साल 1940—41
विमानों, टैंकों, बड़ी तोपों के साथ हिटलर के लाखों जर्मन फौजियों ने एक—एक करके यूरोप के कई देश-चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड, फ्रांस, बेल्जियम आदि -दनादन जीत लिए थे. जर्मन सेना रूस में दाखिल हो चुकी थी और अब बारी थी स्टालिनग्राड की.
‘स्टालिनग्राड का युद्ध’ इतिहास के सबसे महानतम संघर्षों में से एक था.
यही हिटलर की वह भूल थी, जिसने उसे परास्त कर दिया. हिटलर की नाजी सेना को हराने वाले स्टालिन के फौजियों का संघर्ष भी कम नहीं था. दो तरफा मौत की बीच झूल रहे इन्हीं रूसी सैनिकों में शामिल था ‘वसीली जाइटसेव’. एक सामान्य चरवाहा, जिसने नाजी सेना की नाक में दम कर दिया.
आखिर कैसे उसने और रूसी सेना ने हिटलर के नापाक मंसूबों पर पानी फेरा आइए जानते हैं–
बचपन से था निशानेबाजी का ‘शौक’
किसी भी संघर्ष की आंच से दूर उराल में चेल्याबिंस्क क्षेत्र में येलेनोव्स्क के गांव में रहने वाले एक किसान परिवार में वसीली जाइटसेव का जन्म हुआ. उनके दादा ने अपनी राइफल उन्हें खेलने के लिए दी थी और फिर खेल—खेल में ही निशानेबाजी भी सिखाई.
वसीली ने महज 5 साल की उम्र में ‘बेरदान राइफल’ से एक ही गोली दागकर भेड़िये का शिकार किया. उन्होंने अपने बड़े भाई से जंगल में जाल बिछाने और शिकार पर हमला करने के पैतरे भी सीखे.
वक़्त के साथ वसीली जंगल में जीवन बिताने के हर तौर तरीके से वाकिफ हो गए. वह बचपन से ही किसी फौजी की तरह खुद को ट्रेनिंग देते थे. बंदूक चलाने और शिकार करने में भी वह वक़्त के साथ पूरी तरह माहिर हो गए थे.
जब वह जवानी के दिनों में आए, तब तक दूसरा विश्व युद्ध छिड़ चुका था. देश की रक्षा के लिए उन्हें सेना में भर्ती होना पड़ा. वसीली रूसी ‘रेड आर्मी‘ में भर्ती हो गए. उन्हें व्लादिवोस्तोक के पास प्रशांत महासागर में सोवियत नौसेना में सेवा करने के लिए भेजा गया.
1941 में जब नाजी सेना ने सोवियत संघ पर आक्रमण किया तो उन्हें अपने साथियों के साथ फ्रंटलाइन में स्थानांतरण कर दिया गया.
Red Army Captain Vasily Zaytsev (Pic: defence)
…और खतरे में पड़ा स्टालिनग्राड!
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान शुरूआती समय में ही हिटलर और स्टालिन के बीच सैनिक संधि संपन्न हो गई थी. दोनों ने ही एक दूसरे को वादा किया था कि वह एक दूसरे पर हमला नहीं करेंगे.
जैसे-जैसे हिटलर का राज दूसरे देशों पर होने लगा उसका मन बदल गया. उसने स्टालिन से किया अपन वादा तोड़ने का सोच लिया और रूस पर वार करने का प्लान बना डाला.
1941 को नाजी ने जैसे ही पोलैंड को जीता उनका मनोबल पहले से भी ज्यादा बढ़ गया. उन्होंने रूस पर हमला करने के लिए अपनी सेना भेज दी. नाजी सेना हथियारों के एक बड़े दस्ते के साथ आगे बढ़ती जा रही थी. कोई भी उनके सामने आने से कतरा रहा था. रूस की सेना को वह पराजित करते हुए मोस्को तक जा पहुंचे थे.
स्टालिन के लिए यह बेहद ही शर्म की बात थी कि नाजी सेना उसकी राजधानी तक घुस चुकी थी. मोस्को से आगे बढ़ के नाजी सेना स्टालिनग्राड तक आ पहुंची थी. इस शहर का नाम स्टालिन के नाम पर रखा गया था. कहते हैं कि हिटलर इसे जीत के स्टालिन को बेइज्जत करना चाहता था. इसके बाद तो खुद स्टालिन ने सोच लिया कि वह किसी भी कीमत पर स्टालिनग्राड को नहीं हारेगा.
स्टॉलिन की ‘रेड आर्मी’ को आमने—सामने की लड़ाई के लिए तैयार किया. स्टालिन का खौफ कम नहीं था.
सैनिकों के सामने बड़ा संकट था!
