अक्सर, कई लोग ये मलाल रखते हैं कि काश समय पर अमूक काम कर लिया होता तो, आज हम कहीं और ही होते. कहते हैं उम्र सिर्फ एक संख्या ही नहीं होती, बल्कि अपने साथ अनुभव और भाव लिए हुए रहती है.
सपने देखने की कोई उम्र नहीं होती है. बस, अगर जरुरत होती है तो उन्हें पूरा करने के जज़्बे की. लिहाजा, आपकी कामयाबी और नाकामयाबी के लिए ‘उम्र’ को दोष देना ठीक नहीं.
एक उम्र पार करने के बाद बूढ़े लोगों को पूजा पाठ में ही मन लगाने के लिए समझा जाता है. इस चली आ रही धारणा को तोड़ने की जहमत उठायी है लतिका चक्रबर्ती ने.
89 साल की उम्र में उन्होंने अपना एक ऑनलाइन वेंचर खोला है. जिनके उत्पादों की पहुँच देश से लेकर विदेश तक है. हर नौजवान के लिए प्रेरणा बन चुकीं लतिका जी के बारे में जानना बेहद रोचक रहेगा.
जानते हैं, लतिका चक्रबर्ती के बारे में जिन्होंने उम्र के आखिरी पड़ाव से अपने नए सफर की शुरुआत की-
शुरुआती दिनों से ही 'सिलाई' की रहीं शौकीन
लतिका का जन्म असम के धुबरी शहर में हुआ. उन्होंने अपनी शिक्षा भी असम से ही प्राप्त की. लतिका बचपन से ही ‘सिलाई’ की शौक़ीन रहीं.
उन्हें इस काम को करना में बहुत आनंद आता. खाली समय में अगर कुछ करना होता तो, वह हमेशा ‘सिलाई’ ही करती हैं. उनका यही शौक उनकी सफलता का आज एक बड़ा कारण है. उनके बचपन का शौक उम्र के आखिरी पड़ाव पर युवाओं को प्रेरणा दे रहा है.
लतिका कभी एक जगह नहीं रहीं, वह भारत के अलग-अलग हिस्सों में घूमीं. इसकी वजह उनकी शादी रही. उनकी शादी कृष्ण लाल चक्रबर्ती से हुई थी. उनके पति सर्वे ऑफ़ इंडिया में एक सरकारी अफसर थे. जिसकी वजह से उनके पति की पोस्टिंग अलग-अलग जगहों पर होती रही.
ये उनके लिए काफी लाभकारी साबित हुआ. चूँकि, अपने पति के साथ उन्होंने भी ज्यादातर जगहों पर अपना वक्त बिताया. लिहाजा, उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों से कई किस्म के फैब्रिक और साड़ियों का एक यूनिक कलेक्शन बनाया.
वह इन किये हुए कलेक्शन्स से अलग-अलग चीजें सिला करतीं, जिसकी वजह से हर एक सिलाई के साथ एक कहानी जुड़ी होती.
64 सालों से उनकी ‘ऊषा’ की सिलाई मशीन है साथी
शादी के बाद उनके तीन बच्चे हुए. जब वो छोटे थे तो वह अपने बच्चों के लिए अलग-अलग डिज़ाइन के ढेर सारे कपड़े सिलती थीं. उनके बच्चे बड़े होने के बाद उन्होंने विभिन्न चीजें बनानी शुरू कर दी.
बीतते समय के साथ उन्होंने पुराने या ख़राब हो चुके कपड़ों से गुडियां बनाना भी शुरू कर दिया.
उनके सिलाई के इस सफ़र में 64 सालों से उनकी ‘ऊषा’ की सिलाई मशीन ने साथ दिया है. वह अभी तक अपनी 64 साल पुरानी सिलाई मशीन ही इस्तेमाल करती हैं. कपड़ों के डिज़ाइन और साज-सज्जा के मामले में वह बहुत गुणी हैं.
इस काम में उनका दिमाग इतना तेज है कि वह कपड़े को देखते ही उसका डिज़ाइन अपने दिमाग में बना लेती हैं.
