एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते,
पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा.
ओ नादान पड़ोसी अपनी आंखें खोलो,
आजादी अनमोल ना इसका मोल लगाओ.
अमेरिकी शस्त्रों से अपनी आजादी को
दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो.
दस बीस अरब डॉलर लेकर आने वाली बरबादी से
तुम बच लोगे यह मत समझो.
धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से
कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो.
हमलों से, अत्याचारों से, संहारों से
भारत का शीश झुका लोगे यह मत समझो.
ये चंद पंक्तियां बताती हैं कि भारत क्या है, और पाकिस्तान क्या.
एक ओर जहां भारत अपने दुश्मनों को ये बताता है कि वो उसके आगे झुकने वाला नहीं है. वहीं, वो ये भी बताने को तत्पर है कि वीभत्स कत्लेआम के बाद बना नया देश आजादी के मोल को समझे.
ये भारत कोई और नहीं, बल्कि अटल बिहारी वाजपेयी जी हैं.
कवि हृदय भारत के पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी जी ने अपने संवादों और कविताओं के माध्यम से लोगों को अपना दीवाना बनाया था.
वह सत्य था, जो उनकी कविताओं के माध्यम से लोगों के दिलों में उतर जाता. और फिर एक सत्य, कारगिल विजय भी थी. जो इन कोमल हृदय के प्रधानमंत्री काल में भारत को मिली.
बहरहाल, जब भारत-पाकिस्तान में दोस्ती और मित्रता की बात आई, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलजी ने इसमें बढ़ चढ़कर भाग लिया. और इससे पहले कि पाकिस्तान इस मामले में एक कदम बढ़ाए, इधर से दो कदम पहले ही बढ़ जाते थे.
और इस दुश्मनी-मित्रता में एक दौर ऐसा भी आया, जब भारत के हृदय सम्राट अटल बिहारी वाजपेयी जी ने पाकिस्तान के लोगों का भी दिल जीत लिया.
कैसे आइए जानते हैं –
दोस्त बदले जा सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं...
सन 1977 में छठी लोकसभा के लिए आम चुनावों के बाद मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी. इस दौरान अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बनाए गए.
ये वही समय था, जब अटलजी द्वारा संयुक्त राष्ट्र में पहली बार हिन्दी में भाषण दिया गया था.
बहरहाल, विदेश मंत्री बनने के बाद अपने पड़ोसियों के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्तों की बयार इन्होंने ही शुरू की थी.
21 फरवरी 1999 को दिए अपने एक भाषण में उन्होंने पड़ोसी को साफ संदेश दिया कि "पाकिस्तान फले फूले हम चाहते हैं और हम फलें-फूलें यह आप भी चाहते होंगे. इतिहास बदला जा सकता है, मगर भूगोल नहीं बदला जा सकता. आप दोस्त बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं बदल सकते, तो अच्छे पड़ोसी के नाते रहें."
इसलिए वे तमाम तरह के शांति प्रयासों में लगे रहे.
पाकिस्तान ने स्वागत में बिछाए पलक-पावंड़े
इसी की परिणीती थी, जब 19 फरवरी 1999 को प्रधानमंत्री अटलजी ने दिल्ली-लाहौर के बीच 'सदा-ए-सरहद' बस सेवा की शुरूआत की. और खुद इस बस से पाकिस्तान का दो दिवसीय दौरा भी किया.
अटलजी के इस मैत्री पूर्ण कदम का स्वागत पूरे पाकिस्तान ने दिल खोलकर किया था. आखिर हो भी क्यों ने! हिन्दोस्तान विभाजन से बंटे अपने लोगों से मिलने का ये महान जरिया जो बनने वाला था.
शाम के तकरीबन 4 बजे थे. प्रधानमंत्री वाजपेयी दिल्ली-लाहौर बस द्वारा भारत-पाक सीमा पहुंचे. बॉर्डर के दोनों ओर खड़े सैकड़ों लोगों ने इस शाम का जश्न मनाया और हाथ हिलाकर वाजपेयी जी का अभिनंदन किया.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अपने वरिष्ठ मंत्रियों के साथ भारतीय समकक्ष को रिसीव करने 15 मिनट पहले ही बॉर्डर पर आ पहुंचे थे.
जल्द ही तमाम भारतीयों के साथ प्रधानमंत्री वाजपेयी बस में सवार होकर बॉर्डर की ओर बढ़े. जैसे ही बस ने पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश किया, पाकिस्तानी रेंजर्स ने भारतीय धुन बजानी शुरू कर दी.
