एक स्कूल जाने वाला बच्चा पढ़ाई में कमजोर है या यूं कहें कि उसे ब्लैक बोर्ड पर चौक से लिखे गए शब्द साफ तौर पर दिखाई नहीं देते. वह किताबों में लिखे गए काले शब्दों को भी समझने में असमर्थ है.
कारण एक है, उसकी कमजोर नजर, जो शब्दों को धुंधला कर देती है.
उसकी आंखों के सामने एक तस्वीर तो बनती है, लेकिन वो समझ नहीं पाता कि आखिर ब्लैक बोर्ड पर लिखा क्या गया है? हो सकता है कि इस कारण ये बच्चा स्कूल ही जाना छोड़ दे.
ये किसी एक बच्चे की कहानी नहीं है.
आपके आसपास भी ऐसे कई बच्चे हो सकते हैं, जो नजर कमजोर होने के कारण पढ़ाई में भी कमजोर हो जाते हैं.
बहरहाल, आज हम एक ऐसे ही शख्स की बात करेंगे, जो अपनी कमजोर नजर के कारण धुंधला जीवन जी रहा था. एक चश्मे ने उनकी धुंधली नजर को साफ किया और आज वह अपने करियर में सफलता की उड़ान भर रहे हैं-
10 साल नौकरी के बाद ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई
नजर कमजोर होने के कारण इन्हें ब्लैक बोर्ड पर लिखी चीजों को समझने में दिक्कत होती थी. बहरहाल, इन्होंने हाईस्कूल की पढ़ाई के दौरान ही चश्मा पहनना शुरू कर दिया था.
जी हां! इनका नाम है अंशू तनेजा.
अंशू तनेजा की स्कूली शिक्षा दिल्ली से हुई थी. 1998 में हायर सेकंडरी पास करने के बाद इन्होंने सेंट स्टीफंस कॉलेज में दाखिला ले लिया. अंशू ने यहां से 2001 में साइंस ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की.
स्नातक करने के बाद उन्होंने पेप्सिको कंपनी में मार्केटिंग और इंटरनेशनल बिजनेस में इंटरर्नशिप की. यहाँ से उन्हें मेडिकल डिवाइस बनाने वाली एक जर्मन कंपनी 'कार्ल स्टोर्ज' में काम करने का मौका मिला.
इस कंपनी के मार्केटिंग विभाग में उन्होंने लगभग 3 साल तक काम किया. उनके कार्य से प्रभावित होकर सन 2005 में उन्हें 'जोन्सन एंड जोन्सन' कंपनी ने अपने मार्केटिंग और सेल्स विभाग में नौकरी दे दी. इसके अलावा इन्होंने डी बीयर्स, राइडर्स फॉर हेल्थ और ओपेरा सॉफ्टवेयर के साथ यूके और यूरोप में भी काम किया है.
साल 2010 में अंशू की जिंदगी में एक बड़ा मोड़ आया, जब उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ने का मौका मिला. उन्होंने सन 2010-2011 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (यू.के.) के साइड बिजनेस स्कूल से एमबीए किया. इसी के साथ अंशू एमिटी बिजनेस स्कूल नोएडा से भी एमबीए हैं.
अंशु एनलाइटेंड सोशल लीडरशिप को बढ़ावा देने वाले मंच एस्पायर सर्किल के भी फेलो हैं. इसी के साथ ये ऑक्सफोर्ड बिजनेस नेटवर्क (ओबीएन) में उपभोक्त, मार्केटिंग और हेल्थकेयर के अध्यक्ष भी रहे हैं. अंशू भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) की अस्पताल योजना अनुभागीय समिति के सदस्य भी रहे.
अंशु को वैश्विक महिला स्वास्थ्य पहल (डब्ल्यूएचआई) द्वारा समर्थित विकासशील देशों में महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार के लिए संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (यूएनयू) और दी ड्यूश गेसेलस्काफ्ट फर इंटरनेशनल ज़ुसममेनबर्ग (जीआईजेड) का प्रतिनिधि भी नियुक्त किया गया था.
