्टी जब चाहे अपना समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा सकती है.
लेकिन वहीं दूसरी ओर इसके तमाम फायदे भी गिनाये जाते हैं, जिसमें ये तर्क होता है कि क्षेत्रीय पार्टियों को भी केंद्र में आकर सरकार चलने का मौका मिलता है, जो देश के विभिन्न समुदायों या वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
इसी तरह से गठबंधन सरकार के तमाम गुण और दोष गिनाए जाते रहे हैं. ऐसे में हम भारत में प्रथम गठबंधन सरकार के विषय में बात करते हैं....
...और इमरजेंसी की देन थी पहली ‘गठबंधन सरकार'!
25 जून 1975 के दिन भारत में आंतरिक सुरक्षा को मद्दे नज़र रखते हुए आधी रात को इमरजेंसी लगाई गयी. इस दौरान लोगों ने अपने सारे मूलभूत अधिकारों को खो दिया.
इमरजेंसी को भारत के लोकतंत्र पर एक धब्बा माना जाता है जिसे लगभग 43 साल बाद भी कांग्रेस पार्टी अपने दामन से छुड़ा नहीं पाई है. ऐसे में, जब ‘इमरजेंसी' उस समय लागू हुई तब लोगों के बीच ‘दुर्गा' की छवि रखने वाली, इंदिरा अचानक एक दमनकारी नेता के रूप में बदल गयी.
और इसके साथ ही उनके इस कदम ने ‘कांग्रेस पार्टी' के एकछत्र राज को चुनौती दे दी थी. उनके इस फैसले के खिलाफ उस समय पूरा विपक्ष एकजुट हो गया था. यही पहली बार था जब सभी ने गठबंधन बनाकर 1977 के चुनाव को लड़ने का फैसला किया.
इस चुनाव में कई विपक्षी पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा जिसमे कांग्रेस (ओ), जनसंघ और लोकदल तथा कांग्रेस (आर) से अलग हुए नेता जनता पार्टी में आकर शामिल हो गए.
जब इस चुनाव के नतीजे आए तब कांग्रेस की बहुत करारी हार हुई. सबसे बड़ी बात इंदिरा गाँधी ने भी अपनी लोकसभा सीट गँवा दी. इसमें राजनारायण ने इंदिरा गांधी को रायबरेली सीट पर हरा दिया.
इस चुनाव में कांग्रेस की सीट 350 से घटकर 153 पर ही सिमट गयी. उत्तर-भारत के ज्यादातर राज्यों ने कांग्रेस को नकार दिया.
लिहाज़ा, कांग्रेस की ऐतिहासिक हार के बाद जनता पार्टी ने सरकार बनाई और इसके साथ ही मोरारजी देसाई देश के पहले गठबंधन से बनी सरकार के प्रधानमंत्री बने. हालांकि, उनकी ये सरकार ज्यादा समय तक टिक नहीं पायी.
परिणामस्वरुप, साल 1979 में सरकार गिर गयी और मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री पद से अपना इस्तीफा देना पड़ा. उनकी सरकार गिरने का कारण था, अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी का जनता पार्टी से अलग हो जाना.
इसके बाद कांग्रेस और सीपीआई के समर्थन से जनता (एस) के नेता चरण सिंह 28 जुलाई, 1979 को प्रधानमंत्री बन गए. इन्हें ही पिछली सरकार गिराने के लिए मुख्य माना जा रहा था.
उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने चरण सिंह को 20 अगस्त तक लोकसभा में अपना बहुमत साबित करने का निर्देश दिया.
लेकिन, यहाँ मामला तब उल्टा पड़ गया जब इंदिरा गांधी ने 19 अगस्त को चरण सिंह सरकार को संसद में बहुमत साबित करने में साथ न देने का एलान कर दिया.
और इसी के साथ चरण सिंह को लोकसभा में बहुमत साबित करने से पहले ही अपने प्रधानमन्त्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. इस तरह यह दूसरी बार हुआ जब गठबंधन कि सरकार औंधे मुंह गिर गयी.
