यह इक्कीसवीं सदी का समय है. अब तक मानव समाज अपनी विकास यात्रा में काफी आगे बढ़ चुका है. लेकिन स्त्रियों के लिए यह प्रगति नाकाफी साबित हुई है. आज भी उन्हें समाज की आशाओं के अनुरूप ढलने के लिए मजबूर किया जाता है.
आज इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि एक महिला ने अपने पेशेवर जीवन में किन ऊँचाइयों को छुआ है, बल्कि उसके जीवन को उसके द्वारा लिए गए कुछ छोटे-मोटे निर्णयों द्वारा मापा जाता है. जीवन भर अविवाहित रहना भी एक ऐसा ही निर्णय है.
हमारे अपने देश में ऐसे बहुत से काम हैं, जो एक अकेली स्त्री नहीं कर सकती है. यह एक विडंबना है.
आईए इस पर जरा करीब से नज़र डालते हैं…
बिना अभिवावक की सहमति नहीं कर सकतीं यात्रा
हमारे देश में एक अकेली स्त्री अकेले यात्रा करने का जोखिम नहीं उठा सकती है. अखबारों और टेलीविजन में प्रतिदिन स्त्रियों के साथ हुई छेड़छाड़ और बलात्कार की ख़बरें आती ही रहती हैं.
इस कारण उन्हें अकेले किसी लंबी यात्रा पर जाने से पहले कम से कम दस बार सोचना पड़ता है. इसके बाद भी वे यदि अकेले यात्रा करने की हिम्मत जुटाती हैं, तो लगभग सभी ट्रैवेल एजेंट्स उनके अभिवावकों से आपत्ति प्रमाण पत्र की मांग करते हैं. ज्यादातर लड़कियों को अपने पिता से इसपर हस्ताक्षर करवाने पड़ते हैं.
वहीं शादीशुदा महिलाओं को अपने पति से अनुमति लेनी पड़ती है.
हैरत की बात तो यह है कि ‘आपत्ति प्रमाण पत्र’ जैसा कोई प्रावधान हमारे कानून में नहीं है. इसके बाद भी इसका प्रयोग किया जाता है. 2005 में बैंगलोर में इसके ऊपर सबसे पहले ध्यान गया था. पड़ताल करने पर अधिकारियों ने बताया कि वे बस नियमों का पालन कर रहे हैं. हालाँकि, किसी को इस बात का पता नहीं था कि ये नियम कहां लिखे हैं और किसने लिखे हैं.
अकेली स्त्रियों को नहीं मिलते हैं होटल
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि एक अकेली महिला के लिए यात्रा करना एक जंग लड़ने से कम नहीं है. ज्यादातर स्त्रियाँ तो अकेले यात्रा नहीं करती हैं. लेकिन फिर भी कुछ हिम्मत दिखाकर आगे बढ़ने का प्रयास करती हैं. ऐसे में उनके सामने एक दूसरी परेशानी खड़ी हो जाती है. यह परेशानी यात्रा के दौरान ठहरने को लेकर है.
अकेली स्त्रियों को किराए पर होटल और कमरे नहीं मिलते हैं. यह पितृसत्तात्मक सोच का ही परिणाम होता है. होटल मालिकों को लगता है कि अकेली स्त्रियों के रुकने से उनके होटल पर कोई आपदा आ जाएगी. 2017 में एक ऐसा ही केस हैदराबाद में सामने आया था. सिंगापुर से आई एक महिला यात्री को एक होटल ने कमरा देने से मना कर दिया.
बाद में होटल मालिक ने पूछने पर बताया कि यह इलाका महिलाओं के लिए असुरक्षित है, इसलिए होटल औरतों को किराए पर कमरा नहीं देता है. हालाँकि, यह तर्क बिलकुल खोखला था क्योंकि एक असुरक्षित इलाके में कमरा न मिलने पर तो औरत और भी असुरक्षित हो जाएगी.
