क्या कोई त्यौहार ऐसा भी हो सकता है, जो खुशी के लिए नहीं बल्कि मातम के लिए मनाया जाता है?
जी हां मातम के लिए!
शिया मुस्लिमों द्वारा मनाया जाने वाला मुहर्रम एक ऐसा ही त्यौहार है.
ऐसे में आपके द्वारा किसी को मुहर्रम के लिए ‘हैप्पी मुहर्रम’ कहना भारी पड़ सकता है. आपको जानना चाहिए कि मुहर्रम क्या है? क्यों शिया मुस्लिम इस त्यौहार को मातम के रुप में मनाते हैं? आखिर वह क्यों सड़कों पर जुलूस निकालकर खुद को जख्मी करते हैं:
क्या है मुहर्रम?
सबसे पहले यह जानना जरुरी है कि मुहर्रम है क्या? सीधे तौर पर देखा जाये तो मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है. दूसरा इसका संबंध कर्बला से है. हर शिया मुस्लिम मक्का और मदीना के बाद जीवन में एक बार कर्बला जाने की इच्छा जरुर रखता है. अब सवाल यह उठता है कि आखिर कर्बला में ऐसा है क्या, जो शिया मुस्लिमों के लिए यह इतना खास स्थान है.
आपको बताते चलें कि यही वह जगह है जहां, उनके इमाम हुसैन की कब्र मौजूद है. वहीं हुसैन, जो सुन्नी मुस्लिमों के चौथे खलीफा हजरत अली के बेटे थे. उनके बारे में कहा जाता है कि वह महज 6-7 साल के थे, जब उनकी मां उन्हें हमेशा के लिए छोड़कर चली गई थी. नाना पैगंबर मुहम्मद साहब से मिले इल्म के साथ वह बड़े हुए.
हुसैन ने हमेशा नाना के बताये इस्लाम को सिर-आंखों पर रखा. कहा जाता है कि उनके इन्हीं आदर्शों की वजह से बाद में उन्हें कर्बला की जंग झेलनी पड़ी थी, जिसमें उनकी हत्या कर दी गई थी.
Mourning of Muharram (Pic: reuters)
‘कर्बला जंग’ की कहानी…
असल में ‘इमाम हुसैन’ अपने नाना पैगंबर मुहम्मद के बताये इस्लाम के बड़े पैरोकार थे. जबकि, मोहम्मद साहब के मरने के बाद सत्ता में काबिज ‘यजीद’ सब कुछ अपने हिसाब से चाहता था. वह इस्लाम का शहंशाह बनाना चाहता था. चूंकि वह पावर में था, इसलिए उसने इमाम हुसैन को झुकाने की सभी कोशिशें कीं.
इसी के चलते स्थितियां खराब होती गईं और बाद में एक जंग का रुप ले लिया. हुसैन अपने काफिले के साथ मुहर्रम की शुरुआत में कर्बला पहुंचे.
उनके साथ औरतें, बूढ़े और बच्चे सब मौजूद थे. ‘यजीद’ को अपने प्रति यह खिलाफत रास नहीं आई. उसने इन लोगों का पानी बंद कर दिया और जंग के लिए मजबूर कर दिया.
10 मुहर्रम इस जंग की तारीख तय की गई. इसमें एक तरफ हुसैन थे, जिनके पास सिर्फ 72 लोग थे. दूसरी तरफ ‘यजीद’ था, जिसके पास लगभग 8000 लोगों की विशाल सेना थी. हुसैन इस बात को समझते थे कि जंग में उनका जीतना मुश्किल है. उन्हें अपनी चिंता बिल्कुल नहीं थी. उन्हें चिंता थी, तो अपने साथ आये लोगों की.
