अगर किसी महफिल में बॉलीवुड के समकालीन निर्देशकों की बात हो रही हो और उसमें इम्तियाज अली की बात न हो, तब उसे अधूरा ही कहा जाएगा.
किसी कहानी को निर्देशित करने का इम्तियाज का स्टाइल और उसे लोगों के सामने एक माला की तरह पिरोकर पेश करने का उनका अंदाज ही उन्हें बाकी सभी डॉयरेक्टर्स से अलग करता है.
आप उनकी कोई भी फिल्म उठा कर देख लीजिए, आपको इसकी तस्दीक खुद-ब-खुद दिख जाएगी.
एक तरफ, जहां हिंदी सिनेमा के तकरीबन सभी डॉयरेक्टर्स की फिल्मों के सेंट्रेल आइडिया का पता आप उसकी एक झलक देखते ही बता सकते है. वहीं इम्तियाज की फिल्मों के साथ ऐसा होना लगभग नामुमकिन है.
इम्तियाज ने अपने 13 साल के फिल्मी करियर में सिर्फ 7 फिल्में ही डायरेक्ट की हैं, जिनमें से 4 बॉलीवुड के लिए मील का पत्थर साबित हुई हैं.
तो चलिए इम्तियाज की कुछ फ़िल्मों के ज़रिए उनके सिने करियर को परिभाषित करने की कोशिश करते हैं-
'सोचा न था'
इम्तियाज अली ने साल 2005 में फिल्म 'सोचा न था' से बॉलीवुड में डेब्यू किया था. करीब तीन साल में बनकर तैयार हुई इस फिल्म के रिलीज होने से पहले कभी किसी ने ये नहीं सोचा होगा कि एक लव स्टोरी को तरह से भी प्रस्तुत किया जा सकता है.
पैरेंट्स और समाज द्वारा निर्धारित अरेंज मैरिज के कॉन्सेप्ट का एक नौजवान जोड़े द्वारा विरोध और अपने प्यार को पाने की कशमकश.
कहने को तो ये एक घिसी पिटी लव स्टोरी सी लगती है, लेकिन इम्तियाज ने इसे सबसे अलग, फ्रेश और नए अंदाज में बयां किया था.
इसके कैरेक्टर्स से लेकर डायलॉग्स तक में रियलिज्म झलकता है, जिनसे हर एक नौजवान खुद को रिलेट कर सकता है.
अभय देओल और आयशा टाकिया की मासूमियत और उनका बचकाना प्यार लोगों का दिल जीतने में कामयाब रहता है. इम्तियाज की ये फ़िल्म लोगों के लिए ताजा हवा के झोंके के समान थी.
'जब वी मेट'
'जब वी मेट' इम्तियाज की दूसरी और पहली कमर्शियल हिट फिल्म थी. इसके किरदार से लेकर स्टोरी तक सभी लोगों के ज़ेहन में सुनहरी यादों के रूप में बस गए हैं. ख़ासकर करीना कपूर का 'गीत' वाला किरदार, जिसमें वो नॉनस्टॉप बोले ही जाती है.
इस फ़िल्म में 'गीत' के डायलॉग्स तो आज भी लोग बातों बातों में बोल देते हैं. ये इम्तियाज का डॉयरेक्शन ही था, जिसकी वजह से बठिंडा की एक सीखणी का किरदार लोगों को इतना भा गया.
फिल्म के गीत की बदौलत लड़कियों ने सीखा कि खुद से प्यार करना कितना जरूरी है. यहां फिर से इम्तियाज का ट्रैवलिंग के ज़रिए अपनी स्टोरी नरेट करने का अनोखा अंदाज देखने को मिलता है.
मुंबई से बठिंडा फिर कश्मीर और कन्फ्यूज्ड लवर्स. इस फिल्म से ही इम्तियाज ने बता दिया था कि वो यूथ की नब्ज को पहचानते हैं और उनके रोमांस को पर्दे पर दिखाने में इम्तियाज का कोई सानी नहीं.
'लव आजकल'
आज कल की जनरेशन को इंस्टेंट लव और इंस्टेंट ब्रेकअप के लिए जाना जाता है. इनके लिए सेक्स ही प्यार है. ये पीढ़ी तू नहीं कोई और सही के कथन पर विश्वास रखती है.
इसके बावजूद आज भी नौजवानों में अपने प्यार को लेकर वही तड़प और कशिश देखने को मिलती है, जब उन्हें उनका सच्चा प्यार मिल जाता है. इस फ़िल्म के नायक सैफ अली खान (जय)और नायिका दीपिका पादुकोण(मीरा) भी उन्हीं में से हैं.
