राजनीतिक फायदे के लिए मुस्लिमों को अलग मुल्क यानी पाकिस्तान देने के सपने के साथ उन्हें भड़काया गया! पाकिस्तान की मांग दिन पर दिन प्रबल होती जा रही थी.
और अगस्त 1947 को हिन्दोस्तान का बंटवारा कर दिया गया. ऐसे में भारत में रह रहे मुस्लिमों के राष्ट्रवाद पर सवाल उठने लाजमी थे.
हालांकि प्रो. मुशीरुल हसन हिन्दोस्तान विभाजन के हालातों पर कहते हैं कि विभाजन के बाद मुसलमानों को एक नई धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक व्यवस्था में रहना था, जिसके आधार पर उन्हें अपनी जिंदगी को बनाना और संवारना था. यह काम इतना आसान नहीं था, हालांकि उन्होंने कोशिश की और धर्मनिरपेक्षता को अपनाया और राष्ट्र निर्माण के कार्य में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया.”
इसके अलावा भी बहुत कुछ प्रो. मुशीरुल हसन जैसे महान और प्रसिद्ध भारतीय इतिहासकार ने हिन्दोस्तान के विभाजन, भारत में मुस्लिमों की स्थिति और उनके अधिकारों पर कहा है और लिखा है.
ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि हम भारत के गुमनाम इतिहास को लिखने वाले प्रो. मुशीरुल हसन के बारे में जानें –
पिता से सीखा था इतिहास!
मूलरूप से गांव मुहम्मदपुर तहसील फतेहपुर जिला बाराबंकी से संबंध रखने वाले प्रो. मुशीरुल हसन का जन्म 15 अगस्त 1949 को आजाद भारत में हुआ था.
इनके पिता मोहीब्बुल हसन भी इतिहासकार रहे हैं. इसलिए इतिहास को सोचने-समझने की सीख इन्हें विरासत में मिली थी, शायद इसी का परिणाम है कि उन्होंने भी इतिहास के क्षेत्र में ही अपना करियर बनाने की सोची. परिणामस्वरूप हसन ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से 1969 में एमए किया और उसके बाद कैंब्रिज विश्वविद्यालय से 1977 में पीएच.डी की.
मुशीरुल सन 1992 से 1996 तक जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रो. वाइस चांसलर रहे. इसके बाद इन्हें जामिया में ही थर्ड वर्ल्ड स्टडीज अकादमी का निदेशक बना दिया गया. और सन 2004 में इन्हें जामिया मिलिया इस्लामिया का वाइस चांसलर बना दिया गया.
Prof Mushirul Hasan. (Pic: Twitter)
जब मिला फ्रांस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
मुशीरुल हसन ने भारत सरकार द्वारा प्रायोजित कई कार्यक्रमों में देश और विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है. इसके अलावा ये विभिन्न जर्नल्स के को-एडिटर भी रहे हैं, साथ ही ये भारत सरकार की कई समितियों, संस्थानों, कार्यक्रमों के सदस्य, निदेशक और उप-निदेशक भी रहे.
वहीं, कैंब्रिज, ऑक्सफोर्ड, पेरिस, हंगरी, रोम, जर्मनी के कई विश्वविद्यालय और कॉलेजों में फैलोशिप/विजिटिंग प्रोफेसर के पद पर भी कार्य किया है.
प्रो. मुशीरुल को फ्रांस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ऑफिसर ऑफ द ऑर्डर ऑफ अकादमिक पाल्म्स साथ ही भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है. इन्हें उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन ओपन यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद, द्वारा 2006 में मानद डी. लिट की उपाधि दी गई. 2006 में कलकत्ता की द एशियाटिक सोसाइटी द्वारा प्रोफेसर सुकुमार सेन मेमोरियल गोल्ड मेडल पदक, 2002-03 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के इस्लामी अध्ययन संस्थान द्वारा फोर्ड फाउंडेशन (एसएआरसी) फैलोशिप से सम्मानित किया गया. इसके अलावा भी कई फैलोशिप और सम्मान विभिन्न संस्थानों द्वारा प्रदान किए जा चुके हैं.
Prof Mushirul Hasan with lrfan Habib. (Pic: twitter)
विवाद से भी रहा है नाता
19 सितंबर 2008 को दिल्ली के जामिया नगर के बटला हाउस में सिमी आतंकियों का एनकाउंटर किया गया. तब दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में मुशीरुल हसन वाइस चांसलर थे. और इस एनकाउंटर के 5 दिन बाद यूनिवर्सिटी में हसन के साथ बैठक के लिए छात्रों को बुलावा भेजा गया. मीटिंग हुई और मुशीरुल हसन ने बटला हाउस एनकाउंटर के कथित अभियुक्तों को मदद मुहैया कराने का ऐलान कर दिया.
