चार जून इतिहास की दृष्टि से काफी जद्दोजहद वाला दिन साबित हुआ!
इस दिन पूरे विश्व में कहीं लडाइयां हुईं, तो कहीं समझौते. इसी के साथ इस दिन कुछ ऐसी घटनाएँ भी हुईं, जिन्होंने एक तरफ लोगों में रोष भरा, तो दूसरी तरफ उन्हें आश्चर्यचकित भी किया. इन घटनाओं ने लोगों को इस बात पर सोचने को मजबूर किया कि वे जिस व्यवस्था में रह रहे हैं, क्या उसमें उनका भविष्य सुरक्षित है!
तो आइए जानते हैं इस दिन घटी कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में..
शुरू हुई मिडवे की लड़ाई
आज ही यानी 4 जून के दिन 1942 में मिडवे की लड़ाई शुरू हुई .
यह लड़ाई मुख्य रूप से अमेरिका और जापान के बीच लड़ी गई. यह द्वितीय विश्व युद्ध की एक महत्वपूर्ण लड़ाई मानी जाती है. इस युद्ध के बाद अमेरिका ने जापान के ऊपर निर्णायक बढ़त हासिल कर ली.
यह लड़ाई मुख्य रूप से पानी और हवा में लड़ी गई. इसमें जापान के चार और अमेरिका के केवल एक एयरक्राफ्ट ले जाने वाले युद्धक पानी का जहाज नष्ट हुआ.
इससे पहले जापान ने मलेशिया, सिंगापुर और प्रशांत क्षेत्र के कई द्वीप समूहों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था. जापान को अमेरिका अपना सबसे बड़ा शत्रु नज़र आ रहा था. ऐसे में जापान ने अमेरिका के ऊपर हमला करने की योजना बनाई.
इसी क्रम में होनुलूलू के उत्तर पश्चिम में हजारों मील दूर स्थित मिडवे द्वीप संघर्ष का प्रमुख क्षेत्र बनकर उभरा. जापान की योजना इस द्वीप समूह को कब्जे में करने के बाद अलास्का की तरफ बढ़ना था.
जापान को यह आक्रमण अचानक से करना था, ताकि अमेरिका संभल न पाए.
किन्तु, अमेरिका की खुफिया एजेंसियों ने इस बात का पता लगा लिया. अगर उन्होंने इसका पता ना लगाया होता, तो अमेरिका को इस लड़ाई में हार का सामना कर सकना पड़ता था.
असल में अमेरिका को खुफिया सूचना मिल चुकी थी, इसलिए उसने जापान के जहाजों के ऊपर बीच रास्ते में ही हमला कर दिया. जापान इस आकस्मिक हमले के लिए तैयार नहीं था, इसलिए उसे भारी क्षति हुई.
इस लड़ाई के ख़त्म होने के बाद जापान की जल शक्ति बहुत क्षीण हो गई. इसने प्रशांत क्षेत्र में जापान का दबदबा ख़त्म करके शक्ति संतुलन को बराबरी पर ला दिया, जिसने द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम पर बहुत प्रभाव डाला.
चीन की क्रूरता की कहानी
4 जून के दिन 1989 में चीन में तियानमेन चौक पर जनसंहार हुआ. यह जनसंहार तत्कालीन चीनी सरकार ने करवाया, इस कारण विश्व भर में उसकी तीखी आलोचना हुई.
असल में मई 1989 में करीब 10 लाख चीनी नागरिक, जिनमे से ज्यादातर विद्यार्थी थे, बीजिंग में चीनी सरकार के खिलाफ इकट्ठे हुए थे. उनका कहना था कि चीनी सरकार बहुत दमनकारी है, इसलिए उसमें शामिल नेताओं को इस्तीफ़ा देना चाहिए और चीन में एक लोकतान्त्रिक राज्य की स्थापना होनी चाहिए.
आगे करीब लगातार तीन हफ्ते तक चीनी प्रदर्शनकारियों ने सरकार के खिलाफ रैलियां निकालीं और नारे लगाए. चीनी सरकार इस प्रदर्शन से बुरी तरह से चिढ़ गई और जवाब में उसने सेना को प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए भेज दिया.
इसी क्रम में चीनी सेना 4 जून को तियानमेन चौक पर पहुंची और पहुँचते ही उसने प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियों की बौछार कर दिए. इसमें बहुत से प्रदर्शनकारी इस बीच भाग गए, लेकिन कुछ ने डटकर सेना का सामना किया.