यदि वह साधारण हथियारों के साथ युद्ध मैदान में उतरते तो नाजी सेना के हाथों कत्ल होना संभव था. यदि वह वापिस लौटते तो स्टालिन के बड़े सेना अफसर उन्हें गोलियों से भून डालते!
आखिर में सैनिकों ने युद्ध मैदान में मौत का आमंत्रण स्वीकार किया.
वह सभी बंदूक और असलहे लेकर तैयार हो गए हिटलर की नाजी सेना का सामना करना के लिए. रेड आर्मी के उन हजारों जवानों में से एक वसीली भी थे. उन्हें भी हिटलर की सेना से लड़ना था.
Rad Army (Pic: pictures…)
वसीली जाइटसेव पर आई बड़ी जिम्मेदारी!
नाजी सेना जैसे ही स्टालिनग्राड पहुंची उनके और रेड आर्मी के बीच जंग शुरू हो गई. रेड आर्मी एक बिल्डिंग के अंदर छिपी हुई थी और वहीं से नाजी सैनिकों को अपना शिकार बना रही थी.
नाजी सेना से लड़ते हुए सैनिक पसीने से धुंधलाये चेहरे लिये, एक मंजिल से दूसरी मंजिल पर, हथगोलों से एक-दूसरे पर वार कर रहे थे. रेड आर्मी कोशिश बहुत कर रही थी मगर नाजियों के सामने वह कमजोर पड़ने लगी थी.
ऐसे में उन्हें एक स्नाइपर की जरूरत महसूस हुई. सब जानते थे कि वसीली बहुत ही अच्छे निशानेबाज हैं, इसलिए उन्हें इस काम की जिम्मेदारी सौंपी गई.
उन्होंने खुद को छिपाने के लिए लाशों का सहारा लिया. वह मैदान में पड़ी लाशों के बीच छिप गए और वहीं से उन्होंने नाजी सैनिकों को अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया. वह अपने हर शिकार को ‘बचपन के भेड़िये’ की तरह समझ रहे थे.
उनकी खास रणनीति थी कि जब भी आसमान से कोई विमान गुजरता वह तभी अपने शिकार पर गोली दागते. ऐसे में दुश्मनों को इस बात का अंदाजा नहीं हो पाता कि गोली किस दिशा और कितनी दूरी से चली है?
एक—एक करके वसीली ने 242 जर्मन सैनिकों को मार गिराया और इसके लिए उन्होंने 243 शॉट्स लगाए. यानी उनकी हर एक गोली पर एक सैनिक की मौत हुई थी. रेड आर्मी के घातक स्नाइपर की बात कुछ ही दिनों में पूरे रूस में फ़ैल गई थी. इसके कारण नाजी सैनिकों में वसीली के नाम का डर बैठ गया था.
Soldiers Of The Red Army (Pic: pinterest)
जर्मन स्नाइपर से हुई टक्कर…
वसीली नाजी सेना पर भारी पड़ रहे थे. इसके जवाब में खासतौर पर बर्लिन से स्नाइपर मेजर इरविन कोएनिग को बुलाया गया. उन्हें केवल रूसी स्नाइपर वसीली जाइटसेव को मार गिराने की जिम्मेदारी दी गई.
स्नाइपर मेजर इरविन कोएनिग ने वसीली के निशाने लगाने और काम करने के तरीकों के बारे में अपने जासूसों से जानकारी हासिल की. उसी आधार पर वह अपना निशाना साधकर बैठे रहे. उस दिन वसीली और कोएनिग की पहली मुलाकात होने वाली थी.
वसीली ‘रूसी महिला स्नाइपर ल्यूडमिला’ के साथ अपने शिकार की तलाश में बैठे थे कि तभी कोएनिग ने हमला किया और अचानक हुए इस हमले में ल्यूडमिला की मौके पर ही मौत हो गई.
वसीली इस घटना से चौंक गए.
उन्हें इस बात का आभास नहीं था कि नाजी सेना भी इस तरह का कोई घातक स्नाइपर ला सकती है. इसके बाद तो वसीली पूरी तरह तैयार हो गए नाजी स्नाइपर से लड़ने के लिए.
Vasily Zaytsev (Pic: anmysite)
वसीली की अचूक कोशिश!
कोएनिग को एक जासूस के जरिए पता चला कि वसीली सुरंग में छिपकर रहते हैं. वह पानी के टूटे हुए पाइप के जरिए जमीन पर आते थे. इस बात की जानकारी होने के बाद तो कोएनिग ठीक उसी जगह निशाना साधकर वसीली का इंतजार करने लगे.
पर उस दिन कुछ अलग हुआ!
वसीली रोजाना जिस पाइप से बाहर आते थे, वह उस दिन उस पाइप से नहीं बल्कि दूसरे पाइप से बाहर आए. कोएनिग को आहट हुई और उन्होंने राइफल दूसरी तरफ घुमा ली. चूंकि पहले से तैयारी नहीं थी इसलिए वसीली के बाहर आने पर जब कोएनिग ने निशाना लगाया तो वह चूक गया और वसीली बच गए.
