राजस्थान के सोडा गाँव में शाम के समय जैसे ही सूर्य धीरे-धीरे अस्त होता है, वैसे ही छवि राजावत गाँव के भ्रमण के लिए निकल पड़ती हैं. आज 38 वर्ष की हो चुकी छवि इस गाँव की सरपंच हैं. सन 2010 में वे पहली बार सरपंच बनी थीं. इस प्रकार तब उन्होंने भारत की सबसे कम उम्र की महिला सरपंच होने का रिकॉर्ड बनाया था.
धूल भरी गलियों से होकर वो सबके घर जाती हैं. पारंपरिक वेशभूषा पहने हुए स्त्री और पुरुष उनसे अपनी समस्याएं बताते हैं. वे शांत रहकर सबकी समस्याएं सुनती हैं और फिर उनका हल निकालने का प्रयास करती हैं.
बीते आठ वर्षों में उन्होंने अपने गाँव का काया पलट किया है. राजस्थान जैसे पुरुषवादी समाज में एक स्त्री के लिए ऐसा करना बिलकुल आसान नहीं था. तो आईए छवि राजावत के संघर्ष को जरा करीब से जानते हैं…
दादा जी ने किया प्रेरित
छवि राजावत का जन्म 1980 में जयपुर में हुआ. जयपुर से लगभग साठ किलोमीटर दूर सोडा इनका पैतृक गाँव है. इनके दादा रघुवीर सिंह भारतीय सेना में ब्रिगेडियर थे और उन्हें महवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
इसके साथ ही इनके दादा सोडा गाँव के तीन बार सरपंच भी रह चुके थे.
छवि बचपन में अपने गाँव घूमने जाती थीं. यहाँ वो अपने दादा को गाँव की भलाई के लिए काम करता हुआ देखती थीं. इस बात का उनके बालमन पर गहरा प्रभाव पड़ा. इसी प्रभाव ने आगे उन्हें गाँव के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित किया.
बहरहाल, अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद छवि दिल्ली आईं और लेडी श्रीराम कॉलेज में स्नातक के लिए दाखिला लिया. स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पुणे स्थित ‘इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मॉडर्न मैनेजमेंट’ में दाखिला लिया.
यहाँ उन्होंने एमबीए की पढ़ाई की. परीक्षा में उन्होंने सबसे अधिक अंक हासिल किए. इसके बाद उन्हें विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों से नौकरी के प्रस्ताव आने लगे. जल्द ही उन्होंने टाइम्स ऑफ़ इंडिया में नौकरी करनी शुरू की.
`इसके बाद उन्होंने एयरटेल के साथ काम करना शुरू किया. यहाँ उन्हें एक मोटी तनख्वाह मिल रही थी और उनके पास किसी भी सुख-सुविधा की कमी नहीं थी. लेकिन इसके बाद भी उनके मन में सबकुछ छोड़-छाड़कर अपने गाँव के लिए कुछ करने का विचार कौंधता रहता था.
गाँव की ख़राब हालत ने कर दिया बेचैन
छवि इस जद्दोजहद से जूझ ही रही थीं कि तभी राजस्थान सरकार ने सोडा गाँव को सबसे पिछड़े इलाकों की श्रेणी में डाल दिया. गाँव से खबरें आने लगीं कि यहाँ का पानी पूरी तरह से जहरीला हो चुका है और ये फसलों की सिंचाई में भी प्रयुक्त नहीं किया जा सकता है.
इस बात ने छवि को बेचैन कर दिया. उनकी आँखों के सामने से ऐसे दृश्य गुजरने लगे जिसमें वे गाँव के लोगों को प्यासा मरते हुए देखने लगीं. अब उनसे रहा नहीं गया, तो उन्होंने निर्णय लिया कि वे अपनी नौकरी छोड़कर गाँव जायेंगी और सरकार तथा कॉर्पोरेट की सहायता से कुछ करेंगी. हालाँकि, चुनाव लड़कर सरपंच बनने का विचार अभी तक उनके मन में नहीं आया था.
