उत्तर भारत में जगह-जगह पर एक छोटी सी दुकान पर आपको धोती और कुर्ता पहने एक व्यक्ति जरूर दिखेगा. उसके होंठ और जीभ लाल रंग से सने होंगे और चेहरे पर वह एक मुस्कान लिए बैठा होगा.
लाल रंग से तो आप समझ ही गए होंगे कि आखिर यहाँ पर बात किसकी हो रही है. हाँ, अगर अभी भी आपको समझ नहीं आया, तो बता दें कि ये व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि पान वाला है...
बहुत लंबे वक्त से ये पान वाले भारत के लोगों की ज़बान पर एक ऐसा स्वाद देते आ रहे हैं, जिसे आज तक नहीं बदला जा सका है.
पान जिसे कुछ खाने के बाद खाते हैं, कुछ स्वाद के लिए खाते हैं, कुछ दवा के रूप में खाते हैं, तो वहीं कुछ पूजा के लिए इस्तेमाल करते हैं.
सदियों से पान लोगों की अलग-अलग जरूरतें पूरी कर रहा है. आज तक कोई इसकी जगह नहीं ले पाया है. तो चलिए जानते हैं कि आखिर कैसे शुरू हुआ पान का ये रसीला सफर–
भगवान शिव और माता पार्वती ने बोया हिमालय में पान
पान की शुरुआत आज या कल की नहीं बल्कि आज से कई हज़ार सालों पहले की मानी जाती है. धारणाओं की मानें, तो खुद भगवान शिव और माता पार्वती ने मिलकर पान का पहला बीज बोया था.
उन्होंने हिमालय में मौजूद एक पहाड़ पर इसका बीज बोया था और उस दिन के बाद से ही पान की असली शुरुआत हुई थी.
इसके बाद से ही पान के पत्ते को एक पवित्र पत्ते के रूप में जाना गया और हिन्दू रस्मों में इसका इस्तेमाल शुरू हुआ. पूजा हो या फिर कोई शुभ काम पान के पत्तों को उसमें जगह जरूर मिली.
इसे तुलसी, दूर्वा घास और बिलवा के सामान ही जरूरी माना जाता है. हालांकि, यह सिर्फ धारणा है और आज तक पान की शुरुआत की कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पाई है.
रामायण और महाभारत में भी आया ज़िक्र...
पान का ज़िक्र सिर्फ भगवान शिव तक ही नहीं रहा बल्कि इसके बारे में रामायण और महाभारत में भी लिखा गया है. जहां भगवान शिव के समय पान का पत्ता बस एक पवित्र पत्ते के रूप में जाना गया. वहीं दूसरी ओर रामायण और महाभारत में इसे माला और पूजा सामग्री के रूप में भी देखा गया.
माना जाता है कि रामायण में पान का ज़िक्र आता है, जब भगवान हनुमान माता सीता से पहली बार मिलते हैं. वह श्री राम का सन्देश माता सीता तक पहुंचाने लंका की अशोक वाटिका में पहुँचते हैं.
वहां पर भगवान हनुमान माता सीता से मिलते हैं और उन्हें श्री राम का संदेश देते हैं. संदेश पाकर माता सीता बहुत प्रसन्न हो जाती हैं. वह भेंट में भगवान हनुमान को कुछ देने के बारे में सोचती हैं मगर उन्हें वहां कुछ मिलता ही नहीं.
उनकी नजर वहां मौजूद पान के पत्तों पर पड़ी है. उन्हें इकट्ठा करके वह एक माला का निर्माण करती हैं और भगवान हनुमान को वह माला प्रदान करती हैं.
धारणाओं के अनुसार इस कारण ही भगवान हनुमान को पान के पत्ते अर्पित करने का रिवाज शुरू हुआ.
महाभारत में पान के पत्ते को यज्ञ की एक बहुत ही महत्वपूर्ण सामग्री के रूप में दर्शाया गया है. माना जाता है कि महाभारत का युद्ध जीतने के बाद अर्जुन द्वारा एक यज्ञ किया जाना था.
यज्ञ शुरू होने से पहले पंडित ने अर्जुन से पान के पत्ते लाने के लिए कहा. अर्जुन ने बहुत खोजा मगर उनके आस-पास पान के पत्ते नहीं थे. उन पत्तों के बिना पूजा शुरू नहीं हो सकती थी. इसलिए अर्जुन को नागलोक जाना पड़ा क्योंकि वही एक मात्र ऐसी जगह थी, जहां पान के पत्ते मिल सकते थे.
इसके बाद अर्जुन को नागलोक की रानी से पान के पत्ते मांगने पड़े, जिसके बाद ही यज्ञ सम्पन्न हो पाया. कहते हैं कि इस कारण ही पान के पत्ते को 'नागरबेल' भी कहा जाता है.
आयुर्वेद से भी जुड़े हैं तार!