भारत में जूनियर नेशनल्स खेल चुके अंशु एक सक्षम टेनिस खिलाड़ी भी हैं. साथ ही ये पेरिस (फ्रांस) में एमबीएटी (एमबीए ओलंपिक) साइड बिजनेस स्कूल टीम का नेतृत्व कर चुके हैं. दौड़, फिल्म/थियेटर और ट्रैवल करना अंशू के पसंदीदा शौक हैं.
अंशु व्यावसायिक सिद्धांतों के द्वारा दुनिया को बदलने की इच्छा रखते हैं. 2017 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, साइड बिजनेस स्कूल और स्कॉल सेंटर फॉर सोशल आंत्रप्रेन्योरशिप ने सकारात्मक परिवर्तनों और उच्च प्रभाव को लेकर करियर का उपयोग करने के लिए अंशु को उत्कृष्ट पूर्व छात्र के रूप में सम्मानित किया था.
2013 में ज्वॉइन की विजनस्प्रिंग
जब बात चश्मा पहनने की होती है, तो अंशू तनेजा कहते हैं कि "मैंने हाईस्कूल से ही चश्मा पहनना शुरू कर दिया था. मुझे ब्लैक बोर्ड पर लिखी चीजों को समझने में काफी दिक्कत होती थी. चश्मा पहनने के बाद मुझे चीजों को समझने में काफी मदद मिली. मैं अब ब्लैक बोर्ड को साफतौर पर देख पाता था, इससे मेरी दक्षता और क्षमता में काफी बढ़ोतरी हुई."
अंशू तनेजा सन 2013 से भारत में विजनस्प्रिंग का नेतृत्व कर रहे हैं, तब से इसके प्रभाव में भी काफी वृद्धि हुई है.
2013 में इस संस्था ने सालाना 155 हजार चश्मे के जोड़े से बढ़कर 2017 के अंत तक सालाना 525 हजार लोगों को चश्मा उपलब्ध कराया. विजनस्प्रिंग ने 2020 तक भारत में सालाना 10 लाख जरूरतमंद लोगों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है.
विजनस्प्रिंग हेल्थ केयर के लिए काम करने वाला एक गैर लाभकारी सामाजिक उद्यम है. इसकी शुरुआत सन 2001 में आंशिक दृष्टिबाधित व्यक्तियों के जीवन में धुंधलेपन को दूर करने के उद्देश्य के साथ की गई थी.
2009 की स्कॉल अवॉर्ड विजेता सामाजिक उद्यम संस्था विजनस्प्रिंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे लोगों के लिए काम करती है, जो रोज 4 डॉलर से कम कमाते हैं.
इनका लक्ष्य चश्मे के अभाव में देख पाने में असमर्थ लोगों को किफायती दाम में चश्मा उपलब्ध कराना है. एक वैश्विक गैर-लाभकारी संगठन के रूप में विजनस्प्रिंग पिछले 17 सालों से आंशिक रूप से दृष्टिबाधित लोगों के पढ़ने, कमाने और जीवन जीने के तरीकों को आसान बना रही है.
समस्या रोजगार की!
दर्जी, गलीचा बनाने वाले, बाइक ठीक करने वाले मिस्त्री, आभूषण बनाने वाले सुनार, बुनकर, कारीगर और भी ऐसे लोग जिनकी आंखों पर अपना पेशेवर काम करने के दौरान ज्यादा जोर पड़ता है, कुछ समय बाद उनकी नजरें कमजोर हो जाती हैं. इस कारण उन्हें धुंधला दिखाई देने लगता है.
इससे उन्हें अपना पेशेवर काम करने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. यहां उनके सामने एक समस्या खड़ी हो जाती है, आर्थिक तंगी की, रोजगार की.
ऐसे पेशेवर लोग अपने काम में माहिर होते हैं. केवल इसलिए कि उनकी आंखें अब कमजोर हो चली हैं, वे दूसरा काम सीखने या करने की हालत में नहीं होते.
