भारतीय प्रतिभाओं के बारे में कोई कुछ भी कहे, लेकिन विश्व पटल पर उसका डंका हमेशा से बजता रहा है. अमेरिका जैसा देश एक बड़ी संख्या में भारतीय युवाओं की सेवाएं ले रहा है और उसकी बड़ी आर्थिक ताकत और दूसरी क्षमताओं के इजाफे में भारतीय अमेरिकियों का बड़ा रोल है.
फिर चाहे बात अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी नासा की हो या फिर सिलिकॉन वैली की मशूहर कंपनियों की! हर जगह भारतीयों का ही बोलबाला है. आपको वह तस्वीर तो याद ही होगी, जिसमें अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा (Link in English) ने भारतीय दौरे के दौरान भारत की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखा था.
उन्होंने अपने संबोधन में भारत को एक ग्लोबल पावर भी कहा था. ऐसे में यह आंकलन करना दिलचस्प होगा कि दुनिया की अकेली महाशक्ति कहलाने वाले अमेरिका के आर्थिक ढाँचे में भारतीयों का योगदान क्या रहा है…
गहरी हैं भारतीयों की जड़ें
आज के दौर में गूगल के सुंदर पिचाई, माइक्रोसॉफ्ट के सत्य नाडेला, पेप्सी की इंदिरा नुई और एडोब के शांतनु नारायण जैसे कुछ भारतीय नाम हैं, जो समूचे विश्व में पहचाने जाते हैं. आज हर कोई अमेरिकी उद्योग जगत को एक नये आयाम तक पहुंचाने के लिए इनके योगदान की सराहना करते नहीं थकता. पर असल सच्चाई तो यह है कि अमेरिकी अर्थ व्यव्यवस्था को मजबूत कंधे देने का काम भारत काफी पहले से करता रहा है. जानकारी की माने तो 1980 (Link in English) की शुरुआत में ही भारतीय उद्यमियों की पहली पीढ़ी अमेरिका में पहुंच गयी थी.
इस पीढ़ी में विनोद खोसला, नरेन गुप्ता, प्रभु गोयल, सुहास पाटिल जैसे कई नाम शामिल थे. यह वह समय था जब अमेरिका में ग्लोबल एक्सपोजर आज जितना खास नहीं था. बावजूद इसके इन लोगों ने अमेरिका की इंजीनियरिंग-सिस्टम और नेटवर्किंग कंपनियों से जुड़े कार्यों में अपना अहम योगदान दिया था.
Google’s CEO Sundar Pichai (Pic: edexlive.com)
नए स्टार्टअप्स की बाढ़
1980 में की गई भारतीयों की पहल का ही नतीजा था कि अमेरिकी छात्रों के लिए रोजगार के नए द्वार खुल गए. भारतीय संस्थापकों के उद्यम चल पड़े तो अन्य भारतीय प्रतिभाओं का ध्यान इन पर जाना लाज़मी था. देखते ही देखते अमेरिका एक नई राह पर निकल पड़ा. एक के बाद एक नई कंपनियों ने अपना आकार गढ़ना शुरु कर दिया था. 1996 में सबीर भाटिया (Link in English) की हॉटमेल डॉट कॉम इसका बड़ा उदाहरण है. भाटिया, अपनी स्नातक की डिग्री पूरी करने के लिए कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी गये थे. इसके बाद उन्होंने वहीं रहकर स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में मास्टर के लिए दाखिला ले लिया.
इस दौरान उन्हें ऐप्पल जैसी कंपनी के साथ काम करने का मौका मिला. कुछ वक्त नौकरी करने के बाद ही उन्होंने अपनी ई-मेल सर्विस को लांच कर दिया और ऐप्पल को अलविदा कह दिया.
90 के दशक ने बढ़ाई रफ्तार
अमेरिका में 90 का दशक भारतीयों के लिए शानदार रहा. सिलिकॉन वैली में भारतीय मूल के लोगों का वर्चस्व सा कायम हो गया था. इसी कड़ी में नये उद्यमों के लिए लगातार प्रयत्नशील रहने वाले बी.वी. जगदीश ने सैन जोस नामक कंपनी को बढ़ाने के लिए खुद को झोंक दिया. बाद में उनके उल्लेखनीय कार्यों के चलते उन्हें 2000 में इसका अध्यक्ष और सीईओ बना दिया गया. फिलहाल वह केएएजे वेंचर्स में एक बतौर मैनेजिंग पार्टनर (Link in English) के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. उनकी कंपनी नए स्टार्टअप्स को खड़ा होने में मदद करती है.
