महाभारत काल से दिल्ली में राजनीतिक अस्थिरता और उथल-पुथल देखने को मिलती रही है. कभी इसका नाम इंद्रप्रस्थ हुआ करता था… शायद तभी से दिल्ली राजनीतिक सत्ता का केंद्र रही है.
यही कारण है कि यहां भारतीय इतिहास के सर्वाधिक शक्तिशाली शासकों ने राज्य किया. आइये देखते हैं इस काल में किस दिशा में दिल्ली का शासन घुमाव लेता रहा–
दिल्ली का सल्तनत काल
अपने कालचक्र में दिल्ली पर अनेक शासकों ने हुकूमत की जो समय-समय पर बदलती भी रही. शासन और हुकूमत के इस परिवर्तन में एक काल आया जिस दौरान भारत में इस्लामिक स्थापत्य शैली का विकास हुआ.
इसे दिल्ली का सल्तनत काल कहा गया.
दिल्ली सल्तनत में 5 अलग अलग वंश मामलूक या ग़ुलाम, ख़िलजी, तुगलक, सैय्यद और लोदी वंश ने शासन किया. आज हम इन्हीं में से एक तुगलक वंश के बारे में बात करेंगे, लेकिन उससे पहले हमें दिल्ली सल्तनत के बारे में जान लेना चाहिए.
दिल्ली सल्तनत की नींव 1206 ईसवी में अफगानिस्तान के लुटेरे शासक मोहम्मद गौरी ने रखी. उसने अपने मशहूर गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को यहां कामकाज देखने के लिए नियुक्त किया था.
गौरी की मौत के बाद तुर्की मूल के कुतुबुद्दीन ऐबक ने यहां गुलाम वंश की स्थापना की और अपने आप को दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान घोषित कर लिया.
कुतुबुद्दीन ऐबक का साम्राज्य मध्य भारत से पूरे उत्तर भारत तक फैला हुआ था. वहीं खिलजी वंश ने अपनी विस्तारवादी नीतियों के तहत दक्षिण भारत की ओर अपना साम्राज्य विस्तार शुरू कर दिया.
Qutub-ud-din Aibak. (Pic: anjanadesigns)
दिल्ली सल्तनत की कमर 1398 ई. में तैमूर के आक्रमण ने तोड़ दी थी. इसके बाद 1526 ई. में अपनी आखिरी सांसें गिन रही दिल्ली सल्तनत पानीपत की लड़ाई के साथ ही ताश के पत्तों की तरह बिखर गई. इस भीषण युद्ध में बाबर ने लोधी को हराकर भारत पर मुगल साम्राज्य की स्थापना की.
खत्म हुआ खिलजी वंश और….
सन 1316 ई. में भारतीय इतिहास के क्रूरतम, विस्तारवादी शासक और खिलजी वंश के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की मौत हो गई. खिलजी का मकबरा दिल्ली में कुतुब मीनार के पास मौजूद है.
इसकी मौत के बाद नाम मात्र ही खिलजी वंश चला और सन 1320 तक दिल्ली सल्तनत से उसका भी पूरी तरह से सफाया हो गया.
अंतिम खिलजी शासक क़ुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी की उसके प्रधानमंत्री खुसरो शाह ने हत्या कर दी, जो हिंदु धर्म से परिवर्तित एक मुसलमान था.
ऐसे में कमजोर पड़ चुकी दिल्ली सल्तनत की गद्दी तुगलक वंश के पहले सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक़ ने खुसरो शाह से छीन ली.
गयासुद्दीन तुगलक क़ुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी के शासनकाल में उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत का गवर्नर था. इसने भी खिलजी वंश की विस्तारवादी नीतियों पर चलते हुए लगभग पूरे भारत को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया था.
गयासुद्दीन तुगलक ने दक्षिण भारत पर विजय पाने के लिए अपने पुत्र जौना खां जिसे बाद में मुहम्मद बिन तुगलक कहा जाने लगा, को भेजा. उसने वारंगल, मदुरा राज्यों को जीत लिया और इस तरह दिल्ली सल्तनत का साम्राज्य दक्षिण भारत तक फैल गया.
