जरा सोचिये! ये कितना दुखदायी होगा अगर आपको शर्ट या ब्लाउज पहनने के लिए सरकार या किसी वर्चस्वशाली समूह की आज्ञा लेनी पड़े. ये एक कल्पना नहीं है. 19वीं शताब्दी में ऐसा होता था. जब महिलाओं को अपना धड़ ढकने की मनाही थी.
महिलाओं को हर कदम चुनौती का सामना करना पड़ा. आज भी महिलाएं अपने हक के लिए लड़ रही हैं.
आज महिला शोषण के खिलाफ आवाजें उठ रही हैं. समानता और आज़ादी की मांग उठाई जा रही है. आज का समाज जो महिलाओं को तन ढककर रखने की नसीहत देता है, एक समय ऐसा था, जब उसके तन ढकने पर भी टैक्स लगाया जाता था.
जानते हैं, इस ‘ब्रैस्ट कर’ का लगाया जाना और इसके विरोध की कहानी-
तन ढकने के लिए चुकानी पड़ती थी कीमत
लगभग तीन सौ साल पहले केरल के दक्षिण में एक 'कर प्रणाली' थी. इस कर प्रणाली में सिर्फ पिछड़ी और दलित जाति को ही टैक्स भरना पड़ता था. यह लगाया जाने वाला बेहद शर्मनाक कर था. इसमें महिलाओं को अपने वक्षस्थल ढ़कने के लिए कर देना पड़ता था.
महिलाओं का बिना अपने धड़ को ढककर रहना पड़ता था. ऐसा करने के पीछे की वजह ऊँची जाति के लोगों को सम्मान देना था. साथ ही, यह ऊँची और नीची जाति के लोगों में ‘वर्चस्वशाली’ होने का भी प्रतीक था. यह व्यवस्था दोनों यानी पुरुष और स्त्रियों के लिए थी.
लेकिन बात अगर ‘कर’ लगाने की थी तो, यह अवर्ण महिलाओं को ही देना पड़ता था. अपना तन ढकने के लिए उन्हें उसकी कीमत चुकानी पड़ती थी.
इसके लिए शाही अधिकारी घर-घर जाया करते थे. इस कर को ‘मुलाक्कारम’ कहा जाता था. यह अवर्ण महिलाएं जब अपना यौवनारंभ प्राप्त कर लेती थीं, तब लगना शुरू हो जाता था. सबसे घृणित बात तो ये थी कि यह स्त्रियों के वक्ष के आकर के अनुसार लगाया जाता था.
'नंगेली' ने अपने स्तन काटकर किया विरोध
नंगेली, जो अल्पपुज़हा के चेर्थला में रहती थीं. उन्होंने इस कर व्यवस्था का विरोध करते हुए अपने स्तनों को काट दिया. इस प्रकार उन्होंने त्रावणकोर में लागू इस नियम का विरोध किया.
यहाँ कर जमीन, फसल, गहने, पुरुषों के मूंछ रखने आदि के अलावा महिलाओं को अपने धड़ को ढकने के लिए भी लगता था. इससे अवर्ण लोग और भी ज्यादा गरीब होते चले गए और अमीर लोग और भी ज्यादा अमीर.
नंगेली एक गरीब एज्हवा महिला थीं. उनका परिवार यह कर दे पाने में असमर्थ था. कर न दे पाने की वजह से उनका परिवार धीरे-धीरे कर्ज में डूबता चला गया.
जिसके बाद, जब कर इकट्ठा करने वाले पर्वथीयार उनके घर टैक्स मांगने पहुंचे तो, नंगेली ने प्रथा के अनुसार लैंप जलाया और केले के पत्ते रखे. लेकिन उसमें पैसे देने की बजाय अपने स्तन काटकर रख दिए. यह मंजर देखकर वह डरकर भाग गया.
वहीं दूसरी और खून से लथपथ हो चुकी नंगेली ने अपने घर की दहलीज पर ही दम तोड़ दिया.