1979 को लोकसभा भंग करने के बाद मध्यावधि चुनाव हुए और इंदिरा गांधी 14 जनवरी, 1980 को एक बार फिर प्रधानमंत्री बनने में सफल हो गयीं.
एक दशक तक बनती-बिगड़ती गठबंधन सरकार ने चलाया देश!
90 के दशक में एक के बाद एक अल्पमत या गठबंधन सरकारें आईं.
दरअसल, 1989 से 1999 के बीच आठ अलग-अलग सरकारें बनीं. जिसमें कई छोटी पार्टियों का प्रभाव बहुत बढ़ गया क्योंकि उनके पास जो थोड़ी बहुत सीटें थीं, वो गठबंधन सरकार बनाने के लिए बेहद अहम थीं.
शुरुआत से बात करें तो 1989 के चुनाव से पहले जन मोर्चा, जनता पार्टी, लोकदल और कांग्रेस (एस) एक साथ मिलकर जनता दल बनी. जिसके बाद वीपी सिंह ने कुछ अन्य वाम और दक्षिणपंथी पार्टियों के साथ मिल कर नेशनल फ्रंट का निर्माण किया. इसी का नेतृत्व करते हुए उन्होंने 1989 के लोकसभा चुनाव को लड़ा.
इस चुनाव के परिणाम में जनता किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं दिया था. दरअसल, इसमें कांग्रेस को 197 सीटें मिलीं और जनता दल को 143.
इसी के साथ पहली बार भाजपा को 85 सीटें मिली. हालांकि, कांग्रेस अभी भी सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन इसके बावजूद राजीव गांधी के सरकार बनाने से मना कर दिया. उनके मना करने के बाद वीपी सिंह के नेतृत्व में नेशनल फ्रंट की सरकार बनी. जिसमें वाम दल और भाजपा ने अपना समर्थन दिया.
लेकिन जल्द ही इस सरकार का हाल भी वही हुआ जो पिछली दो गठबंधन की सरकारों के साथ हुआ था. दरअसल, साल 1990 में वीपी सिंह द्वारा लागू की गयी मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने को वजह बताते हुए भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया. इसी के साथ यह सरकार भी गिर गयी.
इसके बाद सरकार टूटती और फिर बनती. इसी कड़ी में 1996 के चुनाव में न कांग्रेस और न ही भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला था. इस दौरान जोड़-तोड़ से बनी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार महज़ 13 दिन चलकर गिर गयी.
कुछ दिनों बाद, 13 पार्टियों ने मिल कर यूनाइटेड फ्रंट बनाया और इस फ्रंट ने 1996 से 1998 तक दो सरकारें बनाईं.
इन सरकारों में एचडी देवेगौड़ा से लेकर आईके गुजराल तक प्रधानमंत्री बने और इनकी सरकार भी अपने कार्यकाल के पूरे होने से पहले ही गिर गयी.
आपको एक दिलचस्प बात बता दें, हर बार सरकार गिरने की वजह कांग्रेस का अपने समर्थन को वापस ले लेना रहा.
अब इसके बाद साल 1998 के चुनाव से पहले एनडीए (National Democratic Alliance) बनाया गया और जिसमें 13 पार्टियों ने मिलकर एक नया गठबंधन बनाया.
लिहाज़ा, 1998 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बनने में सफल हो गए.
अटल बिहारी का अपना कार्य काल को पूरा करने का सपना एक बार और टूट गया. इस बार उनकी सरकार सिर्फ 13 महीने तक ही चल पायी. इस बार AIADMK ने अपने समर्थन को सरकार से वापस ले लिया.
आखिरकार, साल 1999 में एनडीए को लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत मिला और अटल ने इस बार पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.
इसके बाद UPA की सरकार ने दस साल तक सरकार चलाई जिसके प्रधानमन्त्री डॉक्टर मनमोहन सिंह थे. और फिलहाल भारत में NDA की सरकार है जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं.
Web Title: A Story of Coalition Government Formed in Indian History, Hindi Article
Feature Image Credit: republicworld