कहते हैं कि यदि आपके भीतर जज्बा हो तो दुनिया की कोई भी रूकावट आपको अपना लक्ष्य हासिल करने से नहीं रोक सकती है. इस बात को अरुणिमा सिन्हा ने शत प्रतिशत सच साबित किया है.
वे ऐसी पहली विकलांग महिला बनीं, जिन्होंने माउंट एवरेस्ट को फतह किया.
अरुणिमा की कहानी बहुत प्रेरणादायक है. यह प्रेरणादायक इसलिए है क्योंकि उनके सामने बार-बार चुनौतियाँ खड़ी हुईं और उन्होंने हर बार उन्हें बौना साबित किया. एक दुर्घटना में अपना पैर गंवाने के बाद उन्होंने अपनी हिम्मत बटोरी और विश्व की सबसे ऊंची पर्वत चोटी को फतह किया. तो आईए जानते हैं अरुणिमा की संघर्ष कहानी को…
दुर्घटना में खो दिया पैर
अरुणिमा सिन्हा का जन्म 20 जुलाई 1988 के दिन उत्तर प्रदेश के आंबेडकर नगर में हुआ था. उनके बचपन के बारे में ज्यादा जानकारी तो किसी के पास नहीं है, लेकिन यह कहा जाता है कि शुरुआत से ही वे खेल-कूद में बहुत रूचि रखती थीं. वोलीबाल उनका प्रिय खेल था और वे इस खेल में राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी भी रहीं.
इसके साथ ही वे भारतीय सुरक्षा बल सेवा में नौकरी भी करना चाहती थीं. इसी क्रम में वे 12 अप्रैल 2011 के दिन पद्मावती एक्सप्रेस ट्रेन में सवार होकर अपने शहर से दूर सीआईएसएफ की प्रवेश परीक्षा देने दिल्ली जा रही थीं.
वे अपने कोच में इत्मिनान से बैठी ही थीं कि तभी कुछ चोरों ने उनसे उनका बैग और सोने की चैन छीनने की कोशिश की. इस छीना-झपटी के बीच चोरों ने उन्हें ट्रेन के बाहर धकेल दिया. वे जब ट्रेन से नीचे गिरीं तो दूसरी तरफ से आ रही ट्रेन ने उनके पैर को कुचल दिया. इलाज के लिए उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया.
आगे डॉक्टरों को उनकी जान बचाने के लिए उनका पैर काटना पड़ा. वे लगभग चार महीनों तक एम्स अस्पताल में भर्ती रहीं.इस दौरान डॉक्टरों ने एक कृत्रिम पैर अरुणिमा के शरीर में जोड़ दिया. इसके साथ ही उन्होंने अरुणिमा को आराम करने की सलाह दी. असल में डॉक्टरों को अब यह उम्मीद नहीं थी कि अरुणिमा आगे कभी सामान्य लोगों की तरह चल-फिर पाएंगीं.
वहीं अरुणिमा को कुछ और ही मंजूर था. इसी समय के आस पास भारतीय क्रिकेट स्टार युवराज सिंह कैंसर को हरा कर वापस लौटे थे. अरुणिमा को उनकी कहानी ने बहुत प्रभावित किया. इसी के बाद उन्होंने निर्णय लिया कि वे लोगों की नज़र में लाचार बनने की जगह कुछ हासिल करके अपना नाम स्थापित करेंगी.
लिया माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का निर्णय
अस्पताल से निकलते ही उन्होंने माउंट एवरेस्ट को फतह करने का मन बना लिया था. इसके लिए उन्होंने सबसे पहले माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली बछेंद्री पाल से संपर्क साधा. बछेंद्री ने उनकी हालत देखते हुए पहले-पहल उन्हें आराम करने की सलाह दी. लेकिन अरुणिमा के जज्बे को देखते हुए, वे उनके सामने नतमस्तक हो गईं.
