भारत देश कुछ ऐसा ही रहा है, जहाँ ‘बचत’ को जीवन यापन का अहम हिस्सा समझा जाता है. हमें कल के बारे में कुछ नहीं पता, कब कौन सा आर्थिक या शारीरिक संकट आ जाए कुछ नहीं पता.
यही वजह है ‘बचत’ करने पर जोर दिया जाता है. यदि कुछ घटना घटित भी हो जाती है तो, उससे निपटने के लिए कम से कम हमारे पास आर्थिक मजबूती रहेगी.
इसी ‘बचत’ के मूल्य को बिहार में बच्चों को सिखाने के लिए एक बेहद उम्दा प्रयोग किया गया. वहां बिहार सरकार के अंतर्गत ही एक ‘गुल्लक बैंक’ खोला गया. जिसमें बच्चे अपनी छोटी-छोटी जमा-पूँजी को जमा कर सकते हैं.
इसके अलावा, इस बैंक से जुड़ी और भी अन्य बातें हैं, जिन्हें जानकार आप हैरान हो जाएंगे. तो आइये, जानते हैं ‘बच्चों से, बच्चों के लिए और बच्चों द्वारा' इस ‘ बच्चा गुल्लक बैंक’ की कहानी को-
'किलकारी बाल भवन योजना' के तहत हुआ शुरू
साल 2008 में बिहार राज्य के शिक्षा विभाग ने ‘किलकारी बाल भवन योजना’ की शुरुआत की. इस योजना के जरिये वह बच्चों का रचनात्मक और व्यावसायिक विकास करना चाहते थे.
इस योजना के अंतर्गत आठ से 16 साल तक की उम्र के बच्चों को रचनात्मक आदि क्षेत्रों में प्रशिक्षित करना था. इसके लिए बच्चों को डांसिंग, सिंगिंग, थिएटर आदि जैसी कलाओं के लिए प्रशिक्षित किया जाता है.
इसके तहत बच्चों को मोबाइल लाइब्रेरी, प्रत्यक्ष लाइब्रेरी और काउंसलिंग जैसी फैसिलिटी मौजूद हैं. मोबाइल लाइब्रेरी के बहुत फायदे हैं. दरअसल, इसके जरिये गाड़ी में पुस्तकें रखकर झुग्गी आदि में रहने वाले बच्चों के लिए बुक्स लेकर जाई जाती है.
इन पुस्तकों में कहानी, कविताएं, मैगज़ीन, पत्रिका आदि शामिल हैं. बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए ‘बेस्ट रीडर’ जैसे अवार्ड भी दिए जाते है. यही वजह है कि बच्चे इन पुस्तकों को पढ़ने में खासी रुचि भी दिखाते हैं.
इसके अलावा, बच्चों के लिए लेख प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती है. यह योजना बेहद ही सफल रही है. इस बात का प्रमाण है कि इसमें प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले बच्चों ने दशरथ मांझी पर बनी फिल्म ‘मांझी’ में भी काम किया हुआ है.
साथ ही, कई बच्चों ने रियलिटी शोज में भी हिस्सा लिया और वहां अपने प्रदर्शन से सभी लोगों का दिल भी जीत लिया.
2009 में स्थापित हुआ 'बच्चा गुल्लक बैंक'
इसी योजना के अंतर्गत ही 14 नवंबर, 2009 में ‘गुल्लक बैंक’ की स्थापना की गई. बिहार सरकार द्वारा फंड की जा रही इस योजना का मकसद बच्चों को पैसों का महत्व समझाना था. इस योजना का उद्घाटन मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने किया था. इसके जरिये समाज के गरीब तबकों से आने वाले बच्चों को ‘बचत' की अहमियत और पैसों के मैनेजमेंट को सिखाया जाता है.
बच्चों के इस बैंक में अब तक 68 लाख रुपयों का लेन-देन हो चुका है. जिससे पता चलता है कि यह बैंक भले ही बच्चों का है पर इसको कम समझने की गलती मत करें. इस बैंक की सबसे ख़ास बात यह कि इस बैंक में सिर्फ बच्चे ही पैसे जमा कर सकते हैं.
साथ ही, इस बैंक का संचालन भी बच्चे ही करते है. इसके प्रबंधन से लेकर सारे पदों पर बच्चे ही काम करते हैं. बैंक में नियुक्ति से पहले एक माह की ट्रेनिंग भी दी जाती है.
