अमृता प्रीतम!
साहित्य दुनिया का एक ऐसा नाम जिससे शायद ही कोई अनजान हो. अपनी जिंदगी को अपने शर्तों पर जीने वाली अमृता को अंत समय तक अपना प्यार नहीं मिल पाया.
प्यार, नारीवाद समेत सामाजिक मुद्दों पर उन्होंने कई सारी किताबें और कविताएं लिखीं. उन्होंने अपने प्यार से जुड़ी बातों को कभी नहीं छिपाया. कहीं न कहीं अमृता ने ही भारत में 'लिव-इन-रिलेशनशिप' की नींव भारत में रखी.
ऐसे में, पंजाब की पहली महिला लेखक अमृता प्रीतम के बारे में जानना दिलचस्प रहेगा.
जानते हैं, उनके जिंदगी से जुड़े दिलचस्प किस्से जो उनके व्यक्तित्व को बताते हैं-
बचपन से ही भेदभाव से थी नफरत
अमृता प्रीतम का जन्म 1919 में पंजाब के गुजरांवाला में हुआ था. वो महज़ 11 वर्ष की थीं. उनकी माँ का निधन हो गया. उनका बचपन लाहौर में ही गुजरा. उन्होंने अपनी शिक्षा भी वहीं से ली. उनके पिता एक स्कूल टीचर और कवि थे. उनके पिता सिख धर्म के प्रचारक भी थे.
उनके पिता ने उनका पालन-पोषण किया. यही वजह रही कि अमृता को बचपन से ही लेखन में रुचि रही. उनका किशोरावस्था में ही ईश्वर से विश्वास उठ गया. उनकी माँ की मृत्यु के बाद से ही उन्होंने ईश्वर से किनारा कर लिया.
खैर, माँ के जल्दी गुजर जाने की वजह से परिवार और घर की ज़िम्मेदारी उन्हीं पर आ गयी. अमृता ने जल्द ही कविता, कहानी और निबंध लिखना शुरू कर दिया. उन्होंने पंजाबी भाषा में लिखना शुरू किया.
उन्होंने अपने बचपन से ही भेदभाव का विरोध किया था. वो अछूत जैसी किसी चीज पर विश्वास नहीं करती थीं. उन्होंने अपने घर में किये जाने वाले भेदभाव का भी हमेशा से विरोध किया. दरअसल, बचपन में उनकी दादी घर में आने वाले मुस्लिमों के लिए अलग बर्तन रखती थीं.
इस तरह धर्म और जाति के आधार पर होने वाले फर्क से वो बहुत दुखी होती थीं.
(Pic: tumblr)
...और 16 साल की उम्र में हुई शादी
सन 1947 में, देश का बंटवारा हो गया. इस बंटवारे का दर्द लाखों लोगों के साथ अमृता ने भी सहा. इस दौरान, उन्हें लाहौर छोड़ना पड़ा. अब वह दिल्ली आकर बस गईं.
उन्होंने देश-विभाजन को बहुत करीब से देखा था. वो पीड़ा और परेशानी उन्होंने खुद झेली थी. यही वजह थी कि वो अक्सर अपने लेखन में बंटवारे का दर्द कुरेदती नजर आईं. दिल्ली आने के बाद, उन्होंने पंजाबी के साथ-साथ हिंदी में भी लिखना शुरू कर दिया.
ये उनकी कलम का ही कमाल था, कि महज 16 साल की उम्र में उनकी लिखाई प्रकाशित हो गयी. उनका पहला संकलन 1936 में प्रकाशित हुआ. इस संकलन का नाम था ‘अमृत लहरां’.
इसी दौरान, 16 साल की उम्र उनका विवाह हो गया. उनके पति एक संपादक थे. ये रिश्ता बचपन में ही मां-बाप ने तय कर दिया था. शादी के बाद उनका नाम अमृता कौर से अब अमृता प्रीतम हो गया.
शादी के बाद उन्हें दो बच्चे भी हुए. लेकिन, आगे चलकर उनका वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं चल रहा था. लिहाज़ा, उनकी शादी तलाक के साथ टूट गई.
'पिंजर' उपन्यास में ख़ूबसूरती से उकेरा दर्द
साल 1943 तक उनके 6 संकलन प्रकाशित हो चुके थे. यह सारे कविताओं के संकलन थे. उन्होंने अपने लेखन की शुरुआत रोमांटिक कविताओं से लिखनी शुरू की थी. आगे चलकर, वो सिर्फ इस तक ही सीमित नहीं रहीं. वह आज़ादी से पहले होने वाले प्रगतिशील साहित्य का भी हिस्सा बनीं.
साल 1944 में उनके कविताओं का संकलन ‘लोक पीड़ा’ प्रकाशित हुआ. इस में उन्होंने 1943 में बंगाल में आए अकाल और उस पर हुई राजनीति पर प्रहार करते हुए लिखा था. समय के साथ, वह निर्भीक लेखक बनती गईं. उन्हें अपने लिखे हुए शब्दों के अंजाम से अब डर नहीं लगता था.
1940 के दशक में वह सामाजिक कार्यों में भी लग गईं. इसी दौरान, उन्होंने लाहौर के रेडियो स्टेशन पर भी काम किया था. इस दशक में उन्होंने कई सारी कविताएं लिखी.