लेकिन जब वे गाँव पहुंची तो उन्होंने महसूस किया कि बिना सरपंच बने यहाँ किसी भी प्रकार का विकास नहीं किया जा सकता है. इस सिलसिले में उन्होंने गाँव वालों से बात करना शुरू किया.
क्योंकि उनके दादा इससे पहले गाँव के सरपंच रह चुके थे, इसलिए लोगों ने छवि के ऊपर विश्वास जताया.
आगे छवि सरपंच पद के लिए खड़ी हुईं, तो गाँव के लोगों ने जाति, धर्म और लिंग की सीमाएं तोड़कर उनके लिए एकमुश्त वोट डाले. इस प्रकार वे भारत की सबसे कम उम्र की महिला सरपंच बनीं.
वो कहते हैं न कि पद के साथ इंसान के पास जिम्मेदारियां भी आती हैं. ऐसा ही कुछ छवि ने भी महसूस किया. वे सरपंच तो बन गई थीं, लेकिन अब उनके सामने गाँव का उत्थान करने का भारी-भरकम लक्ष्य था और गाँव की पितृसत्तात्मक व्यवस्था में ऐसा करना उनके लिए बिल्कुल भी आसान नहीं होने जा रहा था. लेकिन इसके लिए उन्होंने भी अपनी कमर कस ली थी.
धमकियाँ मिलती रहीं, छवि बढ़ती रहीं...
सरपंच बनने के बाद जो सबसे पहला काम छवि को करना था, वो था गाँव के लोगों के लिए साफ़ पानी मुहैया करवाना. इसके लिए उन्होंने गाँव के पास स्थित दो जलाशयों में से एक को पुनर्जीवित किया और गाँव में एक वाटर लाइन बिछवाई. इस प्रकार गाँव में साफ़ पानी की आपूर्ति शुरू हुई.
आगे उन्होंने गाँव में सड़कें बनवाईं और बिजली की व्यवस्था की. वे यहीं तक नहीं रुकीं. उन्होंने भारतीय स्टेट बैंक से आग्रह कर गाँव में एक शाखा और एटीएम भी खुलवाया. इसके साथ ही उन्होंने गरीब परिवारों को सस्ता राशन प्रदान करना भी शुरू किया. देखते ही देखते गाँव की दशा और दिशा बदलने लगी.
हालाँकि, इन सबके बीच छवि को पितृसत्तात्मक सोच से ग्रसित पुरुषों का बहुत विरोध सहना पड़ा. ये पुरुष एक महिला द्वारा गाँव के लिए किए जा रहे विकास कार्यों को कभी सहन ही नहीं कर पाए.
इनमें से बहुतों ने छवि के आदेश मानने से मना कर दिया. इन लोगों ने गाँव वालों को बरगलाकर छवि का विरोध किया. यहाँ तक कि इन लोगों ने छवि और उनके पिता के ऊपर हमले भी करवाए.
लेकिन छवि रुकी नहीं. वे लगातार गाँव में विकास कार्य करती रहीं. इसका परिणाम यह हुआ कि जब 2015 में गाँव में एक बार फिर से सरपंच पद के लिए चुनाव हुए, तो छवि एक बार फिर से सरपंच चुनी गईं.
आज छवि पूरी तत्परता से अपने काम में लगी हुई हैं. अपनी लाखों की तनख्वाह छोड़कर वे मात्र साढ़े तीन हज़ार रूपए में अपना गुज़र-बसर कर रही हैं. उन्होंने गाँव के भविष्य के लिए बहुत सुंदर स्वप्न संजो रखे हैं.
इन स्वप्नों में अभी गाँव में ढेर सारे पेड़-पौधे लगाना और एक कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र खोलना सबसे प्रमुख हैं. इसके अलावा वे रोजगार और शिक्षा के ऊपर भी निकट भविष्य में ध्यान देने वाली हैं. हम आशा करते हैं कि उनके प्रयास जल्द ही कामयाब होंगे.
Web Title: Chhavi Rajawat: The Youngest Sarpanch Who Left Her Job For Village, Hindi Article
Feature Image Credit: Hesed