‘लिपस्टिक’ दुनिया के लगभग हर घर में मिलने वाली वह चीज है, जो होठों से छलकने वाली मुस्कान को और भी ज्यादा खूबसूरत बना देती है. हालांकि, इसे मुस्कान की खुबसूरती से ज्यादा होठों की खुबसूरती बढ़ाने के नजरिए से ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है.
लिपस्टिक को लेकर हर समाज की अपनी सोच है.
ये कहीं प्रोग्रेसिव तो कहीं ये किसी औरत के चरित्र का प्रमाण! होठों को तरह-तरह के रंगों में सजाने वाली इस लिपस्टिक से कई सामाजिक पहलू भी जुड़े हैं. कोई औरत किस रंग से अपने होठों या अपनी मुस्कान को खूबसूरत बनाती है उस रंग पर भी खूब बहस चलती है.
बहरहाल, क्या आप जानते हैं कि इतिहास में इससे जुड़ें कई दिलचस्प पहलू दर्ज हैं. वह पहलू कौन से हैं. आईए जानने की कोशिश करते हैं—
कुछ ऐसा रहा इसका इतिहास!
मेसोपोटेमिया में न सिर्फ औरतें बल्कि, मर्द भी अपने होठों को खूबसूरत दिखाने के लिए एक किस्म के पत्थर के चूरे को अपने होठों पर लगाते थे!
मिस्र की खूबसूरत और ताकतवर रानी क्लीओपेट्रा तो रंग-बिरंगे बीटल्स और चीटियों को कुचलकर उनके निकलने वाले रंग का इस्तेमाल लिपस्टिक के तौर पर करती थी.
वहीं यूरोप में डार्क एज के समय में चर्च ने लिपस्टिक का इस्तेमाल करने वालों को शैतान के पुजारियों तक से जोड़ दिया था. हालांकि लिपस्टिक यूरोप के लोगों के बीच तब प्रचलित हुई, जब क्वीन एलीजाबेथ फर्स्ट ने चर्च के खिलाफ जाकर उसे फैशन का प्रतीक बना दिया.
ब्रिटिश पार्लियामेंट में तो लिपस्टिक को लेकर एक बिल भी पेश किया गया था. इस बिल में सुझाए गए प्रावधान के मुताबिक यदि किसी लड़की ने शादी से पहले लिपस्टिक का इस्तेमाल किया, तो उसकी शादी को गैर-कानूनी करार करते हुए खत्म कर दिया जाए.
वह तो अच्छा हुआ कि यह बिल पास नही हो पाया और ब्रिटेन एक अजीब और बेमतलब का कानून बनाने से बच गया. ये गौर करने की बात है कि यह वह समय था, जब औरतों का खूबसूरत दिखना ही उनकी सबसे बड़ी कामयाबी मानी जाती थी.
History of Lipstick (Pic: drterry)
अमेरिकी राषट्रपति करते थे इस्तेमाल!
ग्रीस में भी लिपस्टिक को लेकर कुछ ब्रिटेन जैसे ही विचार थे, लेकिन वहां व्यवस्था और समाज ने खुलकर लिपस्टिक लगाने वाली महिलाओं को वैश्या करार दे दिया था!
वहां लिपस्टिक लगाना केवल वैश्यओं का काम माना जाता था. दिलचस्प बात तो यह थी कि यदि कोई वैश्या सार्वजनिक जगहों पर बिना लिपस्टिक लगाए दिख जाती थी, तो उसे सामान्य महिला का रूप धारण करने के लिए प्रताड़ित किया जाता था.
लिपस्टिक के साथ समाज का कभी खट्टा कभी मीठा रिश्ता रहा है.
जिस यूरोप में एकतरफ लिपस्टिक को वैश्यावृति और शैतान से जोड़ा जा रहा था. उसी यूरोप में रोम साम्राज्य के लोग लिपस्टिक लगाकर अपना सोशल स्टेटस दर्शाते थे.
न सिर्फ औरतें बल्कि, आदमी भी इसका इस्तेमाल करते थे!
बताते चलें कि जॉर्ज वाशिंगटन के बारे में माना जाता है कि वो खुद को सजाकर रखना खूब पसंद करते थे, इसलिए वो मेकअप में कई बार लिपस्टिक का इस्तेमाल भी कर लेते थे.
जब राष्ट्रवाद से जुड़ गई लिपस्टिक
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय आर्थिक तंगी के चलते ब्रिटेन में कई तरह की चीजों के उत्पादन पर पाबंदी लगाई जा रही थी. इनमें कॉस्मेटिक्स का सामान भी शामिल था. ऐसे में हैरानी वाली बात यह थी कि विंसटन चर्चिल की सरकार ने लिपस्टिक के उत्पादन को नहीं रोका.
