आज के बदलते लाइफस्टाइल और खान-पान की वजह से कई बीमारियाँ बढ़ गयी हैं. डायबिटीज से लेकर कैंसर जैसे रोगों से आज ज्यादातर लोग ग्रस्त हैं. ये बीमारियाँ एक समय में बड़ी हुआ करती थीं जो अब आम लगने लगी हैं.
हम इन बीमारियों से तो वाकिफ हैं, लेकिन पार्किंसन नाम की बीमारी को हम शायद ही जानते हैं. यह बीमारी होने से व्यक्ति का जीवन नरक सामान हो जात है. सबसे बड़ी बात यह है कि इसका अभी तक कोई सटीक उपचार नहीं खोजा गया जिससे यह ठीक हो सके.
एक आंकड़े के अनुसार, दुनिया में इससे में 6.3 मिलियन लोग पीडित है. साथ ही, 60 साल की उम्र में इसके होने की संभावना ज्यादा होती है. यह रोगी को शारीरिक रूप से कमजोर बना देती है. साथ ही मानसिक रूप से उसे तोड़ के रख देती है.
जानते हैं, पार्किंसन के बारे में, इसके होने की वजहों समेत कैसा इससे बचा जा सकता है-
अपने शरीर पर से ही खो जाता है नियंत्रण!
पार्किंसन की बीमारी का नाम ब्रिटिश डॉक्टर जेम्स पार्किंसंस के नाम पर रखा गया था. इन्होंने ही 1817 में सबसे पहले इस विकार का वर्णन विस्तार से ‘शेकी पल्सी’ के रूप में किया था.
पार्किंसन, एक न्यूरोडिजेनरेटिव डिसऑर्डर है जो दिमाग की एक ख़ास जगह से डोपामाइन पैदा करने वाले (डोपामिनर्जिक) न्यूरॉन्स को प्रभावित करता है. शरीर में अच्छा और नियंत्रित बॉडी मूवमेंट बना रहे, इसके लिए डोपामाइन नामक एक पदार्थ दो मस्तिष्क क्षेत्रों निग्रा और कॉर्पस स्ट्रैटम के बीच एक दूत के रूप में कार्य करता है.
यहाँ तक कि डोपामाइन का ज्यादा से ज्यादा नुकसान, बॉडी मूवमेंट को और भी बुरे तरीके से प्रभावित करता है.
जिसके बाद रोगी अपने शरीर पर नियंत्रण नहीं रख पाता. जब बॉडी पर कंट्रोल ही नहीं रहेगा तो जाहिर सी बात है बॉडी बैलेंस भी नहीं बन पायेगा. सबसे बड़ी बात तो ये भी है कि इसमें पूरे शरीर में हमेशा कंप-कंपी होती है. जिसकी वजह से रोगी को दैनिक कार्य करने में भी पहाड़ चढ़ने जैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
ज़रा सोचिए, एक इन्सान जो ठीक से खाना भी ना खा पाए, चलना तो बहुत दूर है. इसके अलावा, रोज़ की नित्य-क्रिया करने में परेशानी का सामना करना. ये सब उसके मन को अंदर से तोड़ के रख देता है.
60 की उम्र में बढ़ता है इसके होने का खतरा!
पार्किंसंस समय के साथ-साथ बढ़ता जाता है. जहां एक समय के बाद रोगी पूरी तरह से बोल पाने में भी असमर्थ हो जाता है. इसके होने का खतरा बढती उम्र के साथ बढ़ जाता है.
माना जाता है कि यह बीमारी लोगों को अक्सर 60 साल की उम्र में होती है. साथ ही, इस बीमारी के होने का ज्यादातर खतरा भी पुरुषों में होता है. हालांकि, यह दोनों को हो सकता है लेकिन महिलाओं मे पुरुषों की तुलना में इसके होने का खतरा कम रहता है.
ऐसा पाया गया है कि इससे महिलाओं की तुलना में पुरुष 1.5 से 2 गुना अधिक प्रभावित होते हैं. वैसे तो इस बीमारी के होने के पीछे किसी एक ख़ास वजह को नहीं मानते. इसके होने के पीछे पारिवारिक इतिहास ज्यादातर देखा गया है. इसी की वजह से लोगों की एक छोटी संख्या में इसके होने का जोखिम बढ़ रहा है.
