वैसे तो चाय हजारों सालों से लोगों का प्रिय पेय है, पर ग्रीन टी अभी हाल फिलहाल इतना फेम पा रही है खासकर भारत में. अपने गुणों के चलते आज ग्रीन टी लगभग हर उच्च और मध्यमवर्गीय घरों की रसोई में स्थान पा चुकी है.
ऐसा माना जाता है कि ग्रीन टी की एक सिप हमारी बॉडी को साफ़, स्वस्थ और फिर से फ्रेश कर देती है. यानि एक कप गर्म ग्रीन टी के अलावा आपकी दिमाग, आत्मा और शरीर को कोई शांत नहीं कर सकता.
पर क्या आप जानते हैं कि यह आई कहां से और यह कैसे लोगों की खास पसंद बन गई.
अगर नहीं! तो आइए जानते हैं-
'कैमेलिया सीनेन्सिस' की पत्तियों है आधार
कहना गलत न होगा कि जिसने चाय का स्वाद न चखा उसने क्या चखा...चाय का चाहे जो भी रंग हो हरा या फिर काला उसका एक ही उद्देश्य होता है हमारे मूड को रिफ्रेश करना.
एक बात और चाय किसी भी तरह की हो, यह 'कामेलिया साइनेन्सिस' नाम के पेड़ ही से ही बनती है. 'कैमेलिया सिनेसिस' की कई वैरायटी हैं. मूल रूप से पूर्वी एशिया में उगने वाला यह पौधा एक झाड़ी या पेड़ जितना बढ़ सकता है.
वर्तमान में 'कामेलिया साइनेन्सिस' पूरे एशियाभर में उगने के साथ-साथ मिडल ईस्ट और अफ्रिका के कुछ भागों में भी उगता है. यानि न सिर्फ चाय विश्व भर के लोगों की रसोई में पहुंची है, बल्कि इसका पौधा भी दुनिया के कई हिस्सों में उगने लगा है.
खासतौर पर 'ग्रीन टी' पूरी तरह से 'कैमेलिया सीनेन्सिस' की पत्तियों से बनाई जाती है, जो प्रसंस्करण के दौरान न्यूनतम ऑक्सीकरण से गुजरती हैं. यानी 'ग्रीन टी' बिना फरमेन्ट हुए पत्तों से बनाई जाती है.
एक तरफ जहां 'ग्रीन टी' चीन की संस्कृति से जुड़ी हुई है. वहीं जापान इसका केंद्र बिंदु रहा है. इसी सफर में अब यह पूरे एशिया में कई संस्कृतियों से जुड़ चुकी है.
चीन से शुरु हुआ इसका दिलचस्प सफ़र
'ग्रीन टी' की चलन को लेकर एक कहानी प्रचलित है. इसके अनुसार एक दिन चीन के सम्राट शैन नुंग के सामने रखे गर्म पानी के प्याले में कुछ सूखी पत्तियाँ आकर गिरीं. इनसे पानी में रंग आया और जब उन्होंने उसकी चुस्की ली तो उन्हें उसका स्वाद बहुत उन्हें पसंद आया. फिर क्या था उन्होंने इसके अपनी पसंद बना लिया और बस यहीं से शुरू हो गया ग्रीन टी का सफर.
ये किस्सा ईसा से 2737 साल पहले का बताया जाता है.
बताते चलें कि सन् 350 में चाय पीने की परंपरा का पहला उल्लेख मिलता है. इस तरह ग्रीन टी का उद्गम चीन में ही माना जाता है, जो आगे चलकर एशिया में जापान से मध्य-पूर्व की कई संस्कृतियों से संबंधित रही.
चीन के फ़ूजियान प्रांत में पहाड़ी क्षेत्र में उगायी जाने वाली ऑर्गेनिक चाय का ही स्वरूप है ग्रीन टी. यहाँ की वाइट एवं ऊलोंग चाय भी अपने गुणों के कारन विश्वप्रसिद्द है. इन चायों के लिए तटीय पर्वतीय क्षेत्र उपयुक्त होते हैं.
एक बात और 'ग्री टीन' उगती तो पूरे साल है, पर इसके बेहतरीन कोपल वसंत ऋतु और ग्रीष्म ऋतुओं में निकलते हैं. यही कारण है कि उम्दा चाय के लिए पत्तियां इसी मौसम में चुनी जाती हैं.
