भारत में अायुर्वेद की परंपरा हजारों साल पहले ऋषि-मुनियों के समय से चली आ रही है.
आपने रामायण का वह किस्सा तो पढ़ा या सुना ही होगा, जिसमें राम के प्रिय भक्त हनुमान लक्ष्मण को बचाने के लिए संजीवनी बूटी की खोज में जाते हैं और कन्फ्यूजन की स्थिति में समूचा महेंद्र पर्वत ही उठा लाते हैं. बाद में इसकी मदद से ही लक्ष्मण जी को नया जीवन मिलता है.
बहरहाल, आज के दौर में विज्ञान और तकनीकी विकास के चलते लगभग हर मर्ज की दवा बना लेने का दावा किया जाता है. बावजूद इसके भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगबाग कई ऐसी बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं, जिनके इलाज के लिए हमें आयुर्वेद के ज्ञान की जरूरत पड़ती है.
ऐसे में पिछले सैकड़ों सालों से बैद्यनाथ जैसी कंपनियां भारत के साथ-साथ विदेशों में भी आयुर्वेद को बढ़ावा देने के प्रति समर्पित हैं.
दिलचस्प बात यह है कि इस कंपनी की जड़ें 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ी रही है. कहते हैं कि इसने अंग्रेजों के खिलाफ स्वदेशी मुहिम को जारी रखा और राष्ट्र को प्राचीन परंपरा से बांधने का काम किया.
अब चूंकि यह कंपनी सैकड़ों साल पुरानी हो चुकी है, इसलिए इसके सफर को जानना दिलचस्प रहेगा –
‘भारत छोड़ो आंदोलन’ से मिली रफ्तार
अंग्रेजों के राज में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव था.
इसका फायदा उठाकर उन्होंने तेजी से विदेशी दवाईयों को भारत में बेचना शुरू कर दिया था. लोगों के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था, इसलिए मजबूरन लोग उन दवाईयों को खरीदते थे.
ऐसे में केवल आयुर्वेद ही था, जिसके दम पर अंग्रेजी दवाईयों का बहिष्कार किया जा सकता था. शायद यही कारण रहा कि पंडित राम दयाल जोशी ने आगे बढ़कर इसका मोर्चा संभाला. उन्होंने स्वदेशी और आयुर्वेद के जरिए अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों और वस्तुओं का बहिष्कार करना शुरू कर दिया.
इसी कड़ी में उन्होंने 1918 में आयुर्वेद को समर्पित श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद नाम की एक कंपनी बना डाली. इसमें वैद्य राम नारायण शर्मा उनके सहयोगी बने. इसका सबसे पहला कार्यालय कोलकाता में बनाया गया. इसके बाद यह कंपनी लगातार स्वदेशी को बढ़ावा देने में सक्रिय रही.
इसी क्रम में एक दौर ऐसा भी आया, जब भारत में अंग्रेजों के खिलाफ ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की नींव पड़ी. जल्दी ही इसको हवा मिली तो 1942 में इसने बड़ा रूप ले लिया. इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य बिट्रिश साम्राज्य को समाप्त करना था. चूंकि यह आंदोलन देशभर में चल रहा था, इसलिए वैद्यनाश का इसमें सक्रिय होना लाजमी था.
‘भारत छोड़ो आंदोलन’ वैद्यनाथ के लिए उस समय ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया, जब उसके द्वारा दिया गया नारा ‘देश की मिट्टी, देश की हवा, देश का पानी, देश की दवा’ को लोगों ने अपनी आवाज दे दी.
कहते हैं कि इस एक नारे ने वैद्यनाथ के विस्तार को नई रफ्तार दी और वह तेजी से अपना बाजार पकड़ती चली गई.
Quit India Campaign, 1942 (Pic: marxistreview)
कलकत्ता में खुला पहला कारखाना
बैद्यनाथ आयुर्वेद का पहला कारखाना कलकत्ता में खोला गया. दिलचस्प बात तो यह थी कि उस समय कलकत्ता आयुर्वेद का बड़ा बाजार नहीं था, बावजूद इसके इसकी शुरूआत वहां से हुई. यह कदम लोगों के लिए चौकाने वाला था, किन्तु पंडित राम दयाल जोशी को भरोसा था कि जगह कोई भी हो लेकिन बैद्यनाथ विस्तार करके रहेगी.
हुआ भी कुछ ऐसा ही!
धीरे-धीरे कंपनी ने भारत के कई अन्य राज्यों में ब्रिटिश सरकार और उसकी विदेशी वस्तुओं के खिलाफ अपना झंडा बुलंद करते हुए, खुद को स्थापित किया.
