कुछ लोग मानते हैं कि दुनिया में अपनी पहचान बनाने के लिए सालों-साल मेहनत करनी पड़ती है. उसके बाद ही जाकर इंसान उस मुकाम पर पहुंच पाता है, जब दुनिया से उसको सम्मान मिलता है.
मगर यह पूरा सच नहीं है!
पहचान बनाने व कुछ बड़ा करने के लिए सिर्फ एक मौके की जरुरत होती है, जोकि सभी को कभी न कभी मिलता है. बस जरूरत होती है इस मौके को भुनाने की.
नहीं मानते तो आईए आज आपको बताते हैं, एक ऐसी महिला सिपाही की, जिसने महज 18 साल की उम्र में अपने कारनामें से पूरी दुनिया का दिल जीत लिया. हम बात कर रहें है रुस की जोया कोसमोडेमांस्काया की. जोया को दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सोवियत यूनियन द्वारा हीरो की उपाधि से सम्मानित किया गया था.
क्यों आईए जानते हैं–
बीमारियों को मात देकर आगे बड़ीं
जोया का जन्म रुस के एक गांव में हुआ था. वह महज 10 साल की थीं, जब उनके पिता की मृत्यु हो गई, जिसके बाद जोया की मां ने ही उनकी व उनके छोटे भाई एलेक्सज़ैंडर की परवरिश की. अपनी स्कूली पढ़ाई के समय से ही जोया काफी होशियार थीं. खासकर इतिहास और साहित्य में.
कहते हैं कि जोया चाहती थीं कि वह लेनिनग्राड यूनिवर्सिटी में शिक्षा हासिल करने जाए. (लेनिनग्राड यूनिवर्सिटी को वर्तमान में सेंट पिटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है) मगर बीमारी के चलते उन्हें अपनी पढ़ाई से कुछ समय दूर रहना पड़ा.
इलाज के लिए जोया को मोस्को के पुर्नवास केन्द्र भेजा जाना पड़ा था, जहां एक लंबे समय तक उनका इलाज चला. खैर, इलाज के बाद वह दोबार पढ़ाई की तरफ लौटीं.
Zoya Kosmodemyanskaya (Pic: Wikipedia)
स्वंय-सेवकों समेत सेबोटेज स्कूल में भर्ती
साल 1941 के अक्टूबर माह की 31 तारीख को जोया अपने जैसे 2000 कम्युनिस्ट स्वंय-सेवकों समेत सेबोटेज स्कूल में भर्ती हुईं. सेबोटेज स्कूल के बारे में बताते चलें कि उस दौर में उसके सदस्यों का काम तोड़-फोड़ करना और हालातों को बेकाबू करना होता था. इस लिहाज से जोया एक दूसरी दुनिया में कदम रख चुकी थीं.
जोया को गोरिल्ला ग्रुप में रखा गया था.
इस दौरान जोया समेत अन्य लोगों को खास ट्रेनिंग दी गई. ट्रेनिंग कड़ी थी, किन्तु जोया ने इसको पूरा किया. चूंकि, ट्रेनिंग पूरी हो चुकी थी, इसलिए जोया को आगे बढ़ना था. वह कुछ कहती इससे पहले उन्हें मोस्को के शहर वोलोकोलेमस्क भेजा दिया गया.
उन्हें वहां की सड़कों पर अपने साथियों के साथ मिलकर माइंस बिछाने का काम सौंपा गया था. जोया एक महिला थीं, बावजूद इसके उन्होंने इस खतरनाक मिशन को बखूबी पूरा किया.
‘स्टालिन’ के मिशन को अंजाम दिया
उनका मिशन पूरा ही हुआ था कि कुछ समय बाद सोवियत संघ के प्रमुख स्टालिन द्वारा एक हैरान कर देने वाली घोषणा की गई. इसके तहत कहा कि जर्मन सेना को किसी भी तरह शहरों और गांवों में अपनी चौंकिया बनाने से रोकना है.
इसके लिए उसने आदेश दिया कि जो भी शहर या गांव इस काम में जर्मन सैनिकों की मदद कर रहे हैं, उन्हें चिन्हित कर जला दिया जाए.
