आज भी महिला वैज्ञानिक अपनी पहचान और समान वेतन के लिए विश्व भर में संघर्ष कर रही हैं. भारत में वैज्ञानिक शिक्षा की शुरुआत औपनिवेशिक काल में हुई थी. इस समय राजा राममोहन रॉय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर और सावित्री बाई फुले ने स्त्रियों की शिक्षा के लिए सामाजिक आन्दोलन चलाए थे.
लेकिन इन आन्दोलनों के बाद भी आधुनिक वैज्ञानिक शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी न के बराबर थी. ऐसे समय में एक स्त्री ने न केवल विज्ञान के एक क्षेत्र में पीएचडी की उपाधि हासिल की, बल्कि कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में एक वैज्ञानिक के तौर पर शानदार कैरियर भी बनाया. ये ऐसा करने वाली भारत की पहली महिला थीं.
तो आईए इनके बारे में जरा करीब से जानते हैं…
बचपन से ही मिला बौद्धिक माहौल
हम जिस महिला वैज्ञानिक की बात कर रहे हैं, उनका नाम कमला सोहोनी है. कमला सोहोनी का जन्म 14 सितंबर 1912 के दिन इंदौर में हुआ था. उनके पिता नारायण भागवत और चाचा माधवराव भागवत भारतीय विज्ञान संस्थान से डिग्री हासिल करने वाले रसायन विज्ञान के पहले बैच से थे. कमला इन दोनों को देखते हुए ही बड़ी हुई थीं.
कमला ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद बम्बई विश्वविद्यालय में बी.एससी में दाखिला ले लिया. स्नातक में उन्हें अपनी कक्षा में सबसे अधिक अंक प्राप्त हुए. इसके बाद परास्नातक के लिए उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान में दाखिले के लिए आवेदन कर दिया. अपने सुनहरे भविष्य के लिए वे काफी उत्साह से भरी हुई थीं.
प्रोफ़ेसर सी वी रमण उस समय भारतीय विज्ञान संस्थान के प्रमुख थे. वे विज्ञान के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार जीतने वाले पहले एशियाई थे. इसके बाद भी वे पितृसत्तात्मक सोच से ग्रसित थे. इसी सोच के आधार पर उन्होंने कमला के आवेदन को रद्द कर दिया. कमला के पिता और चाचा ने उनसे कमला के दाखिले के लिए बहुत आग्रह किया.
लेकिन यह आग्रह काम नहीं आया और उन्होंने कहा कि वे अपने संस्थान में एक स्त्री को दाखिला नहीं देंगे. कमला को जब यह पता चला, तो उन्हें धक्का लगा. स्नातक में सबसे ज्यादा अंक प्राप्त करने के बाद भी उन्हें दाखिला नहीं मिल रहा था. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और प्रोफ़ेसर सी.वी रमण के पास पहुंची.
उन्होंने प्रोफ़ेसर से कहा कि वे उन्हें दाखिला न दिए जाने की वजह बताएं. इसके साथ ही उन्होंने प्रोफ़ेसर को चुनौती दी कि अगर उन्हें संस्थान में पढ़ाई करने का मौका मिलता है, तो वे डिस्टिंक्शन के साथ परीक्षा पास करेंगी.
शर्तों के साथ मिला दाखिला
प्रारम्भ में तो प्रोफ़ेसर ने कमला की बातों पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब उनके पास कमला को दाखिला न दिए जाने के पीछे कोई तर्कसंगत कारण न बचा, तो वे कुछ शर्तों के साथ कमला को दाखिला देने के लिए राजी हो गए.
इन शर्तों के तहत कमला को नियमित विद्यार्थी के तहत दाखिला नहीं मिल सकता था, इसके साथ ही उन्हें अपने गाइड की आज्ञानुसार देर रात तक काम भी करना था. कमला ने बिना कुछ सोचे इन शर्तों को स्वीकार लिया. आखिर उन्हें संस्थान में पढ़ने का मौका जो मिल रहा था! हालाँकि, भीतर ही भीतर वे प्रोफ़ेसर के इस व्यवहार से काफी उदास भी थीं.
