बेटी की शादी की रूकावट आ रही हो, या घर में कलह का माहौल हो.
याद आते हैं भगवान शिव! यदि किसी पंडित या पुरोहित से ज्योतिष उपाए के बारे में पूछा जाए तो वे अक्सर 16 सोमवार व्रत करने की सलाह देते हैं. आमतौर पर व्रत करना महिलाओं की जिम्मेदारी होती है.
किन्तु, केवल 16 सोमवार का व्रत ही ऐसा है, जिसे पुरूष भी बड़ी रुचि के साथ करते हैं.
शादी के लायक हो चुकी लडकियों में तो यह व्रत किसी चमत्कार से कम नहीं. वे भले ही डाइटिंग के बहाने यह व्रत करें पर मन में आशा होती है अच्छे पति की. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव तो भूतों से घिरे हैं, श्मशान की राख से उनकी पूजा होती है. फिर भला वे किसी कन्या को सुहागवती होने के फल कैसे दे पाते हैं?
आखिर क्या है इस 16 सोमवार व्रत का रहस्य? आइए जानते हैं-
जब पार्वती ने दिया पंडित को श्रॉप
शिव पुराण की एक कथा के अनुसार शिव पावर्ती भ्रमण करते हुए कैलाश से विदर्भदेश के अमरावती नगर पहुंचे. यहां राजा ने भव्य शिवमंदिर का निर्माण करवाया था. जहां विश्राम के लिए शिव और पावर्ती जी ने कुछ समय व्यतीत किया था. इस मंदिर से सोलह सोमवार के व्रत के बारे मे पृथ्वी लोक को जानकारी हुई थी.
दरअसल विश्राम के बाद पावर्ती और शिव चौपर खेल रहे थे. तभी दोपहर की आरती के लिए एक पंडित वहां आया. पंडित ने दोनों को प्रणाम किया, आरती की, भोग लगाया और आर्शीवाद लिया. पावर्ती ने उनसे पूछा कि इस खेल में कौन जीतेगा? पंडित शिवभक्त था, इसलिए उसने उन्हीं का जीतना सुनिश्चित बताया. खेल चलता रहा और आखिरी में पावर्ती जी चौपर जीत गईं. पंडित की बात मिथ्या निकल गई. पंडित के मिथ्या बोल से पावर्ती जी क्रोधित हुईं और उसे कोढ़ी होने का श्रॉप दे दिया.
पंडित कोढ़ का रोगी होकर धरती पर जीवन काटता रहा. कुछ समय बाद उसी मंदिर में पूजा करने के लिए स्वर्ग की अप्सराएं पहुंचीं. पंडित को कोढ़ रोगी के रूप में देखकर उन्होंने कारण पूछा. तब अप्सराओं ने उसे 16 सोमवार तक शिव की आराधना करने, अन्य जल त्याग देने की सलाह दी. पंडित ने 16 सोमवार तक इस नियम का पालन किया और भगवान शिव उसके त्याग से प्रसन्न हुए. उन्होंने उसे कोढ़ मुक्त कर दिया. कुछ समय बाद शिव पावर्ती के साथ फिर उसी मंदिर में पहुंचे.
पावर्ती जी पंडित को स्वस्थ्य देखकर आश्चर्य में थीं. तब पंडित ने उन्हे सारी बात विस्तार से बताई. स्वयं पावर्ती जी को भी 16 सोमवार के व्रतों का रहस्य नहीं पता था. उन्होंने भगवान शिव से माफी मांगने के लिए स्वयं इन व्रतों को करने का संकल्प लिया.
फिर जारी रहा व्रत करने सिलसिला
पावर्ती जी के 16 सोमवार पूरे होने पर कार्तिकेय ने उनसे व्रत के बारे में पूछा? रहस्य जानने के बाद कार्तिकेय ने अपने पूर्व मित्र से पुन: मिलने के लिए यह व्रत किया. व्रत के प्रभाव से वे अपने मित्र से दोबारा मिल सके. परन्तु मित्र को यह समझ नहीं आया कि आखिर उसे कैसे अचानक कार्तिकेय से मिलने का मन हुआ. तब कार्तिकेय ने 16 सोमवार के व्रत का रहस्य उससे कहा.
ब्राह्मण मित्र विवाह की इच्छा किए हुए था. इसलिए उसने मन में संकल्प लेकर व्रत शुरू किए और एक राजकन्या के स्वयंवर में पहुंचा. स्वयंवर में राजा ने शर्त रखी कि हथिनी जिस युवक के गले में माला डालेगी, राजकन्या का विवाह भी उसी से होगा. सौभाग्य से हथिनी ने ब्राह्मण के गले में हार डाल दिया. राजा ने बिना देर किए ब्राह्मण से राजकुमारी का विवाह करवा दिया.
राजकुमारी को यह समझ नहीं आया कि हथिनी ने सारे राजकुमारों के बीच ब्राह्मण का चुनाव कैसे किया? तब उसके पति ने 16 सोमवार व्रतों के प्रभाव के बारे में बताया.
