शादी को दो आत्माओं का मेल कहा जाता है और सभी धर्मों में अपने-अपने रीति-रिवाज के अनुसार शादी की रस्म अदा की जाती हैं.
यूं तो आपने शादी-ब्याह में सात फेरे होते हुए देखे होंगे, लेकिन सिख धर्म के अतंर्गत शादी में केवल चार फेरे होते हैं और इन फेरों को पंजाबी में 'लावां' कहा जाता है.
इसके साथ ही शादी व फेरों की इस रस्म को 'अानंद कारज' कहते हैं.
हाल ही में बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनम कपूर और आनंद आहूजा की शादी हुई थी, जो सिख रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुई.
आनंद कारज हिंदू धर्म से बिल्कुल ही अलग शादी करने का सिख रिवाज है.
आपके दिमाग में ये बात जरूर आई होगी कि सिख धर्म में चार फेरे ही क्यों होते हैं और ये 'आनंद कारज' क्या है?
चलिए तो हम आपको बताते हैं कि आखिर सिखों की शादियों में केवल चार लावां ही क्यों होते हैं और इन लावां की रचना किसने की –
'आनंद कारज' और उसकी रचना
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी की धर्म प्रचार कमिटी द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'आनंद कारज' में कमिटी के वरिष्ठ सलाहकार कुलमोहन सिंह लिखते हैं कि सिख धर्म में विवाह की 'आनंद कारज' रस्म सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमरदास जी (1552) के समय से अब तक लावों के रूप में चलती आ रही है. सिख कौम इसका पूरी मर्यादा के साथ पालन कर रही है.
'लावां' चार शब्दों से जुड़कर बना है, जिसकी रचना गुरु अमरदास जी के दामाद और उत्तराधिकारी गुरु रामदास साहिब जी ने की.
वह लिखते हैं कि आनंद कारज केवल तभी माना जाएगा, जब यह गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में होगा. आनंद कारज न तो कोई ठेका है और न ही किसी तरह का कोई समझौता. यह केवल एक धार्मिक रस्म है, जिसे गुरु साहिबानों ने पवित्र बताया है.
सिख धर्म के अनुसार आनंद कारज दो आत्माओं का मिलाप है. यह मिलाप धरती पर नहीं बल्कि वाहेगुरु की ओर से स्वर्ग में बनाया जाता है.
सिख धर्म में केवल आनंद कारज की मर्यादा के अनुसार हुए विवाह को ही प्रमाणित किया जाता है.
फेरे शुरू होने से पहले की रस्म
गुरुद्वारे में फेरे शुरू होने से पहले गुरु ग्रंथ साहिब के पवित्र शबद का पाठ किया जाता है, जो इस प्रकार हैं...
राग सुही महला पहला
एक ओंकार सतगुर प्रसाद.
हम घर साजन आए. साचे मेल मिलाए.
सहज मिलाए हर मन भाए पंच मिले सुख पाइआ.
साई वसत परापत होई जिस सेती मन लाइआ.
अनदिन मेल भइआ मन मानिआ घर मंदर सोहाए.
पंच सबद धुन अनहद वाजे हम घरि साजन आए.
संक्षिप्त में उपरोक्त के अनुसार, वाहेगुरु सिर्फ एक हैं और वही माफ करने वाले हैं. मित्र मेरे घर आए हैं. सच्चे गुरु की कृपा ने मुझे उनकी संगत में मिला दिया है. आज मैंने वही वस्तु हासिल कर ली है, जिसके साथ मैंने मन जोड़ा था. इनके मेरे घर आने से पांचों संगीत साजों का स्वयं ही सुरीला राग गुंजने लगता है.
श्लोक पांचवी पातशाही के अनुसार, मैंने आज से किसी भी व्यक्ति की बुराई करना छोड़ दिया है. दूसरों की मदद करने का प्रण लिया है. मेरे स्वामी, मैंने सभी संबंधियों को झूठा ही देखा है इसलिए आपके साथ जुड़ रही हूं.
इन शबद के बाद फेरे शुरू होते हैं.
चार लावां और उनका अर्थ
पहला फेरा
सूही चौथी पातशाही
हरि पहिलड़ी लाव परविरती करम द्रिड़ाइआ बलि राम जीउ.
बाणी ब्रहमा वेद धरम द्रिड़ह पाप तजाइया बलि राम जीउ.
धरम द्रिड़ह हरि नाम धिआवहु सम्रिति नाम द्रिड़ाइआ.
सतगुरु गुरु पूरा अराधह सभि किलविख पाप गवाइया.
सहज आनंद होआ वडभागी मन हर हर मीठा लाइआ.
जन कहै नानक लाव पहली आरंभ काज रचाइआ.
पहली लावां के अनुसार, स्वामी ने गृहस्थ के जीवन के फर्जों को जाना और उन्हें अपनाया है. इसके अनुसार, अपने दुख-दर्द मिटाने के लिए गुरु की बाणी का उच्चारण करो और अपने जीवन को सुखद बनाओ. सच्चाई को अपनाओ.