वसीली ने खुद को एक पाइप के पीछे छिपा लिया. तभी हवाई हमला हुआ और कांच के कुछ टुकड़े वसीली के आसपास गिरे. दूर से अपने निशाने पर नजर रखे हुए कोएनिग के लिए यह अच्छा मौका था.
उन कांच के टुकड़ों में वह साफ तौर पर वसीली को देख सकते थे. खुद को बचाने के चक्कर में वसीली की राइफल भी गिर गई थी. उन्होंने अपने साथी को इशारा किया कि वह कहीं से एक कांच का टुकड़ा लेकर आए.
जिस कांच से कोएनिग वसीली पर नजर रखे हुए थे उसी से वसीली ने भी अंदाजा लगा लिया कि कोएनिग कहाँ है!
उन्होंने अपने साथी से कहा कि वह दूसरे कांच के टुकड़े को सूर्य की रौशनी की तरफ करे. जैसे ही ऐसा हुआ, कांच पर सूर्य की तेज रौशनी पड़ी जो रिफलेक्ट होकर उस कांच पर पड़ी जिसे कोएनिग देख रहे थे.
कांच अचानक से चमक पड़ा. चकाचौंध के बीच कोएनिग कुछ समझ पाते कि वसीली ने अपनी राइफल उठाकर गोली चला दी.
इस हमले से कोएनिग सिर्फ घायल हुए, मगर वसीली के दिमाग के कायल भी हुए.
Vasily Zaytsev Great Russian Sniper (Representative Pic: voenspez)
एक गोली और जर्मन स्नाइपर ढ़ेर!
वसीली और कोएनिग के बीच बहुत लंबे समय तक जंग चलती रही. दोनों एक दूसरे को गोली मारने की कोशिश करते रहते थे मगर वह गोली अन्य सैनिकों को लग जाती थी. घंटों-घंटों दोनों एक दूसरे के इंतज़ार में बैठे रहते थे. इसी बीच वसीली को उनके एक जासूस ने कोएनिग की पोजीशन की जानकारी दे दी.
वह जानते थे कि जर्मन सैनिक रेड आर्मी से आमने-सामने होकर लड़ने से कतरा रहे हैं इसलिए ही एक जगह पर बने हुए हैं.
कोएनिग बहुत लंबे समय तक लाशों के ढेर के पीछे छिपे वसीली के बाहर आने का इंतजार करते रहे. वसीली की ओर से कोई भी हलचल नहीं हुई. परेशान होकर खुद कोएनिग अपनी जगह से हिल गए.
उन्होंने आसपास वसीली को तलाश करने की कोशिश की और यही उनकी सबसे बड़ी गलती साबित हुई. वह अपने सुरक्षा-स्थान से बाहर आ गए थे.
यह मौका वसीली खोना नहीं चाहते थे. वह अचानक ही कोएनिग के सामने आ गए और राइफल से पहली ही गोली उनके माथे पर दाग दी. एक ही गोली में जर्मन स्नाइपर ढ़ेर हो गया.
Vasily Zaytsev Great Russian Sniper (Representative Pic: gamingrespawn)
फिर आई ‘वो’ सुबह…
स्नाइपर को मारने के बाद वसीली के साथ—साथ रूसी सेना ने भी राहत की सांस ली. वसीली का साहस देखकर रूसी सेना की हिम्मत बढ़ गई और उन्होंने दोगुनी ताकत से नाजी सेना का सामना किया. शहर के अंदर 31 जनवरी तक लड़ाई चलती रही, और अंत में जर्मन सेना पराजित हुई.
नाजी सेना के एक अध्यक्ष को गिरफ्तार कर लिया गया था जिसके बाद उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया.
यह इतिहास में एक महानतम विजय थी. स्टालिनग्राड की गलियों में लड़ने वाले योद्धाओं ने दुनिया को भौंचक्का कर दिया था. आखिर में उन्होंने जर्मन को हार का स्वाद चखा ही दिया.
इसके बाद धीरे-धीरे नाजी सेना का पतन भी शुरू हो गया.
Vasily Zaytsev Great Russian Sniper (Pic: taconbanana)
स्टालिनग्राड में मिली जीत में वसीली का बहुत बड़ा योगदान था. उन्होंने अगर अपनी अचूक निशानेबाजी का हुनर नहीं दिखाया होता तो शायद नाजी सेना के हाथों रूसी सेना हार जाती. मुश्किल परिस्थितियों के बावजूद भी वसीली ने साहस दिखाया और रूसी सेना को जीत की ओर ले गए. यही कारण है कि उनका नाम सबसे बेहतरीन स्नाइपर में लिया जाता है.
Web Title: Vasily Zaytsev Great Russian Sniper, Hindi Article
Feature Image Credit: pbs