बचपन से ही हमारी छोटी-छोटी आंखों में हर रोज़ नए सपने पलने लगते हैं. जोकि, बढ़ती उम्र के साथ तेजी से अपना दायरा भी बड़ा करने लगते हैं. कभी-कभी तो उन्हें पूरा करने में इतना वक़्त बीत जाता है कि एक हद तक हमारी उम्र बीत जाती है.
ऐसे में अक्सर हमारे मन में नकारात्मक सोच जन्म ले लेती है. यह कहकर हम अपने रास्ते से खुद को किनारे कर लेते हैं कि छोड़ो यार! अब हमारी उम्र नहीं रही.
किन्तु, क्या आपको पता है कि दुनिया में ऐसे लोग भी हैं, जिनकी बढ़ती उम्र भी उनके रास्ते का अवरोध नहीं बन सकी. उनकी आंखों में अपने सपनों को पूरा करने की आग हमेशा जलती रही. यही कारण रहा कि उन्होंने उम्र को मात देते हुए नये आयाम गढ़े. साथ ही दुनिया को यह संदेश देने में कामयाब भी रहे कि उनके लिए उम्र महज़ एक नंबर ही रहा है.
तो आईये ऐसे ही कुछ लोगों के बारे में आज जानने की कोशिश करते हैं–
‘हरलैंड डेविड सैंडर्स’
आज पूरी दुनिया के लिए केएफसी यानि केंटकी फ्राइड चिकन एक ऐसी फास्ट फूड चेन कोई अनजाना नाम नहीं है. ‘नॉन-वेज़’ खाने के शौक़ीन लोगों के लिए ‘केएफसी’ ख़ास पसंद माना जाता है. वहां का फ्राइड चिकन उसकी ख़ासियत है. उस चिकन को बनाने की एक बेहद ख़ास रेसेपी है, जिसे हरलैंड डेविड सैंडर्स ने तैयार किया था.
वहीं हरलैंड डेविड सैंडर्स, जो ‘कर्नल सैंडर्स’ के नाम से भी मशहूर हैं. सैंडर्स ने यह कारनामा उस उम्र में किया, जिस उम्र में अक्सर लोग चारों धाम की यात्रा करना पसंद करते हैं… या फिर अपने पुस्तैनी घर में परिवार के साथ वक्त बिताना!
जितनी जायेकेदार सैंडर्स की रेसीपी है, उतनी ही जायकेदार उनकी कहानी भी है!
हरलैंड ने अपने जीवन में अलग-अलग नौकरियां की. उन्होंने सेल्समैन, वकील, गैस ऑपरेटर, मोटल ऑपरेटर आदि के पद पर बखूबी काम किया. वह शुरुआत से ही बहुत मेहनती थे.
किन्तु, दुर्भाग्य से वह किसी काम में सफल नहीं रहे. हर तरफ से उन्हें सिर्फ व सिर्फ मायूसी हाथ लगी!
ऐसे में एक ओर तो तेजी से उनकी उम्र बढ़ रही थी, ऊपर से लगातार असफलता ने उनकी कमर तोड़ रखी थी.
वह आम लोगों की तरह थक कर बैठ सकते थे, पर उन्होंंने हार नहीं मानी!
उन्होंने एक दिन खुद से बात की और अपने अंदर की काबिलियत को पहचानने की कोशिश की.
हरलैंड को शुरु से ही खाने बनाने का शौक रहा, लेकिन उन्होंने अपनी इस काबिलियत को ज़रा देर से पहचाना. हारलैंड ने 1930 के आसपास 11 जड़ी बूटी और मसालों को मिलाकर चिकन की एक ख़ास रेसीपी तैयार की. बाद में इसी के दम पर उन्होंने केएफसी की नींव डाली. शुरुआत में उन्हें परेशानी हुई, मगर धीरे-धीरे लोगों को उनका चिकन पसंद आने लगा.
