नोबेल पुरस्कार के बारे में भला कौन नहीं जानता. इसके जनक अल्फ्रेड नोबेल (Link In English) ने अपने लिए 355 अलग-अलग नाम पेटेंट करवाए हुए हैं, लेकिन दुनिया उन्हें दो ही कारणों से जानती है. पहला डायनामाइट और दूसरा नोबेल पुरस्कार.
यह बहुत ही अजीब बात है कि अगर अल्फ्रेड ने डायनामाइट की खोज न की होती, तो नोबेल पुरस्कार आज दुनिया के सामने नहीं होता. तो आईये इससे जुड़े अन्य पहलुओं को जानने की कोशिश करते हैं:
मौत की खबर ने कर दिया हैरान
डायनामाइट की खोज करने के बाद अल्फ्रेड अक्सर यही कहते थे कि उन्होंने इस खोज के बाद खुद को विस्फोटकों की दुनिया से अलग कर लिया है. हालांकि, बाद में उन्होंने गलगाईनेट की खोज की, जो डायनामाइट से भी ज्यादा खतरनाक था. इसके बाद में उन्होंने बेलिस्ट नाम की एक चीज़ बनाई, जो गोलियों और तोप के गोलों में प्रयोग होता था.
अपने हथियारों के व्यापार के जरिए अल्फ्रेड की जेब में पैसे आने लगे थे. उम्मीद से ज्यादा पैसे होने के बावजूद भी अक्सर अल्फ्रेड अपने दिमाग में उलझे हुए रहते थे. उनका दिमाग इसलिए भी उलझा हुआ रहता था, क्योंकि उनकी बनाई चीज़ें जंग के सौदेबाजों और लालची नेताओं के ही काम आ रही थी. इससे आम जनता को नुकसान हो रहा था. यहां तक की इनसे उनकी जान ली जाने लगी थी. वह उलझन में रहने लगे थे कि वह क्या करें. इसी बीच एक ऐसी घटना घटी जिसने उनकी जिंदगी को बदल कर रख दिया. कहते हैं कि कुदरत के कानून का सामना सबको करना पड़ता है अल्फ्रेड भी इससे बच नहीं सके.
अक्सर अल्फ्रेड लोगों की मौत की खबर पढ़ते थे, लेकिन एक दिन उनकी ही मौत की खबर एक अखबार में छाप दी गई. इसका शीर्षक दिया गया था ‘एक व्यापारी की मौत’.
Nobel Prize ( Representative Pic: huffingtonpost.co)
कातिल से इंसान बनने की आई जब बारी!
अखबार में अपनी मौत की खबर पढ़ने के बाद अल्फ्रेड का सामना सच्चाई से हुआ. यूं तो अल्फ्रेड के पास बहुत पैसा था, लेकिन असलियत यह थी कि लोगों की नज़र में वह कुछ नहीं थे. लोग उनसे नफरत करते थे. उन्हें एहसास होने लगा था कि उनकी मौत के बाद उन्हें कोई भी याद नहीं रखेगा. वह सोचने लगे कि उन्हें कुछ ऐसा करना पड़ेगा कि हर कोई बस उनके ही बारे में बात करे. वह भी उनके अच्छे कामों के लिए. देखते ही देखते उन्होंने खुद को अच्छाई के कामों के लिए झोंंक दिया.
अच्छाई के लिए उन्होंने अपनी 90% संपत्ति दान में दे दी थी.
फिर उन्होंने एक स्पेशल पुरस्कार की शुरुआत की, जिसे आज दुनिया ‘नोबेल’ पुरस्कार के नाम से जानती है. उन्होंने पुरस्कारों को अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित किया, जिसमें कैमिस्ट्री, दवा, साहित्य और शांति को रखा गया था. उसके बाद उन्होंने बताया कि, जिन्होंने इन क्षेत्रों में मानव-कल्याण को बढ़ाने का काम किया है, उन्हें ही यह पुरस्कार दिये जायेंगे. 1896 में अल्फ्रेड नोबेल की मौत हो गई, लेकिन आज भी उनकी याद में इन पुरस्कारों को दिया जाता है .
