नोबेल पुरस्कार विश्व का सबसे अच्छा पुरस्कार माना जाता है.
इससे जुड़ी एक आम धारणा यह भी है कि कोई कलाकार अपनी कला में चाहे कितना भी निपुण क्यों न हो, मगर वह अगर अमेरिकी सरकार और कॉर्पोरेट के खिलाफ किसी भी प्रकार का विरोध करता है, तो उसे कभी भी नोबेल पुरूस्कार नहीं मिल सकता!
भारत का ही उदाहरण लें तो प्रेमचंद और मुक्तिबोध ने कालजयी साहित्य की रचना की. इसके बाद भी उनको नोबेल पुरूस्कार नहीं मिला.
माना जाता है कि ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्होंने अपनी रचनाओं में अमेरिका द्वारा संचालित शक्ति व्यवस्था की कड़ी मुखालफत की!
खैर, इस सबके बीच एक कलाकार ऐसा भी हुआ, जिसने इस आम धारणा को तोड़ते हुए नोबेल पुरूस्कार जीता.
वह कौन था और उसने यह कैसे संभव बनाया आईए जानते हैं-
वुडी गूथ्री के गानों से प्रभावित हुए, और…
अमेरिका के खिलाफ गाने पर भी नोबल पुरूस्कार पाने वाले इस कलाकार का नाम है बॉब डिलन. 24 मई, 1941 में इनका जन्म मिनसोटा, अमेरिका में हुआ.
स्कूल के दिनों से ही संगीत में उनकी खासी रूचि रही. हाईस्कूल में ही कई सारे बैंड बना लिए थे. असल में ये एल्विस प्रेस्ली, जोहनी रे, हैंक विलियम्स और लिटिल रिचर्ड जैसे विख्यात संगीतकारों से खसे प्रभावित थे.!
हालाांकि, ऐसा नहीं है कि उनका ध्यान पढ़ाई की तरफ बिल्कुल नहीं था. 1959 में उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेज में प्रवेश लिया. वह बात और ही कि उन्हें शीघ्र ही कॉलेज से निकाल दिया गया. इसी दौरान उनके एक दोस्त ने उन्हें अमेरिका के महान संगीतकार वुडी गूथ्री के गानों का एल्बम दिया, जिसे सुनकर वह बहुत प्रभावित हुए.
इतने प्रभावित कि उन्होंने गिटार पर उनके सभी गाने बजाने सीख लिए. गानों के साथ गूथ्री की वेशभूषा भी अपना ली. इस तरह 1960 आते-आते बॉब ने लोक संगीत में निपुणता हासिल कर ली.
यह वहीं दौर था, जब अमेरिकी के साथ-साथ वैश्विक राजनीति में काफी उथल-पुथल था. शीत युद्ध की सरगर्मी बहुत बढ़ चुकी थी, फ्रांस के हारने के बाद अमेरिका ने वियतनाम के ऊपर हमला बोल दिया था. परमाणु बमों की होड़ बढती जा रही थी और खुद अमेरिका के भीतर काले लोगों के बराबर अधिकार के लिए ‘सिविल राइट्स’ आन्दोलन चल रहा था.
ऐसे में 1961 में बॉब न्यूयॉर्क शहर में आते हैं.
इस समय यह शहर लोक संगीत का केंद्र बना हुआ था. बॉब ने स्थानीय क्लबों और कैफ़े में गाना शुरू किया और अपनी एक अलग पहचान बना ली.
Woody Guthrie Armerican Singer (Pic: Wikipedia)
सूजी रोटोलो की एंट्री से बदल गई जिंदगी
जुलाई 1961 में बॉब की मुलाक़ात सूजी रोटोलो नाम की एक सत्रह वर्षीय युवती से होती है. दोनों साथ रहने लगते हैं. सूजी खुद राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय होती है.
वह ‘कांग्रेस ऑफ़ रेसिअल इक्वलिटी’ की अध्यक्षा के पद पर थीं. सूजी बॉब की मुलाकात ब्रेख्त और ऑर्थर रिमबाड जैसे कवियों से करवाती है. इनसे मिलने के बाद बॉब के गीतों में एक भावनात्मक गहराई पैदा हो जाती है.
सूजी ही बॉब का ध्यान देश और विदेश में घट रहे विभिन्न घटनाक्रमों की तरफ मोडती है. इसके बाद बॉब जो गाने लिखता है, वो उसे हीरो बना देते हैं. अगले आने वाले दो वर्षों में बॉब प्रतिरोध के गायक के रूप में विख्यात हो जाता है.