कुछ समय बाद उनका पति चिरुकंदन अपनी पत्नी को ढूंढते हुए घर पहुंचा तो, उसने उसे मरा हुआ पाया. अपनी पत्नी की इस दर्दनाक मौत से वह इतना दुखी हुआ कि वह अपनी पत्नी की चिता की अग्नि में कूद गया.
यह घटना साल 1803 में हुई थी. इस घटना ने लोगों के अंदर गुस्सा और रोष पैदा कर दिया. लोग ब्रैस्ट कर के खिलाफ खड़े होने लगे. साल 1813 आते-आते इस कर व्यवस्था को खत्म कर दिया गया.
नंगेली के इस बलिदान ने इस कर व्यवस्था और एक प्रकार के जाति के आधार पर हो रहे शोषण को खत्म कर दिया. जिस गाँव में वो रहती थीं आज वह ‘मुलाचिपराम्भु’ नाम से जाना जाता है. जिसका अर्थ है ऐसी जगह जहां ‘स्तनों वाली महिला रहती थी’.
इस घटना से एक और पहलू भी सामने आया, जिसमें एक पुरुष ने सती होने जैसी कोई घटना सामने आई.
'चन्नर' विद्रोह द्वारा भी उठाई गयी थी आवाज
नंगेली के इस विरोध के पहले भी इस घटिया व्यवस्था का विरोध किया गया था. साल 1813 और 1859 के बीच पनायेरी नादर समुदाय की महिलाओं ने भी इसके खिलाफ आवाज उठाई थी. उन्होंने सवर्ण महिलाओं की तरह अपने तन ढकने की मांग की थी. उनका ये विद्रोह चन्नर विद्रोह नाम से भी जाना गया.
साल 1813 में, त्रावणकोर कोर्ट के दीवान कर्नल जॉन मुनरो ने एक आर्डर दिया कि अगर कोई नादर महिला ईसाई धर्म अपनाती है तो, उसे अपने तन को ढकने दिया जाएगा. शाही कोर्ट से इस बात की मुखालिफत की गयी. अब उन्हें सिर्फ एक लंबा ब्लाउज पहनने की इजाज़त दे दी गयी. जैसा कि मुस्लिम महिलाएं पहना करती थीं.
इस दौरान, नादर महिलाओं ने ईसाई धर्म अपनाना शुरू कर दिया. ये देखते हुए 1859 में राजा ने एक फरमान जारी किया कि नादर महिलाएं सवर्ण जाति की महिलाओं की तरह ऊपरी तन नहीं ढक सकती.
सवर्ण महिलाओं की हालत भी उतनी अच्छी नहीं थी
20वीं शताब्दी तक ‘कपड़े’ किसी की जाति का एक बहुत बड़ा सूचक बन चुके थे.
स्वर्ण महिलाओं की स्थिति भी कुछ बहुत अच्छी नहीं थी. उन्हें घर के अंदर ही रहना होता था. उन्हें अपने तन ढकने की इजाजत तो थी लेकिन वहीं दूसरी और उन्हें अपने घर की चौखट तक ही रहना होता था.
उन्हें सिर्फ अपने पति और परिवार वालों से बात करने की आज्ञा होती थी. अगर वह कहीं बाहार जाती तो, उन्हें साथ में एक छाता लेकर जाना होता था. वह बिना अपने पति की आज्ञा के बाहर नहीं जा सकती थीं.
नायर महिलाएं भी ब्राहमण के सामने और मंदिर आदि जाते समय वस्त्र धारण करती थीं.
इस पितृसत्ता समाज में स्त्रियों का शोषण कई प्रकार से किया गया. एक महिला होना और ऊपर से अवर्ण जाति में और भी ज्यादा दुखदायी होता. उन्हें महिला होने के साथ-साथ अपनी जाति में पैदा होने की भी सजा मिलती. ऐसे में, नंगेली का विद्रोह और उनकी कुर्बानी आने वाली पीढ़ी के लिए एक तोहफा रही.
Web Title: Breast Tax Was Imposed On Women To Cover Their Bust , Hindi Article
Feature Representative Image Credit: vox