2016 The Year in Review (Pic credit: Team Roar)
साल 2016 अब विदा हो चुका है और हम साल 2017 के सुहाने सफर पर हैं, किन्तु इस नए साल में जाने से पहले बीते साल पर एक नज़र अवश्य डालनी चाहिए. इसके पीछे यह तर्क दिया जा सकता उस आधार पर इस नए साल में हमें काफी कुछ समझना आसान हो जायेगा. मसलन, राजनीति किसी दिशा में जाने वाली है, तो विदेश नीति के मोर्चे पर हम कहाँ खड़े हो सकते हैं. बीते साल की तमाम ऐसी घटनाएं हैं, जिसने हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव डाला है. यह घटनाएं भारतीय सेना, शिक्षा, राजनीति, कारोबार से लेकर समाज के विभिन्न हिस्सों से जुड़ी हुई हैं. आइये एक नज़र डालते हैं इन पर:
सर्जिकल स्ट्राइक
भारतीय सेना का पहली बार उठाया गया कदम, जिसने भारत की ‘सॉफ्ट स्टेट’ की छवि को झटके से तोड़ दिया. उरी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए तत्कालीन जनरल दलबीर सिंह सुहाग के नेतृत्व में सर्जिकल स्ट्राइक किया था, जिसमें वर्तमान जनरल बिपिन रावत की महत्वपूर्ण भूमिका की बात भी सामने आयी.
गौरतलब है कि 17 सितंबर 2016 को तड़के आतंकियों ने उरी में आर्मी हेडक्वार्टर पर हमला कर दिया था, जिसमें सेना के 17 जवान शहीद हो गए थे. पूरी दुनिया में पाक की इस नापाक हरकत की निंदा हुई, किन्तु भारत सरकार और सेना ने इस बार सिर्फ आलोचना करने के बजाय कुछ ठोस करने का निश्चय कर लिया था और उसे अंजाम भी दिया.
सरकार और सेना द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार, 29 सितंबर 2016 की आधी रात को भारत ने नियंत्रण रेखा के पार स्थित आतंकी शिविरों पर सर्जिकल हमला कर 8 आतंकी कैंपों को तबाह कर दिया, जिसमें तकरीबन 38 आतंकी मारे गए. यह सर्जिकल स्ट्राइक इसलिए भी ज्यादा चर्चित रही, क्योंकि इस पर राजनीतिक बवंडर खड़ा करने की कोशिश की गयी. सेना के ख़ुफ़िया हमलों पर सबूत मांगे गए, जिसके फलस्वरूप ऐसे राजनेताओं को कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी. 2017 में भारत की इस आक्रामक नीति की झलक देखने को मिल सकती है.
2016 The Year in Review, Currency ban (Pic credit: Live Mint)
नोटबंदी
इस भारी भरकम कदम की तपिश आप 2017 में भी पूरी शिद्दत से महसूस करेंगे. यह भारत के इतिहास की वो ऐतिहासिक घटना है, जिसने पूरे देश को झिंझोड़कर रख दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 की रात अचानक ऐलान कर दिया कि 500 और 1000 के नोट 9 नवंबर से अमान्य होंगे. इसके बाद पूरे देश में जो माहौल था वो पूरी दुनिया ने देखा और तमाम अर्थशास्त्रियों समेत विदेशी विश्लेषक सरकार के इस कदम से हैरान नज़र आये. करोड़ों लोग एटीएम और बैंक की कतार में लगातार नजर आए, तो वहीं तमाम विपक्षी पार्टियां सरकार के फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने लगीं. इसे लेकर रिजर्व बैंक से लोक लेखा समिति (पीएसी) जवाबतलब कर चुकी है और कहा तो यह भी जा रहा है कि इसमें प्रधानमंत्री को भी पूछताछ के लिए यह समिति बुला सकती है. वस्तुतः नोटबंदी से देश में बड़ा भ्रम छाया रहा, जो अब तक है. सरकार के अनुसार इससे जहाँ नकली नोटों की समस्या ख़त्म हुई, वहीं आतंकी-नक्सली गतिविधियों पर भी लगाम लगी है, साथ ही साथ लंबे समय के लिए यह कदम फायदेमंद साबित हो सकता है.