1964 तक हरलैंड के चिकन ने 600 ऑउटलेट्स के मेन्यू में अपनी जगह बना ली थी. इस सफर में हारलैंड की उम्र 73 के आसपास पहुंच चुकी थी. यही वह समय था, जब उन्होंने ‘केंटकी फ्राइड कॉरपोरशन’ को 2 मिलियन डॉलर में बेच दिया. 1976 में कर्नल को दुनिया में दूसरा सबसे ज्यादा पहचाना जाने वाला व्यक्ति बताया गया.
Harland David Sanders (Pic: Chicago Tribune)
‘बोमन ईरानी’
फिल्म थ्री इडियट्स के वीरू सहस्त्रबुद्धे उर्फ वायरस का किरदार आज भी हमारे ज़हन में जिंदा है. इस किरदार को पर्दे पर ‘बोमन ईरानी’ ने आत्मसात किया था. बोमन को भले ही आप आज एक बड़े अभिनेता के रूप में देखते हो, किन्तु यहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने बहुत पापड़ बेले हैं, वह भी उस उम्र में… जिस उम्र में हम तीन मंजिल की बिल्डिंग में चढ़ने के लिए भी लिफ्ट ढूंढते हैं.
बोमन ने अपने फिल्मी करियर की दौड़ 40 की उम्र से शुरु की. 41 साल की उम्र में उन्होंने ‘लेट्स टॉक’ नामक एक एक्सपेरिमेंटल फिल्म की थी. इस फिल्म को ‘विधु विनोद चोपड़ा’ ने देखा, तो वह बोमन के अभिनय के कायल हो गये. उन्होंने तुरंत अपनी फिल्म ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ के लिए उन्हें साइन कर लिया.
चूंकि, फिल्म ने पर्दे पर धमाल मचाया इसलिए बोमन लोकप्रिय हो गये. उनके किरदार को खूब सराहा गया.
बोमन के लिए यह बड़ी उपलब्धि थी. असल में इसके पहले उनका जीवन ढ़ेर सारे उतार-चढ़ाव से गुज़रा! वह महज छह महीने के थे… जब उनके पिता का साया उनके सिर से उठ गया था. जैसे-तैसे बड़े हुए और जिंदगी आगे बढ़ी.
बोमन ईरानी ने 2 साल ताज होटल में वेटर के रूप में काम किया. फिर 12 साल एक बेकरी शॉप चलाई और 32 की उम्र में फुल टाइम फोटोग्राफर बन गए. उनकी ज़िंदगी की रफ्तार यहीं नही थमी. 35 साल की उम्र में उन्होंने थियेटर करना शुरु किया और 41 साल की उम्र में आख़िरकार उन्होंने फिल्मों में कदम रखा.
आज भी बोमन के अभिनय के पीछे उनकी उम्र मालूम नहीं पड़ती. अपने संघर्ष में उन्होंने हमेशा उसे जवान रखा!
Boman Irani (Pic: India West)
‘अन्ना मैरी रॉबर्टसन मोसेस’
अन्ना मैरी रॉबर्टसन मोसेस अमेरिका की प्रसिद्ध चित्रकार थीं. कहते हैं कि वह 76 साल की थीं, जब उन्होंने पहली बार पेंटिंग ब्रश उठाया. 2006 में उनकी बनाई गई पेंटिंग ‘दा शुगरिंग ऑफ़ पेंटिंग’ 1.2 मिलियन डॉलर की बिकी थी.
पहले अन्ना भी आम महिलाओं की तरह जिंदगी जीती थी. वह एक कुशल गृहिणी की तरह अपने पति के साथ खुश थीं. इसी सफर में 1927 के आसपास उनके पति गुजर गये. यह वह दौर था, जिसने अन्ना को अकेला कर दिया. इस अकेलेपन को दूर करने के लिए उन्होंने कढ़ाई करना शुरु कर दिया. किन्तु, वह इस काम को ज्यादा नहीं कर सकीं. असल में उन्हें पैर-संबंधी ‘अर्थराइटिस’ नामक एक बीमारी थी.