इसी के साथ सिर में तेज़ चोट लगने की वजह से भी इसका खतरा बढ़ जाता है. साथ ही, कीटनाशक दवाइयों को इसके होने की एक बड़ी वजह माना गया है.
जिसमें आजकल फलों और सब्जियों में कीटनाशक दवाइयों का छिडकाव एक बड़ी वजह है. इसके निरंतर सेवन से बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा, पर्यावरण में मौजूद विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने से इसका खतरा बढ़ जाता है.
रोगी पूरी तरह से अपाहिज हो जाता है!
जैसे कि हमने जाना यह समय के साथ बद से बदतर होता चला जाता है. इसके लक्षणों के आधार पर इसे पांच चरणों या स्टेज में बांटा गया है. यह हल्के लक्षणों से शुरू होकर विकराल रूप धारण कर लेता है.
अपने पहले स्टेज में यह सिर्फ शरीर के एक भाग में महसूस होता है. जिसमे हाथ-पैर हिलाने में कंप-कंपी सी महसूस होती है. इस दौरान दैनिक कार्य करने में किसी ख़ास परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता. लेकिन, इस स्टेज में बॉडी का एक हिस्सा प्रभावित होना शुरू हो जाता है.
दूसरे स्टेज में पहुंचते ही यह शरीर के दोनों हिस्से को प्रभावित करने लगता है. जिसकी वजह से चलने की समस्या आने लगती है. अब बॉडी कम ही लेकिन संतुलन बनाने में परेशानियों का सामना करने लगती है.
तीसरे स्टेज में पहुंचते-पहुँचते बॉडी मूवमेंट्स बुरी तरह प्रभावित हो जाते हैं. किसी भी काम को करने के लिए बहुत कठिनाई होती है. साथ ही शरीर का संतुलन और भी ज्यादा ख़राब हो जाता है. जिसकी वजह से हर काम को करने की गति भी बहुत कम हो जाती है.
चौथे चरण में शरीर बिलकुल बुरी स्तिथि में पहुंच चुका होता है. अब चलने फिरने में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. साथ ही, बिना किसी सहारे के कोई काम कर पाना नामुमकिन हो जाता है. बिना किसी दूसरे की मदद लिए किसी भी काम कर पाना बहुत मुश्किल हो जाता है.
पांचवे स्टेज में आते-आते व्यक्ति या रोगी की सभी गतिविधियों के लिए देखभाल करने की आवश्यकता होती है.
इस दौरान व्यक्ति खड़ा भी नहीं हो सकता, वह पूरी तरह से बिस्तर पकड़ लेता है. इस दौरान उसे मानसिक रूप से बहुत परेशानी होती है जिसमें वह कई बार भ्रम का भी शिकार हो जाता है.
वैसे तो, आज भी इसका कोई उपचार नहीं है. लेकिन इसके असर और स्टेज बढ़ने की गति को धीमा करने के लिए थेरेपी दी जाती है. उस थेरेपी का नाम है लेवोडोपा. इसके अलावा, डोपामाइन के इंजेक्शन दिए जाते हैं, इससे उत्पादन प्रभावित न हो.
यह एक बेहद खतरनाक बीमारी है जो इंसान के जीवन को मौत से भी बदतर बना देती है. इससे बचने के लिए हमे कोशिश करनी चाहिए. ऐसे में, हम बाज़ार से लायी गयी सब्जियों और फलों को अच्छी तरह से धोकर ही इस्तेमाल करना चाहिए. साथ ही, आर्गेनिक चीजें थोड़ी महँगी तो होती हैं लेकिन हमारे स्वास्थ के लिए अच्छी होती हैं.
लिहाज़ा, ज्यादा से ज्यादा आर्गेनिक खाद्य पदार्थों का सेवन करें. आखिर सेहत से बढ़कर थोड़ी न कुछ है.
Web Title: Parkinson: A Disease Which Gives Life Sickness, Hindi article
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