अप्रैल 1962 में बॉब ‘टॉकिंग जॉन बर्ग सोसाइटी ब्लूज’ और ‘लेट मी डाई इन माय फूटस्टेप्स’ जैसे गाने लिखता है. ये गाने शीत युद्ध की बर्बरता और अमेरिकी सरकार द्वारा बिना कुछ सोचे समझे लगातार परमाणु बमों के अंधे निर्माण की कड़ी भर्त्सना करते हैं .
ये गाने लिखकर बॉब अमेरिकी सरकार की नज़र में जाता है.
Suze Rotolo and Bob Dylan(Pic: Pinterest)
‘ऑक्सफ़ोर्ड टाउन’ ने बनाया स्टार
अब बॉब की जिंदगी में गुणात्मक परिवर्तन होने लगा. वे संगीत द्वारा समाज में बदलाव की बात करने लगे . इसी समय जेम्स मेरेडिथ नाम के पहले काले विद्यार्थी को मिसीसिपी विश्वविद्यालय में प्रवेश मिला. इस बात पर दंगे भड़क गए. इन दंगों के खिलाफ बॉब ने ‘ऑक्सफ़ोर्ड टाउन’ नाम का गाना लिखा. यह बहुत प्रसिद्ध हुआ.
इसी समय बॉब एक ऐसा गाना लिखते हैं जो ना केवल ‘सिविल राइट्स आन्दोलन’ का प्रतीक बनता है बल्कि अमेरिकी सरकार द्वारा वियतनाम के ऊपर थोपे गए युद्ध के प्रतिकार का भी प्रतीक बन जाता है. इस गाने का नाम होता है- ‘ब्लोइंग इन दि विंड’.
इस गाने में बॉब सबसे पूछते हैं कि आखिर कितने दिनों के बाद गोलियां चलनी बंद हो जाएंगी. आखिर कितने दिनों के बाद गुलाम मनुष्यों को आजादी मिलेगी. आखिर कितनी मौतों के बाद हमें पता चलेगा कि बहुत ज्यादा लोग मर चुके हैं, और आखिर कितने दिनों के बाद सत्ता में बैठे लोगों को अन्याय होता हुआ दिखेगा?
इन सब प्रश्नों के जवाब में वे कहते हैं कि उत्तर हवा में तैर रहा है.
इस गाने ने उन्हें वह प्रसिद्धि दी, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी. इसी प्रसिद्धि के चलते उन्हें महान सिविल राईट नेता मार्टिन लूथर किंग जेआर की एक सभा में दर्शकों के समक्ष गाना गाने का मौका मिला. इस सभा में मार्टिन लूथर ने विश्व इतिहास के सबसे महानतम भाषणों में से एक भाषण ‘ मेरे पास एक सपना है’ दिया.
Bob Dylan Performing(Pic: Esquire)
जब शुरु किया सरकार का विरोध…
इसी वर्ष बॉब ने दो नए गाने ‘टॉकिंग वर्ल्ड वार थर्ड ब्लूज’ और ‘मास्टर ऑफ़ वार’ लिखे. इन दोनों गानों में उन्होंने अमेरिकी सरकार और हथियार बनाने कॉर्पोरेट समूहों के लालची गठजोड़ का पर्दाफाश किया.
इन गानों में उन्होंने बताया कि किस तरह हथियारों की बिक्री से मुनाफा कमाने के लिए हथियार बनाने वाली कम्पनियाँ देश की सुरक्षा के नाम पर सरकार की मदद से जबरदस्ती के युद्ध करवाती हैं. इन युद्धों में कम्पनी के मालिकों और संसद में बैठे नेताओं को तो कुछ नुक्सान नहीं होता, लेकिन गरीब किसानों और मजदूरों के बेटे मारे जाते हैं.
इसी के साथ उन्होंने एक और क्रांतिकारी गाना ‘दि टाइम्स दे आर चेंजिंग’ लिखा. यह गाना अमेरिका के शोषित काले लोगों के लिए लिखा गया. देखते ही देखते ये गाना पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गया. यहां तक कि यह गाना विश्व में किसी भी प्रकार का शोषण झेल रहे लोगों के प्रतिरोध का प्रतीक जैसा बन गया!
इस गाने में आशा की किरणें हैं. यह गाना कहता है कि आज जो हार रहे हैं…वे कल जीतेंगे और आज जो दुःख में रो रहे हैं, वे कल खिलखिलाकर हंसेंगे…
यही नहीं रुका सिलसिला और…
1963 के अंत तक बॉब का मन प्रतिरोध के गानों से उचटने लगा था.