नानक कहते हैं कि पहले फेरे द्वारा 'आनंद कारज' शुरू हो जाता है.
दूसरा फेरा
हर दूजड़ी लाव सतगुरु पुरख मिलाइआ बलि राम जीउ.
निरभउ भै मन होइ हउमै मैलु गवाइआ बलि राम जीउ.
निरमल भउ पाइआ हर गुण गाइआ हर वेखै राम हदूरे.
हर आतम राम पसारिआ सुआमी सरब रहिआ भरपूरे.
अंतर बाहर हर प्रभु एको मिल हर जन मंगल गाए.
जन नानक दूजी लाव चलाई अनहद सबद वजाए.
दूसरे फेरे के अनुसार, मुझे सच्चे गुरु के साथ मिला दिया है. वाहेगुरु का नाप जपने और उनका यश गायन करने से वाहेगुरु मुझे हर जगह विद्यमान दिखते हैं. वाहेगुरु हर जगह विद्यमान हैं और सभी स्थानों पर विद्यामान हैं.
नानक कहते हैं कि दूसरा फेरा खत्म हो गया है और ईश्वरीय कीर्तन गुंजता है.
तीसरा फेरा
हर तीजड़ी लाव मन चाउ भइआ बैरागिआ बलि राम जीउ.
संत जना हर मेल हर पाइआ वडभागीआ बलि राम जीउ.
निरमल हर पाइआ हर गुण गाइआ मुख बोली हर बाणी.
संत जना वडभागी पाइआ हर कथीए अकथ कहाणी.
हिरदै हर हर हर धुन उपजी हर जपीए मसतक भागु जीउ.
जन नानक बोले तीजी लावे हर उपजे मन बैराग जीउ.
तीसरे फेरे में नानक कहते हैं कि इस फेरे से वाहेगुरु का प्रेम मेरे मन में उप्तन्न हो गया है. मन के अंदर स्वामी के प्यार की खुशी का जन्म हो गया है.
नेक व्यक्तियों से मिलकर परम भाग्य द्वारा मैंने स्वामी और वाहेगुरु को प्राप्त कर लिया है. मैं गुरु ग्रंथ साहिब और लावां को ध्यान में रखते हुए इस पवित्र रिश्ते के साथ जुड़ रहा/रही हूं.
चौथा फेरा
हर चउथड़ी लाव मन सहज भइआ हर पाइआ बलि राम जीउ.
गुरमुख मिलिआ सुभाइ हर मन तन मीठा लाइआ बलि राम जीउ.
हर मीठा लाइआ मेरे प्रभ भाइआ अनदिन हर लिव लाई.
मन चिंदआ फल पाइआ सुआमी हर नाम वजी वाधाई.
हर प्रभ ठाकुर काज रचाइआ धन हिरदै नाम विगासी.
जन नानक बोले चउथी लावै हर पाइआ प्रभ अवनासी.
चौथे फेरे के अनुसार, गुरु रहमत के कारण बेहद आसानी से मैंने अपने स्वामी को प्राप्त कर लिया है, जो मेरी जिंदगी और देह को मीठा लगता है. मैं अपने स्वामी पर कुर्बान जाता हूं.
वाहेगुरु ने आनंद कारज पूर्ण कर दिया है. यहां से मैं मेरी नई जिंदगी की शुरुआत करता हूं और वाहेगुरु की कृपा से उम्र भर इस पवित्र रिश्ते को निभाने का वादा करता हूं.
फेरों के बाद अंतिम रस्म
जब गुरु ग्रंथ साहिब को अंग-संग मानते हुए जोड़े के चार फेरे हो जाते हैं, तो इसके बाद श्री राग चऊथी पातशाही की आखिरी रस्म होती है, जिसका अर्थ होता है कि वाहेगुरु केवल एक हैं.
कुलमोहन सिंह लिखते हैं कि अंतिम रस्म के मुताबिक मेरा आनंद कारज हो गया है. गुरुओं के उपदेश द्वारा मैंने वाहेगुरु को पा लिया है.
मेरा नासमझी का अंधेरा दूर हो गया है. गुरुओं ने ज्ञानता की रौशनी कर दी है.
मेरी 'मैं और सिर्फ मैं' की बीमारी दूर हो गई है और मेरा दुख कट गया है. मैंने अमर स्वरूप वाहेगुरु को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है.
आज मेरा विवाह हो गया है. वह गुरु ग्रंथ साहिब जी के सामने प्रतिज्ञा लेते हुए उम्र भर एक साथ रहने, दूसरों की मदद करने और सदैव गुरु के चरणों से लगे रहने का वादा करते हैं.
इस आखिरी रस्म को अदा करने के बाद जोड़ा शादी के बंधन में बंध जाता है और इसी के साथ 'आनंद कारज' संपूर्ण हो जाती है.
Web Title: Anand Karaj: Sikhism Wedding Ceremony and Laava, Hindi Article
Feature Image Credit: FunctionMania