स्टालिन के आदेश को मानते हुए जोया ने अपने ग्रुप के साथ मिलकर अगले एक हफ्ते के भीतर ही करीब 10 ऐसे गांवो में आग लगा दी, जो जर्मन सैनिकों को मदद दे रहे थे. साथ ही जोया ने अगले कुछ समय में तोड़-फोड़ जारी रखी.
हालांकि, इस मिशन के दौरान उनसे एक बड़ी चूंक हुई, जिसका नुक्सान उन्हें हुआ.
Partisans: Warriors Without Ranks and Titles (Pic: russia now)
जर्मन सैनिकों की नाक में किया दम
अपने मिशन के तहत, जोया अपने कुछ साथियों के साथ एक गांव में दाखिल हुईं. उन्होंने तेजी से तीन घरों को जला दिया. ये घर नहीं असल में जर्मन सैनिकों और अधिकारियों की चौंकियां थीं.
इसके चलते जर्मन सैनिकों को अपने मिलने की जगह को बदलना पड़ा. इसी दौरान जोया के कुछ साथी जर्मन सैनिकों की नई चौंकी की ओर चले गए, जहां वह पकड़ लिए गए. आगे उनके अन्य साथियों की तलाश में निकले नाजी सैनिकों ने क्लूबकोव को भी ढूंढ निकाला, जोकि जोया का मुख्य साथी था.
साथियों की गिरफ्तारी के सूचना मिलते ही जोया ने फैसला किया कि वह पेटरीशचिवो वापिस जाएगीं और गांव को जलाने का अपना काम पूरा करेगी. मगर दूसरी ओर अब जर्मन सैनिक और गांवों में रहने वाले लोग चोकना हो गए थे.
इसी बीच जब एक रात जोया गांव में आग लगाने गईं, तो गांव में तैनात एक गार्ड ने उन्हें देख लिया और जर्मन सैनिकों को खबर दे दी. अंतत: जोया को पकड़ लिया गया. साथ ही जानकारी देने वाले गार्ड को पुरस्कृत किया गया.
हालांकि, बाद मे सोवियत संघ द्वारा इस गार्ड को मौत दे दी गई थी.
German Soldier Caught Zoya (Pic: artyushenkooleg)
सही असहनीय पीड़ा, लेकिन नहीं झुकीं
गिरफ्तारी के बाद जर्मन सैनिकों द्वारा जोया को प्रताड़ित करने का दौर शुरु हुआ, जो किसी के लिए भी अनुभव करना नरक के समान होगा.
उन पर कोड़े मारे गए और हड्डियों को जमा देने वाली सर्दी में बिना कपड़ों के रखा गया. इस दौरान जोया पर पानी फेंककर उसकी तकलीफ को और बढ़ाया गया. मगर 18 साल की जोया ने हिम्मत नहीं हारी.
सारी कोशिशों के बावजूद भी, जब जोया ने मुंह नहीं खोला, तो उन्हें मौत की सजा दे दी गई. अगले कड़ी में जोया को फांसी पर लटका दिया गया. कहते हैं करीब एक माह तक उनका शरीर ज्यों का त्यों लटका रहा था.
Women Hanging (Pic: Hanging)
दिलचस्प बात यह रही कि एक लंबे समय तक जोया की कुर्बानी के बारे में लोगों को पता नहीं चला. वह तो बाद में पेटर लिडोव नामक लेखक ने साल 1942 में अपने एक लेख के माध्यम से जोया की पूरी कहानी को लोगों के सामने रखा.
आगे, जब सोवियत संघ को अपनी इस बहादुर और बहादुर सिपाही के समर्पण के बारे में पता चला तो, उन्होंने जोया को सोवियत यूनियन के सबसे बड़े सम्मान ‘हीरो ऑफ सोवियत यूनियन’ से सम्मानित किया.
इतिहास में दर्द जोया जैसे किरदार इस बाद के जीवंत उदाहरण हैं कि अगर हमारे अंदर किसी भी कार्य के लिए समर्पण है, तो दुनिया एक न एक दिन आपको सलाम जरूर करती है.
क्या कहते हो आप?
Web Title: Zoya, Who Have Suffered Unbearable Pain, Hindi Article
Feature Image Credit: hollivizor