इस बैंक में काम करने वाले सभी बच्चों को तनख्वाह भी दी जाती है. बैंक के प्रबंधक को 500 रूपयों का मेहनताना दिया जाता है. वहीं दूसरी ओर उप-प्रबंधक को 300 रूपयों का मेहनताना दिया जाता है.
बैंक का संचालन ठीक प्रकार से हो सके, इसके लिए बच्चों की ही एक समिति बनाई गई है. यह समिति प्रबंधन और आदि कार्य ठीक प्रकार से हो, इस पर नज़र बनाए रखती है.
‘लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में भी दर्ज है नाम
यहाँ बच्चे दो घंटे की शिफ्ट में काम करते हैं. एक शिफ्ट में 6 बच्चे काम करते हैं. यह बैंक सुबह 11 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक खुला हुआ रहता है.
इस बैंक में हर वर्ष बच्चे बदल दिए जाते हैं. इसका मूल उद्देश्य है कि हर बच्चे को इसमें काम करने का मौका मिले. साथ ही, बच्चे इस कार्य प्रणाली को भी समझ सकें. बताते चलें, इस बैंक में हुए लाखों के लेन-देन के रिकॉर्ड को ‘लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में भी दर्ज कर लिया गया है.
इस बैंक में तकीबन 3500 खाते हैं. बैंक में बच्चे 10 रूपये की राशि के साथ अपना खाता खोल सकते हैं. जिसमें जमा करने की राशि न्यूनतम 1 रूपया है. इसके अलावा, इस बैंक में खाता 16 साल की उम्र से अधिक होने पर इंडियन ओवरसीज़ बैंक में ट्रांसफर कर दिया जाता है.
यदि किसी बच्चे को 500 से अधिक की राशि बैंक से निकालनी होती है तो, उसे अपने अभिभावक के हस्ताक्षर करवाकर के लाने होते हैं. साथ ही 500 रूपये जमा कराने पर 75 रूपयों का प्रोत्साहन भी दिया जाता है.
साथ ही, वित्तीय वर्ष के अंत तक बच्चों को 6 प्रतिशत का ब्याज भी दिया जाता है. अगर किसी बच्चे को 2 हजार से ज्यादा की राशि चाहिए होती है तो, इसके लिए उसे बैंक को तीन दिन पहले ही सूचित करना होता है. बच्चे को पैसे निकालने से पहले उसके इसकी वजह भी पूछी जाती है.
बच्चे सीख रहे हैं 'स्माल सेविंग्स' के मायने
इस बैंक से बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ा है. सबसे अच्छी बात यह कि बच्चे जहाँ इसकी मदद से बेहतर भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं. वहीं दूसरी ओर वे पैसों के मैनेजमेंट और उसकी उपयोगिता को भी बेहतर ढंग से समझ रहे हैं.
इससे बच्चे अपनी जरूरतों को पूरा कर पा रहे हैं. ज्यादातर बच्चे पैसे अच्छे और नैतिक काम के लिए ही खर्च करते हैं. दरअसल, भवन के अंदर ही हुए अध्ययन से इस बात की पुष्टि हुई है.
अध्ययन के अनुसार, 60 प्रतिशत बच्चे अपनी पढ़ाई के लिए ही पैसे बैंक से निकालते हैं. ज्यादातर बच्चों ने अपनी पुस्तक खरीदने, अपने स्कूल की ट्यूशन फीस या अपने पेन-पेंसिल आदि के लिए पैसे खर्च किये हैं. ऐसे में, इस अध्ययन से ‘गुल्लक बच्चा बैंक’ की उपयोगिता का प्रमाण मिलता है.
बताते चलें, साल 2007 में मध्यप्रदेश सरकार ने भी 'अरुणोदय गुल्लक योजना' की शुरुआत की थी. इसके जरिये सरकार बच्चों में स्माल सेविंग और पैसों की बचत के बाद उनके बेहतर उपयोग की आदत के गुण डालना चाहती थी.
खैर, इसका संचालन तो बड़े अधिकारियों द्वारा ही होता है न कि ‘गुल्लक बच्चा बैंक’ की तरह. यह थी कहानी गुल्लक बच्चा बैंक की. अगर आप भी इससे जुड़ी कोई जानकारी हमारे साथ सांझा करना चाहते हैं तो, कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें.
WebTitle: Baccha Gullak Bank: A Bank Which For And Run By The Children, Hindi Article
This article is about Baccha Gullak Bank At Bihar In Patna Which Is Utterly Manage By children.
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