चंद्रास्वामी, भारत में पैदा हुए एक ऐसे तांत्रिक, जिनका संबंध बड़ी-बड़ी राजनीतिक हस्तियों से रहा. फिर चाहे वह नरसिम्हा राव रहे हों , या फिर राजीव गांधी!
इंदिरा गांधी के वह गुरु बताए जाते हैं. इंदिरा ने उन्हें आश्रम खोलने के लिए जमीन तक दी थी. तो चंद्रशेखर राव के साथ उऩकी नजदीकियां किसी से छिपी हुई नहीं है. भारत ही नहीं विदेशी नेता भी उनके मुरीद थे. इराक के नेता सद्दाम हुसैन, पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्ग्रेट थ्रैचर, बहरीन के शेख इसा बिन सलमान और ब्रुनेई के सुल्तान के साथ चंद्रास्वामी के मधुर रिश्ते थे!
किन्तु, क्या आप जानते हैं कि इससे अलग उनके संबध अंडरवर्ल्ड डॉन ‘दाऊद इब्राहिम’ के साथ-साथ कई दूसरे कुख्यातों से भी रहे.
ऐसे में इनकी कहानी को जानना दिलचस्प हो जाता है-
जैन परिवार से थे चंद्रास्वामी!
कुछ लोग चंद्रास्वामी को गुजरात का बताते हैं , जबकि उनका जन्म राजस्थान के अलवर में 1948 में हुआ. असल में उनका परिवार पहले गुजरात में रहता था. बाद में वह परिवार के साथ चंद्रास्वामी के जन्म से पहले राजस्थान आ गए थे.
चंद्रास्वामी के पिता धर्मचंद जैन के व्यवसाय की बात करें तो कहीं सटीक जानकारी नहीं मिलती, लेकिन कहा जाता है कि वह ब्याज पर पैसे देने का काम करते थे.
चूंकि, बचपन से चंद्रास्वामी का मन तंत्र साधना पर आ गया था, इसलिए उन्होंने उसको ही वक्त देना शुरु कर दिया.
नतीजा यह रहा कि बहुत कम उम्र में ही वह तांत्रिक कहलाने लगे. सफर आगे बढ़ा तो वह 23 की उम्र में बनारस पहुंच गए, वहां उन्होंने तंत्र-मंत्र के ज्ञान को आगे बढ़ाया. आगे के कुछ साल वह साधना से जुड़कर कर्मकाण्डों में लिप्त नज़र आए!
आगे समय के साथ उनका प्रभाव बढ़ा तो वह एक नामी भविष्यवक्ता के रूप में स्थापित हुए. यही कारण रहा कि बड़े से बड़े राजनेता ने उनके सामने माथा टेका!
हालांकि, एक मत यह भी है कि उन्हें तंत्र-मंत्र का एबीसीडी भी नहीं आता था!
Chandraswami (Pic: Timesdelhi.com)
‘दाऊद’ के साथ कनेक्शन
23 सितंबर 1995 को सीबीआई ने चंद्रास्वामी खिलाफ एक मामला दर्ज किया, जिसके बाद कुछ ऐसे तथ्य सामने आए जो चौकाने वाले थे. इस मामले के तहत चंद्रास्वामी के ऊपर दाऊद इब्राहिम के साथ कनेक्शन की बात बाहर आई.
दिलचस्प बात तो यह थी कि इसका खुलासा उनके ही करीबी बबलू ने किया था. सीबीआई की पूछताछ के दौरान उसने बताया था कि दाऊद ने चंद्रास्वामी को तीन भागों में एक बड़ी रकम दी थी, जिसे हवाला के रास्ते स्वामी ने खपाया था.
बबलू की माने तो दुबई में सन 1989 में दाऊद और अदनान खशोगी के बीच हथियारों की डील में भी चंद्रास्वामी ने बिचौलिए का रोल निभाया था.
बबलू ने आगे बताया कि चंद्रास्वामी ने गृह मंत्रलाय में अपनी पहुंच के चलते दाऊद के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों को पैसा लेकर कमजोर करवा दिया.
बबलू के आरोप कितने सही!
बबलू के ये आरोप शुरू में कमजोर लगे, किन्तु अगली कड़ी में जब हवाला कारोबारी उस्मान घानी के बयान दर्ज हुए, तो बबलू के आरोपों को बल मिलता दिखा. घानी को गुजरात पुलिस ने ‘एन्टी- टेररिस्ट’ आपरेशन के तहत गिरफ्तार किया था. उसने चंद्रास्वामी के साथ अपने संबंधों को स्वीकार किया.
साथ ही बताया कि दाऊद के सहयोगी बिपिन दीवान ने चंद्रास्वामी की मुलाकात दाऊद से करवाई थी. गौर करने वाली बात तो यह थी कि जिस बिपिन का जिक्र घानी ने किया था, उसका नाम बबलू ने भी लिया था.