इसे उन्होंने सकारात्मकता की निशानी माना!
इसका परिणाम यह रहा कि लिपस्टिक का व्यापार खूब चला. लिपस्टिक से आधारित विज्ञापन थोड़े राजनैतिक हो गए. पोस्टर्स में होठों को मिलिट्री यूनिफॉर्म में रंगा हुआ दिखाया गया. देश में भले ही युद्ध के हालात थे, लेकिन ब्रिटेन की औरतों का खूबसूरत दिखना जरूरी था.
इसके पीछे एक वजह यह भी थी कि हिटलर को मेकअप पसंद नही था.
लिहाजा, लिपस्टिक कंपनियों की टैगलाइन भी युद्ध प्रभावित होने लगी थी. कोई उसे विक्टरी जिन कहता तो कोई ये याद दिलाता कि हम लड़ाई में क्यूं हैं.
हालांकि, दूसरी तरफ पैसों की तंगी के चलते भले ही वहां की महिलाएं लिपस्टिक न खरीद पा रही हों, लेकिन वो इन लिपस्टिक की टैग लाइन से खूब प्रेरणा लेती. बिना ये सोचे की जिन बेड़ियों से निकलने के लिए वो क्रांति कर रही हैं, वो उसी तरह की एक नई तरह की बेड़ियों में बंधने जा रही हैं.
वो बेफिक्र होकर घटिया से घटिया क्वालिटी के मेकअप का इस्तेमाल कर रही थीं, ताकि वो खूबसूरत दिखती रहे. उनकी खूबसूरती को राष्ट्रवाद से जो जोड़ दिया गया था!
British Women Using lipstick During the War (Pic: telegraph)
फ्रांस से शुरू हुआ था कारोबार
19वीं सदी के अंत में एक फ्रेंच कॉस्मेटिक कंपनी ग्युरेलिन ने पहली बार लिपस्टितक बनाने का उधोग शुरू किया था. जबकि 1884 में ही सबसे पहले फ्रेंच प्रफ्युमर्स ने लिपस्टिक को एक व्यवसाय के तौर पर शुरू करने की शुरूआत की थी, जिसके बाद 1920 के आते-आते लिपस्टिक पूरे यूरोप में प्रचलित हो गई.
लिपस्टिक को रंग देने के लिए कैरमाइन डाई का इस्तेमाल किया जाता था, जो मैक्सिको और अमेरिका में पाए जाने वाले एक प्रकार के कीट कोकीनील से बनाई जाती थी.
दरअसल कोकीनील अपने शिकारियों से बचने के लिए कैरमाइन नामक एक पदार्थ छोड़ता है जिससे कैरमाइन डाई बनती है. 1933 में वोग ने लिपस्टिक को महिलाओं की सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कॉस्मेटिक घोषित किया.
इस दशक में इसका जुनून इस हद तक था कि ग्रेट डिप्रेशन के वक्त भी लिपस्टिक मार्केट ग्रोथ पर रही. इस घटना ने लिपस्टिक को इकनॉमिक्स में भी जगह दिलवाई, अर्थशास्त्रियों ने ‘लिपस्टिक इफेक्ट’ नाम की एक परिभाषा तैयार की, जिसका उपयोग उन्होने अर्थव्यवस्था में मंदी के दौरान किया.
90 के दशक में नारीत्व से जोड़ा गया
1960-70 के दशक में दुनिया भर के फेमिनिस्ट ग्रुप्स ने लिपस्टिक्स के खिलाफ हल्ला बोल दिया था. उनके मुताबिक ये सिर्फ मर्दों को खुश करने के मकसद से बनाई गई चीज थी, हालांकि 1990 के आते-आते ये मानसिकता बदल गई और लिपस्टिक को नारीत्व से जोड़ दिया गया.
इसे लगाने के मायने को बदला गया, जो केवल मर्दों को आकर्षित करने से जुड़ा हुआ था.
History of Lipstick (Pic: Fashionista)
आज हम उस दौर से निकल चुके हैं, जब महिलाओं की काबिलियत कुछ घरेलू कामों से जुड़ी होती थी, लेकिन समानता की लड़ाई आज भी जारी है. समान वेतन हो या लीग से हटकर अपना पैशन चुनने की आजादी की मांग, ये संघर्ष तब ही खत्म होगा जब समानता हासिल होगी और जब किसी की काबिलीयत को उसके जेंडर से निर्धारित करने की मानसिकता खत्म होगी.
Web Title: The Social and Cultural History of Lipstick, Hindi Article
Featured Image Credit: antenastars