समय के साथ, उन्होंने ‘पोटली’ बनाना भी शुरू किया. उनके द्वारा बनाये जाने वाली यह पोटली सभी रिश्तेदारों में बहुत मशहूर थी. ये पोटलियाँ उनके सारे रिश्तेदार बहुत पसंद करते .
वह पुरानी साड़ियों और फैब्रिक्स से फैंसी पोटलियाँ बनाती हैं. उन्होंने विभिन्न प्रकार की पोटलियाँ बनाई है जो हर प्रकार के कपड़ों के साथ मेल खाए. यह त्यौहार और विवाहों में बहुत पसंद की जाती है.
लतिका एक पोटली बनाने में दो से तीन दिन तक का वक्त लेती हैं. वह पोटलियाँ पर मोती, सितारे आदि से साज-सज्जा भी करती हैं. अब तक उन्होंने तीन सौ पोटलियाँ बना दी हैं.
जिस उम्र में अधिकतर बूढ़े लोगों को उठने-बैठने में भी परेशानी होती है. ऐसे में, उन्होंने इतनी संख्या में अकेले इन पोटलियों को बनाना, वाकई में सराहनीय है. यह संख्या प्रतिदिन और बढ़ ही रही है. उन्होंने अभी तक अपने शौक को मरने नहीं दिया है.
पोते ने दिलाई दादी के 'हुनर' को पहचान
उनका पोता जॉय जर्मनी में रहता है. वो उनसे मिलने अक्सर यहाँ आया करता. जॉय उनकी हाथों की कारीगरी से बहुत प्रभावित हुआ.
उनके पोते ने उनके इस काम के प्रति समर्पण को देखा, तो उसे उनके लिए कुछ करने का विचार आया. उनके पोते जॉय ने ही ऑनलाइन इन पोटलियों की बिक्री का आईडिया सोचा.
उन्होंने यह वेंचर सिर्फ बिज़नेस के लिए नहीं खोला. उनका मकसद ये रहा कि उनकी दादी की इस कला को पहचान मिलनी चाहिए.
कहीं न कहीं उनकी वजह से ही उनकी दादी का यह हुनर सबके सामने आ पाया. उन्होंने एक ऑनलाइन वेंचर खोला. जिसमें दादी द्वारा बनायीं जाने वाली पोटलियाँ बेचीं जाती हैं.
उन्होंने जब यह वेबसाइट बनायीं तब लतिका समेत किसी को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि यह इतनी मशहूर हो जाएगी. उनकी इस पोटली की मांग विदेश से भी बहुत होती है.
इसमें जर्मनी, न्यूजीलैंड और ओमान जैसे देश शामिल हैं. जो इंटरनेट पर इस पोटली के लिए आर्डर प्लेस करते हैं.
लतिका की बनायीं हुई पोटली इस लिए भी अलग होती है, क्योंकि उनकी हर पोटली के पीछे एक कहानी होती है. जो लोगों को उससे और भी ज्यादा जोड़ती है.
उनकी पोटली के दाम 500 से 1500 के बीच में हैं. लतिका के ऊपर कभी भी उम्र नाम का दीमक हावी नहीं हुआ.
लतिका के अपने शौक को इस उम्र में भी न मरने देना एक बहुत बड़ी सीख देता है. वो न सिर्फ युवाओं के लिए प्रेरणा हैं बल्कि बुजुर्गों के लिए भी एक प्रेरणा स्त्रोत हैं.
जहाँ आज अक्सर ऐसी घटनाएं सुनने को मिल जाती हैं जब लोग बुजुर्गों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं. ऐसे में, लतिका जी का परिवार और पोता भी समाज के लिए एक मिसाल ही हैं. उनके पोते ने अपनी दादी को पहचान दिलाने में मुख्य भूमिका निभायी है. इस बात पर कोई शक नहीं है.
Web Title: Granny Who Started her Venture At The Age Of 89, Hindi Article
Featured image credit: thebetterindia/ indiatimes