Alauddin Khilji. (Pic: facts4u)
दिल्ली अभी दूर है…
गयासुद्दीन तुगलक के शासनकाल में दो सूफी संत बहुत प्रसिद्ध थे. हजरत निजामुद्दीन औलिया और उनके शिष्य अमीर खुसरो दोनों को इस समय बहुत प्रसिद्धि मिली हुई थी. अमीर खुसरो तो गयासुद्दीन के दरबारी कवि थे.
वहीं चाहने वाले तमाम लोगों के कारण निजामुद्दीन औलिया की लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी.
बढ़ती लोकप्रियता के कारण कहीं न कहीं गयासुद्दीन… निजामुद्दीन से चिढ़ने लगा था.
गयासुद्दीन को ये भी डर था कि निजामुद्दीन औलिया और उनके शागिर्द या शिष्य मेरे खिलाफ साजिश रच रहे हैं.
ये बात तब की है जब गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली से बाहर था.
वहीं कहा जाता है कि मुहम्मद बिन तुगलक निजामुद्दीन औलिया का शिष्य बन गया था और निजामुद्दीन ने उसके सुल्तान बनने की भविष्यवाणी कर दी थी.
ये बात पता चलने पर गयासुद्दीन तुगलक ने निजामुद्दीन को दिल्ली छोड़ने का हुक्म दे दिया. असल में गयासुद्दीन इस बात से घबरा गया था उसे डर था कि कहीं बिन तुगलक गद्दी के लालच में उसकी हत्या न करवा दे.
वहीं निजामुद्दीन औलिया ने गयासुद्दीन को अपने जबाव में कहा,
हनूज दिल्ली दूर अस्त, मतलब हजूर दिल्ली अभी दूर है…
ये एक संयोग ही है कि निजामुद्दीन की कही ये बात सच साबित हुई. इससे पहले की निजामुद्दीन दिल्ली छोड़ते उससे पहले ही रास्ते में गयासुद्दीन तुगलक की मौत हो गई और वो इस दुनिया को छोड़कर चला गया.
इब्नबतुता के अनुसार, गयासुद्दीन की मौत का कारण उसके पुत्र मोहम्मद बिन तुगलक का एक षड्यंत्र था. बिन तुगलक ने ही साजिश के तहत अपने बाप गयासुद्दीन का कत्ल करवाया था. गयासुद्दीन अपनी प्राकृतिक मौत से नहीं मरा था उसकी दिल्ली लौटते समय एक दुर्घटना में मौत हो गई थी.
ग्यासुद्दीन को उसी के द्वारा बनवाए गए तुगलकाबाद में दफना दिया गया.
Hazrat Shaikh Khwaja Syed Muhammad Nizamuddin Auliya. (Pic: satyagrah)
तुगलकों का ‘पागल सुल्तान’
गयासुद्दीन तुगलक की मौत के बाद उसका पुत्र मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बना. बिन तुगलक को दुनिया का खान भी कहा जाता है. हालांकि ये मध्यकालीन भारतीय इतिहास का सबसे शिक्षित, विद्वान्, चतुर व योग्य शासक था लेकिन इसके सनकी व्यक्तित्व के कारण इसे दुनिया पागल भी कहती है. इसने अपने बाप की मौत पर पूरे 40 दिनों तक काले कपड़े पहन कर शोक मनाया था.
इब्न-बतूता ने अपनी किताब रेहला में भी मुहम्मद बिन तुगलक के समय की घटनाओं का जिक्र किया है.
मुहम्मद बिन तुगलक भी खिलजी की तरह अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था, लेकिन ऐसा हो न सका. उसने अपने साम्राज्य को ईरान तक फैलाने के लिए 3,70,000 सैनिकों के साथ खुरासान पर हमला करने की योजना बनाई लेकिन ये योजना विफल हुई. सैनिकों को एक साल की तनख्वाह का भुगतान पहले ही कर दिया गया. इससे शाही राजकोष पर काफी प्रभाव पड़ा. उधर छोटे छोटे राज्य कमजोर प्रशासन के कारण अपना मुंह फाड़ने लगे थे.
उन राज्यों को शांत करने के लिए कई युद्ध लड़ने पड़े!
वहीं मंगोलों के कई आक्रमणों के कारण दिल्ली सल्तनत कमजोर हो रही थी, युद्ध में पैसों की बर्बादी ने राजस्व की कमी पैदा कर दी.
दिल्ली सल्तनत में सुल्तान के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया धीरे-धीरे ये अन्य जगहों पर बढ़ने लगा जिससे स्थिति नियंत्रण से बाहर जा रही थी.