पौराणिक बातों का तो कोई खास प्रमाण मिलता नहीं है मगर आयुर्वेद में जरूर पान के इस्तेमाल के सबूत मिलते हैं. हजारों सालों से पाने के पत्तों को आयुर्वेदिक औषादी के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है.
कहते हैं कि भगवान धन्वन्तरि के साथ मिलकर कुछ और आयुर्वेदिक विद्वानों ने पान की खूबियाँ जानी थीं. सबसे पहले उन्होंने इसका इस्तेमाल एक चूहे पर करके देखा.
जब उन्हें यह विश्वास हो गया कि मनुष्य भी इसे खा सकते हैं, तब उन्होंने मनुष्यों पर इसके प्रभाव देखे. इसमें सबसे पहला प्रभाव जो उन्होंने देखा वह था अच्छी पाचन शक्ति.
इतना ही नहीं चिकित्साशास्त्री सुश्रुत का भी मानना था कि पान खाने से आवाज़ साफ रहती है, मुंह से दुर्गंध नहीं आती और जीब भी ठीक रहती है.
यही कारण है कि पान इतने लंबे समय से आयुर्वेदिक दवाई के रूप में प्रसिद्ध है.
मुगल लाए पान का नया अवतार...
पान एक समय तक सिर्फ हिन्दुओं में ही इस्तेमाल किया जाता था मगर वक्त के साथ बाकी धर्मों ने भी इसे अपनाया. इसे लोगों ने न सिर्फ अपनाया बल्कि एक समय पर तो पान को काफी अहमियत दी जाती थी.
यह समय था जब भारत पर मुगलों का राज चलता था. उस दौरान ही पान को उसका नया रूप मिला, जो आज भी देखने को मिलता है.
माना जाता है कि पान में चूना, इलाइची और लॉन्ग जैसी चीजों को डालने का काम मुगलों द्वारा ही शुरू किया गया था. वह अपने पान के पत्तों में इन्हें डालकर अक्सर खाया करते थे. शाही दरबार में तो ये हर किसी की पसंद हुआ करता था.
यूँ तो इसे एक आम माउथ फ्रेशनर के रूप में इस्तेमाल किया जाता था मगर यह हर किसी को नहीं दिया जाता था. धारणाओं की मानें, तो मुगल सिर्फ अपने ख़ास लोगों और दोस्तों को ही पान की पेशकश किया करते थे.
वक्त के साथ मुग़ल काल में पान की मांग काफी बढ़ गई थी. इसके पत्ते बड़ी तादात में शाही दरबार भेजे जाते थे. इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश के मोहाब में तो पान को पैसे के तौर पर देखा जाता था.
मुग़ल काल में मोहाब के लोगों से भूमि कर न लेकर मुग़ल उनसे पान के पत्ते लिया करते थे. यह दर्शाता है कि पान को आखिर कितना पसंद किया जाता था.
नूरजहाँ ने पान से की मेक-अप की शुरुआत
वक्त बदला और पान सिर्फ एक खाने की ही नहीं बल्कि खुद पर लगाने की चीज भी बन गया. काफी लम्बे समय तक सिर्फ पुरुषों ने ही इसका स्वाद लिया मगर नूरजहाँ ने इसे बदल दिया.
पान खाने के कारण पुरुषों के होंठ काफी लाल हो जाते थे और ये लाली काफी वक्त में जाया करती थी. उनके होंठ इसके कारण काफी अजीब लगा करते थे क्योंकि सिर्फ महिलाएं ही अपने होंठों को लाल किया करती थीं.
जब इस बात पर नूरजहाँ ने गौर किया, तो उनके दिमाग में पान को एक मेक-अप का सामान बनाने का ख्याल आया. उन्होंने सोचा कि क्यों न इसे अपने होंठों पर लाली लाने के लिए इस्तेमाल किया जाए.
इसके बाद उन्होंने पान को एक बिलकुल ही नया रूप दे दिया. उन्हें देख बाकी महिलाओं ने भी पान को अपने मेक-अप के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया.
इसके बाद, तो पान खाना उत्तर भारत में इतना आम हो गया कि, लखनऊ जैसी जगह पर यह एक संस्कृति ही बन गया.
आज पान को कई नए रूप मिल गए हैं मगर आज भी इसे लोग बड़े चाव से खाते हैं. आज भी पान में वही पहले सी बात है.
बनारसी, सादा, मीठा, चॉकलेट और न जाने कितने ही प्रकार के पान भारत में आज मिलते हैं. जगह-जगह पर इसका स्वाद बदलता जाता है मगर इसे चाहने वाले नहीं बदलते. आस्था से लेकर लाइफस्टाइल तक में पान हमसे जुड़ा हुआ है और आगे भी ये ऐसे ही जुड़ा रहेगा.
WebTitle: How Paan Become So Important For India, Hindi Article
This article is about the origin of Paan and it's incredible journey
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