इधर, नवाज शरीफ ने भारतीय प्रधानमंत्री के स्वागत में पलक पांवड़े बिछा रखे थे, उधर उस दिन पूरा लाहौर बंद था. कुछ पाकिस्तानी राइट विंग के मिलिटेंट ने लाहौर बंद बुलाया था.
बावजूद इसके वहां मौजूद भीड़ अटलजी के कदमों की प्रशंसा करने के लिए काफी थी.
आपसी रंजिश और कड़वाहट में बीता वक्त, लेकिन
20 फरवरी 1999 को लाहौर के शाही किला में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक जोरदार भाषण दिया.
इस भाषण के कुछ अंश इस प्रकार हैं –
"जनाब प्राइम मिनिस्टर साहब!
दोस्तो, बहनो और भाइयो.
आज जब हम एक-दूसरे से यहां रू-ब-रू हैं, एक नई सदी और एक नया युग हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रहा है.
हमारी आजादी के 50 साल गुजर गए. जहां हमें इस पर फक्र है, वहां थोड़ा सा अफसोस भी है.
फक्र इसलिए क्योंकि दोनों मुल्कों ने अपनी अपनी आजादी को बरकरार रखते हुए, तरक्की की दिशा में कदम उठाए हैं. लेकिन अफसोस इसलिए कि 50 साल के बाद भी हम गरीबी और बेरोजगारी से निजात नहीं पा सके हैं.
वजीर-ए-आजम साहब, मैं आपका शुक्रिया करता हूं. कि आपने इस तारीकी जगह पर मेरे लिए दावत का इंतजाम किया है. ये वो शानदार किला है, जिसकी गोद में शाहजहां ने जन्म लिया था. जहां अकबर ने अपनी जिंदगी के 10 साल से भी ज्यादा गुजारे थे.
आपने जिस गर्मजोशी के साथ ख़ैर मद्दम और मेहमान नवाजी की है, उससे मुझे और मेरे डैलीगेशन को बहुत खुशी हुई है.
जनाब, वजीर-ए-आजम साहब! आपने इस किले और शहर लाहौर की रवायात को पूरी तरह कायम रखा है.
प्रधानमंत्री महोदय, पिछले दस सालों में हिन्दोस्तान के किसी वजीर-ए-आजम का ये पहला दौरा है. मुझे आपके बीच आकर बहुत खुशी हुई. मुझे इस बात के लिए खुशी थी कि मैं अमन और दोस्ती का पैगाम लेकर आपके बीच आ रहा हूं. लेकिन अफसोस इसलिए था कि हमने इतना वक्त आपसी रंजिश और कड़वाहट में बिता दिया.
भारत और पाकिस्तान जैसे दो महान देशों के बीच 50 सालों तक आपसी मनमुटाव चलता रहे, ये शोभा नहीं देता.
जब मैं आपके बीच विदेश मंत्री के नाते आया था, तब मैं अकेला था. मेरे साथ कुछ अफसर थे, लेकिन आज मेरे साथ हिंदुस्तान के सभी तबकों के जनप्रतिनिधि और नुमाइंदे आए हैं.
लाहौर और दिल्ली के बीच बस का चलना, सिर्फ दोनों मुल्कों के बीच आवाजाही को आसान बनाना नहीं है. दोनों देशों के बीच दौड़ती और उन्हें एक-दूसरे से जोड़ती ये बस, दोनों मुल्कों के लोगों की इस चाहत को प्रकट करती है कि हमारे संबंध सुधरें और हम मिल-जुलकर रहें.
अगर बस सिर्फ बस होती, अगर बस लोहे और इस्पात की बनी सिर्फ एक गाड़ी होती, तो दोनों मुल्कों में, और दोनों मुल्कों में ही क्यों... लगभग सारी दुनिया में, इतनी हलचल और उम्मीदें पैदा नहीं करती.
जनाब, वजीर-ए-आजम! हमारा ये फर्ज है कि हम अपने लोगों की उम्मीदों और इच्छाओं के अनुसार, भरोसा और भाईचारा पैदा करें. और दोनों देशों के बीच सहयोग का मजबूत ढांचा खड़ा करें.
हाल ही के कुछ महीनों में हमारी बातचीत में ऐसे मुद्दों पर ध्यान गया है, जिससे सीधा लोगों को फायदा पहूंचेगा. दोनों मुल्क इस मिलीजुली बात का सिलसिला जारी रखे हुए हैं, ताकि ये तय हो सके कि इंसानियत से जुड़े मुद्दों को जल्दी से जल्दी हल किया जाए.