आगे उन्होंने एक सभा में अपनी इस उदासी को बयाँ भी किया. यह सभा भारतीय महिला वैज्ञानिक संघ की ओर से आयोजित की गई थी और कमला सोहोनी को मुख्य वक्ता के तौर पर आमंत्रित किया था.
यहाँ उन्होंने कहा, “ भले ही प्रोफ़ेसर सी वी रमण ने नोबल पुरस्कार जीता हो, लेकिन एक इंसान के तौर पर उनका नजरिया बहुत संकुचित था. उन्होंने मेरे साथ दोयम दर्जे का व्यवहार केवल इसलिए किया क्योंकि मैं एक स्त्री हूँ.”
बहरहाल, संस्थान में कमला ने पढ़ाई में अपनी पूरी जान लगा दी. सन 1936 में कमला ने अपनी परस्नातक की डिग्री डिस्टिंक्शन के साथ हासिल की. इसके साथ ही उन्होंने आगे की रिसर्च के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से शिक्षावृत्ति भी हासिल कर ली. इसका परिणाम यह हुआ कि अगले वर्ष सी वी रमण ने संस्थान के दरवाजे महिला विद्यार्थियों के लिए भी खोल दिए.
वर्ष 1937 में कमला ने वैज्ञानिक रोबिन हिल के नेतृत्व में काम करना शुरू किया. रोबिन कमला के काम से बहुत प्रभावित हुए. इसके बाद उन्होंने कमला को प्रोफ़ेसर फ्रेडरिक होपकिंस की लैब में काम करने का सुझाव दिया.
फ्रेडरिक होपकिंस नोबल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक थे और उनके साथ काम करने के लिए वैज्ञानिकों को फेलोशिप जीतने की जरूरत पड़ती थी. कमला ने फेलोशिप जीती और प्रोफ़ेसर के साथ काम करना शुरू किया
...और हासिल की पीएचडी
प्रोफ़ेसर होपकिंस के नेतृत्व में कमला ने मात्र सोलह महीनों के भीतर रिसर्च तैयार की. यह रिसर्च पोषण से संबंधित थी और इसे मात्र चालीस पन्नों में लिखा गया था. इसे देखकर पीएचडी कमेटी बहुत प्रभावित हुई और उसने इस रिसर्च को स्वीकार कर लिया. इस प्रकार कमला विज्ञान के क्षेत्र में पीएचडी हासिल करने वाली प्रथम भारतीय महिला बनीं.
इस समय तक कमला के पास काम करने के लिए बहुत सारी अमेरिकी कंपनियों के प्रस्ताव आने लगे थे. लेकिन कमला ने देश वापस लौटना जरूरी समझा. वे महात्मा गांधी की अनन्य अनुयायी थीं और अपने कौशल का प्रयोग देश सेवा में करना चाहती थीं. देश वापस लौटने के बाद उन्हें बम्बई के विज्ञान संस्थान में जैव-रसायन के प्रोफ़ेसर के तौर पर नौकरी मिल गई.
इस दौरान उन्होंने ‘नीरा’ नाम के पेय पदार्थ के ऊपर काम किया. उनका लक्ष्य नीरा में मौजूद पोषकता का पता लगाना था, ताकि यह गरीब भारतीयों के लिए मददगार साबित हो. उन्होंने पता लगाया कि नीरा में विटामिन और आयरन की मात्रा बहुत अधिक है. इसलिए इसका प्रयोग गर्भवती महिलाओं और शिशुओं के स्वास्थ्य के संरक्षण में किया जा सकता है.
आगे वे बम्बई की एक दुग्ध फैक्ट्री से जुड़ीं. यहाँ उन्होंने दूध को जल्दी दही में जम जाने से रोकने के लिए एक प्रोटोकॉल विकसित किया. उनके इस काम के लिए उन्हें राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित किया गया.
इसके साथ ही उन्होंने कई किताबें लिखीं. 1969 में उन्होंने सन्यास ले लिया और 1987 में उनकी मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु के साथ देश ने एक ऐसी महिला को खो दिया, जिसने सभी रुकावटों को पार करते हुए अपने सपनों को जिया.
Web Title: Kamla Sohonie: The First Indian Woman To Get A P.hd In Science, Hindi Article
Feature Representative Image Credit: indiaafuture