इसका एक प्रमुख कारण प्रतिरोध कर रहे राजनीतिक कर्मियों और नेताओं का नकलीपन था. राष्ट्रपति जॉन ऍफ़ कैनेडी की हत्या के बाद ‘इमरजेंसी सिविल लिबर्टी कमेटी’ ने उन्हें एक अवार्ड के लिए आमंत्रित किया था.
इस समारोह में बॉब ने सज-धजकर आए राजनीतिक कर्मियों को संबोधित करते हुए कहा कि आप जिन शोषित लोगों के लिए लड़ रहे हो वे बेचारे इतने अच्छे कपडे तो नहीं पहनते हैं. इसके अलावा बॉब ने उन्हें और खरी- खोटी सुनाई.
वहां मौजूद लोगों ने भी उनका प्रतिकार किया.
इसके बाद उनका मन प्रतिरोध के गानों से बुरी तरह उचट गया. इसके बाद वे आत्मकेंद्रित गाने लिखने लगे. अब उनके गानों में प्रेम और जीवन की निर्थकता का जिक्र होने लगा. हालाँकि, उन्होंने पूरी तरह से राजनीतिक- प्रतिरोध गानों से किनारा नहीं किया.
Bob Dylan (Pic: Pitchfork)
लिखते रहे प्रतिरोध के गाने…
1965 में उन्होंने वियतनाम युद्ध पर दो नए गाने लिखे- ‘हाईवे 61 रीविजिटेड’ और ‘टोम्बस्टोन ब्लूज’. दोनों ही गाने अमेरिकी सरकार की क्रूरता पर व्यंग थे.
टोम्बस्टोन ब्लूज में तो वे सीधे अमेरिकी सेना के चीफ कमांडर लिंडन जॉनसन पर निशाना साधते हैं. इस गाने की सहायता से वे कहते हैं कि चीफ कमांडर ने अपने सैनिकों को आदेश दिया है कि वे उन सभी लोगों को मार दिया जाए जो दर्द में चीख रहे हैं, रो रहे हैं.
इन गानों के बाद भी वो ऐसे गाने लिखते रहे.
‘आई शैल बी रिलीज्ड(1967), आई पिटी दि पुअर इमिग्रेंट(1967), ‘हरीकेन(1975), ‘लाइसेंस टू किल(1983), ‘ क्लीन कट किड(1984) इत्यादि सब इसी तरह के गाने थे.
1990 में जब अमेरिका ने इराक पर हमला बोला तो बॉब ने एक बार फिर अमेरिकी सरकार के प्रतिरोध में ‘मास्टर ऑफ़ वार’ गाया. 2008 में ओबामा की जीत पर उन्होंने आशा जताई कि अब विश्व में शांति स्थापित हो सकेगी.
…और आखिर में मिला नोबल
वर्ष 2016 में जब अमेरिकी लोक संगीत के भीतर उच्च कोटि के साहित्य की रचना के लिए बॉब डिलन को नोबेल पुरूस्कार दिए जाने की घोषणा हुई.
कयास लगाए जा रहे थे कि वो यह पुरूस्कार स्वीकार नहीं करेंगे. इसका एक पक्का कारण भी था कि जिस अमेरिकी सरकार द्वारा संचालित शक्ति व्यवस्था की उन्होंने इतनी कड़ी मुखालफत की हो.
उसी के हाथों वह यह पुरूस्कार भला कैसे ले सकते हैं.
हालांकि, उन्होंने इन सभी कयासों को धता बताते हुए पुरूस्कार ग्रहण कर लिया.
Nobel Prize (Pic: Science)
अंत में हम यह कह सकते हैं कि बॉब डिलन ने भले ही एक समय के बाद सक्रिय राजनीतिक प्रतिरोध से दूरी बना ली हो, लेकिन उनके शांति और न्याय को लेकर लिखे गए गाने हमेशा शोषित लोगों का पक्ष लेते रहे.
ऐसे में कहा जा सकता है कि बॉब डिलन आज उन लोगों के प्रेरणास्त्रोत हैं, जो पूरे विश्व में शांति की स्थापना चाहते हैं.
आप क्या कहते हैं?
Web Title: Bob Dylan: A Singer Who Got Nobel Prize Even After Singing Against America, Hindi Article
Feature Image Credit: Wall Street Journal