उम्मीद है कि आपने इस शीर्षक को कम से कम दो बार जरूर पढ़ा होगा. आखिर कैसे संभव है यह?
लजीज खाना बनाना आम बात है, पर यह खास तब हो जाता है जब उसे कोई ऐसा व्यक्ति बनाए जो खुद कभी खाने को चख भी नहीं सकता.
जी हां, यह कहानी है एक ऐसी लड़की की जिसने अपनी कमी को पूरा करने के लिए औरों को खुश करने की ठानी. जो काम वह खुद नहीं कर पाई, वह औरों को करने का मौका दिया. उन्हें खाने का मौका दिया. खाना भी ऐसा-वैसा नहीं, बल्कि हेल्दी, लजीज और मुंह में रस घोल देने वाला.
तो चलिए, जानते हैं बिना पेट वाली लड़की नताशा दिद्दी की कहानी –
हालातों से नहीं मानी हार
नताशा दिद्दी का इंस्टाग्राम खंगाला जाए तो पहले से लेकर आखिरी पिक्चर तक केवल लजीज खाने की वैरायटी ही दिखाई देंगी. खाने की रंगत तो सोशल मीडिया पर दिख ही जाती है, लेकिन खाने की खुशबू में जिंदगी गुजारने वाली नताशा की कहानी खुद इंस्प्रेशनल स्टोरी से कम नहीं है.
इस कहानी की शुरूआत होती है उनकी शादी से. नताशा शादी के बाद दिल्ली में पति और ससुराल में रह रही थीं. शुरूआत में सबकुछ अच्छा चला पर फिर हालात खराब होने लगे. उन्होंने बहुत कोशिश की कि शादी चलती रहे, लेकिन यह रिश्ता हर दिन दम तोड़ रहा था.
नताशा डिप्रेशन के हाई लेवल पर पहुंच गई थीं. बकौल नताशा, यह ऐसा दौर था जब मैं खुद पर भी यकीन नहीं कर पा रही थी. मुझे हर वक्त रोना आता था और सुसाइड का मन करता था.
धीरे-धीरे यह बात परिवार को पता चली और तब हिम्मत करके मैंने रिश्ते से निकल जाना ही बेहतर समझा. जब यह निर्णय लिया था, तब उम्र 33 पार हो रही थी. नया रिश्ता तलाशना शुरू हुआ पर मैं पहले के दर्द से बाहर नहीं आ पा रही थी.
कुछ समय बाद वे बैंगलोर में बस गईं. सोचा कि माहौल बदलेगा तो शायद जिंदगी भी करवट ले!
बहुत हद तक ऐसा हुआ भी, लेकिन जिंदगी ने जिस ओर करवट ली, वह नताशा के लिए दूसरी चुनौती सामने ले आई थी.
इंतहा तक सहा दर्द
कुछ दिनों से नताशा के दाईं तरफ के कंधे में तेज दर्द हो रहा था. दर्द इतना बढ़ गया कि उन्हें डॉक्टर के पास जाना पड़ा.
डॉक्टर ने एक्स-रे किया और कहा कि सब ठीक है. कुछ पेन किलर लिखे और वापस भेज दिया. नताशा ने पेन किलर के जरिए एक माह गुजारा पर दर्द में राहत नहीं मिली.
इलाज के लिए कभी मुंबई तो कभी दिल्ली और यहां तक की विदेश तक हो आईं. लेकिन दर्द कभी कम तो कभी ज्यादा, लेकिन लगातार होता रहा.
नताशा ने नोटिस किया कि जब भी वह खाना खाती हैं, तब दर्द में इजाफा हो जाता है. खाली पेट रहने पर आराम मिलता है. आलम यह हुआ कि नताशा ने कम खाना शुरू कर दिया. और इस तरह से देखते ही देखते 83 किलो की लड़की कुछ ही माह में 38 की हो गई.
फ़िजियोथेरेपी, अल्ट्रासाउंड और सोनोग्राफ़ी के बाद डॉक्टर्स ने उन्हें कंधे की सर्जरी करवाने की सलाह दी. नताशा सजर्री के लिए तैयार थीं और वे परिवार के पास पुणे पहुंची.
जब नताशा हॉस्पिटल में एडमिट हुईं, तो उनके पास डॉ. एस एस भालेराव पहुंचे. जब वो नताशा के पास आए तक वह दर्द से कराह रही थीं और पेट दबाकर बैठी थीं, क्योंकि ऐसा करने से उनके दर्द में राहत मिलती थी.
डॉक्टर ने नताशा को देखते ही पूछा कि क्या यह दर्द तब ज्यादा होता है, जब तुम खाना खाती हो. यह किसी आश्चर्य से कम नहीं था, क्योंकि अब तक किसी भी डॉक्टर ने उनसे यह सवाल नहीं किया था.
नताशा ने हां में जवाब दिया और डॉक्टर भालेराव ने उनके पिता से कहा कि आपकी बेटी के पेट में अल्सर है, जिससे लगातार खून रिस रहा है. लैप्रोस्कोपी टेस्ट में अल्सर की स्थिति साफ हो गई. उनके पेट में एक नहीं बल्कि दो अल्सर थे और दोनों ही लगातार गंभीर हालत में पहुंच रहे थे.
पेनकिलर के असर से नताशा के पेट ने काम करना बंद कर दिया था. डॉक्टर ने बताया कि अल्सर डायफ़्राम के पास वाले हिस्से में है. डायफ़्राम और कंधे की एक नर्व जुड़ी होती है, इसलिए पेट का ये दर्द कंधे तक पहुंचता था.
