‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के अर्थ को आत्मसात करती है भारत की धरती. हर धर्म, समुदाय के लोगों को ये अपने अंदर समेटे है. जिससे इसकी विविधता और संस्कृति में नए रंग जुड़ते रहते हैं. ऐसा ही एक रंग मिलता है हिमाचल प्रदेश में.
वैसे तो हिमाचल प्रदेश अपने पहाड़ी इलाके शिमला, मनाली, मसूरी के लिए जाना जाता है. गर्मी की छुट्टियों में इन पहाड़ी इलाकों की सड़कें गुलज़ार रहती हैं. इन सबसे अलग यहां धर्मशाला से करीबन दस किलोमीटर की दूरी पर एक जगह है मैक्लॉडगंज. यह जगह बौद्ध धर्म से जुड़े लोगों के लिए खास महत्व रखती है.
यहां एक बड़ी संख्या में बौद्ध धर्म के लोग रहते हैं. इन लोगों की खास बात यह है कि यहां के लोगों के रीति-रिवाज़, खान-पान और रहन-सहन एकदम अलग हैं.
तो आईये मैक्लॉडगंज के इन खास लोगों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं:
कहां से आकर बसे ये लोग?
1950 में जब चीन ने तिब्बत पर हमला किया, तभी से तिब्बत के लोगों के अंदर विद्रोह का भाव पनपने लगा. कई सालों तक वह विद्रोह की इस आग में जलते रहे. करीबन 9 साल बाद यानी 1959 में इन लोगों ने चीन के खिलाफ विद्रोह की आवाज़ बुलंद कर दी.
विद्रोह को सफलता नहीं मिली और तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को अपनी मिट्टी छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी. उनके साथ हजारों तिब्बती भी हिमाचल प्रदेश में आकर बस गए. आज पहाड़ों पर बसे धर्मशाला को ‘भारत के छोटे ल्हासा‘ के रूप में जाना जाता है.
धर्मशाला का मैक्लॉडगंज तिब्बती शरणार्थी और दलाई लामा का अस्थाई निवास होने के कारण संस्कृति और आस्था का केंद्र बन चुका है. मैक्लॉडगंज की दुकानों, रेस्तरां, पुस्तकालय और यहां तक की दीवारें भी एक अलग कहानी बयां करती हैं.
The village of McLeodGanj (Pic: pinterest)
एकदम अलग होता है खानपान
भारत की थाली अनेक स्वादों से सजी है. इस थाली में थोड़ा स्वाद तिब्बती व्यंजनों का भी है. इसमें पर्वतीय पशु याक के दूध से बना मक्खन, याक का मीट और जौ खास तौर पर देखा जाता है.
तिब्बती लोगों का प्रमुख भोजन तसंपा है. यह जौ के आटे और याक के मक्खन से तैयार किया जाता है. वहीं तिब्बत में सबसे मशहूर है, याक बटर टी तिब्बत का राष्ट्रीय पेय है. याक बटर टी बनाने की एक विस्तृत विधि है. ब्लैक टी को पीसकर घंटों पानी में उबाला जाता है. बाद में इसे छानकर लकड़ी के विशेष बर्तन ‘चा-डांग’ में डाला जाता है. इसके बाद उसमें नमक, याक का दूध और मक्खन मिलाया जाता है. तैयार अवस्था में याक बटर टी रंग में हल्की पीली होती है और सूप जैसी दिखाई देती है. इस टी को खास प्याली में परोसा जाता है, जिसे ‘पोर-पा’ कहते हैं.
इनके अलावा, एक व्यंजन जिसके बिना तिब्बती नया साल लोसर अधूरा होता है. वो है थूकपा! थूकपा एक तरह का सूप है. जिसे घर में ही तैयार किये गए नूडल्स, सब्जी और चिक़न से बनाया जाता है. तिब्बती लोग थूकपा को लंच या डिनर में लेना पसंद करते हैं. वहीं, तिब्बती लोग मोमोज़, याक का मीट और नूडल्स भी बड़े चाव से खाते हैं.
Tibetan Food (Pic: manjulikapramod)
खूबसूरत रंगों से सजा तिब्बती जीवन
जहां तिब्बत में स्थानीय लोग आज भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. वहीं, मैक्लॉडगंज में समय के साथ तिब्बती संस्कृति और सभ्यता रच बस गई है. रंग-बिरंगे तिब्बती परिधानों में लोग बेहद आकर्षित लगते हैं. महिलाएं तिब्बती शैली का गाऊन पहनती हैं, जिसे ‘चुपा’ कहते हैं. पुरुष तिब्बती शैली की शर्ट पहनते हैं, जिसे ‘तोह-थुंग’ कहा जाता हैं.
