ट्रक भारत में एक ऐसा वाहन है जिससे सिर्फ पुरुष ही जुड़े हुए मिलते हैं. इसको चलाना हो या फिर इसे ठीक करना हो पुरुष ही इस काम को अक्सर करते हैं. बात ट्रक ठीक करने की कीजाए, तो महिलाओं के लिए यह काम थोड़ा मुश्किल भरा माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें बहुत ताकत की जरूरत होती हैं. हालांकि जो लोग ऐसा सोचते हैं उन्होंने शायद शांति देवी के बारे में नहीं सुना.
फौलादी इरादों वाली शांति देवी भारत की वह पहली महिला हैं जिन्होंने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया एक ट्रक मैकेनिक बनकर. आखिर कौन हैं शांति देवी और क्यों चुना उन्होंने यह पेशा? ऐसे कई सवाल आपके मन में उमड़ रहे होंगे. तो चलिए आपको रूबरू करवाते हैं शांति देवी से–
चाय की दुकान और फिर ट्रक रिपेयरिंग की हुई शुरुआत
आज से करीब 20 साल पहले शांति देवी और उनके पती एक अच्छे रोजगार की खोज में मध्यप्रदेश से दिल्ली आए थे. उनकी आँखों में कई सपने थे. वह एक अच्छी जिंदगी चाहते थे मगर इस बड़े शहर में उन्हें कोई अच्छा रोजगार नहीं मिला. इसके बाद भी शांति देवी और उनके पती ने हार नहीं मानी. उन्होंने जब पहली बार दिल्ली का ‘संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर‘ देखा, तो उसे देखते ही उनके दिमाग में एक विचार आया.
संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर को एशिया का सबसे बड़ा ट्रक स्टॉपपॉइंट माना जाता है. आंकड़ों की माने, तो रोजाना यहाँ पर करीब 70,000 ट्रक खड़े होते हैं. इतना ही नहीं रोज यहाँ से करीब 20,000 ट्रक अपने सफ़र पर निकलते हैं. इतने सारे ट्रक को देखकर दोनों मिया बीवी के दिल में ख्याल आया कि क्यों न यहाँ एक चाय की दूकान खोली जाए. चाय की दूकान इसलिए क्योंकि चाय एक ऐसी चीज थी, जो ट्रक ड्राईवर जरूर पीते. इतना ही नहीं इतने सारे रोजाना के ग्राहक उन्हें और कहीं नहीं मिलते.
इसके बाद उन्होंने एक छोटी सी चाय की दूकान खोल ही ली. वह दूकान अच्छी चलने भी लगी थी. इसके बाद शांति देवी और उनके पती ने अपना परिवार बढ़ाने की भी सोची. थोड़े ही वक़्त में उनका परिवार बढ़ भी गया मगर तभी थोड़ी परेशानी हो गई. बड़े परिवार के बड़े खर्चे थे, जो सिर्फ चाय की दूकान से पूरे नहीं हो सकते थे. अच्छी खासी चाय की दुकान को छोड़कर भी वह कहीं और नहीं जा सकते थे. वह कोई ऐसा काम चाहते थे, जिसे वह चाय की दूकान के साथ ही कर सकते थे. इसके बाद उन्होंने सोचा क्यों न एक ट्रक रिपेयर की दुकान भी खोल ली जाए. इसके बाद चाय की दूकान के साथ में ही उनके पती ने ट्रक रिपेयरिंग भी शुरू कर दी.
शांति देवी चाय बनाती, तो पती ट्रक ठीक करते. ऐसे करते करते ही उन्होंने अपनी डगमगाती जिंदगी को फिर से पटरी पर ला दिया.
She Started Tea Shop After That Truck Repairing (Pic: un)
जीवन के संघर्ष ने बना दिया ट्रक मैकेनिक!
शांति देवी की जिंदगी ट्रक रिपेयरिंग की दूकान खुलने के बाद एक बार फिर से पटरी पर आ चुकी थी. हालांकि उसे ज्यादा समय नहीं लगा फिर से डगमगाने में. शांति देवी के आठ बच्चे हैं. इतना बड़ा परिवार लेकर दिल्ली जैसी शहर में जीवन बिताना बहुत ही मुश्किल काम था. उन्होंने चाय और ट्रक रिपेयरिंग की दूकान, तो खोल ली थी मगर उनकी कमाई इतना बड़े परिवार के लिए कम पड़ रही थी. अब कोई और व्यवसाय नहीं था जिसे वह आजमा सकते थे. चाय की दूकान तो उनकी अच्छी चल ही रही थी मगर साथ में ट्रक रिपेयरिंग का काम भी बड़ी तेजी से बढ़ रहा था.
