कभी हिंदुस्तान पर हुकूमत करने वाली मुगल सल्तनत दुनिया में सबसे अमीर हुआ करती थी. एक समय उसके पास दुनिया की लगभग 25 प्रतिशत दौलत थी. शाह कहलाने वाले मुगल शासक अपने समय के उस समय के सबसे अमीर आदमी थे.
उनके साम्राज्य में यूरोप के सभी साम्राज्यों की तुलना में कहीं अधिक रत्न, मोती जैसे खजाने थे.
वे निर्दयी और क्रूर शासक थे. उन्होंने हिंदुस्तान को हर तरह से लूटा और कमजोर लोगों को अपना गुलाम बनाया. उन्होंने अपनी कूटनीतिक चालों में फंसाकर अन्य साम्राज्यों को तबाह किया, और जो उनके सामने झुकने को तैयार नहीं थे, उन्हें युद्ध करने पर मजबूर किया.
इन्होंने भारतीय राजाओं को अपनों से ही लड़ाया और उसका फायदा उठाते हुए उनके खजानों को अपना बनाया.
कला के शौकीन मुगल शासकों को फारसी बगीचे जितने पसंद थे, उतने ही वह खूबसूरत महिलाओं के लिए दीवाने भी थे. विलासिता से घिरे हुए ये बादशाह अपने आपको भगवान कहलाने से भी नहीं कतराते थे.
मुगल साम्राज्य की गिनती उस दौर के दुनिया के सबसे अमीर साम्राज्यों में की जाती थी. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर मुगल साम्राज्य कितना अमीर था? आइए जानते हैं –
एक लुटेरा था बाबर!
हिंदुस्तान में मुगल साम्राज्य की स्थापना से पहले के इतिहास को खंगाला जाए, तो पता चलता है कि बाबर एक लुटेरा था.
12 साल की छोटी सी उम्र में उसे उज्बेकिस्तान के फरगना का शासक बना दिया गया. हालांकि वहां उसकी एक न चली और जान बचाकर उसे भागना पड़ा. उसका सपना तो अपने पूर्वज तैमूर लंग द्वारा बनाई गई राजधानी समरकंद को जीतने का था. बहरहाल, वह उसे भी जीत नहीं पाया.
उसने हिंदुस्तान के बारे में कई बार सुना था. ऐसे में थक-हार कर उसने दक्षिण की ओर रुख कर लिया. बाबर अगर फरगना में ही रहता, तो कब का अपनों के हाथों ही मारा जा चुका होता.
उसने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन वह भारत पर हुकूमत करेगा. वह तो हिंदुस्तान में लूट मचाने आया था.
हुमायूं की जीवनी 'हुमायूंनामा' में गुलबदन बेगम लिखती हैं कि बाबर द्वारा 1519 ई. के बाद से कई बार 7-8 साल तक सेना हिंदुस्तान की ओर भेजी गई. हर बार छोटे राज्य और परगनों पर कब्जा किया गया.
इस बार सेना का नेतृत्व खुद बाबर कर रहा था. उसने पहले लाहौर, सरहिंद जीता और फिर पानीपत के मैदान में 20 अप्रैल 1926 ई. को उसकी भिड़ंत दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी से हुई.
बाबर युद्ध जीत गया और उसे उपहार स्वरूप 5 बादशाहों का कोष हाथ लगा. इसके अलावा उसकी जीत का सबसे बड़ा ईनाम पूरा हिंदुस्तान उसके सामने पड़ा था.
बाबर ने लूट तो बहुत की थीं, उनमें शायद ये पहली बार था कि इतनी बड़ा खजाना उसके हाथ लगा था. वहीं, आगे लूट जारी रखने के लिए एक बड़ा देश भी उसे साफ नजर आ रहा था.
उसने सुल्तान इब्राहिम के हरम की एक-एक वेश्या, लूटे गए खजाने में से रत्न, माणिक, मोती, गोमेद, हीरा, पन्ना, फिरोजा, पुखराज और लहसुनिया से भरी एक सोने की रिकाबी, अशरफियों से भरी दो सीप की थालियां, दो थाल शाहरुखी और हर प्रकार की 9-9 वस्तुएं अपने बड़ों, बहिनों, बेगमों, नातेदार और संतानों व हरमवालियों में बंटवा दिए.
बहरहाल, इब्राहिम लोदी के ऊपर जीत के साथ ही हिंदुस्तान में मुगल साम्राज्य की स्थापना हो गई.
दुनिया की 25 फीसदी दौलत का मालिक था अकबर
माना जाता है कि हुमायूं का उत्तराधिकारी अकबर अपने समय में दुनिया की एक चौथाई दौलत का मालिक था.
मुगल इतिहास में अकबर ही ऐसा एकमात्र शासक था, जिसने अपने विजय अभियान के दम पर हिंदुस्तान के बड़े भूभाग पर शासन किया था. उसने कई राजपूत शासकों को अपने अधीन कर लिया था, लेकिन मेवाड़ के महाराजा महाराणा प्रताप उसके सामने कभी नहीं झुके.