हुसैन किसी की भी जिंदगी को दांव पर नहीं लगाना चाहते थे. वह लोगों के पास गये. उन्होंने उनसे वापस जाने के लिए कहा. उन्होंने चारों तरफ अंधेरा तक करा दिया था, ताकि अगर किसी साथी की हिम्मत उनके सामने जाने की न हो, तो वह अंधेरे में आसानी से जा सके. कुछ देर बाद उजाला होने पर उन्होंने पाया कि कोई भी साथी उन्हें छोड़कर नहीं गया था.
Muharram (Pic: wallpapers.ae)
काट दिया गया ‘हुसैन’ का गला
उन्होंने तय कर लिया था कि वह जीयेंगे तो हुसैन के साथ और मरेंगे तो हुसैन के साथ. तय समय के साथ जंग शुरु हुई. जल्द ही हुसैन के कई सारे साथी मारे गये. कुछ देर बाद ही ‘यजीद’ के लोगों ने हुसैन को उनके बचे हुए साथियों के साथ बंदी बना लिया. उन्हें पानी के लिए तड़पाया गया.
हुसैन के 6 महीने के बेटे तक पर ‘यजीद’ को तरस नहीं आया. वह प्यास से बुरी तरह बिलख रहा था. हुसैन ने ‘यजीद’ से बच्चे को पानी पिलाने के लिए कहा, किन्तु उसने पानी नहीं दिया. हां, मौत जरुर दे दी. एक-एक करके हुसैन के दोस्तों और रिश्तेदारों को भी ‘यजीद’ मारता रहा, ताकि हुसैन टूट जाये. बावजूद इसके हुसैन उसके सामने नहीं झुके. अंत में जब ‘यजीद’ को लगा कि वह नहीं मानेंगे तो उसने हुसैन की गर्दन कटवा दी.
कहने के लिए तो ‘यजीद’ ने इमाम हुसैन को मार दिया था, लेकिन वह मर कर भी अपने लोगों में जिंदा रहे. वह हमेशा के लिए अमर हो गये थे. ‘यजीद’ जीत कर भी हार चुका था.
बाद में एक क्रांति आई, जो हुसैन के अनुयायियों पर काबू नहीं पा पाई.
हुसैन की याद में लोगों ने मुहर्रम में मातम मनाना शुरु कर दिया, जो लगभग 1400 सालों से बदस्तूर जारी है. इसमें वह मातमी जुलूस निकालकर दुनिया के सामने उन ज़ुल्मों को रखना चाहते हैं, जो हुसैन व उसके परिवार पर किये गये थे.
‘सुन्नी’ क्यों नहीं मनाते ‘मुहर्रम’
शिया मुस्लिम शहादत और बलिदान को मानने वाले होते हैं, जबकि सुन्नी अल्लाह की शक्ति पर ज्यादा जोर देते हैं. शायद इसी कारण वह मुहर्रम में शामिल नहीं होते. उनका मत होता है कि हर सजा को देने का हक अल्लाह को है. हमें खुद को लहूलुहान करने का कोई हक़ नहीं है.
कुछ समय पहले सुन्नी मुसलमानों के एक संगठन ने इसको लेकर एक जनहित याचिका भी दायर की थी. इस याचिका में ह्यूमन राइट्स की बात करते हुए, बच्चों के जुलूस में शामिल होने पर रोक लगाने की मांग की गई थी.
इस पर हाईकोर्ट ने फौरी तौर पर संज्ञान लेते हुए कहा था कि फिलहाल वह इस मामले को धार्मिक गुरुओं के ऊपर छोड़ती है. वह अपनी जिम्मेदारी निभाये और मुहर्रम के दौरान निकलने वाले जुलूस में बच्चों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दें.
Mourning of Muharram (Pic: festivalsadvices)
भले ही मुहर्रम पर निकलने वाले मातमी जुलूस को लेकर लोगों के अलग-अलग मत हों, लेकिन यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है. इसके लिए शिया समुदाय बड़े-बड़े से दर्द को सहते हुए नज़र आते हैं.
Web Title: What is Muharram, Hindi Article
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