मेडिकल साइंस की भाषा में इसे 'रेफ़र्ड पेन' कहते हैं. उन्होंने कहा कि तत्काल सजर्री करनी होगी, लेकिन कंधे की नहीं पेट की.
जब पता चला पेट नहीं रहा!
9 घंटे की लंबी सजर्री के बाद नताशा आॅपरेशन थियेटर से बाहर आईं. कुछ घंटों की बेहोशी के बाद वे होश में आईं, तब डॉक्टर ने उन्हें बताया कि अब तुम्हारा पेट नहीं है!
यह सुनकर नताशा ने अपने पेट की तरफ देखा और कहा, पेट तो है!
लेकिन वह पेट नहीं जो हम देख पाते हैं, बल्कि वह असली पेट जो हमारे शरीर के भीतर होता है. उन्हें बताया गया कि 'टोटल गैस्ट्रेक्टॉमी' की गई है, जिसमें उस पेट को निकाल दिया है जो शरीर के अंदर होता है. यानी कि अब खाना पीना उनके लिए इतना आसान नहीं होगा!
यह सुनने के बाद नताशा की जिंदगी बदल गई.
एक फूडी टाइप लड़की के सामने से उसकी थाली खींच ली गई थी. सोच समझकर खाने के बारे में तो नताशा ने कभी सोचा भी नहीं था. पर अब उसे यह करना था वो भी पूरी जिंदगी!
पेट निकाले जाने का अर्थ था कि शरीर खाना स्टोर नहीं कर सकता. यानी वो जो भी खाएंगी वह सीधे छोटी आंत में जाएगा. ऐसे में कई तरह की समस्या भी हो सकती है, इसलिए उन्हें भूख लगने पर भी भरपेट खाना नहीं देने की सलाह दी गई.
इस खबर ने एक बार फिर नताशा को परेशान किया. वह भूखे नहीं रहना चाहती थी, पर अब यही उसकी लाइफ थी.
नताशा ने इंस्टा पर अपनी स्टोरी शेयर की है और उस वक्त के बारे में लिखा है कि तब ऐसा लग रहा था कि या तो मुझे वो स्वीकार कर लेना चाहिए जो नियति ने तय किया है या फिर हार मान लेनी चाहिए.
मैंने पहले विकल्प को स्वीकार किया, पर इस शर्त के साथ कि मैं अपने खाने का शौक मरने नहीं दूंगी.
फिर महके किचिन और जिंदगी...
नताशा खुद खाना नहीं खा सकती थीं, पर वह लोगों को खाना खिलाने में दिलचस्पी लेने लगीं.
पहले मां के साथ किचिन में हाथ बंटाया और फिर एक नामी संस्थान से खाना बनाने की सारी बारीकियां सीखीं. आलम यह था कि नताशा खाना बनाती थीं और उसे टेस्ट करने के लिए अपने साथियों को देती थीं.
वह कहती हैं कि यदि मैं खुद टेस्ट करती तो जाहिर है कि उसे खाने का मन करता. मीठे की शौकीन नताशा ने मिठाई से तौबा कर ली, पर उन्होंने दर्जनों तरह के मीठे पकवान बनाना सीखे.
पहले परिवार वालों को खाने का स्वाद चखाया और फिर दोस्तों से तारीफ बंटोरी. लेकिन बाद में सोशल मीडिया की मदद ली और अपने खाने की तस्वीरें इंस्टा पर शेयर करना शुरू कीं. कुछ माह का सब्र काम आया और लोगों को नताशा के बनाए फूड में दिलचस्पी आने लगी.
पॉजिटिव रिस्पांस देखकर नताशा ने होटलों में कंसल्टेंट का काम शुरू किया. अपनी रेसिपीज को आॅनलाइन किया.
नताशा के खाने की सबसे खास बात यह है कि उन्होंने फास्ट फूड को पूरी तरह से अवॉइड किया और भारतीय पारंपरिक थाली सजानी शुरू की. वेज-नॉनवेज हेल्दी थाली के मेन्यू तैयार किए. जिसमें प्रोटीन, कैल्शियम, फाइबर, कार्बोहाइडेट सब कुछ नपी-तुली मात्रा में था.
नताशा का बनाया खाना आज देशभर में चर्चित है. वे लोगों को ‘द गटलेस फ़ूडी’ के नाम से इंस्टा पर आॅनलाइन सजेशन देती हैं. कैसे घर के खाने के साथ फिट रहा जा सकता है.
इसके साथ ही वो यह भी बताती हैं कि तनाव जीवन को तबाह करता है, इससे दूर रहें और हेल्दी रहे.
उन्होंने 'Foursome' नामक एक किताब भी लिखी है. जिसमें जिंदगी के तमाम अनुभवों को समेटा है. वे विदेश में भी भारतीय खाने को प्रमोट कर रही हैं. खास बात यह है कि नताशा का केस अब तक भारत में इकलौता है.
नताशा भले ही खाना नहीं खा पाती हैं और जीने के लिए डॉक्टर के सजेशन लेती हैं, लेकिन उनकी बाकी पूरी जिंदगी और वक्त खाने की खुशबू के आसपास ही बसा है.
वे खाने की खुशबू के साथ जागती हैं और सोती भी. साथ ही इस खुशबू ने कई और फूडीज को स्वाद का चस्का लगा दिया है!
Web Title: India's Top Foodgrammers Natasha Diddee: The Woman Without Stomach, Hindi Article
Feature Image Credit: vogue