पार्टी में जाना हो, या घर को महकाना हो. परफ्यूम से सब कुछ संभव है.
आप नहाएं या न नहाएं, आपके शरीर से आती दुर्गंध आपको कई लोगों से दूर कर सकती है. ऐसे में परफ्यूम आपकी इस बदबू को दूर कर उसे सुगंध में तब्दील कर देता है.
आज कई प्रकार के फ्लेवर्ड परफ्यूम बाजार में उपलब्ध हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये आए कहां से हैं?
आपको पता है कि परफ्यूम की शुरूआत आखिर कहां से हुई थी… वो पहला शख्स कौन था, जिसके मन में परफ्यूम बनाने का विचार आया?
ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब आज हम इस लेख में लताशेंगे –
धर्मों में विशेष महत्व
इत्र को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं. उन्हीं में से एक के अनुसार, माना जाता है कि जंगल में गए चरवाहों द्वारा ऐसी सुगंधित जड़ी-बूटियों और जड़ों की खोज की गई थी, जो जलने के बाद भी वातावरण को महकाए रखती थीं. अब इनका उपयोग परफ्यूम तेलों को बनाने में किया जाने लगा.
ऐसी खोजों के बाद लोगों ने ऐसे अवयवों को ढूंढा, जिनसे इत्र बनाया जा सके.
लगभग सभी धर्मों में इत्र का इस्तेमाल होता है. एक ओर जहां हिंदू धर्म में देवी देवताओं की पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान के समय इत्र का इस्तेमाल किया जाता है. वहीं, ईद के दौरान इत्र की मांग जोर पकड़ जाती है.
ईसाईयों की बाइबिल, वेदों, मुस्लिमों के कुरान और जरथुस्त्र धर्म के ज़ेंद अवेस्ता जैसे प्राचीन और पवित्र ग्रंथों में भी इत्र का जिक्र मिलता है. जिनका उपयोग पूजा-पाठ और दैनिक कार्यों में किया जाता था.
सुगंधित इत्र पौधों या फूलों से प्राप्त होते थे. इन्हें परफ्यूम या इत्र के रूप में पहचान मिली, जिनका उपयोग भगवान या देवताओं की उपासना के लिए किया जाता था. जैसा कि आज भी कई धर्मों में किया जाता है.
भू-मध्य सागर के आसपास रहने वाले लोगों द्वारा भी अपने देवी देवताओं की पूजा में इसका इस्तेमाल किया जाता था. इसके साथ विश्व की प्राचीन सूफी परंपरा में भी इत्र का उपयोग होता था. जो आज भी बदस्तूर जारी है.
सूफियों के लिए ये सुगंधित इत्र सबसे अधिक खजाने वाली भौतिक संपत्तियों में से एक माना जाता है, जो उपहार स्वरूप मनुष्यों को दिया गया है.
मेसोपोटामिया में बना था पहला परफ्यूम!
ये तो बात थी इत्र की, अब परफ्यूम पर आगे बढ़ते हैं.
हम जब भी कोई विशेष खुशबू या सुगंध की महक को महसूस करते हैं, तो हम मानो कहीं खो जाते हैं, और उस महक की ओर चलने लगते हैं. जहां से वो महक आती है, हमारे कदम भी उसी ओर चलने लगते हैं.
कई बार जब हम उस तरफ नहीं भी जाना चाहते, तो भी हमारे मन के अंदर एक जिज्ञासा होती ही है कि आखिर ये महक किस दिशा से और कहां से आ रही है. इस तरह से वो खुशबू हमारे दिमाग के भीतर घर कर जाती है और हमारी याददाश्त के एक हिस्से में कहीं गुम हो जाती है.
जब सालों बाद हम दोबारा से उस सुगंध को महसूस करते हैं, तो दिमाग के किसी कोने में दबी उस महक की यादें दोबारा से ताजा हो जाती हैं. ये ठीक वैसा ही है, जैसे बारिश के दिनों में हम मिट्टी की खुशबू को सूंघ कर या उसे महसूस कर अपने पुराने दिनों में कहीं खो जाते हैं.
परफ्यूम की शुरूआत के बारे में कई मत प्रचलित हैं. आमतौर पर दुनिया के पहले परफ्यूम निर्माता के रूप में मेसोपोटामियन, फारस और मिस्र के लोगों को माना जाता है. कहा ये भी जाता है कि बेबीलोन मेसोपोटामिया में ताप्पुती नामक महिला कैमिस्ट ने सुगंध, तेल और फूलों को मिलाकर पहला परफ्यूम बनाया था.
लगभग 4000 साल पहले मिस्र की सभ्यता के शिक्षित और उच्च वर्ग के लोग श्रृंगार के समय, साथ ही अपना जीवन स्तर दर्शाने के लिए भी परफ्यूम का इस्तेमाल करते थे. मिस्र के लोग अफ्रीकी पुंट जंगलों से बड़ी मात्रा में इत्र तैयार करने के लिए सुगंधित सामान मंगाते थे.
वे धार्मिक अनुष्ठान से लेकर अपने रोजमर्रा के जीवन में और यहां तक कि किसी मृतक के क्रिया कर्म समारोह के दौरान भी परफ्यूम का इस्तेमाल करते थे.
मिस्र की किंग्स घाटी स्थित शाही मकबरों की दीवारों पर बने चित्र और प्रदर्शनी सेंट खासकर लिली की कहानी का वर्णन करते हैं.
पेरिस से हुई आधुनिक परफ्यूम की शुरूआत
सन 2007 में पुरातत्वविदों को साइप्रस में 2,000 ईसा पूर्व के एक इत्र बनाने वाले कारखाने का पता लगा. माना जाता है कि यहां पर विशेषतौर पर धनिया, लॉरेल, हिना, लैवेंडर, रोजमैरी फ्लेवर के इत्रों का उत्पादन किया जाता था.