शांति देवी ने सोचा कि आखिर क्यों न पती के इस काम में भी उनकी मदद कर दें. उनके पती ने भी एक बार कोई सवाल नहीं किया. वह भी जानते थे कि अगर वह मदद नहीं करेंगी, तो परिवार का खर्च उठाना बहुत मुश्किल हो जाएगा. इसके बाद क्या था अपने पती से शांति देवी ट्रक ठीक करने के गुर सीखने लगीं. उन्हें ज्यादा समय नहीं लगा ट्रक ठीक करना सीखने में. थोड़े ही समय में वह मास्टर हो गईं और पती के साथ कंधे से कंधा मिलाकर ट्रक ठीक करने लगीं.
उनके इस एक कदम से परिवार की आमदनी बढ़ गई. देखते ही देखते उनके ट्रक रिपेयरिंग की दूकान प्रसिद्ध होने लगी. इसकी सबसे बड़ी वजह थी शांति देवी. ऐसा इसलिए क्योंकि इससे पहले किसी ने भी औरत को ट्रक थी करते हुए नहीं देखा था. यहीं से शुरू हुआ शांति देवी का एक नया सफ़र.
She Started Repairing Because Of Low Income (Pic: ruralindiaonline)
शांति देवी की हिम्मत के आगे सब के सिर झुक गए
ट्रक मैकेनिक बनने के बाद शांति देवी की जिंदगी ने एक बिलकुल ही अलग मोड़ ले लिया. वह संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर के आकर्षण का केंद्र बन गईं. जो भी सुनता की एक महिला है, जो ट्रक ठीक करती हैं, तो हर कोई उन्हें देखने आ जाता. लोग भीड़ लगाकर शांति देवी को 50 किलो से भी भारी ट्रक के टायर को बदलते हुए देखते. हालांकि शांति देवी के लिए यह सब आम था. उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा की वह एक महिला हैं.
अपनी लहराती साड़ी, हाथों में बजती चूड़ियों और मांग में लगे सिंदूर के साथ वह ट्रक ठीक करती हैं. कहते हैं कि शुरुआत में लोगों को लगा कि वह ट्रक ठीक नहीं कर पाएंगे. हालांकि उन्होंने जब यह करके दिखाया, तो हर कोई उनकी असली ताकत देखकर हैरान हो गया. उन्होंने हर किसी को दिखा दिया कि अगर दिल में कुछ करने की ठान ली, तो वह काम आप जरूर करके रहेंगे. फिर चाहे किस्मत आपके कितने ही खिलाफ क्यों न हो.
शांति देवी दिन में करीब 12 घंटे ट्रक ठीक करने का काम करती हैं. इतना ही नहीं माना जाता है कि कई पुरुषों से ज्यादा अच्छे ट्रक वह ठीक करती हैं. यही कारण है कि लगातार उनके ग्राहकों की गिनती बढ़ती जा रही है. अब उनके पास इतना काम है कि आराम करने का समय भी उनके पास नहीं बचता है. इतना काम करने का एक अच्छा दाम भी शांति देवी को मिलता है. माना जाता है कि सीजन के समय वह करीब 48,000 रूपए तक कमा लेती हैं. उनकी प्रसिद्धि के कारण यह सब मुमकिन हो पाया है. आज शांति देवी एक अच्छा जीवन व्यतीत कर रही हैं, जिसका सपना उन्होंने दिल्ली आने पर देखा था. अगर वह मैकेनिक नहीं बनती, तो शायद यह सब मुमकिन नहीं हो पाता.
तो यह थी फौलादी इरादों वाली भारत की पहली ट्रक मैकेनिक शांति देवी. इनके इस कदम की वजह से आज यह विदेशों तक मशहूर हैं. शांति देवी की हिम्मत के किस्से दूर दूर तक लोगों को प्रभावित करते हैं.
आपको इनके बारे में जानकार कैसा लगा कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं.
Web Title: Shanti Devi Indias First Female Truck Mechanic, Hindi Article
Feature Image Credit: fundyourownworth