हालांकि आज भी अधिकतर लोग अल्फ्रेड को डायनामाइट के लिए जानते हैं, लेकिन उनकी असली पहचान नोबेल पुरस्कार हैं. आखिरकार अल्फ्रेड के नोबेल पुरस्कार ने उनकी एक अच्छी छवि बनने में मदद की थी.
When Hitler Was Nominated For Nobel Peace Prize (Pic: thoughtco.com)
… तब पुरस्कार को लेकर मचा था हाहाकार!
नोबेल (Link In English) शांति पुरस्कार विजेता, वह व्यक्ति होता है, जिसने भाईचारा बचाए रखने के लिए कदम उठाए हों, वह व्यक्ति जिसने जंग रोकने का काम किया हो. या फिर दुनिया में शांति कायम रखने में अपनी अहम भूमिका निभाई हो.
1935 में जर्मन शांतिवादी कार्ल वॉन ओसिएत्की ने शांति नोबेल पुरस्कार जीता. यह इसलिए हुआ, क्योंकि चोरी-छिपे हिटलर की सरकार एक बार फिर से लड़ाई शुरू कर रही थी. जर्मन की यह लड़ाई वर्साइल के खिलाफ एक संघर्ष था, जिसे जर्मनी ने प्रथम विश्व युद्ध के बाद साइन किया था. इस समझौते के कई पहलू थे, जिनमें से एक था सैन्य नियंत्रण. हालांकि जब हिटलर ने एक बार फिर से युद्ध का मन बनाया, तो यह समझौता महज एक कागज का टुकड़ा बनकर रह गया.
माना जाता था कि हिटलर के युद्ध करने की बात ओसिएत्की ने लीक की थी. इस बात ने उसे हिटलर का दुश्मन बना दिया था. बाद में उसे जेल भी जाना पड़ा था. जेल में उससे कई बार पूछताछ की गई. उसका जेल में दम घुटने लगा था. एक दिन अचानक वह टीबी की बीमारी के चलते मर गया. ओसिएत्की की नोबेल जीतने की खबर अब हर जन तक पहुंचने लगी थी. कई लोगों का मानना था कि जेल में जाने वाले व्यक्ति को आखिर नोबेल शांति पुरस्कार क्यों दिया जा रहा है.
जर्मनी में कुछ लोग ओसिएत्की के नोबेल मिलने से खुश थे, तो कुछ लोग दु:खी थे. वह हिटलर का दुश्मन बन चुका था. हिटलर भी कहां पीछे रहने वाला था. उसने यह घोषणा कर दी कि, जर्मनी से कोई भी नोबेल के लिए नामांकित नहीं होगा. इस जीत की खबर को देश के सारे लोगों तक भी नहीं पहुंचने दिया गया था.
When Hitler Was Nominated For Nobel Peace Prize (Pic: sickchirpse.com)
हिटलर को नोबेल शांति पुरस्कार की चर्चा?
1939 में एक बहुत ही अजीब घटना घटी. हिटलर और नोबेल पुरस्कार के बीच में.
1 सितम्बर को जंग शुरू हो गई थी. उसी साल की शुरुआत में नोबेल कमिटी को एक पत्र (Link In English) आया, जिसमें हिटलर का नाम भी था. वह एक मजबूत उम्मीदवार था. असल में हिटलर के नाम की किसी ने सिफारिश की थी. बताया जाता है कि यह सिफारिश स्वीडिश पार्लियामेंट की तरफ से हुई थी. आप भी देखिए की आखिर क्या लिखा था उस सिफारिश पत्र में.
“नार्वेजियन नोबेल समिति के लिए,
मैं ईमानदारी से चाहता हूं कि 1939 का नोबेल शांति पुरस्कार जर्मन के चांसलर अडोल्फ़ हिटलर को दिया जाए, लाखों लोगों का मानना है कि वह इसके प्रबल दावेदार हैं.