आगे अरुणिमा को उत्तरकाशी के टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन में प्रारंभिक ट्रेनिंग के लिए भेजा गया. यहाँ कोर्स पूरा करने के बाद वे उत्तरकाशी के ही ‘नेहरु माउंटेनरिंग इंस्टिट्यूट’ में दाखिल हुईं. यहाँ ट्रेनिंग में वे सबसे अव्वल बनकर निकलीं. अब बस उनकी इतिहास रचने की बारी थी. उनके भाई ओमप्रकाश लगातार उनका उत्साहवर्धन करते रहे.
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने से पहले उन्होंने दो साल तक खूब प्रैक्टिस की. इस दौरान श्रीजनी गांगुली ने उन्हें गाइड किया. प्रारम्भ में उन्होंने ‘आईसलैंड पीक’ और ‘माउंट कांगड़ी’ पर चढ़ना-उतरना शुरू किया. फिर जब उन्हें लगा कि अब वे माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुकी हैं, तब वे बेस कैंप की ओर निकल पड़ीं.
फिर वो शुभ दिन भी आया, जब अरुणिमा ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ना शुरू किया. पहले दिन वे इतनी ज्यादा उत्साहित थीं कि ख़ुशी में बेस कैम्प के पास उनका पैर फिसल गया. हालाँकि, उन्हें कोई चोट नहीं लगी और उन्होंने अपनी यात्रा शुरू की.
चोटी तक की यात्रा में उन्हें अनेक मुश्किल पड़ावों से गुजरना था. इस यात्रा में कई जगहों पर बड़े जटिल स्थान थे. वहीं अरुणिमा के पास रस्सी की सीढ़ी भी नहीं थी. ऐसे में उन्हें इन स्थानों के पार जाने के लिए सीधे कूदना पड़ा. इसमें बहुत खतरा था क्योंकि एक छोटी सी भी चूक सीधे अरुणिमा की जान ले सकती थी और अपने कृत्रिम पैर के साथ कूदना कोई आसान काम नहीं था.
मुश्किलों का सामना कर बढीं आगे
बहरहाल, इन चुनौतियों के अलावा उनके सामने कई अन्य चुनौतियाँ भी मौजूद थीं. इनमें से सबसे बड़ी चुनौती उनके सह-यात्रियों से जुड़ी हुई थी. असल में अपने पैर की वजह से अरुणिमा उतनी तेजी से ऊपर नहीं चढ़ पा रही थीं, जितनी तेज़ी से उनके बाकी सह-यात्री चढ़ रहे थे. ऐसे में एक समय पर वे सबसे पीछे छूट गई थीं.
इस स्थिति में उनके गाइड ने उनसे वापस लौट जाने को कहा, लेकिन अरुणिमा ने हार नहीं मानी और लगातार ऊपर बढ़ती चली गईं. आखिर 52 दिन की यात्रा के बाद वे 21 मई 2013 के दिन सुबह लगभग 11 बजे माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुँच ही गईं और इस तरह इसे फतह करने वालीं पहली विकलांग महिला बनीं.
चोटी पर पहुँचने के बाद उन्होंने एक कपड़े पर भगवान को शुक्रिया लिखा और उस कपड़े को वहीँ बर्फ में दबा दिया. इसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें इनाम स्वरुप 25 लाख रुपए के दो चेक दिए. वहीं उनकी इस उपलब्धि के लिए आगे उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाजा गया.
इस प्रकार अरुणिमा सिन्हा ने दिखा दिया कि आप जीवन की कठिन से कठिन परिस्थितियों में हमेशा कुछ न कुछ अच्छा कर ही सकते हैं. जमाना भले आपका मज़ाक उड़ाए, लेकिन आपके भीतर हौसला होना चाहिए.
अरुणिमा सिन्हा के भीतर यह हौसला था. उन्होंने अपने साथ हुई दुर्घटना को अपना प्रेरणास्त्रोत बनाया और इतिहास रच दिया. उनकी यह कहानी आज सबके लिए किसी प्रेरणास्त्रोत से कम नहीं है.
Web Title: Arunima Sinha: First Handicapped Woman To Climb Mount Everest, Hindi Article
Feature Image Credit: Awesome India