कढ़ाई बंद करने के बाद उन्होंंने 76 की उम्र में पेंट ब्रश को अपना साथी बना लिया. उन्होंने उसका प्रयोग कर अमेरिका के ग्रामीण जीवन, खेती और क्रिसमस से जुड़े यथार्थवादी जीवन को कैनवस पर बेहद सहजता से उकेरा. महज दो बाद एक कला प्रेमी ने उनकी पेंटिंग्स को किसी ड्रग स्टोर पर लटका देखा. वह पेंटिंग्स उसे इतनी पसंद आई कि उन्होनें सारी पेंटिंग्स को खरीद लिया.
यहां से अन्ना की लोकप्रियता का दौर शुरु हो गया. 1940 में ग्रैंडमा मोसेस ने न्यूयोर्क में अपनी पेंटिंग की प्रदर्शनी लगाई, जिससे तेज़ी से उनके बनाए चित्रों को क्रिसमस कार्ड, कपड़ों के डिज़ाइन और टाइल्स पर बनाया जाने लगा.
1952 में उनकी आत्मकथा ‘माय लाइफ हिस्ट्री’ प्रकाशित हुई. जिसमें उन्होंने लिखा, ‘मैं अपने जीवन को एक अच्छे दिन के काम की तरह देखती हूं… वो पूरा हो चुका है, जिससे मैं संतुष्ट और खुश हूं’. ‘मुझे कुछ भी बेहतर नहीं पता था और जो जीवन ने मुझे दिया मैंने उसे अच्छा बनाने की कोशिश की’. ”जीवन वही है, जो हम इसे बनाते हैं.”
Anna Mary Robertson Moses (Pic: 1stdibs.com)
”हैरी बर्नस्टीन”
हैरी बर्नस्टीन वो शख्सियत हैं, जिन्होंने जिंदगी के उस पड़ाव पर किताब लिखना शुरु किया, जब लोगों में जीने की इच्छा तक खत्म हो जाती है. उन्होंने अपना जीवन वृतांत ‘द इनविज़िबल वॉर : अ लव स्टोरी देट ब्रॉक बैरियर्स’ को 93 साल की उम्र में लिखना शुरु किया.
2007 में जब यह प्रकाशित हुआ, तो उनकी उम्र 97 थी.
अपने वृतांत में उन्होंने मुख्यत: बचपन के गरीबी में गुज़रे जीवन और ईसाईयों और यहूदी के खराब संबंधों का बारे में लिखा.
यह तो उनकी महज शुरुआत थी. इसके बाद उन्होंने अपना दूसरा जीवन वृतांत लिखा… जिसका नाम था ‘द ड्रीम’. हैरी ने अपनी कलम को यहीं नहीं थमने दिया. 2009 में हैरी की तीसरी किताब ‘द गोल्डन विलो’ बाजार में आई. इसमें उन्होंने अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी का जिक्र किया था. कहते हैं, हैरी जीवन के अंत तक लिखते रहे. उनके मरणोपरांत भी उनकी किताब ‘व्हाट हेपन टू रोज़‘ छपी.
Harry Bernstein (Pic: nbcnewyork)
ये तो महज कुछ उदाहरण भर हैं. दुनिया ऐसे अनगिनत लोगों से भरी पड़ी है, जिनका जीवन बताता है कि सपनों की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती. उन्हें किसी भी उम्र में पूरा किया जा सकता है.
जरूरत होती है, तो बस थोड़ी-सी इच्छाशक्ति की!
फिर चाहे उम्र 20 की हो या 90 की… जिंदगी का हर पड़ाव नए सपनों के साथ खूबसूरत लगने लगता है.
Web Title: People Who Made it Big Later in Life, Hindi Article
Feature Image Credit: : 1stdibs.com /alchetron