बिजली की खरीद जैसे आर्थिक और व्यापारिक सहयोग की संभावनाओं का पता लगाकर, उन पर कार्रवाई की जाए. आपसी यकीन पैदा करने के तरीकों पर बातचीत की जाए और उन पर आम राय बने.
ये एक शुरूआती कदम है. मुझे यकीन है कि हम जो कुछ भी मिल-जुलकर काम करना चाहते हैं, उस पर अमल करने के लिए अपने-अपने अफसरों को हिदायतें देंगे.
हमने अपने रिश्तों के उन पहलुओं पर भी बातचीत की है और आगे भी करेंगे, जिन पर हम एक राय नहीं हो पा रहे हैं. उन पर बातचीत जरूरी भी है.
चूंकि हम मसलों को हल करना चाहते हैं, इसलिए हमें इस बात का ख्याल रखना होगा कि ऐसा कोई सवाल नहीं है, जिसे सीधी बातचीत के जरिए सुलझाया न जा सके.
दरअसल, यही एक रास्ता है.
आज हमारे आपसी रिश्तों में कोई ऐसा मसला नहीं है, जिसका हल हिंसा और खून खराबे से निकाला जा सके. मुश्किल और बकाया मसलों का हल, एक साफ-सुथरे माहौल में और एक संतुलन, नरमी और सच्चाई का रास्ता अपनाकर ही किया जा सकता है.
जो लोग हिंसा की वकालत करते हैं, हिंसा का रास्ता अपनाते हैं और हिंसा को बढ़ावा देते हैं, उनसे मुझे एक ही बात कहनी है, वे अमन और समझबूझ के रास्ते की सच्चाई को समझें. यही वजह है कि हम कम्पोजिट डायलॉग के सिलसिले में सभी बकाया मुद्दों पर, जिनमें जम्मू कश्मीर शामिल है, बातचीत का स्वागत करते हैं.
जैसे-जैसे, हम एक नए युग की ओर बढ़ रहे हैं, भविष्य हमें दावत दे रहा है. वो हमें पुकार रहा है, सचमुच हमसे मांग कर रहा है कि हम अपने बच्चों के बच्चों, उनके बच्चों और आगे आने वाली नई पीढ़ी की भलाई के बारे में सोचें.
हिंदुस्तान से मैं एक ही संदेशा लाया हूं. हम एक ऐसा रास्ता बनाकर जाएं. जिससे विरोध व आपसी मतभेद मिटें तथा पुख्ता अमन-चैन कायम हो. दोस्ती, भाईचारे तथा सहयोग का माहौल बने.
मुझे पूरी उम्मीद है कि हम इकट्ठी कोशिशों के जरिए ऐसा करने में कामयाब होंगे."
आप तो पाकिस्तान में भी चुनाव जीत सकते हैं...
अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान अटलजी ने मीनार-ए-पाकिस्तान का भी दौरा किया. जहां उन्होंने बताया कि पाकिस्तान का अस्तित्व भारत के साथ मित्रता के संबंधों पर टिका हुआ है.
उनका साफ संदेश था कि अगर मित्रता की राह में पाकिस्तान एक कदम बढ़ाएगा, तो हम दो कदम आगे आएंगे.
इसी समय लाहौर के गवर्नर्स हाउस में प्रधानमंत्री अटलजी ने एक दिल को छू लेने वाला भाषण दिया. इस भावपूर्ण भाषण ने पाकिस्तान की जनता को अटलजी का कायल बना दिया.
उनके भाषण देने के अंदाज और लोगों में उनके प्रति दीवानगी देख तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ये कहने पर मजबूर हो गए थे कि वाजपेयी साहब, अब तो आप पाकिस्तान में भी चुनाव जीत सकते हैं.
इसके बाद भारत और पाकिस्तान में 'लाहौर घोषणा-पत्र' पर दस्तखत हुए.
अटलजी के मित्रतापूर्ण रवैये का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि जब पाकिस्तान ने भारत के कारगिल पर हमला किया, तब भी ये बस सेवा बदस्तूर जारी रही.
इस तरह से भारत ने कारगिल जीता, तो उधर दिल्ली लाहौर बस सेवा के जरिए अटलजी ने पाकिस्तानियों के दिलों को भी जीत लिया.
Web Title: When Atal Bihari Vajpayee Won Heart of Pakistani People, Hindi Article
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