पूंजीपति राम श्रीराम सिलीकॉन वैली का दूसरा बड़ा नाम हैं, जिन्होंने गूगल में सबसे पहले निवेश करने का फैसला किया था.
Mr. B.V. Jagadeesh (Pic: Mr. B.V. / youtube.com)
बदल चुका है पिछला दौर
वह दौर था और आज का दौर है. अमेरिका में भारतीय लोगों के कई स्टार्टअप्स चल रहे हैं मिलेनियम बग, इसमें एक बड़ा नाम है. भारतीय उद्यमियों की अगुआई वाली इस कंपनी ने कम समय में लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है. ज्योति वंसल द्वारा शुरु की गई एप्पडायनमिक्स दूसरा बड़ा नाम है. यह कंपनी प्रबंधन और ऑपरेशन एनालिटिक्स का काम देखती है. इसी राह पर आईआईटी कानपुर के पूर्व छात्र धीरज पांडे ने क्लाउड कंप्यूटिंग सॉफ्टवेयर कंपनी न्यूटानिक्स की स्थापना करके एक नया कीर्तिमान रच दिया. यह कंपनी अरबों डॉलर का व्यापार करती है. सोशल फ़ैशन मार्केटप्लेस पॉशमार्क के सीईओ मनीष चंद्र के बारे में क्या कहना, उन्होंने एक नई सोच का आयाम दिया.
यह भारत के लिए गौरव की बात है कि यूएस आबादी में 1% से कम शामिल होने के बावजूद, भारतीयों ने 2012 तक सभी अमेरिकी प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग स्टार्टअप के 8% (Link in English) की स्थापना की. इस समूह ने अमेरिका में आप्रवासी-स्थापित स्टार्टअप का एक तिहाई काम शुरू कर दिया है. इन स्थापित फर्मों ने अमेरिका को नये आयाम देने का काम किया है.
मौजूदा दौर की बात करें पिछले कुछ सालों से 17 कंपनियों के साथ सॉफ्टवेयर और सेवा क्षेत्र, भारतीय संस्थापकों और सह-संस्थापकों के नेतृत्व में आईपीओ की सूची में सबसे ऊपर है, जिसमें 26.2 अरब डॉलर की एक संयुक्त बाजार है. आईपीओ (छह) की संख्या के मामले में फार्मास्यूटिकल्स, जैव प्रौद्योगिकी और जीवन विज्ञान दूसरे स्थान पर आ गए हैं. हालांकि, फार्मा की 397 मिलियन डॉलर की तुलना में खुदरा उद्योग 6.67 अरब डॉलर की बड़ी बाजार पूंजी देखी गई है.
Dheeraj Pandey (Pic: indtvusa.com)
आकड़ों की मानें तो 2012 से 2017 के बीच भारतीय मूल के 25 उद्यमियों की अगुआई वाली कंपनियों ने 500 मिलियन डॉलर से अधिक का विलय और अधिग्रहण देखा है. सैनडिस्क (कीमत 19 बिलियन डॉलर), सिस्को, एचपीई और एसएपी से ऐसी कुछ अधिग्रहण किए जाने वाली कंपनियों के नाम उदाहरण हैं.
आज, अमेरिका में 261 यूनिकॉर्न (1 अरब डॉलर से ज्यादा की निजी कंपनियों का मूल्य) में 14 भारतीय मूल के संस्थापकों की अध्यक्षता में है. इन 14 स्टार्टअप के साथ 35.17 अरब डॉलर का संयुक्त मूल्यांकन और 81.8 अरब डॉलर का वित्तपोषण किया जाता है.
शायद इसीलिए भारत के लिए कहा जाता है कि भारत के लोगों में प्रतिभा कूट-कूट करके भरी हुई है. सुंदर पिचाई और धीरज पांडे जैसे इसके बड़े उदाहरण हैं, जिनकी उपलब्धियोंं का जिक्र लेख के ऊपरी हिस्से में किया गया है. उम्मीद है कि आने वाले दिनों में भारत का वर्चस्व यूं ही बना रहेगा, ताकि हम हिन्दुस्तानियों की प्रतिष्ठा दिन पर दिन बढती ही रहे.
Web Title: The role of Indians in America’s startup, Hindi Article
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