1930 में उन्होंने मलेरिया के उपचार के लिए अपना पहला सीरप बनाकर क्रांति ला दी. देखते ही देखते आयुर्वेद और स्वदेशी की इस क्रांति ने भारतीयों के बीच लोकप्रियता हासिल कर ली. अगली कड़ी में च्यवनप्राश को बनाकर बैद्यनाथ ने भारत के घर-घर में अपनी जगह बना ली.
आपको जानकर शायद हैरानी हो लेकिन कलकत्ता में बनाया गया बैद्यनाथ का यह कारखाना भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कई स्वतंत्रता सैनानियों के लिए सुरक्षित जगह भी बना. साथ ही ब्रिटिश भारत में अपने उत्पादों को स्वदेशी से जोड़कर लोगों में एकता और क्रांति का संचार करने में भी मददगार रहा.
महत्वपूर्ण बात यह है कि आज सैकड़ों साल बाद भी यह ठीक उसी प्रकार से अपने उत्पादों से भारत को उसकी प्राचीन संस्कृति और वेद पुराणों से जोड़ने के कार्य में अग्रसर है.
35 से ज्यादा देशों में डंका
आज बैद्यनाथ केवल आयुर्वेदिक दवाओं का ही निर्माण नहीं करती, बल्कि लोगों में आयुर्वेदिक व वैदिक ज्ञान, अनुसंधान के द्वारा आयुर्वेद के प्रति जगरूकता और शिक्षा को बढ़ावा भी देती है.
शायद यही कारण है कि वैद्यनाथ अब लगभग पूरी दुनिया में अपना विस्तार कर चुकी है. अमेरिका जैसे विकसित देश में इसके करीब 33 डीलर हैं. वहाँ के डलास में वैद्यनाथ ने अपना मुख्यालय तक बना रखा है. वहीं, दूसरी तरफ इटली, जर्मनी व बेल्जियम समेत 35 से ज्यादा देशों में इसके उत्पाद पसंद किए जाते हैं. खासतौर पर इसकी आयुर्वेद पारंपरिक हर्बल दवाईयों, त्वचा, हेयर और पाचन के उत्पादों की मांग ज्यादा है.
कंपनी का दावा है कि वह आयुर्वेद में 700 से ज्यादा उत्पाद बनाती है और इसके पास भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त रिसर्च लैब है, जिसमें 50 से ज्यादा आयुर्वेदिक डॉक्टर कॉर्य करते हैं. आयुर्वेद में वैद्यनाथ कितनी विश्वसनीय है, इसको इसी बात से समझा जा सकता है कि यहाँ से आयुर्वेद पर छपने वाली पुस्तक आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों के पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती है.
Baidyanath products (Pic: Baidyanath Ayurved/Youtube)
डिजिटलाइजेशन के दौर में…
अब चूंकि समूचा विश्व डिजिटलाइजेशन की ओर बढ़ रहा है, खासकर भारत.
ऐसे में किसी भी कंपनी की डिजिटल उपस्थिति मायने रखती है. बैद्यनाथ भी शायद इस बात को समझती है. इसी कारण बैद्यनाथ ग्रुप का ई-कॉमर्स बैंचर ऑलआयुर्वेदा डॉट कॉम द्वारा भारत के कोने-कोने में अपने उत्पादों को पहुंचा रहा है.
भले ही कहा जाता हो कि आज के इस आधुनिक दौर में आयुर्वेद कहीं नहीं टिकता, किन्तु अमेरिका जैसे देशों में आयुर्वेदिक उत्पादों की बढ़ती मांग इस ओर इशारा करती है कि दौर कोई भी रहा हो आयुर्वेद का अपना बाजार रहा है और रहेगा.
ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आयुर्वेद आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना कि आज से 5000 साल पहले हुआ करता था. 100 साल से भी ज्यादा पुरानी हो चुकी बैद्यनाथ इसका बड़ा उदाहरण है.
उम्मीद है आगे आने वाले समय में यह कंपनी इसी तरह अपने अत्याधुनिक संसाधनों और रिसर्च में हुई प्रगति के बल पर भारत की प्राचीन आयुर्वेद संस्कृति को यूं ही उन्नत करती रहेगी.
Shripad Naik (Pic: Kalamkranti)
इसी क्रम में भारत सरकार की भी सराहना की जानी चाहिए कि उसने आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए नवंबर 2014 में आयुष नाम से एक अलग मंत्रालय शुरू किया.
आपने भी तो बैद्यनाथ का कोई न कोई प्रोडक्ट इस्तेमाल किया होगा, फिर लिख डालिए कमेन्ट-बॉक्स में अपनी राय!
Web Title: Brief History of Baidyanath, Hindi Article
Feature Image Credit: YourStory