कहते हैं कि अपने भविष्य को अच्छा बनाने के लिए आपको अपने इतिहास की जानकारी होनी चाहिए. इतिहास ही तो है, जो आपको बताता है कि बीते हुए समय में क्या अच्छा हुआ है और क्या बुरा!
चूंकि, आप इतिहास की अच्छी बातों को अपना सकते हैं, और बुरी बातों को त्याग सकते हैं, इसलिए इतिहास आपके मार्गदर्शक के रूप में काम करता है.
तो आईए 01 जून के नाम दर्ज ऐतिहासिक घटनाओं को जानते हैं-
कोल्ड हार्बर की ऐतिहासिक लड़ाई
01 जून के ही दिन 1864 में अमेरिकी गृहयुद्ध की सबसे खूनी लड़ाई लड़ी गई थी, जोकि रिचमंड, वर्जीनिया में लड़ी गई. इसके साथ ही यह लेफ्टिनेट जनरल उलिसिस एस ग्रांट की अंतिम लड़ाई साबित हुई. 13 दिन तक चली इस लड़ाई में 18,000 सैनिक मारे गए थे.
बताते चलें कि यह गृहयुद्ध अमेरिका के उत्तरी और दक्षिणी प्रान्तों के बीच लड़ा गया था.
उत्तरी प्रान्त अमेरिका से गुलामी प्रथा हटाकर, इसे एक संघीय देश के रूप में स्थापित करना चाहता था, जबकि दक्षिणी प्रान्त खुद को अमेरिका से अलग हटाकर एक ऐसे देश की स्थापना करना चाहता था, जहाँ गोरे लोग कालों को अपना गुलाम बनाए रख सकें.
इस लड़ाई में उत्तरी प्रान्त को बहुत बुरी हार का सामना करना पड़ा था.
उसने अपने करीब 13,000 सिपाहियों को को खो दिया. हालाँकि, गृहयुद्ध के अंत में जीत उत्तरी प्रान्त की ही हुई थी.
भयंकर विस्फोट ने ली 36 जानें
01 जून के ही दिन 1965 में जापान के फुकोका के निकट स्थित यमानो कोयला खान में भयंकर विस्फोट हो गया. इस विस्फोट में 236 मजदूरों की जान चली गई. रिपोर्ट्स का कहना था कि यदि मूलभूत सुरक्षा कदम उठाए गए होते, तो इस विस्फोट से बचा जा सकता था.
इस घटना के 6 साल पहले इसी खान में एक छोटा सा धमाका हुआ था. इस धमाके में 7 मजदूर मारे गए थे और 24 के करीब बुरी तरह से घायल हो गए थे. इसके बावजूद भी सुरक्षा को लेकर कोई खास इन्तेजाम आने वाले समय में नहीं किया गया.
दरअसल 1 जून, 1959 के दिन 559 मजदूर खान में उतरे थे. उनके पास मीथेन गैस और हवा में जहरीले रसायन मापने वाले यंत्र नहीं थे. वे खान के भीतर चले ही जा रहे थे, तभी किसी कारणवश विस्फोट हो गया. विस्फोट होते ही पूरी खान भरभराकर गिर गई.
इसमें करीब 279 मजदूर उसमें दब गए.
37 मजदूर, जो अपेक्षाकृत बाकियों से ऊपर थे, किसी तरह बाहर निकल आए. बाकी के मजदूरों का कोई पता नहीं चला.
हिटलर की क्रूरता का हुआ खुलासा
01 जून के ही दिन 1942 में वर्साव, जर्मनी के एक भूमिगत अखबार 'लिबर्टी ब्रिगेड' ने चौकाने वाली खबर दी. यह खबर हिटलर की नृशंसता से संबंधित थी. इस अखबार ने बताया कि हिटलर के आदेश के तहत यहूदियों को ‘डेथ कैम्प्स’ में बड़ी बेदर्दी से मारा जा रहा है.
इस अखबार ने पोलैंड में बनाए गए, एक डेथ कैंप के बारे में विस्त्तर में रिपोर्ट छापी.