नोटबंदी केआलोचक कह रहे हैं कि सरकार के इस तुगलकी कदम से कम से कम 50 लाख नौकरियाँ ख़त्म हो चुकी हैं तो अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट दर्ज की गयी है. सरकार इसे लेकर भारी दबाव में है, किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री के प्रति जनता का विश्वास अभी बना हुआ है.
आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों को नोटबंदी के प्रभाव से भी तमाम विश्लेषक जोड़ रहे हैं.
कश्मीर में हिंसा का लंबा दौर
साल 2016 के जुलाई में हिजबुल मुजाहिदीन के ‘कमांडर’ बुरहान वानी के एनकाउंटर ने कश्मीर में जबरदस्त ढंग से हिंसा भड़का दिया, जो नोटबंदी के अंत तक चलती रही. घाटी में हालात इतने बिगड़े और कई बार बिगड़े कि अनेक लोगों की मौत हो गई. हज़ारों लोग वानी के समर्थन में सड़क पर उतर आए, जिनको उकसाने में पाकिस्तान जोर शोर से लगा रहा. सुरक्षाबलों पर प्रदर्शन के दौरान होने वाली हिंसा के प्रतिउत्तर में ‘पैलेट गनों’ के प्रयोग के फलस्वरूप सरकार से जवाब माँगा जाने लगा, जिस पर गृह मंत्रालय द्वारा सुरक्षाबलों को जरूरी निर्देश जारी किये गए. पाकिस्तान के साथ आतंकवादियों और कश्मीरी अलगाववादियों ने बुरहान वानी जैसे आतंकवादी की मौत को मुद्दा बनाने में अबकी बार अपना सर्वस्व झोंक दिया था, किन्तु सुरक्षबलों के कड़े प्रतिरोध ने उनकी कमर तोड़ दी. हालाँकि, जनता को भी इस लंबे चले हिंसक दौर से काफी परेशानियां उठानी पड़ीं. राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती को भी मामले को ठीक ढंग से हैंडल न कर पाने को लेकर खासी आलोचना झेलनी पड़ी.
जेएनयू, कन्हैया और रोहित वेमूला
देश की राजनीति को हिलाने वाले प्रकरणों में यह प्रकरण भी काफी चर्चित रहा. 9 फरवरी 2016 की शाम जेएनयू में होने वाला एक कार्यक्रम उस समय विवाद का कारण बन गया, जब कैंपस के अंदर ‘भारत की बर्बादी’ ‘तुम कितने अफजल मारोगे, घर-घर से अफजल निकलेगा’ और ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ जैसे नारे लगाए गए.
जाहिर तौर पर कुछ उग्रवादी तत्व जेएनयू में विद्यार्थियों के माध्यम से हंगामा कराने का प्रपंच रचते नज़र आये. हंगामे के बाद जेएनयू छात्र संघ के नेता कन्हैया कुमार को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया, जिस पर राजनीति शुरू कर दी गयी.
इस मामले में 2016 की शुरुआत में हैदराबाद के छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी के सहारे भी खूब राजनीति की गयी. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी हैदराबाद पहुंचे, तो पीएम मोदी भी एक कार्यक्रम के दौरान रोहित का जिक्र करते हुए भावुक हो गए थे. छात्र नेता कन्हैया कुमार रोहित वेमूला का मामला हर जगह उठाते नज़र आये. तत्कालीन मानव संशाधन मंत्री स्मृति ईरानी पर भी इस मामले को लेकर ख़ासा दबाव पड़ा था. हालांकि कुछ दिनों के बाद जेल से कन्हैया को जमानत मिल गई, लेकिन जेएनयू विवाद कई दिनों तक मीडिया में छाया रहा. कहा गया कि जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान के लिए यह मामला बेहद कष्टदायक रहा, जिससे बचा जाना चाहिए था. अगर जेएनयू प्रशासन अपने कैम्पस में राष्ट्र विरोधी गतिविधियों पर सचेत रहता तो मामला बिगड़ता ही नहीं. हालाँकि, अब इस संस्थान में सावधानी अवश्य बरती जा रही है.
