आपकी उम्र कभी किसी चीज में कोई बाधा उत्पन्न नहीं कर सकती है. बस, हमें जरुरत होती है तो सीखने की इच्छा रखने की. खुली आँखों से देखे हुए सपनों को पूरा करने का जज्बा होना चाहिए.
उम्र के तराजू में खासकर शिक्षा को तौलना और भी गलत हो जाता है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं कार्तयायनी अम्मा. 96 साल की उम्र में ना सिर्फ उन्होंने परीक्षा दी, बल्कि अच्छे नंबरों से पास भी हुई.
अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव पर उन्होंने अपनी शिक्षा की नींव रखी. इस नींव पर ही कई और लोगों के सपनों की इमारत को एक उड़ान मिली है. उन्होंने समाज को एक बेहतरीन उदाहरण पेश किया है.
ऐसे में, केरल की कार्तयायनी अम्मा के बारे में जानना दिलचस्प रहेगा. जानते हैं, आखिर अम्मा को इस उम्र में परीक्षा देने की क्या जरुरत आन पड़ी-
केरल की 'अक्षरालक्षम स्कीम' और अम्मा का दाखिला
सरकारी सर्वे (जनगणना) के अनुसार, केरल की 94 प्रतिशत जनसंख्या शिक्षित है. इसका मतलब है कि यहाँ के लोगों को पढना और लिखना आता है. यह आंकड़ा केरल की अच्छी स्थिति की ओर भी इशारा करता है.
इस अच्छी संख्या का एक कारण यह है कि सरकार ने मुफ्त शिक्षा, खाना और रहने की जगह भी मुहैया करवा रखी है. इसके साथ ही, दाखिला कराने आये बच्चे को अपना धर्म और जाति लिखना अनिवार्य नहीं है. यह भी एक महत्वपूर्ण वजह है इतने अच्छी स्थिति की.
केरल में सरकार द्वारा एक योजना चलाई जाती है. जिसका नाम ‘केरल स्टेट लिट्रसी मिशन’ है. इस योजना का नाम है अक्षरालक्षम. केरल सरकार के इसे चलाने का उद्देश्य केरल राज्य को 100 प्रतिशत साक्षर बनाना है. हर एक नागरिक को शिक्षित बनाना है.
इस योजना के तहत चौथी, सातवीं, दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं की पढ़ाई होती है. इसके साथ ही, पढाई के बाद रीडिंग, राईटिंग और गणित का एक टेस्ट होता है.
यह टेस्ट 100 नंबर का होता है. जिसमें से 30 अंक प्राप्त करने के बाद ही आप पास हो सकते हैं. इसमें पास होने के लिए रीडिंग और मैथ्स में 30 में से 9 अंक चाहिए होते हैं. साथ ही, राईटिंग में 40 में से 12 अंको की जरुरत होती है. इस इम्तिहान में पास होने के लिए 100 में से 30 अंक प्राप्त करना अनिवार्य है.
इस योजना के तहत जो लोग किसी न किसी वजह से शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाए, उनके शिक्षित करना है. इसके लिए उम्र की कोई सीमा नहीं है. इसी योजना के अंदर अम्मा ने भी अपना चौथी कक्षा में दाख़िला के लिए टेस्ट दिया. उन्होंने पढ़ाई के बाद अपना टेस्ट भी दिया.
केरल के इस स्टेट लिट्रसी मिशन में इस वर्ष 40363 लोगों ने पेपर दिया. जिसमें से से 29500 महिलाएं थीं. यह संख्या महिलाओं के बेहतर भविष्य की ओर इशारा कर रही है.
पैसों की तंगी बनी थी बचपन में बाधा
अम्मा के पिता के एक ट्यूटर होने के बावजूद वो और उनकी बहन शिक्षा से दूर रहीं. वह 12 साल की उम्र में काम करने की वजह से शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाईं. हालांकि, वह थोड़ा बहुत पढ़ना जानती थीं. आज उन्होंने वहीं से पढ़ना शुरू किया, जहाँ से छोड़ा था.
अम्मा को बचपन में अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. इसका कारण उनके घर की आर्थिक स्तिथि का अच्छा न होना था. शादी के बाद उनके छह बच्चे हुए. अपने पति की मृत्यु के बाद अब सारे घर की ज़िम्मेदारी उनके ऊपर ही आ गयी.
बच्चों की परवरिश के लिए उन्होंने घरों में जाकर काम करने के अलावा स्वीपर का काम भी किया.
जिस उम्र में अक्सर बुजुर्ग लोगों का उठना-बैठना भी मुश्किल हो जाता है. वह स्वयं को सिर्फ भगवान नाम में लगाने के बारे में ही सोचते हैं. लेकिन अम्मा ने इस सोच को पीछे ढकेलते हुए शिक्षा प्राप्त करने के लिए कदम आगे बढाए हैं. ऐसे में, अम्मा वाकई समाज के हर तबके के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत हैं.
परीक्षा देने वाली सबसे उम्रदराज छात्रा रहीं
कार्तयायनी अम्मा केरल के चेप्पड़ गांव की रहने वाली हैं. ये गांव अलप्पुझा जिले के हरिपद इलाके में है. चेप्पड़ के सरकारी स्कूल में उन्होंने पेपर दिए. परीक्षा हॉल में वो बैठीं सबसे ज्यादा उम्र की औरत थीं.
इस परीक्षा में कार्तयायनी अम्मा सबसे उम्रदराज छात्रा रहीं. उन्होंने अलप्पुझा जिले के चेप्पड़ के सरकारी स्कूल में परीक्षा दी.अम्मा, इसलिए भी ख़ास हैं क्योंकि उन्होंने अपने रीडिंग सेक्शन में पूरे अंक प्राप्त किये.
इसमें उन्हें 30 में से 30 अंक प्राप्त हुए. वह सिर्फ चौथी कक्षा पास करने के बाद अपने आप को सीमित नहीं रखना चाहती हैं. वो दसवीं कक्षा तक अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती हैं. वो कहती हैं कि अगर वो जिंदा रही तो अपनी पढ़ाई दसवीं तक पूरा करेंगीं.
जब जनवरी 2018 में, योजना से जुड़े लोग चेप्पड़ गाँव पहुंचे तो, वहां की महिलाएं खुद को योजना में एनरोल करने में झिझक रही थीं. इसके बाद अम्मा खुद ही सबसे पहले खुद को एनरोल करने के लिए सामने आयीं.
उनकी शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा दो साल पहले ही हो गयी थी. उन्हें इसकी इच्छा अपनी 60 वर्षीय बेटी अम्मिनी अम्मा को देखकर हुई. दरअसल, उनकी बेटी ने इस मिशन के तहत अपना पेपर पास किया था.
कार्तयायनी अम्मा पिछले छह वर्षों से मलयालम और गणित सीख रही हैं. इसके अलावा, वह अंग्रेजी भी सीखना शुरू कर चुकी हैं.
शिक्षा प्राप्त करने की कोई उम्र नहीं होती. यह लाइन तो हमने सिर्फ सुनी ही होगी, अम्मा ने इस बात को सही साबित कर दिया. तो क्या हुआ अगर वह बचपन में नहीं पढ़ पायीं. आज उनके द्वारा की गयी यह शुरुआत देश-विदेश में सराहना बटोर रही हैं.
भारत के बुजुर्गों में कितना दम है, ये बात कर्तायायानी अम्मा में देखने को मिलती है. अपनी ढलती उम्र में अपने सपनों को पूरा करके वो आज एक मिसाल बन चुकी हैं.
Web Title: Karthayayani Amma: Who has Started Her Study At The Age Of 96, Hindi Article
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