इसने बताया कि पोलैंड स्थित यह डेथ कैंप करीब एक साल से काम कर रहा है और इसमें हर रोज करीब 1,000 यहूदियों को मारा जा रहा है. इस अखबार ने अनुमान लगाया कि अब तक इस कैंप में 360,000 यहूदियों को मारा जा चुका है.
बताते चलें कि हिटलर रक्त की शुद्धता के सिद्धांत में विश्वास रखता था. उसका कहना था कि यहूदी अशुद्ध हैं और इनके कारण ही आर्य जाति आगे नहीं बढ़ पा रही है, इसलिए उसने इन्हें मारने का आदेश दिया था.
ईस्ट इंडिया कंपनी हुई बंद
01 जून के ही दिन 1874 में एक संसदीय एक्ट पारित करके ईस्ट इंडिया कंपनी को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया था. इसी के साथ भारत में अधिकारिक रूप से ‘ब्रिटिश राज’ का सूत्रपात हो गया.
ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में हुई थी. इसका लक्ष्य पूर्व में स्थित देशों के साथ व्यापार करके मुनाफा कमाना था. इस कंपनी में ब्रिटेन के अमीर व्यापारी और राजदरबार के सामंत शामिल थे.
रानी एलिज़ाबेथ प्रथम से इनके बहुत निकट संबंध थे, इसलिए इन्होंने पूर्व के साथ व्यापार करने का एकाधिकार हासिल कर लिया था. व्यापर करके ही इन्होंने एशिया और अफ्रीका के कई देशों को अपना गुलाम बना लिया. भारत भी उनमें से एक था.
भारत में शसन स्थापित करने के बाद कंपनी का शोषण लगातार बढ़ता जा रहा था.
यह कंपनी किसानों का खून चूस रही थी. वहीं कामगारों और कारीगरों का भी जमकर शोषण कर रही थी. कंपनी की सेना में भरती हुए भारतीय सिपाही भी इससे खुश नहीं थे. ऐसे में 1857 में कंपनी के खिलाफ विद्रोह हो जाता है.
इस विद्रोह को जैसे-तैसे दबा दिया जात है, लेकिन कंपनी के अस्तित्व के ऊपर खतरे के बदल मंडराने लगते हैं.
ब्रिटेन के शाही परिवार की नजर में कंपनी की शाख गिर जाती है, इसलिए 1858 के इंडिया एक्ट के तहत कंपनी के सारे अधिकार शाही परिवार के हाथों में चले जाते हैं. अंततः कंपनी को 1 जून 1874 में हमेशा के लिए बंद कर दिया गया.
स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है
आज ही के दिन 1916 में अहमदनगर में बाल गंगाधर तिलक ने एक नारा दिया, जो देखते ही देखते हर देशप्रेमी की जबान पर चढ़ गया. उन्होंने कहा था कि ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूंगा’. तिलक तब कांग्रेस के गरमपंथी दल के प्रमुख नेता थे.
इस नारे के बाद गोरी सरकार ने उनके ऊपर देशद्रोह का इल्जाम लगा दिया.
किन्तु, तिलक बिल्कुल भी नहीं घबराए. उनका मुकदमा तब देश के प्रतिष्ठित वकील मोहमं अली जिन्ना ने लड़ा. उस समय जिन्ना न केवल बहुत बड़े राष्ट्रवादी थे, बल्कि उच्च प्रगतिशील विचारों के संवाहक भी थे. जिन्ना इस समय कांग्रेस के नरमपंथी दल में शामिल थे.
अंग्रेजी सरकार तिलक को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ना चाहती थी.
पर जिन्ना के तर्कों के सामने अंग्रेजी कानून असहाय नज़र आया. इस तरह तिलक अदालत में बरी हो गए.
तो ये थे 01 जून से जुड़ी कुछ अहम ऐतिहासिक घटनाएं!
अगर आपको भी इस तारीख से संबंधित कोई विशेष घटना याद है, तो कृपया हमें कमेंट बॉक्स में बताएं.
Web Title: Day In History 01 June, Hindi Article
Feature Representative Image Credit: The National