'अगर आप देख नहीं सकते, तो आप काम भी नहीं कर सकते.' ये कहावत ऐसे लोगों पर बिल्कुल सटीक बैठती है और जब ऐसे लोग काम नहीं कर पाएंगे तो इनका घर परिवार का गुजारा नहीं हो पाएगा.
इसी सिद्धांत को देखते हुए 'विजनस्प्रिंग' संस्था की शुरूआत की गई थी. 'विजनस्प्रिंग' जिस उद्देश्य के साथ काम कर रही है, वह कहीं न कहीं हमारे समाज और उसकी आर्थिकी को भी प्रभावित करता है.
जब एक पेशेवर आदमी नजर कमजोर होने के कारण काम करने में असमर्थ हो जाता है, तो उसकी आय बंद हो जाती है.
जाहिर तौर पर आप ऐसे किसी भी सुनार को अपनी माला पिरोने के लिए नहीं देंगे, जिसे ठीक से दिखाई न देता हो. बदले में उसे कोई पैसा नहीं मिलेगा. इससे शायद उसके परिवार का पालन पोषण न हो पाए. वहीं, ऐसा कोई भी दर्जी कपड़े नहीं सी पाएगा, जिसकी नजर धुंधली पड़ गई है. ऐसा कोई भी कारीगर हाथ से छोटे ताजमहल नहीं बना पाएगा, जिसके पास चश्मा नहीं है और वो साफतौर पर देख नहीं पा रहा कि उसे कहां रंग भरना है.
वहीं, अगर ऐसे सभी लोगों को चश्मा एक वाजिब दाम पर उपलब्ध कराया जाए, तो संभव है कि उनके साथ समाज भी तरक्की की राह पकड़ेगा.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में एक अरब से ज्यादा लोगों के पास चश्मा नहीं है. शोधकर्ताओं का कहना है कि ये एक बड़ी समस्या है. पब्लिक हेल्थ प्राथमिकता की सूची में लोगों की धुंधली होती नजरों पर ध्यान नहीं दिया गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, लोगों की कमजोर नजरों के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को हर साल लगभग 200 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान होता है.
...ताकि जिंदगी का सफर चलता रहे
जिनके पास बेहतर दृष्टि के लिए एक जोड़ी चश्मा तक नहीं है, ऐसे करोड़ों लोगों को चश्मा उपलब्ध कराने के लिए ‘विजनस्प्रिंग’ नए तरीके अपना रहा है.
इसी के साथ ये लोग अपनी कमाई के जरिये पर वापस लौट सकते हैं.
दर्जी के काम में अब नजर कमजोर होने के चलते कहीं भी कमी नहीं आएगी. वो बच्चे अब दोबारा से स्कूल जाना शुरू कर सकते हैं, जो पहले नजर कमजोर होने के कारण शब्दों को ढंग से पढ़ नहीं पा रहे थे.
अब उस प्रत्येक परिवार के पास अपनी रोजी-रोटी का जरिया मौजूद हो सकता है, जिनकी कमाने वाली नजरें कमजोर हो चली थीं.
इन्हीं उद्देश्यों के साथ भारत में इस समस्या से निजात दिलाने के लिए अंशू ने विजनस्प्रिंग के काम को संभाला. ये बात तब की है जब इस संस्था में मात्र 30 से 40 लोग कार्य करते थे, लेकिन आज इनके कर्मचारियों की संख्या 150 से भी ज्यादा हो चुकी है.
अंशू तनेजा भारत के उन लाखों लोगों में से एक नाम हैं, जो कभी अपनी कमजोर नजर के कारण ढंग से पढ़ भी नहीं पा रहे थे, लेकिन ये नहीं चाहते कि लोगों को नजर कमजोर होने के कारण किसी भी दिक्कत का सामना करना पड़े.
आज अंशू भारत के ऐसे ही करोड़ों लोगों की धुंधली नजरों को राह दिखा रहे हैं, ताकि वो अपनी मंजिल से पहले कहीं न रुकें.
Web Title: Anshu Taneja Country Director VisionSpring, Hindi Article
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