भारत में सबसे पहले सन् 1815 में कुछ अंग्रेज़ यात्रियों का ध्यान असम में उगने वाली चाय की झाड़ियों पर गया. इससे स्थानीय क़बाइली लोग एक पेय बनाकर पीते थे. आगे भारत के गवर्नर रहे जनरल लॉर्ड बैंटिक ने 1835 में चाय की परंपरा भारत में शुरू करने और उसका उत्पादन करने की संभावना तलाश करने के लिए एक समिति का गठन किया.
इसके परिणाम स्वरूप असम में चाय के बाग लगाने शुरु किए गए और आगे ग्रीन टी भारतियों की भी पसंद बन गई.
एक बड़ी प्रक्रिया से होकर बाजार पहुंचती है
चाय की पत्ती पहले हाथों या फिर मशीन की प्रक्रिया से गुजरती हैं. जरूरी एंजाइम्स को निकालने के लिए इन्हें घुमाया जाता है. इसके बाद उन्हें सूखने और ऑक्सीकरण के लिए रखा जाता है.
ग्रीन टी, ऊलोंग, सफेद चाय, रेड बल्श चाय और दूसरी हर्बल चाय से कई मायनो में अलग है. ग्रीन टी काफी कम समय तक के लिए ऑक्सीकृत होती हैं. ऑक्सीकरण का मतलब है-चाय की पत्तियों को सूखने के लिए छोड़ देना.
ग्रीन टी उतनी उम्दा होगी, जितना कम पत्तियों का ऑक्सीकरण होगा. हरी चाय बनाने की प्रक्रिया में ऑक्सीकरण न्यूनतम होता है. ऑक्सीकरण ज्यादा मतलब चाय का उतना ही गहरा उनका रंग और स्वाद में ज्यादा स्ट्रान्ग.
इसकी सबसे अधिक खपत एशियाई देशों के लोगों द्वारा की जाती है. चीन इसका दुनिया में सबसे बड़ा उत्पादक है. उसके बाद जापान, वियतनाम और इंडोनेशिया का नंबर आता है. चीन की चाइनीज़ गनपाउडर, ड्रेगनवेल, स्नोवी माउनटेंन जियान और जापान की मचा, सेंचा, कुकीचा तो लोगों की खास पसंद मानी जाती हैं!
भारत भी 'ग्रीन टी' के उत्पादन में किसी से पीछे नहीं है. पूरे विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय 'ग्रीन टी' दार्जिलिंग की मानी जाती है, जिसे भारतीय शैम्पैन के नाम से ख्याति प्राप्त है.
बन सकती है आपकी सेहत के लिए 'अमृत'
हरी चाय का फ्लेवर ताज़गी से भरपूर और हल्का होता है. साथ ही सामान्य चाय से अलग होता है. इसकी कुछ किस्में हल्की मिठास लिए होती है, जिसे पसंद के अनुसार दूध और शक्कर के साथ बनाया जा सकता है.
इस चाय में भी कैफीन है, पर इसमें कॉफी के मुकाबले कम कैफीन होता है. इनमें एंटी-ऑक्सीडेंट, पॉलीफेनोल्स और फ्लेवोनॉइड्स भरपूर मात्रा में होते हैं, जो कि न सिर्फ प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाते हैं, बल्कि हमें कोल्ड और कफ से भी बचाते हैं. पिछले कुछ दशकों में 'ग्रीन टी' पॉलीफेनॉल को अपने लंबे समय से स्वास्थ्य लाभों के लिए पहचाना जाता है!
कुछ अध्ययन तो यहां तक दावा करते हैं कि 'ग्रीन टी' के नियमित चाय पीने वालों को दिल की बीमारी और कैंसर के विकास का खतरा कम हो सकता है. इसके सेवन से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से भी बचा जा सकता है.
यही नहीं 'ग्रीन टी' के नियमित सेवन से न सिर्फ वजन नियंत्रित होता है, बल्कि उनमें कई तरह की बीमारियों के होने की संभावना भी कम हो जाती है. जापान में तो आमतौर पर लोग खाने के दौरान भी ग्रीन टी का सेवन करते हैं.
वह इसलिए क्योंकि उनके अनुसार यह खाना पचाने में तो मदद करती ही है और हृदय रोग से उन्हें दूर रखती है!
Web Title: Brief History of Green Tea From Its Origins, Hindi Article
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