विश्वसनीय डॉक्यूमेंट यह दिखाते हैं कि 1938 में विश्व शांति पर खतरा था. यूरोप में एक और बड़ा युद्ध हो सकता था. ऐसे में हिटलर ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. उसने इस संकट से सबको बचाया था. वह चाहता तो उस समय विश्व युद्ध शुरू कर सकता था लेकिन उसने अपनी सेना को गड़बड़ाने नहीं दिया.
अपने शांति से प्रेम की वजह से का अंश हिटलर की प्रसिद्ध किताब ‘मीन कम्फ’ में भी देखने को मिलता है. अपने इसी प्रेम भाव के चलते उसने ऑस्ट्रिया को शांतिपूर्वक अपना बनाया था. वह भी बिना किसी सैन्य ताकत के इस्तेमाल के. अपने लोगों को वहां पर जगह देने की वजह से उसने अपनी पहचान और भी बढ़िया बना ली थी.
हिटलर के अनुसार यह बहुत दुखद है कि कई सारे लोग शांति के प्रति हिटलर के द्वारा किए जाने वाले कामों को नज़रंदाज़ करते रहे. मैं इससे बढ़िया समय नहीं सोच सकता हूं, हिटलर को नामांकित करने के लिए. यह फैसला बहुत ही सोच समझ के लिया गया है. हम इसी पर अटल रहेंगे. यूरोप में बढ़ती शांति का कारण हिटलर ही है. इसलिए सबसे उचित फैसला होगा कि हिटलर को ही यह पुरस्कार दिया जाए. बिना किसी शक के हम यह कह सकते हैं कि शांति बनाए रखने के लिए हिटलर को भगवान ने भेजा है, ताकि वह लाखों लोगों की मदद कर सके. वह शांति के राजकुमार हैं.
जब ‘सच’ से उठा पर्दा
यह खबर जैसे ही छपी, लोगों के अन्दर का गुस्सा बाहर आ गया. लोग सरकार और पत्र लिखने वालों के खिलाफ हो गए थे. लोगों का कहना था कि जिसने यह पत्र लिखा है वह इंसानियत का दुश्मन है. ब्रैंड जिसने वह पत्र लिखा था. वह लोगों के गुस्से को देख कर हैरान हो गया था. वह इसलिए हैरान था, क्योंकि उसने असलियत में हिटलर के लिए नोबेल नहीं मागा था.
जब ब्रैंड का इंटरव्यू (Link In English) किया गया तो उसने बताया कि उसने कई और भी पत्र लिखे थे, जिसमें हिटलर को चुनने के लिए कहा गया था. सच्चाई सामने आने के बाद हिटलर का नाम नोबेल की सूची से हटा दिया गया था. जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ तो एक अख़बार जो नाज़ी के खिलाफ लिखता था, उसे ब्रैंड ने पत्र लिखा और बताया कि नोबेल के लिए भेजा गया पत्र एक व्यंग्य था. इसमें एक संदेश था कि हिटलर ही शांति का असली दुश्मन था.
खैर स्वीडन के लोग पत्र में छिपे इस व्यंग्य को समझने में सक्षम नहीं रहे. इसके बाद बहुत बड़ा बवाल खड़ा हो गया था. हिटलर ने और नोबेल कमेटी दोनों ने ही हिटलर का नाम वापस ले लिया था. इस कारण हिटलर को नोबेल मिलते-मिलते रह गया था.
जाहिर था, अगर सच में ऐसा हो जाता तो अल्फ्रेड नोबेल के ‘डायनामाईट’ के अविष्कार के बाद मानवता के दुश्मनों की मदद करने का इल्जाम दूसरी बार लगता!
Original Article Source / Writer: Roar Bangla / Muhaiminul Islam Antik
Translated by: Vimal Naugain
Web Title: When Hitler Was Nominated For Nobel Peace Prize, Hindi Article
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