अब विद्रोह को दबाने के लिए मुहम्मद बिन तुगलक ने अपनी पूरी ताकत लगा दी. अपने अंत समय में वह दिल्ली सल्तनत में बढ़ रहे विद्रोह को ही दबाने में लगा रहा और 1351 में उसकी मौत हो गई.
Muhammad-Bin-Tughluq. (Pic: wikimedia)
तैमूर के आक्रमण से खत्म हुआ साम्राज्य
मुहम्मद बिन तुगलक की मौत के बाद इसका चचेरा भाई फिरोजशाह तुगलक 20 मार्च, 1351 को दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बना.
इस समय तक दक्षिण भारत के वारंगल, मदुरा, विजयनगर राज्य दिल्ली सल्तनत से बाहर हो चुके थे, हालांकि फिरोजशाह ने उन्हें जीतने का कोई प्रयास नहीं किया. लेकिन फिरोजशाह ने कई बार बंगाल और सिंध पर कब्जा करने की असफल कोशिशें की थीं और हर बार वो वहां के शासकों से हार रहा था.
इसने सन 1360 ई. में ओडिशा पर आक्रमण कर पुरी के जगन्नाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया.
फिरोजशाह तुगलक ने हिसार में गुजरी महल का निर्माण कराया था. कहा जाता है कि फिरोजशाह यहां की एक लड़की को अपना दिल दे बैठा था और उसी के लिए यहां एक किले के अंदर ही इस महल को बनवाया था. वैसे फारसी में हिसार का मतलब होता है किला…
सितंबर 1388 में फिरोजशाह की मौत हो गई और इसी के साथ तुगलक वंश का पतन शुरू हो गया.
महमूद तुगलक वंश का आखिर सुल्तान था जो बेहद डरपोक किस्म का था. दिल्ली सल्तनत पर खतरे के बादल मंडरा रहे थे और फिरोजशाह के अन्य पुत्र महमूद का विरोध कर रहे थे. दिल्ली में राजनैतिक अस्थिरता पैदा हो गई और षड्यंत्र रचे जाने लगे.
ऐसे में अगले तुगलक शासकों के लिए दिल्ली सल्तनत पर अपना दबदबा बनाए रख पाना दूर की कौड़ी लग रहा था. अपनी मौत के डर से सुल्तान महमूद तुगलक दिल्ली छोड़ कर भाग गया.
अब तक कमजोर पड़ चुकी दिल्ली सल्तनत कोई और हमला झेलने की स्थ्िाति में नहीं थी.
लेकिन यहां से मीलों दूर एक लुटेरा भारत पर अपनी नजरें गड़ाए बैठा था.
मौका मिलते ही मंगोलिया के इस लुटेरे तैमूर लंग ने सन 1398 ई. में भारत पर आक्रमण कर दिया.
वो मेसोपोटामिया, फारस अब ईरान और अफगानिस्तान को लूटते हुए दिल्ली की ओर बढ़ गया. वह 18 दिसंबर 1398 ई. को दिल्ली लूटने निकल पड़ा.
तैमूर का भारत पर राज करने का कोई उद्देश्य नहीं था. उसके लाखों सैनिकों ने 15 दिनों तक दिल्ली में लूटपाट की और सारा लूट का माल अपने देश ले गया.
Statue of Amir Timur (Tamerlane) Uzbekistan. (Pic: peakpx)
बदायूंनी ने लिखा है कि तैमूर के दिल्ली पर हमले के बाद मानो यहां अकाल पड़ गया हो, दिल्ली में महामारी फैल गई और तैमूर के हमले में बचे हुए जो लोग थे वो भी अब इस संसार से विदा हो लिए. स्थिति इतनी भयानक हो चुकी थी कि दो महीने तक दिल्ली के ऊपर कोई पक्षी उड़ता नजर नहीं आया.
लगभग बीस वर्षों तक नाम मात्र शासन के बाद 1413 ई. में महमूद की मौत हो गई और इसी के साथ दिल्ली सल्तनत पर तुगलक शासकों का अंत हो गया.
बहरहाल कुछ इस तरह से दिल्ली सल्तनत के एक और शासकों के समूह तुगलक वंश का खात्मा हुआ.
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Web Title: Tughlaq Dynasty of Delhi Sultanate, Hindi Article
Featured Image Credit: fakingnews/wikimedia