आजादी के लगभग 71 साल बाद भी, भारत में महिलाओं की राजनीति में भागीदारी कम है. किसी देश की आधी आबादी उस देश की महिलाएं ही होती हैं. इसके बावजूद महत्वपूर्ण पदों या क्षेत्रों में पहुंचने में उन्हें इतना वक़्त लग जाता है.
इसके पीछे कई सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक कारण हैं. ये माना जाता है कि अगर महिलाओं की जिंदगी में बदलाव लाना है तो उनकी भागीदारी भी राजनीति में बराबर की होनी चाहिए. इससे महिलाएं किसी भी सरकारी नीति के बनने में बराबर की हिस्सेदार रहेंगी.
आज भी महिलाएं संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण के लिए लड़ रही हैं. बहरहाल, ऐसा नहीं है कि महिलाएं बिलकुल नहीं हैं, बल्कि कुछ महिलाओं ने तो शीर्ष राजनीतिक पद पर पहुंच कर अपनी काबिलियत साबित कर दी है. वो चाहे देश की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन हो या विदेश मंत्री सुषमा स्वराज.
इसी कड़ी में हम जानेंगे सुषमा स्वराज के विषय में, देश की पहली महिला विदेश मंत्री बनीं. जानते हैं, सुषमा स्वराज के बारे में जो अपनी भाषण कला के लिए भी जानी जाती हैं-
संगीत, कविता और साहित्य में रही दिलचस्पी!
सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी, 1952 को हरियाणा के अंबाला में हुआ था. उनके पिता का नाम हरदेव शर्मा और माँ का नाम लक्ष्मी देवी था. उनके पिता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक अहम सदस्य थे.
सुषमा बचपन से ही बहुत तेज़ दिमाग की थीं. उनकी मेमोरी भी बड़ी अच्छी थी. यही वजह रही कि वह पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करती थीं. उन्होंने अंबाला छावनी के एएसडी कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की. उन्होंने राजनीति विज्ञान और संस्कृत में बीए किया .
इसके बाद उनकी दिलचस्पी कानून की पढ़ाई में बढ़ी और उन्होंने एलएलबी में डिग्री कोर्स किया. यह कोर्स उन्होंने चंडीगढ़ की पंजाब यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट से किया. वह सुप्रीमकोर्ट में वकील के तौर पर काम करने के लिए रजिस्टर्ड हैं.
अपने कॉलेज के दिनों से ही बहुत एक्टिव रहीं. वह एक्स्ट्रा एक्टिविटीज में भाग लिया करती थीं. उन्हें शास्त्रीय संगीत, कविता और नाटक में बेहद रूचि रही. वह कविता और साहित्य के उत्सुक पाठक भी हैं.
उनकी हिंदी भाषा पर अच्छी पकड़ थी. कॉलेज के दिनों में हरियाणा के भाषा विभाग द्वारा आयोजित एक राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में उन्हें लगातार तीन वर्षों तक सर्वश्रेष्ठ हिंदी स्पीकर का अवार्ड मिला.
उन्होंने राजनीति प्रतियोगिताओं, बहस, पाठ, नाटक और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों में कई पुरस्कार जीते हैं. वह चार साल तक हरियाणा राज्य के हिंदी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्ष भी रहीं. साल 1970 में उन्हें एसडी कॉलेज से बेस्ट स्टूडेंट का पुरस्कार भी मिला.
इसके अलावा, वह एनसीसी (NCC) में भी बेस्ट कैडेट के रूप में चुनी गईं थी.
छात्र जीवन से ही राजनीति में रहीं सक्रिय!
सुषमा अपने कॉलेज के दिनों से राजनीति में कदम रख चुकी थीं. उनके पिता एक आरएसएस के सदस्य थे. लिहाज़ा, सुषमा ने साल 1970 के दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़कर राजनीति में कदम रखा.
इस दौरान, वह इंदिरा गांधी सरकार का विरोध किया करती.
जब 1975 में देश में इमरजेंसी लागू की गयी थी. उस दौरान सुषमा ने आपातकाल का विरोध बड़े ही सक्रिय रूप से किया था. अपने प्रखर वक्ता होने के साथ-साथ वो अपनी सक्रियता की वजह से सबकी आंखों में आ चुकी थीं. जिसके लिए आगे चलकर उन्हें कैबिनेट मिनिस्टर होने का भी पद मिला.