विश्व की चर्चित टाइम पत्रिका के अनुसार, अकबर के शासनकाल में हिंदुस्तान का सकल घरेलू उत्पाद ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ के साम्राज्य से कतई कम नहीं था. आर्थिक इतिहासकार एंगस मैडिसन के मुताबिक, मुगलकालीन भारत का प्रति व्यक्ति उत्पादन (per capita output) उस समय के इंग्लैंड और फ्रांस के बराबर ही था.
तत्कालीन मुगल रहन-सहन ब्रिटिश राजघराने से कहीं ज्यादा शानदार और भव्य था.
इस समय तक यूरोपियन लोगों ने साम्राज्यवाद के लिए दुनिया के देशों को तलाशना शुरू कर दिया था. कहीं हद तक यूरोपियन दुनिया भर में अपने व्यापार को बढ़ा रहे थे. बावजूद इसके उस समय का यूरोप जीवनशैली के मामले में मुगल काल से बहुत पीछे था.
उस दौरान यूरोपियन व्यापारियों ने भारत का दौरा किया था, वह मुगल दरबार की भव्यता और मुगलों की आलीशान जीवनशैली से बहुत प्रभावित हुए. शायद इससे पहले इन्होंने राजमहलों में इतना अच्छा जीवन स्तर नहीं देखा था.
मैडिसन के अनुसार, "यह सब कुछ दुनिया में सबसे शानदार था." मुगल दरबार की दीवारें, महल, उद्यान, फव्वारे, साहित्य और चित्रकला सभी अपने आपमें लुभाने वाला था.
दुनिया में सबसे शानदार था मुगल दरबार
ब्रिटिश अर्थशास्त्री एंगस मैडिसन के मुताबिक, जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर के समय से लेकर शाहजहां तक मुगल सल्तनत का दरबार दुनिया भर में सबसे शानदार जगहों में से एक था. यहां विश्वव्यापी और धार्मिक सहिष्णुता आम थी.
साहित्य और चित्रकला की भरमार थी. आगरा, दिल्ली, फतेहपुर सीकरी और लाहौर में आलीशान भव्य महल और मस्जिद थे. दीवारें रंगों से सजी हुई थीं, बगीचे फव्वारों से लुआब थे. सेवादारी के लिए गुलाम-नौकर भरे पड़े थे.
मुगल बादशाहों के पास सूती और रेशमी धागों से बुने बेहतरीन कपड़ों के विशाल वार्डरोब थे.
माना जाता है कि मुगल साम्राज्य की अर्थव्यवस्था अकबर के शासनकाल के दौरान अपने चरम पर थी और संभवत: ताजमहल बनने के बाद इसमें गिरावट आई.
कैम्ब्रिज इतिहासकार एंगस मैडिसन अपनी पुस्तक, 'कंटूर ऑफ द वर्ल्ड इकोनॉमी 1-2030 एडी: ऐसे उन मैक्रो-इकोनॉमिक हिस्ट्री' में लिखते हैं कि भारत 1000 ई. तक विश्व जीडीपी में 28.9 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी. मुगल साम्राज्य के दौरान 20.9 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर के साथ हिंदुस्तान में आर्थिक विकास शुरू हुआ.
इस तरह से 18वीं शताब्दी में आर्थिक तरक्की के मामले में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया.
अरबों में बना था ताजमहल
मुगल बादशाह शाहजहां के पूर्ववर्ती सम्राट जहांगीर ने शाही खजाने में एक बड़ी रकम छोड़ी थी. इस कारण मुगल स्थापत्य शैली की भव्य इमारत बनाने में शाहजहां का हाथ कभी तंग नहीं रहा.
शाहजहां के समय 17वीं शताब्दी में बनी नायाब इमारत ताजमहल की लागत 50 लाख रुपए आई थी.
बैंक ऑफ इंग्लैंड के रिकॉर्ड के आधार पर कहा जाता है कि सन 1640 ई. में शाहजहानी रुपए की क्रय शक्ति आज के भारतीय रुपए से लगभग 500 गुना ज्यादा थी. इस हिसाब से अगर ताजमहल आज के समय में बना होता, तो इसे बनाने में लगभग अरबों खर्च होते और उसमें भी जमीन की कीमत अलग से देनी पड़ती.
वहीं, मयूर सिंहासन मुगलकाल की सर्वश्रेष्ठ कलाकारी थी, जिसे बनाने में मजदूरों को लगभग 7 साल लगे थे. इसी मयूर सिंहासन के बीच में विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा लगा हुआ था. जो आजकल ब्रिटेन की महारानी के मुकुट की शोभा बढ़ा रहा है.
मयूर सिंहासन को बनाने में उस दौर के तकरीबन एक करोड़ रुपए खर्च हुए थे, जो आज के अरबों रुपए के बराबर हैं.
