हर दिन कुछ न कुछ घटता है और लोग उसके बारे में लिखते हैं. बाद में एक तय समय के बाद यह इतिहास बन जाता है. इसी क्रम में आने वाली पीढियां देखती हैं कि हमारे अतीत में क्या-क्या हुआ है. वो इससे सीखती हैं और आगे भी बढ़ती हैं.
तो आईए जानते हैं कि 02 जून के नाम इतिहास में क्या दर्ज है-
ऑपरेशन फ्रैनटिक
2 जून ही के दिन 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी वायुसेना ने मध्य यूरोप में बमबारी शुरू करी थी. असल में ये बमबारी एक ऑपरेशन के तहत की जा रही थी. इसका लक्ष्य जर्मनी की औद्योगिक अर्थव्यवस्था का पूरी तरह खात्मा करना था.
इस ऑपरेशन का नाम ‘ऑपरेशन फ्रैनटिक’ रखा गया.
इसमें यह योजना बनाई गई कि दक्षिणी इटली से बमबारी की शुरुआत करते हुए जर्मनी के मुख्य औद्योगिक इलाकों को निशाना बनाया जाएगा, फिर सोवियत रूस में विमानों को लैंड किया जाएगा.
इस ऑपरेशन में सोवियत रूस और अमेरिका ने एक दूसरे का साथ दिया.
अमेरिका को पता था कि यूरोप को जीतते ही हिटलर सबसे पहले अमेरिका पर ही हमला करेगा. वहीं सोवियत रूस पर तो पहले से ही जर्मनी हमला कर चुका था. ऐसे में दोनों ने मिलकर जर्मनी को हराने के लिए हाथ मिलाया.
इस ऑपरेशन से जर्मनी को बहुत नुक्सान हुआ था. खासकर हथियार बनाने वाली फक्ट्रियों को.
बताते चलें कि इस ऑपरेशन ने द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम को मित्र राष्ट्रों की ओर मोड़ने में काफी सहायता की थी.
रेसिंग ड्राईवर ब्रूस मक्लारेन की मृत्यु
2 जून के ही दिन 1970 में विश्व के जाने माने रेसिंग ड्राईवर ब्रूस मक्लारेन की रेसिंग करते समय एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. मृत्यु के समय उनकी उम्र मात्र 32 वर्ष थी. बचपन से ही उन्हें कारों और रेसिंग से प्यार था.
मात्र 15 वर्ष की उम्र में इन्होंने अपना पहला रेसिंग खिताब जीता था.
न्यूजीलैंड में पैदा हुए मक्लारेन ने औकलैंड विश्वविद्यालय से इन्जीनियरिंग की पढाई की थी. वह 22 वर्ष के थे, जब उन्होंने अमेरिकी ग्रैंड प्रिक्स जीतकर रिकॉर्ड बनाया था.
इस तरह वे फार्मूला वन रेस जीतने वाले पहले सबसे कम उम्र के ड्राईवर बने थे.
इसके बाद उन्होंने खुद ही गाड़ियों को बनाना शुरू कर दिया था. उन्होंने अपनी एक अलग टीम भी बनाई . उनकी टीम ने विभिन्न प्रतियोगिताओं में अनेक ख़िताब भी जीते. कहते हैं अपनी मृत्यु के समय वे दुनिया के सबसे बेहतर ड्राईवर थे.
करीब एक दशक तक उन्होंने रेसिंग जगत पर राज किया!
अमेरिकी गृहयुद्ध का अंत
2 जून को ही 1865 में अमेरिकी गृहयुद्ध का अंत हो गया. इस दिन दक्षिणी प्रान्त के जनरल एडमंड किर्बी स्मिथ ने उत्तरी प्रान्त के सामने बिना किसी शर्त के समर्पण कर दिया. इसी के साथ उत्तरी प्रान्त की अंतिम सेना की टुकड़ी पीछे हट गई.