उन्होंने चीनी सेना पर पत्थर फेंके और टैंकों को जला दिया.
इस पूरे घटनाक्रम में हजारों प्रदर्शनकारी मारे गए और 10,000 के करीब गिरफ्तार हुए.
इसके बाद चीनी सरकार की चारों तरफ से एक स्वर में भीषण आलोचन हुई. अमेरिका ने मानवधिकारों का उल्लंघन करने के कारण चीनी सरकार पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिए.
अमेरिका और सोवियत रूस में हुआ समझौता
4 जून के दिन 1961 में अमेरिका और सोवियत रूस के बीच लाओस को लेकर एक बड़ा समझौता हुआ.
अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन ऍफ़ केनेडी और सोवियत रूस के राष्ट्रपति निकिता ख्रुश्चेव ने तय किया कि वे लाओस में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं करेंगे. असल में इस समय अमेरिका और सोवियत रूस के बीच शीत युद्ध चल रहा था.
दोनों देश ज्यादा से ज्यादा दूसरे देशों में अपनी विचारधारा की सरकारों को सत्ता में देखना चाहते थे. इस क्रम में वे विभिन्न प्रकार की रणनीतियों का सहारा ले रहे थे.
इसी क्रम में 1960 में उत्तरी वियतनाम के कम्युनिस्ट लड़ाकों ने लाओस के उन लड़ाकों को हथियार देने शुरू कर दिए थे, जो लाओस में स्थापित राज्यतंत्र को उखाड़कर कम्युनिस्ट शासन स्थापित करना चाहते थे.
इस कारण अमेरिका को चिंता सताने लगी थी और इससे निपटने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने पहले पहल लाओस में अमेरिकी सैन्य कार्यवाही करने की सोची, लेकिन फिर नहीं की.
उधर लाओस में अमेरिका के लिए हालात बिगड़ते जा रहे थे, इसलिए इस क्रम में जेनेवा में 14 देशों की कांफ्रेस हुई. यहां इस बात पर सहमति जताई गई कि अमेरिका और सोवियत रूस दोनों लाओस में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेंगे.
इस समझौते ने लाओस में काफी समय तक स्थिति को नियंत्रण में रखा,लेकिन आगे आने वाले समय में दोनों देश इस समझौते पर टिक नहीं पाए.
हर्षद मेहता हुआ गिरफ्तार
4 जून के दिन 1992 में स्टाक ब्रोकर हर्षद मेहता और उसके सहयोगियों को एक घोटाले के मामले में गिरफ्तार किया गया था. इस घोटाले ने पूरे देश को हिला दिया था.
असल में 1984 में हर्षद ने बम्बई स्टॉक मार्केट में अपनी एक अलग पहचान बना ली थी. 1990 तक उसने राजनीतिक गलियारों में भी अपनी पहुँच बना ली थी. अपनी इसी पहुँच की मदद से वह इतना बड़ा घोटाला कर पाने में सफल हुआ.
बताते चलें कि उस समय सरकार अपनी विभिन्न योजनाओं के लिए बैंकों से पैसे लोन पर लेती थी. उस समय यह भी नियम था कि सभी बैंकों को सरकार को लोन देना अनिवार्य है. अगर किसी बैंक के पास पर्याप्त पैसा नहीं हो तो वह दूसरे बैंक से पैसा उधार लेकर सरकार को देता था. बैंकों के बीच डील करवाने के लिए दलाल होते थे. हर्षद मेहता एक ऐसा ही दलाल था.
हर्षद को बैंकिंग व्यवस्था की सारी खामियों की अच्छे से जानकारी थी. उसने इन्हीं खामियों का फायदा उठाकर घोटाला किया. साथ ही बड़ी मात्रा में बैंकों की नकली रशीदें बनाई और उन्हें डीलरों को सुरक्षा राशि लेकर बेच दिया.
इस घोटाले के बाद उसके ऊपर 27 मुक़दमे दायर हुए, जिनमें से केवल चार में ही उसे सज़ा हुई.
इस घोटाले के द्वारा उसने 4999 करोड़ रुपए की चपत लगाई.
तो ये थीं आज के दिन इतिहास में हुईं कुछ मुख्य घटनाएं.
अगर आपके पास भी किसी घटना की जानकारी हो तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: When Chinese Government Done Tienmen Massacre , Hindi Article
Feature Image Credit: Kinked