दुनियाभर के साम्राज्यों से बड़ा था खजाना
एक अंदाजे के अनुसार, शाहजहां के शासनकाल के दौरान मुगल साम्राज्य की संपत्ति फारस और फ्रांस के प्रतिद्वंद्वियों की कुल संपत्ति की तुलना में भी कहीं अधिक थी. सन 1648 में मुगल साम्राज्य की सालाना आय 21 करोड़ रुपए आंकी गई है.
इसके अलावा, शाहजहां उस समय दुनिया की बेशकीमती हीरा की खान प्रसिद्ध गोलकुंडा खान का मालिक था. इस लिहाज से वहां से निकलने वाले सभी अमूल्य रत्नों पर भी शाहजहां का ही अधिकार था.
उस दौरान उनके शाही खजाने में 7 टन सोना और 1,116 टन चांदी थी. लगभग 8 पाउंड (50 लाख कैरेट से ज्यादा) हीरे और 100 पाउंड रुबी और पन्ना व 600 पाउंड मोती थे. इसके अलावा अंसख्य जवाहरातों का खजाना था.
मुगल शासकों ने लुटने के डर से कभी भी अपने खजानों को एक जगह इकट्ठा करके नहीं रखा. माना जाता है कि अलग-अलग अनुपात में साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में शाही खजाने को किलों में मजबूत और सुरक्षित दीवारों के पीछे रख दिया गया था.
आगरा के अलावा दिल्ली भी मुगलों की पसंदीदा राजधानी रही थी. ऐसे में शाही खजाने को 7 अलग-अलग किलों में रखा गया.
इसमें से ग्वालियर, मेवाड़, रणथंभौर, लाहौर, असिगढ़, रोहतासगढ़ और आगरा प्रमुख थे. लाहौर के शाही किले में सबसे ज्यादा खजाना रखा जाता था. वहीं, सम्राट के पसंदीदा शहर आगरा में अधिकांश शाही गहने रखे जाते थे.
मनसबदारी में लुटाई दौलत
मुगल साम्राज्य में शासन चलाने के लिए कई अधिकारी-कर्मचारी नियुक्त किए जाते थे. इन्हें मनसबदार कहा जाता था. मनसब असल में एक फारसी शब्द है, जिसका मतलब होता है पद या ओहदा.
माना जाता है कि छोटी और बड़ी रियासतों को मुगल साम्राज्य के अंतर्गत बनाए रखने की मनसबदारी व्यवस्था एक कूटनीतिक चाल थी. हिंदुस्तान में इसकी शुरूआत जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर ने की थी.
इसके तहत राजा-महाराजाओं को मुगल दरबार में बड़े पद या ओहदों पर बिठा दिया जाता था. इसी ओहदे के बदले मुगल सल्तनत इन कर्मचारियों को तनख्वाह देती थी.
माना जाता है कि मुगल दरबार में ऐसे सैकड़ों मनसबदार नियुक्त किए गए थे. उस समय इनको तनख्वाह के तौर पर हजारों रुपए तक और घोड़े व कुछ घुड़सवार शाही सैनिक दिए जाते थे.
अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीतियों के शिकार हुए मुगल
हिंदुस्तान के भव्य मुगल साम्राज्य की चकाचौंध को देखकर यूरोपियन लोगों की आंखें फटी की फटी रह गई. ऐसे में उन्होंने अमेरिका की खोज के बाद हिंदुस्तान को अपनी साम्राज्यवादी नीतियों के अतंर्गत लाने के प्रयास शुरू कर दिए.
उस दौर के यूरोपियन यात्रियों के ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि मुगल साम्राज्य के कुछ शहर उस समय के यूरोप के सबसे बड़े शहरों की तुलना से भी काफी बड़े थे. यूरोपियन व्यापारियों ने 16वीं शताब्दी के बाद से मुगल साम्राज्य के साथ निर्यात पर प्रभुत्व कायम कर लिया था. इससे पहले, पूर्वी अफ्रीका, फारस की खाड़ी, मलाया और इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ कपड़ों का कारोबार ज्यादा था.
इसी के साथ यूरोपियन लोगों ने यूरोप, पश्चिम अफ्रीका और फिलीपींस में नए बाजार खोल दिए. साथ ही यूरोपियन व्यापारिक कंपनियों ने कपड़ा, नील और नमकीन पदार्थों के उत्पादन के लिए गुजरात, कोरोमंडल और बंगाल में नए केंद्र खोल दिए.
इस तरह औद्योगिक ब्रिटिश साम्राज्य के उदय और उसके हस्तक्षेप ने मुगल साम्राज्य को धीरे-धीरे पतन की ओर खिसका दिया.
इससे एक समय पर बलबती मुगल साम्राज्य ने एकाएक ब्रिटिश साम्राज्य के आगे घुटने टेक दिए. आखिरकार, 19वीं शताब्दी के मध्य में हिंदुस्तानी उपमहाद्वीप में मुगल साम्राज्य पूरी तरह से समाप्त हो गया और ब्रिटिश उपनिवेश की शुरूआत हो गई.
Web Title: The Wealth of Mughal Empire, Hindi Article
Feature Image Credit: Utt.am