उनके सबसे बेहतरीन रचना मानी जाती है ‘पिंजर’. इसे उन्होंने साल 1950 में लिखा था. इस उपन्यास में उन्होंने विभाजन के दौरान महिलाओं की दशा को उकेरा था. इस उपन्यास में उन्होंने एक हिन्दू लड़की ‘पुरो’ की कहानी बताई है.
लड़की का अपहरण एक मुस्लिम लड़का कर लेता है. किसी भी प्रकार से वह जब बचकर अपने परिवार के पास लौटकर जाती है. उसका परिवार उसे वापस अपनाने से मना कर देता है.
ऐसे में, कैसे एक औरत को विभाजन के समय कई गुना अधिक परेशानी और ज़िल्लत झेलनी पड़ी थी. उन्होंने इस दृश्य को लोगों के सामने अपनी इस किताब के ज़रिए रखा.
साल 1961 में, उन्होंने आकाशवाणी की पंजाबी सेवा में काम करना शुरू कर दिया. 60 के दशक में ही वह नारीवाद पर ज्यादा लिखने लगीं. इस समय उन्होंने ‘काल चेतना’, ‘रसीदी टिकट’, ‘काला गुलाब’ और ‘अक्षरों के छाया जैसी रचनाएं’ की.
साहिर, जो कभी उनके न हो पाए
वो साल 1944 था जब पहली बार अमृता साहिर लुधियानवी से मिलीं. इसी पहली मुलाकात में वो साहिर की कायल हो गयीं. वह दिल्ली के प्रीत नगर में एक मुशायरे के दौरान उनसे मिलीं.
अपनी इस मुलाक़ात पर उन्होंने कहा था कि, ‘मुझे नहीं पता कि ये उनके शब्दों का जादू था या फिर उनकी एक शांत नज़र, लेकिन मैं पूरी तरह से उनकी गिरफ्त में हो गयी.’ साहिर के लिए अपने प्यार को उन्होंने कभी भी नहीं छिपाया. उन्होंने हमेशा इस पर खुलकर बात की.
बल्कि अपनी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ में वो लिखती हैं कि, ‘एक बार मुझे पेपर और पेन देकर फोटो खिंचवाने के लिए पोज देने के लिए कहा गया. जब मैंने बाद में पेपर देखा तो पाया कि मैंने अचेत मन से पूरे कागज़ पर साहिर, साहिर लिख दिया है.’ उनके बारे में ये भी कहा जाता है कि वो साहिर की छोड़ी हुई सिगार को अपने हाथों में लेकर उनकी उंगलियों का एहसास करती थीं.
जहां एक ओर वो साहिर से इतनी मुहब्बत करती थीं. वहीं दूसरी ओर साहिर उनसे शायद ही इतना प्यार करते थे.
कृष्णा अदीब ने अपनी किताब ‘ख्वाबां दे शहजादा’ में लिखा कि, ‘साहिर ने शायद उनसे प्यार किया हो लेकिन बहुत कम समय के लिए. साहिर की जिंदगी में अनगिनत महिलाएं आईं. वो हर महिला को इसी तरह प्यार करते थे. ऐसे में, अमृता न ही उनकी जिंदगी में पहली और न ही आखिरी महिला थीं.’
अमृता का दिल पूरी तरह से टूट गया . जब 1950 में ‘ब्लिट्ज’ मैगज़ीन में साहिर का नाम किसी और के साथ जुड़ा नज़र आया. जिसके बाद 1957 तक उन्होंने खुद को अकेला और परेशान ही पाया.
इनका ये अकेलापन तब खत्म हुआ जब उनकी जिंदगी में इमरोज आए. वह उनसे अपनी बुक के कवर डिजाईन की तलाश के दौरान मिलीं. उन्होंने अमृता को उनके अतीत के साथ अपनाया. अमृता ने अपनी जिंदगी के आखिरी चालीस साल कलाकार और लेखक इमरोज के साथ ही बिताएं.
अमृता और इमरोज चालीस साल तक एक साथ रहे. बताते चलें, इन दोनों ने शादी नहीं की थी. एक लम्बी बीमारी के बाद 31 अक्टूबर, 2005 में उनकी कलम शांत हो गयी. उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
अपने बेहतरीन लेखन के लिए उन्हें कई उत्कृष्ट अवार्ड्स मिले. उन्हें 1956 में साहित्य अकादमी अवार्ड मिला. साल 1982 में अपनी रचना ‘कागज़ ते कैनवास’ के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी नवाज़ा गया. साल 2004 में उन्हें पद्मविभूषण अवार्ड से भी सम्मानित किया गया.
अमृता प्रीतम ने नारीवाद समेत हर सामाजिक मुद्दे को अपनी कलम से उजागर करने की कोशिश की है. उन्होंने अपने प्यार और ज़ज्बातों को कभी भी नहीं छिपाया. वह एक निर्भीक और स्वतंत्र लेखन करती रहीं.
उनके साहित्य में किये गए अभूतपूर्ण योगदान को दुनिया कभी नहीं भूला सकती. जब तक उनके शब्द हैं तब तक वह लोगों के बीच एक विचार बनकर जीवित रहेंगी.
Web Title: Amrita Pritam: Who had Not Got Her Love, Hindi Article
Feature Image Credit: historyextra