दरअसल, उन्हें साल 1977 में चौधरी देवी लाल की कैबिनेट में मंत्री बनाया गया. वह इसके बाद हरियाणा में बनी गठबंधन की सरकार में शिक्षा मंत्री भी रहीं. आपको बता दें, साल 1979 महज 27 साल की उम्र में वह हरियाणा में जनता पार्टी की अध्यक्ष बन गईं.
सुषमा ने 25 साल की उम्र में इतिहास रच दिया था. दरअसल, उन्होंने चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके बंसी लाल को चुनाव में 63% वोटों से हरा दिया. इसके बाद, साल 1980 में जनता पार्टी के सदस्यों द्वारा स्थापित पार्टी बीजेपी में वह 1984 में शामिल हो गईं. उन्हें पार्टी के सचिव के तौर पर नियुक्त किया गया था.
आपको बताते चलें कि साल 1975 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के वकील से शादी भी कर ली थी. उनके पति स्वराज कौशल मिजोरम के गवर्नर भी रह चुके हैं.
...और लगातार तीन लोकसभा चुनाव हारीं!
लगातार राजनीतिक पटल पर सफल हो रही सुषमा को करारी हार का सामना भी करना पड़ा. दरअसल, वह अपनी सीट से लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव हार गईं.
वह साल 1980, 1984 और 1989 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बार-बार असफलता का मुंह देखना पड़ा. वो हर बार कांग्रेस के उम्मीदवार से परस्त हो रही थीं. हालांकि, साल 1990 में वह राज्यसभा के लिए चुनी गईं. इसके बाद 1996 में उन्होंने एक बार फिर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा. इस बार उन्हें सफलता मिली और वो चुनाव जीत गयीं.
इसी के साथ वह अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिनों की बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर रहीं. उन्होंने तेरह दिनों तक सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय संभाला था.
साल 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में वो एक बार फिर चुनकर आईं. दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के लिए उन्हें इस पद से इस्तीफा देना पड़ा. उन्होंने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से इस्तीफा देकर दिल्ली की कमान संभाली. इसी के साथ वह दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बन चुकी थीं.
लेकिन, साल 1998 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार के बाद उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में वापस लौट गईं.
जब सर मुंडवाने की धमकी दे डाली!
राष्ट्रीय राजनीति में वापसी के बाद उन्होंने साल 1999 के संसदीय चुनावों में कर्नाटक के बेल्लारी से सोनिया गाँधी के खिलाफ चुनाव लड़ा. हालांकि, वह यह चुनाव 55,000 वोटों से हार गईं. लिहाज़ा, साल 2000 में वह बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की चुनावी जीत में संसद में लौट आईं.
उन्होंने राज्यसभा सदस्य के रूप में सीट जीती. उन्होंने एनडीए सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के रूप में बतौर कैबिनेट मिनिस्टर काम किया.
इसके बाद साल 2004 में केंद्र के चुनाव हुए. जिसमे कांग्रेस की अगुवाई वाली UPA की सरकार चुन कर आई. इस दौरान, सुषमा ने ये धमकी सोनिया गाँधी के देश की अगली प्रधानमंत्री बनने पर कड़ी आपत्ति जताई.
उन्होंने कहा कि अगर सोनिया प्रधानमन्त्री पद की शपथ लेंगी तो वो अपना सिर मुंडवा देंगी. साथ ही सफ़ेद साड़ी पहन कर शोक प्रकट करेंगी. हालांकि, सोनिया किसी और वजह से इस पद की शपथ नहीं ली थी.
लेकिन, सुषमा के इस बयान ने उन्हें अच्छी खासी पब्लिसिटी दे दी थी. इसके बाद वह देश की पहली महिला विपक्ष नेता के रूप में चुनी गईं.
फिर साल 2014 में NDA सरकार फिर सत्ता में वापस लौटी. इस बार सुषमा को विदेश मंत्री की कमान सौंपी गयी. इसी के साथ वह भारत की पहली महिला विदेश मंत्री भी बन गईं हैं.
फिलहाल सुषमा इसी पद पर बनी हुईं हैं और अपनी विदेश कूटनीति से सबको प्रभावित भी कर रही हैं.
Web Title: Sushma Swaraj: A Leader Who Threatened To Shave Her Head, Hindi Article
Feature Image Credit: ibtimes