एएन-32 विमान का लापता होना
यह एक ऐसी दुर्घटना थी, जिसके बारे में वायुसेना के तत्कालीन चीफ अनूप राहा ने अपनी रिटायरमेंट पर कहा कि उनके कैरियर का यह सबसे कठिन अभियान था. गौरतलब है कि 22 जुलाई की सुबह तांबरम स्टेशन से एयरफोर्स के एएन-32 विमान ने पोर्ट ब्लेयर के लिए उड़ान भरी थी. पायलट ने एयर ट्रैफिक कंट्रोलर (एटीसी) से मौसम खराब होने की शिकायत की और रास्ता बदलने की भी बात कही, लेकिन अचानक ये संपर्क टूट गया. हवा में गोते लगाता विमान लापता हो गया. लापता विमान में एयरफोर्स, नेवी, कोस्ट गार्ड के अफसर और आठ आम नागरिकों सहित 29 लोग सवार थे. इसे ढूंढने के लिए अब तक का सबसे बड़ा खोज अभियान भी चलाया गया, किन्तु 6 महीने की खोज के बाद भी लापता विमान का कोई सुराग नहीं मिल पाया. हारकर खोज अभियान बंद कर दिया गया है और विमान में सवार लोगों को मृत मान लिया गया है.
2016 The Year in Review, J. Jayalalithaa (Pic credit: Indian Express)
जयललिता की मौत
दक्षिण भारत की राजनीति में बहुत बड़ी घटना हुई, जब चार बार तमिलनाडु की मुख्यमत्री रह चुकीं जयललिता की मौत हुई. उनके करोड़ों प्रशंसकों के लिए यह चौकाने वाली खबर रही, तो राष्ट्रीय मीडिया में भी इसकी खूब सुर्खियां बनीं. लगभग 75 दिनों तक अस्पताल में भर्ती जयललिता के लिए पूरे देश में दुआओं का दौर चलता रहा, लेकिन 5 दिसंबर की आधी रात को वो जिंदगी की जंग हार गईं. जयललिता की मौत के बाद उन्हें जलाने के बावजूद दफनाने और उनकी पार्टी पर किसका नेतृत्व होगा, इसे लेकर खूब किस्से गढ़े गए.
जीएसटी का पास होना
साल 2016 नहीं बल्कि मोदी सरकार बनने के बाद से ही जीएसटी पर बहस शुरु हुई थी और सरकार को जीएसटी पास कराने को लेकर तमाम कोशिशें करनी पड़ीं. हालांकि साल 2016 खत्म होते-होते सरकार राज्यसभा में जीएसटी पास कराने में सफल रही. हालांकि जीएसटी को पास कराने के अलावा राज्यों से भी जीएसटी पास कराना होता है.
16 राज्यों ने जीएसटी बिल को विधानसभा में पास करा दिया है, जिसके बाद बिल को राष्ट्रपति को पास मंजूरी के लिए भेज दिया गया है. सरकार इस लक्ष्य को लेकर चल रही है कि साल 2017 की फरवरी से जीएसटी लागू कर दिया जाएगा.
गौरतलब है कि सरकार ने जीएसटी के टैक्स स्लैब भी तय कर दिए हैं, जिसके बाद वस्तुओं की कीमतों में पूरे देश में एकरूपता होगी. इसके साथ कई सामान सस्ते तो कइयों के महंगे होने की सम्भावना भी व्यक्त की जा रही है. तमाम राज्य सरकारें अपने राजस्व में होने वाले शुरूआती घाटों के प्रति चिंतित हैं, बावजूद इसके कि केंद्र सरकार ने घाटों का काफी बड़ा हिस्सा चुकाने का प्रावधान किया है.