दोनों को प्यार होता है, लेकिन अपने करियर के लिए दोनों सहमती से ब्रेकअप कर लेते हैं. इनके प्यार में नया मोड़ लेकर आते हैं ऋषि कपूर, जो जय को अपनी प्रेमिका को पाने की कहानी सुनाते हैं.
उनकी कहानी सुनकर जय अपने रियल लव यानी की मीरा को पाने के लिए तड़प उठता है. इसलिए वो मीरा मतलब अपने सच्चे प्यार को हासिल करने की एक और कोशिश करता है.
एक लव स्टोरी, उनकी कन्फ्यूजन और एक दूसरे की कमी को महसूस करना. बाद में दोनो की एक दूसरे को पाने की तड़प.
ये सब होता है लंदन, इंडिया और अमेरिका के बीच ट्रैवल करते हुए.
इस फिल्म में इम्तियाज ने कल के और आज के लव की कहानी को अच्छे से गुंथा और यही उनकी यूएसपी बन गई.
'रॉकस्टार'
अब तक इम्तियाज को लोग जानने लगे थे और उनकी फ़िल्मों का बेसब्री से इंतजार करने लगे थे. ऐसे में रिलीज हुई रणबीर कपूर की रॉकस्टार, जो बॉक्स ऑफिस पर भी रॉकस्टार साबित हुई.
इस फिल्म में रणबीर का जनार्दन से जॉर्डन बनने का संगीतमय सफर और अपने प्यार को हासिल करने की तड़प लोगों को काफ़ी पसंद आई.
अपनी पिछली फिल्मों की तरह ही इस बार भी इम्तियाज ने प्यार का एक अलग ही रूप लोगों के सामने पेश किया. इम्तियाज ने जॉर्डन का दर्द, जिस तरीके से पर्दे पर उतारा वो काबिले तारीफ था.
जॉर्डन की पीड़ादायक, जिंदगी में वो सब कुछ था जिसे हर युवा रिलेट कर सकता है. फिर चाहे बात प्यार की हो या फिर अपने आप की खोज या फिर किसी संगीत प्रेमी की रॉकस्टार बनने की ललक.
इस फिल्म में इम्तियाज ने प्यार से प्यार को बड़े ही सुरीले अंदाज में पेश कर दर्शकों को क्लीन बोल्ड कर दिया था.
'हाइवे'
हाइवे की तो पूरी कहानी इम्तियाज ने सड़क के इर्द-गिर्द घुमा दी. एक एलीट क्लास की लड़की(वीरा) को समाज से बहुत सी शिकायते हैं. उस वीरा को एक ट्रक ड्राइवर किडनैप कर लेता है, जिसकी ज़िदगी में बहुत सी मुसीबतें हैं.
समाज के दो अलग तबके के शख्स विपरीत परिस्थितियों में एक दूसरे के आमने-सामने होते हैं, पर दोनों का अतीत कुछ-कुछ एक जैसा ही होता है. इसलिए दोनों एक दूजे के करीब आ जाते हैं.
महावीर और वीरा हाइवे पर सफर करते हुए एक दूसरे में किस तरह से बदलाव लाते हैं, उसे इम्तियाज ने करीने से दिखाया है.
फिल्म की कहानी तो उम्दा है ही साथ में इसकी लोकेशन्स को देखकर उन लोगों की आंखें खुल जाती हैं, जो सुंदर लोकेशन देखने की चाह में विदेश भागते दिखाई देते हैं.
इसके बाद इम्तियाज ने रणबीर कपूर के साथ तमाशा बनाई, जो वाकई में किसी तमाशे से कम नहीं थी.
कॉर्पोरेट स्लेवरी और प्यार की कशमश को जीते वेद के किरदार को समझ पाना हर किसी के बस की बात नहीं थी. शायद यही वजह है कि ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कमाल न दिखा सकी.
बाद में आई शाहरुख खान की फिल्म जब 'हैरी मेट सेजल' का भी यही हाल हुआ.
किन्तु, इम्तियाज के निर्देशन और उनके स्टोरी कहने के अंदाज की दोनों ही फिल्मों में क्रीटिक्स ने खूब सराहना की थी.
इम्तियाज के लिए अंत में एक ही बात कही जा सकती है कि, इश्क और सफर के सहारे जिस तरह से वह अपनी फिल्मों में लोगों को जीवन की सच्चाई का सामना कराते हैं, उसमें उनका कोई सानी नहीं.
Web Title: Bollywood Director Imtiaz Ali and His Style, Hindi Article
Feature Image Credit: indianexpress.com