गांवो में नहीं है मोबाईल प्रयोग की अनुमति
आज स्मार्टफोन की बाढ़ आई हुई है. आज छोटे-छोटे बच्चों के पास भी स्मार्टफोन उपलब्ध हैं. लेकिन इसके बाद भी महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में कुछ ऐसे गाँव हैं, जहां अकेली स्त्रियों को मोबाईल का प्रयोग नहीं करने दिया जाता है. इसका आदेश गाँव के सरपंच देते हैं. फरवरी 2016 में एक ऐसा मामला गुजरात के एक गाँव में सामने आया.
इस गाँव के मुखिया ने अकेली लड़कियों द्वारा मोबाईल फोन के प्रयोग पर बैन लगा दिया. इसके साथ यह हिदायत दी गई कि ये लड़कियां किसी पुरुष की देखरेख में ही केवल अपने किसी रिश्तेदार से फोन पर बातें कर सकती हैं.
इसके पीछे तर्क यह दिया गया कि मोबाईल फोन चलाने की वजह से लड़कियां पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाएंगी. यह तर्क उस देश में दिया गया, जहां बीते कई वर्षों में विभिन्न राज्य परीक्षाओं में लड़कियों ने अपना परचम फहराया है.
किराए पर फ़्लैट मिलने में होती है परेशानी
इस साल की शुरआत में आई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 82 प्रतिशत अकेली कामकाजी महिलाओं को किराए पर कमरा या फ़्लैट लेने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है. विगत वर्षों में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बैंगलोर जैसे शहर, जहां हर साल लाखों की संख्या में युवा अपना कैरियर बनाने जाते हैं, अकेली लड़कियों के लिए खासे मुसीबत वाले साबित हुए हैं.
फ़्लैट या कमरा देने से पहले मालिक अकेली स्त्रियों से तरह-तरह के विचित्र सवाल पूछते हैं. अकेली लड़कियों से बातों-बातों में घुमा फिराकर उनके चरित्र का प्रमाण पत्र माँगा जाता है. यह एक ऐसे देश में होता है, जहां की संस्कृति और सभ्यता स्त्रियों को देवी मानने का दंभ भरती है. इस विषय पर 2016 में एक डाक्युमेंटरी फिल्म बनी है.
इसे शिखा माकन ने बनाया है. इस फिल्म का नाम ‘बैचलर गर्ल’ है. इस फिल्म में उन्होंने अकेली कामकाजी महिलाओं को फ़्लैट खोजने में होने वाली दिक्कतों को सामने रखा है. इसके लिए उन्होंने ऐसी लगभग 300 लड़कियों का साक्षात्कार किया.
एक तय सीमा से अधिक नहीं रख सकतीं सोना
हमारे देश में एक ऐसा नियम भी है, जो साफ़-साफ़ अकेली स्त्रियों से पक्षपात करता है. यह नियम सोने को रखने को लेकर जुड़ा हुआ है. अगर एक विवाहित महिला के आय का स्त्रोत उसके पास मौजूद सोने की मात्रा से मेल नहीं खाता है, तो वह मात्र 500 ग्राम सोना ही अपने पास रख सकती है.
वहीं ऐसी स्थिति में एक अविवाहित स्त्री केवल 250 ग्राम सोना ही केवल अपने पास रख सकती है.
तो ये कुछ ऐसी चीजें हैं, जिन्हें अकेली स्त्रियाँ नहीं कर सकती हैं. हैरत की बात तो यह है कि इनमें से ज्यादातर चीजों के लिए तो कहीं कोई कानून भी नहीं है. इन्हें बस पितृसत्तात्मक समाज द्वारा अकेली स्त्रियों पर अदृश्य तरीके से थोप दिया गया है.
अंत में यही कहा जा सकता है कि आज जब हम स्त्रियों की बराबरी की बात कर रहे हैं, तो ऐसे में हमें अकेली स्त्रियों की एक बहुत बड़ी आबादी को केंद्र में रखकर बराबरी की मांग करनी चाहिए.
Web Title: Things Single Women Still Can't Do, Hindi Article
Feature Image Credit: AkkarBakkar