रिलायंस जियो की लांचिंग
इसके बिना साल 2016 की चर्चा शायद पूरी नहीं होगी. रिलायंस जियो का एलान एक तूफान के आने जैसा था. आप इसका आलम कुछ यूं समझ सकते हैं कि जिस दिन जियो सिम लॉन्च हुआ उसके बाद से देश के तमाम रिलायंस आउटलेट पर लोग घंटों लाइनों में खड़े नज़र आये. जिस तेजी से इस कंपनी ने अपने 10 करोड़ ग्राहक पूरे किये हैं, उसे दुनिया की सबसे तेज बढ़ने वाली कंपनी का दर्जा हासिल हो गया है. मुकेश अंबानी की कंपनी ने एक तरह से जियो को पूरी तरह से फ्री ही कर दिया, जिसके बाद तमाम प्रतिस्पर्धी कंपनियां चौंक गईं और उन पर रिलायंस जिओ को रोकने का आरोप भी लगा. ट्राई को इस मामले में सक्रीय हस्तक्षेप करना पड़ा, जिसने मुकेश अम्बानी की ‘फ्री स्कीम्स’ पर भी नज़रें टेढ़ी की. वैसे, जिओ के नेटवर्क और इन्टरनेट की स्पीड में शिकायत आने की बात भी कही गयी, किन्तु बावजूद इसके मुकेश अम्बानी इस इंडस्ट्री का रूल बदलने में सफल रहे और अब तमाम कंपनियों द्वारा लगातार सेलुलर सर्विसेज की दरें घटाई जा रही हैं.
2016 की अन्य चर्चित घटनाएं:
- 10वीं तक तीन भाषाओं की पढ़ाई जरूरी किए जाने का प्रस्ताव, जिसमें छात्रों को हिंदी, अंग्रेजी के साथ अपनी क्षेत्रीय भाषा या एक विदेशी भाषा को चुनना होगा.
- सरकारी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए एकल राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा (‘नीट’ नैशनल एलिजिबिलिटी एंट्रेस एग्जाम – एनईईटी) लागू हो गयी है.
बिहार टॉपर घोटाला भी इस साल काफी चर्चित रहा, जब बोर्ड की कला और विज्ञान संकाय में टॉपर रहे रूबी राय और सौरभ कुमार को एक टीवी साक्षात्कार के दौरान विषय वस्तु की जानकारी नहीं होने का भंडाफोड़ हुआ और खुलासा होने पर बिहार को परीक्षा में नकल को लेकर राष्ट्रव्यापी फजीहत झेलनी पड़ी.
- भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो का मंगल अभियान भी साल 2016 की चर्चित घटनाओं में शामिल किया जा सकता है. इसे भारत के अंतरिक्ष शोध में एक कालजयी घटना बताया गया. गौरतलब है कि सरकार द्वारा जारी 2000 की नयी करेंसी पर भी मंगलयान का चित्र अंकित है, जिससे इसकी महत्ता स्पष्ट होती है.
- देश में सिंहस्थ कुम्भ का आयोजन भी भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर था, जिसमें भारतीय सभ्यता व संस्कृति की चर्चा हुई.
- भारत रत्न मदर टेरेसा को सन्त का दर्जा मिलना भारतीय ईसाई समुदाय के लिए गौरवान्वित करने वाली घटना रही. वैटिकन में मदर टेरेसा को पोप फ्रांसिस ने 416 वर्ष पुराने नियम के बाद संत घोषित किया और वे कैथोलिक ईसाइयों के लिए सारी दुनिया में आदरणीय बन गईं.
Web Title: 2016 The Year in Review
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