यहां के लोग एक खास तरह की टोपियां भी पहनते हैं. जिसे ‘गामा-शोम’ कहा जाता है. इस टोपी को याक के बालों से बनाया जाता है.
इसके अलावा मैक्लॉडगंज की छोटी-छोटी गलियों में गहरे लाल रंग का जामा पहने लामा अक्सर दिखाई देते हैं. यहां तिब्बती साज-सामान और कला की झलक साफ दिखाई देती है. तिब्बती लोगों द्वारा हाथ से बुने गए कालीन लोगों को आकर्षित करते हैं. साथ ही ‘साल’ की लकड़ी से बनाए गई खूबसूरत कलाकृति भी मनमोहक लगती हैं.
यहां तिब्बती कला में स्थानीय लोगों द्वारा बनाई गई स्क्रोल पेंटिंग भी देखने को मिलती हैं. इसको विभिन्न रंगों और पत्थरों से कोटन या लेनिन के कपड़े पर उकेरा जाता है. इस पेंटिंग को ‘थंगका पेंटिंग’ कहा जाता है. इस पेंटिग के जरिये बुद्ध के जीवन और शिक्षा को दर्शाया जाता है.
Dalai Lama Temple (Pic: rahgiri)
त्यौहारों में गुंथे अनूठे रिश्तों का संगम
प्रकृति से घिरी हिमाचल प्रदेश की धरती पूरे साल त्यौहारों से गुलज़ार रहती है. हल्दा, सजो, लोहरी, हिमाचल विंटर कार्नीवल, लोसर, डूंगरी, शिवरात्रि, नलवारी मेला, बैसाखी, फूलाच, लादरचा मेला आदि त्यौहारों में हिमाचल प्रदेश का नया रूप देखने को मिलता है. वहां के हर त्यौहार में विभिन्न संस्कृतियों का संगम है.
तिब्बती लोग आपने नये साल पर ‘लोसर’ त्यौहार मनाते हैं. यह फरवरी के आखिरी और मार्च की शुरुआत में मनाया जाता है. इस त्यौहार के समय मठों में पूजा-अर्चना के साथ तिब्बती लोक नृत्य का तड़का होता है. आमतौर पर यह 15 दिनों का त्यौहार होता है, लेकिन शुरुआती तीन दिन बेहद खास होते हैं. इस त्यौहार का मुख्य आर्कषण ‘चाम नृत्य’ होता है. चाम नृत्य खूबसूरत परिधान और मॉस्क पहनकर किया जाता है.
लोसर तिब्बत, नेपाल और भूटान का सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध त्यौहार हैं. भारत के असम, सिक्किम और अरूणाचल प्रदेश में भी इन त्यौहारों को मनाया जाता है. अगस्त में हिमाचल प्रदेश की स्पिति घाटी में ‘ला दरचा’ मेले का आयोजन होता है. इसमें दूर-दराज से व्यापारी, स्थानीय लोग और पर्यटक आते हैं.
इस मेले में विभिन्न स्टॉल लगाए जाते हैं, जहां से लोग खरीदारी करते हैं. इस मेले के दौरान हिमाचली और तिब्बती लोगों के प्रगाढ़ रिश्तों की झलक देखने को मिलती है.
साल के आखिरी में हिमाचल के कांगड़ा जिले में ‘अंतरराष्ट्रीय हिमालय महोत्सव’ आयोजित होता है. यह भारत-तिब्बत मैत्री सोसायटी द्वारा प्रायोजित है. दूसरा यह हिमाचल प्रदेश और तिब्बत के केंद्रीय व्यवस्थापन के पर्यटन विभाग द्वारा समर्थित है. यह त्यौहार वर्ष 1989 में दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किये जाने की याद में मनाया जाता है. यह तिब्बतियों के लिए एक महत्वपूर्ण त्यौहार है और शांति के लिए दलाई लामा द्वारा लिये पहल की वैश्विक सराहना का एक प्रतीक माना जाता है.
Tibetan culture in Himachal Pradesh (Pic: kunzum)
विभिन्न रंगों से रंगा तिब्बत आज धर्मशाला में सिमट गया है. मैक्लॉडगंज में बने संग्रहालय और पुस्तकालय इसके साक्षी हैं. अगर आप तिब्बत की संस्कृति को जानने की चाह रखते हैं, तो हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला जाकर इसका अनुभव कर सकते हैं.
Web Title: Tibetan culture in Himachal Pradesh, Hindi Article
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