हम आपको बता दें की अमेरिकी गृहयुद्ध की शुरुआत 12 अप्रैल 1862 को हुई थी. सबसे पहला हमला उत्तरी प्रान्त ने जनरल जी टी बियुरगार्ड के नेतृत्व में किया था. चार साल तक चले इस खूनी गृहयुद्ध में जान और माल का भारी नुकसान हुआ था.
हम आपको यह भी बता दें कि इस गृहयुद्ध में दक्षिणी प्रान्त अमेरिका से अलग होकर एक ऐसे देश की स्थापना करना चाहता था, जहाँ गोरे लोग, काले गुलामों को अपनी मन मर्जी से बेंच सकें.
जबकि, उत्तरी प्रान्त अमेरिका को एक ऐसा समावेशी देश बनाना चाहता था, जिसमें किसी को कोई भी गुलाम न बनाए.
भारतीय सेना ने चरमपंथियों को मार गिराया
2 जून को ही 1984 में भारतीय सेना ने पंजाब में अपना नियंत्रण स्थापित किया था. इस दौरान करीब 22 सिक्ख कट्टरपंथी मारे गए थे. असल में पंजाब में कुछ कट्टरपंथी धर्म के आधार पर अलग देश ‘खालिस्तान बनाने की मांग कर रह थे. उन्हें रोकने के लिए ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने भारतीय सेना को पंजाब में भेजा था.
असल में पंजाब में सत्तर के दशक में हरित क्रांति के कारण अचानक से आर्थिक सम्रद्धि आई थी. इस कारण कुछ बड़े पंजाबी किसान बहुत अमीर हो गए थे और अपने लिए स्वायत्ता की मांग करने लगे थे. 1982 तक यह मांग पूरी तरह से अहिंसक थी.
किन्तु, 1982 में एक सिक्ख चरमपंथी जरनैल सिंह भिंडरावाले ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर भारतीय राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. देखते ही देखते उन्होंने अपने राजनीतिक विरोधियों और हिन्दुओं को मारना शुरू कर दिया.
बहुत से सिक्ख उनकी इस मांग से सहमत नहीं थे, चरमपंथियों ने उन्हें भी नहीं बख्शा.
इसके बाद ही इंदिरा गाँधी ने पंजाब में भारतीय सेना को भेजकर चरमपंथियों के मंसूबों पर पानी फेरा था. इस दौरान करीब 492 चरमपंथी मौत के घाट उतारे गए और करीब 1500 गिरफ्तार हुए.
अंग्रेजों ने चलाया श्री औरोबिन्दो पर केस
2 जून के दिन ही 1908 में भारतीय स्वत्रंता क्रांतिकारी श्री औरोबिन्दो को मानिक ताला बम विस्फोट केस में गिरफ्तार किया गया था. श्री औरोबिन्दो को राज्य के खिलाफ युद्ध शुरू करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
यह भारतीय सवतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में पहला ऐसा केस था, जिसकी सुनवाई करीब एक साल तक चली.
इसमें करीब 222 गवाहों ने गवाही दी. सुनवाई के बाद श्री औरोबिन्दो को छोड़ दिया गया, लेकिन बरिंदर घोष और उल्लासकर दत्त को मौत की सजा मिली. घोष उस समय क्रांतकारी दल के मुखिया थे और दत्त ने बम बनाया था.
हम आपको बता दें कि 1905 में अंग्रेजी सरकार ने स्वतंत्रता आन्दोलन को कमजोर करने के उद्देश्य से बंगाल का विभाजन कर दिया था. इसके खिलाफ बंगाल के भीतर से ही अंग्रेजों के खिलाफ एक क्रांतिकारी आन्दोलन उठ खड़ा हुआ.
यह आन्दोलन हिंसक था, इसलिए अंग्रेजों ने इसका बहुत बुरी तरह से दमन किया था.
तो ये थीं 2 जून दिन इतिहास में घटी कुछ प्रमुख घटनाएं.
अगर आपकी नज़र में भी कोई घटना है, तो कमेंट बॉक्स में हमने बताएं.
Web Title: When Indian Army Countered Sikkh Seperatists, Hindi Article
Feature Image Credit: PinsDaddy