परफ्यूम के बारे में आधुनिक ज्ञान की जानकारी 9वीं शताब्दी में लिखी गई अरबी परफ्यूम विषय की एक किताब 'दी बुक ऑफ परफू' से भी मिलती है. इसका लेखक याकूब अल-किंडी था.
वहीं, फारसियों ने राजनीतिक स्थिति के संकेत के रूप में इत्र का उपयोग किया. इस्लामी संस्कृतियों ने पश्चिमी परफ्यूम के विकास में काफी योगदान दिया है. उन्होंने इसे बनाने के लिए नई प्रकार की सामग्रियों को इजाद किया, इससे इसमें कई प्रकार के फ्लेवर मिल पाए.
फारसियों का सैकड़ों सालों तक इत्र के व्यापार पर एकाधिकार रहा. माना जाता है कि उन्होंने आसवन प्रक्रिया का आविष्कार किया था, जिससे एल्कोहॉल की खोज संभव हुई. इसी प्रक्रिया के द्वारा आज भी भारत के कन्नौज में इत्र बनाया जाता है.
वहीं, एविसेना नामक एक फारसी डॉक्टर, रसायनशास्त्री और दार्शनिक ने बेहतर इत्र बनाने के लिए आसवन विधि का व्यापक प्रयोग किया. एविसेना ही वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने बिना तेल वाले इत्र की खोज की और उसे तैयार करने की विधि का पता लगाया.
सन 1190 से पेरिस (फ्रांस) में वाणिज्यिक रूप से इत्र का उत्पादन शुरू कर दिया गया. यहीं से आधुनिक परफ्यूम की शुरूआत मानी जाती है.
16वीं शताब्दी में इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम कस्तूरी और गुलाब के पानी से बने इत्र का इस्तेमाल किया करती थीं. वहीं, फ्रांस का सम्राट नेपोलियन बोनापार्ट खुशबू के लिए एक महीने में इत्र की 50 बोतलें खर्च कर देता था.
फारस से भारत आया इत्र
फारस, मध्य पूर्व, भारत जैसी कई अन्य प्राचीन और समृद्ध संस्कृतियों में इत्र का इतिहास मानव सभ्यता के जितना ही पुराना है.
परफ्यूम एक फ्रेंच शब्द है, जबकि इत्र फारसी शब्द अत्र से बना है. इसका मतलब होता है पेड़-पौधों, फूल-पत्तियों से बना प्राकृतिक खुशबूदार तेल.
भारतीय संस्कृति और परंपरा में इत्र रमा हुआ है. भारत में सदियों से शाही परिवार के लोग इत्र का उपयोग करते आ रहे हैं. मुगल शासक, राजा-महाराजा सगुंधित इत्रों का इस्तेमाल किया करते थे. कई पुरातात्विक खोजों में शाही महलों से इत्र बनाने के सामान मिले हैं.
7वीं सदी के प्रारम्भ में थानेश्वर की राजगद्दी पर बैठे राजा हर्षवर्धन की राजधानी कन्नौज इत्र के लिए विश्व विख्यात है. माना जाता है कि कन्नौज में इत्र बनाने का तरीका फारस (ईरान) से ही आया था.
आज भी यहां सदियों पुराने उसी तरीके से इत्र बनाया जाता है. यहां बनने वाला इत्र यूरोप सहित दुनिया के तमाम देशों को भेजा जाता है.
निजामों का शहर हैदराबाद भी अपने महकते इत्रों के लिए प्रसिद्ध है. समय के साथ यहां ज़रूर इत्र का काम कुछ कम हुआ है, लेकिन आज भी इत्र की खुशबू पुराने हैदराबाद को फिर से जाग्रत कर देती है.
माना जाता है कि अगर इत्र सीधे त्वचा या कपड़ों पर लगाया जाए, तो इसका कोई भी दुष्प्रभाव हमारे ऊपर नहीं पड़ता है. बल्कि, इसकी महक आधुनिक परफ्यूम के मुकाबले काफी देर तक बनी रहती है.
ऐसे विश्व में फैली परफ्यूम की खुशबू
मिस्र और अरबों के बाद ग्रीक और रोमन लोगों ने परफ्यूम का उपयोग शुरू किया.
प्राचीन ग्रीक और रोमन लोगों ने इत्र बनाने की प्रक्रिया को दस्तावेज में सावधानी पूर्वक लिखा है. यहां तक कि पोम्पेई में एक इत्र निर्माता के घर में बने भित्तिचित्र, ग्रीक-रोमन परफ्यूम बनाने की प्रक्रिया को बताते हैं.
प्राचीन ग्रीक और रोमन सभ्यता में परफ्यूम का उपयोग पूजा-पाठ, इबादत के लिए किया जाता था. वहीं, सेंट सिर्फ धार्मिक उद्देश्यों तक सीमित नहीं थी, इसका उपयोग सभी प्रकार के मानव कार्यों में किया जाता था.
एक अनुमान के मुताबिक, 100 ई. में रोमन खुशबू के लिए सालाना 2800 टन लोबान का इस्तेमाल करते थे. इस तरह से तैयार सेंट का उपयोग सौंदर्य उत्पादों में, सार्वजनिक स्नान घरों और पैरों के तलवों पर भी किया जाता था.
उन्होंने बड़े पैमाने पर इनका उत्पादन किया और उनके फ्लेवर में तब्दीली कर उसे और महका दिया. इसके बाद यहां से इत्र की महक ने धीरे-धीरे कर पूरे विश्व को अपने आगोश में ले लिया.
Web Title: The History of Perfume, Hindi Article
Feature Image Credit: charden.myportfolio