एक मुस्लिम होने के नाते मुशीरुल हसन ने सलमान रुश्दी की शैतानिक वर्सेज किताब पर प्रतिबंध लगाने का कभी भी समर्थन नहीं किया. लेकिन यूनिवर्सिटी के कुलपति होने के नाते हसन ने आतंकी गतिविधियों में शामिल कुछ मुस्लिम छात्रों को विश्वविद्यालय की कानूनी सहायता निधि की पेशकश की थी. हालांकि इसका भाजपा ने विरोध किया था. यहां तक कि इन्हें देशद्रोही तक करार दे दिया गया. इनके ऊपर पत्थर बरसाए गए और इन्हें जलालत भरी निगाहों से देखा गया.
मुशीरुल हसन ने 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने से पहले कहा था कि 16 मई के बाद भारत में एक मुसलमान होना और अधिक कठिन हो जाएगा.
बहरहाल, मुशीरुल हसन एक प्रखर बौद्धिक लेखक, शिखक और इतिहासकार होने के नाते हमेशा अल्पसंख्यकों के अधिकारों का बचाव करते रहे हैं, और जरुरत पड़ने पर उनके लिए हक की आवाज भी बुलंद की है.
Mushirul Hasan is a historian of modern India. (Pic: dailyo)
राष्ट्रवाद और सांप्रदायिकता पर लिखी किताबें
जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, दिल्ली के पूर्व वाइस चांसलर और एक प्रख्यात इतिहासकार प्रो. मुशीरुल हसन ने अपनी पुस्तकों में पश्चिमी इतिहास से लेकर भारत में मुस्लिमों की स्थिति पर काफी कुछ लिखा है. इन्होंने हिन्दोस्तान के विभाजन पर खुलकर अपने विचारों को पुस्तक का रूप दिया, तो वहीं गुलाम भारत के दौरान भारत की स्थिति का भी वर्णन इन्होंने अपनी किताबों के माध्यम से किया है.
इनकी कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें द पार्टीशन्ड: द अदर फेस ऑफ फ्रीडम, सीमलैस बाउंड्रीज: लुतफुल्लाहज नैरेटिव वियोंड ईस्ट एंड वेस्ट, लिविंग टुगैदर सैपरेटली: क्वासबस इन कॉलोनियल अवध, बिटवीन वर्ल्डस: द ट्रैवल्स ऑफ यूसुफ खान कमबलपोश, मुशीरुल हसन ओमनीबस, राइटिंग इंडिया: कॉलोनियल एथनोग्राफी इन द नाइनटीन्थ सैंचुरी, फ्रॉम गालिब्स दिल्ली टू लुटियंस न्यू देहली, इंडिया: सोशल डवलपमेंट रिपोर्ट, रोड्स टू फ्रीडम: प्रिजनर्स अंडर कॉलोनियल रूल, बिटवीन मॉडर्निटी एंड नेशनलिज्म, द नेहरुस: पर्सनल हिस्ट्रीज, मॉडिरेट और मिलीटेंट, लिविंग विद सैक्यूलरिज्म, लीगेसी ऑफ अ डिवाइडेड नेशन, इंडियाज मुस्लिम्स, नेशनलिस्ट कॉनसाइंस, एक्सप्लोरिंग द वेस्ट हैं.
नेहरू के व्यक्तिगत इतिहास किताब में प्रो. मुशीरुल ने उनके बारे में काफी कुछ वह लिखा है, जो लोग पढ़ना चाहते हैं और किसी अन्य लेखक ने उन्हें अपनी किताबों में शामिल नहीं किया है.
पंडित जवाहर लाल नेहरू के बारे में प्रो. हसन लिखते हैं कि नेहरू के अंदर किताबों को पढ़ने की एक भूख थी उन्होंने केवल 8 महीनों में 55 किताबें पढ़ डालीं. उन्होंने दर्शन को समझा, लोगों की विचारधारा और आंदोलनों को समझने के लिए इतिहास को पढ़ा.
इन्होंने अपनी पुस्तक ‘फेथ एंड फ्रीडम, गांधी इन हिस्ट्री’ में गांधी के मुस्लिम नेताओं के साथ संबंधों व उनके प्रभावों पर मुख्य रूप से प्रकाश डाला है.
वहीं, ‘भारत में राष्ट्रवाद और सांप्रदायिक राजनीति: 1885-1930′ में राजनीतिक विचारों की दृष्टि से मुसलमानों की पुरानी या कहें रूढ़िवादी मुसलमानों और उनकी नई पीढ़ी में अंतर को पेश किया गया है.
इन किताबों को लिखने के अलावा भी प्रो. मुशीरुल ने कई लेखों, जर्नल्स, पेपर और किताबों का सफलतापूर्वक संपादन किया है.
Web Title: Biography of Famous Historian Mushirul Hasan, Hindi Article
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