हालांकि, ये सब बयान आरोप सिद्ध होने के लिए काफी नहीं थे!
दूसरी तरफ चंद्रास्वामी भी इन आरोपों को सिरे से खारिज करते रहे. खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए उन्होंने अपना पासपोर्ट भी दिखाया. जिसमें यह बताने की कोशिश की गई थी कि बबलू जिस समय दाऊद से मुलाकात की बात कर रहा था, चंद्रास्वामी उस समय दुबई में थे ही नहीं.
Dawood Ibrahim and Chandraswamy (Pic: ytimg/livenews24)
अपहरण व हत्या का मास्टरमाइंड!
दाउद के साथ संबंधों के अलावा बबलू के बयान कुछ और भी बयां कर रहे थे, जिन पर शुरुआत में किसी का ध्यान नहीं गया. बाद में तस्वीर साफ हुई तो चंद्रास्वामी पर शिकंजा कसना शुरु हुआ और उन पर कुछ नए मामले दर्ज किए गए.
बबलू के अनुसार चंद्रास्वामी के ही कहने पर उसने ‘जनाधार’ पत्रिका के प्रकाशक राजेन्द्र जैन की कार में बम लगाया और दो साधुओं, नारायण और नित्यानंद मुनि, का अपहरण किया था. बाद में चंद्रास्वामी ने सीबीआई को बताया कि राजेन्द्र जैन उन्हें ब्लैकमेल कर रहा था. इस बयान के बाद ऐसा लगा कि अब वे जेल भेज ही दिए जाएंगे, लेकिन एक बार फिर से सबूतों के अभाव में वे बच निकले.
इतने सारे बयान देने के बाद बबलू स्वघोषित अपराधी सिद्ध हो चुका था. ऐसे मे अब चंद्रास्वामी पर एक नया मामला दायर किया गया. उनके ऊपर आरोप लगा कि उन्होंने एक स्वघोषित अपराधी को अपने आश्रम में शरण दी, लेकिन वह इससे यह कहकर बच गए कि उन्हें नहीं पता था कि बबलू एक स्वघोषित अपराधी है.
उन्होंने यह बताया कि बबलू उनके आश्रम में केवल दस महीने रहा.
जबकि, उनके पड़ोसियों द्वारा जमा किए गए एफिडेविट में लिखा था कि वह दो साल तक उनके पास रहा.
राजीव गांधी की हत्या में हाथ!
1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस ने आरोप लगाया कि चंद्रास्वामी ने अदनान खशोगी की मदद से लिट्टे को हथियार पहुंचाए हैं.
बताते चलें कि लिट्टे पर राजीव गांधी की हत्या का आरोप लगा था!
चंद्रास्वामी के खिलाफ ईडी और प्रवर्तन निदेशालय ने भी जांच की.
इनकम टैक्स ने उनके आश्रम में छापा मारा. इस दौरान उनके विदेश जाने पर रोक लगा दी गई, जोकि 2009 में हटी. छापे में अदनान खशोगी को एक करोड़ रुपए देने के सबूत मिले.
इनके ऊपर लंदन में अचार का कारोबार करने वाले लखूभाई पाठक से एक लाख डॉलर की धोखाधड़ी के साथ इनके ऊपर विदेशी मुद्रा अधिनियम कानून के उल्लंघन का आरोप लगते रहे.
Rajeev Gandhee (Pic: TopYaps)
…और आखिर जाना पड़ा जेल
ऐसे में यह कहा जा सकता है कि चंद्रास्वामी तंत्र से अलग जुर्म की दुनिया के एक बड़े फिक्सर के रूप से दुनिया के सामने उभरे. जिस तरह के उन पर आरोप थे, उन्हें बहुत पहले ही जेल चले जाना चाहिए था, किन्तु अपने रसूख और राजनीतिक संबंधों के चलते वह बचते रहे और अपने रास्ते पर बढ़ते रहे.
बहरहाल, किसी का कद कितना बड़ा ही क्यों न हो. एक न एक दिन वह काननू की गिरफ्त में जरूर आता है. चंद्रास्वामी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ. 1996 का वक्त रहा होगा, जब उनके जीवन की उल्टी गिनती शुरु हुई.
एक के बाद एक उन पर मुकदमे चलने शुरू हो गए तो उन्हें तिहाड़ जेल जाना पड़ गया. यही नहीं 2011 में उनके ऊपर 9 करोड़ का जुर्माना भी लगाया.
बावजूद इसके उनके जीवन से जुड़े कई ऐसे पहलू रहे, जो उनके साथ उस वक्त चले गए, जब 69 वर्ष की उम्र में उन्होंने हमेशा के लिए अपनी आंखें मूंद लीं.
Web Title: Interesting Story of Chandraswami, Hindi Article
Feature Image Credit: vimarisanam