तब उसने पुत्र रत्न की चाह से व्रत किया और शिव की कृपा से वह सुंदर बाल की मां बनी. जब बेटा बड़ा हुआ तो उसने अपनी मां के सामने इच्छा प्रकट की कि वह एक राज्य की कामना रखता है पर उसके पास इतना धन नहीं है.
मां ने उसे 16 सोमवार व्रत करने की सलाह दी. युवक ने ऐसा ही किया. व्रत के आखिरी दिन एक राज्य के राजा की नजर उस पर पड़ी और उसने अपनी कन्या से युवक का विवाह करवा दिया.
राजा के देहांत के बाद पूरा राजपाट उस युवक का हो गया. युवक के मन में शिव के प्रति आदरभाव था, इसलिए वह 16 सोमवार के व्रत करता रहा. एक दिन उसने अपनी रानी से शिवमंदिर में पूजन सामग्री लाने को कहा पर रानी ने खुद न जाकर दासियों को भेज दिया. ठीक तभी एक आकाशवाणी हुई और युवक को सलाह दी गई कि रानी का त्याग कर दे.
रानी को हुआ अपनी गलती का एहसास
उसने प्रभु की इच्छा मानकर रानी का त्याग कर दिया. रानी ने कई बार विनती की पर युवक ने उसे राजमहल में बुलाने से इंकार कर दिया. दुखी रानी पर एक बुढ़िया की नजर गई.
उसने सोचा कि इस युवती को काम की आवश्यकता है, इसलिए उसने उसके सिर पर सूत की टोकरी रखते हुए कहा कि इसे बाजार पहुंचा दे. पर तभी आंधी आई और टोकरी उड़ गई. बुढ़िया ने उसे कोसते हुए वहां से भगा दिया.
जब वह काम मांगने के लिए एक तेली की दुकान पर पहुंची, तो वहां उसके तेल से भरे मटके फूट गए. तेली ने उसे मनहूस कहकर वहां से निकाल दिया. प्यास बुझाने के लिए वह तालाब किनारे पहुंची तो पानी में कीड़े पड गए. छावं की तलाश में पेड़ के नीचे लेटी तो वह पेड़ सूख गया.
उसकी हालत पर एक गुसांई की नजर गई. उसने उसे अपने आश्रम में जगह दी पर रानी के हालातों मे पविर्तन नहीं आया. गुसांई ने उससे इस विपत्ति का कारण पूछा तो उसने सारा किस्सा कह दिया.
गुसांई ने रानी को 16 सोमवार तक शिव पूजा करने की विधि बताई. उसका परिणाम यह हुआ कि भगवान शिव ने रानी को माफ कर दिया और राजा को आज्ञा दी कि वह अपनी पत्नी को वापिस ले आए.
राजा गुसांई के आश्रम पहुंचा और वहां से रानी को दोबारा ब्याहकर महल में ले आया. जब राजपरिवार में व्रत के महत्व के बारे में पता चला तो धीरे-धीरे धरती लोक पर हर कोई इस व्रत को करने लगा.
दिन के तीसरे पहर में होती है विशेष पूजा
शिवपुराण के अनुसार इस व्रत को श्रावण, चैत्र, वैशाख, कार्तिक और मार्गशीर्ष मास में शुरू किया जा सकता है. ''ॐ गंगे च गोदावरी नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥' मंत्रोचार करते हुए नर्मदा अथवा गंगा के जल से स्नान कर व्रत का संकल्प लिया जाता है. इसके बाद शिव-पार्वती के साथ गणेशजी, कार्तिकेय और नंदी की पूजा की जाती है.
ध्यान रखने वाली बात यह है कि यह विशेष पूजा दिन के तीसरे पहर में होती है.
व्रत में गेंहू के आटे की पंजीरी, बाटी अथवा चूरमा का भोग लगाया जाता है. खास बात यह है कि पहले सोमवार को भोग बनाने की जितनी सामग्री उपयोग की जाती है उतनी ही हर सोमवार को इस्तेमाल होनी चाहिए. इसी तरह जिस फल को भोग के साथ अर्पित किया जाता है हर सोमवार को उसी फल का दान करना होता है.
इस निर्जला व्रत में भोजन के रूप में भोग के तीसरे हिस्से को खाया जाता है. जब तक 16 सोमवार पूरे नहीं हो जाते तब तक किसी और के घर भोजन नहीं किया जाता है. 17वें सोमवार को पंडित के माध्यम से व्रत का उद्यापन किया जाता है.
इसमें सवा किलो आटे का प्रसाद चढ़ाया जाता है. आखिरी में 16 दंपतियों को भोजन करवाया जाता है.
कहा जाता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए 16 सोमवारों का यह नियम ही काफी है!
भारत के लगभग हर राज्य में और हर जाति में यह व्रत किया जाता है.
Web Title: 16 Monday's Mysterious Story, Hindi Article
Feature Image Credit: Fiveprime