पृथ्वी पर अनन्य जीव हैं. सभी की अलग-अलग खूबियां भी हैं. कोई पेड़ पर उल्टा चढ़ सकता है, तो कोई बिना डरे पूरे जंगल पर राज करता है. कुल मिलाकर संवेदनशीलता सभी जीव-जंतुओं में होती है. उन्हीं में से एक मानव भी है. वह बात और है कि इंसान इन सभी से एकदम जुदा है!
मानव ने अपने दिमाग का समय के अनुसार विकास किया है. उसने जानवरों और जीवों को समझा है. इंसान के पास इन सभी से ज्यादा ‘विकसित मस्तिष्क’ है, जिसकी वजह से अन्य जीव जंतुओं से अलग सोचने और निर्णय लेने की क्षमता हमारे पास ज्यादा है.
एक सिंद्धांत तो यहां तक कहता है कि मनुष्य अपने दिमाग का केवल 10 प्रतिशत हिस्सा ही प्रयोग कर पाता है. ऐसे में उस सिद्धांत को जानना दिलचस्प हो जाता है कि वह सिद्धांत क्या है और कितना सटीक है, आईए जानते हैं–
19वीं शताब्दी में आया सिद्धांत
कितनी हैरानी की बात है कि मनुष्य अपने मस्तिष्क का केवल 10 प्रतिशत ही प्रयोग कर पाता है. यानी 90 प्रतिशत मस्तिष्क निष्क्रिय रहता है! यह सिद्धांत पहली बार तब सामने आया, जब अमेरिकी मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स ने अपने बेटे का आईक्यू परीक्षण किया.
उसके बाद कहा कि मनुष्य अपने दिमाग का पूरा इस्तेमाल नहीं करता.
1907 में विज्ञान पत्रिका में एक लेख प्रकाशित हुआ, जिसे विलियम जेम्स ने ही लिखा था.
उन्होंने इसमें कहा कि “हम अपने मस्तिष्क में उपस्थित मानसिक और भौतिक संसाधनों का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही उपयोग करते हैं, यानी मनुष्य अपने मस्तिष्क का केवल 10 प्रतिशत ही प्रयोग करता है”
यह सिद्धांत आगे भी चला और इस आंकड़े को डेल कार्नेगी ने 1936 में अपनी किताब ‘हाउ टू विन फ्रेंड्स एंड इन्फ्लुएंंस पीपल’ में भी लिखा और इसे लोग मानने भी लगे.
कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने दिमाग का 10 प्रतिशत से अधिक प्रयोग किया था.
Human Brains. (Pic: Huffington Post)
कितना मिथक, कितना सच!
यह सिद्धांत मीडिया, पत्रिकाओं और अन्य माध्यमों से पूरे संसार में फैल गया. इतना ही नहीं, यह सिद्धांत लुसी, लिमिटल्स, फ्लाइट टू द नेविगेटर जैसी हॉलीवुड फिल्मों में भी खूब दिखाया गया और लोगों का इस सिद्धांत पर विश्वास बढ़ता गया.
लोगों ने इसे झट से स्वीकार भी कर लिया.
बहरहाल, इस सिद्धांत से धीरे-धीरे पर्दा उठने लगा है. आइंस्टीन की प्रयोगशाला में काम कर चुके संज्ञानात्मक तंत्रिका वैज्ञानिक डेला साला ने अल्बर्ट आइंस्टीन वाली बात को एक सिरे से नकार दिया और कहा कि ऐसा कोई रिकॉर्ड ही नहीं है, जो इस सिद्धांत को सही ठहरा सके.
इस सिद्धांत को जांचने के लिए 2012 में ब्रिटेन और नीदरलैंड के स्कूली शिक्षकों पर एक सर्वेक्षण किया गया था. उस सर्वेक्षण में पाया गया कि ब्रिटेन में 48 प्रतिशत और नीदरलैंड में 46 प्रतिशत लोग इस सिद्धांत को सही मानते हैं और वहीं, कुछ साल बाद ‘माइकल जे फॉक्स फाउंडेशन फॉर पार्किंसंस रिसर्च’ द्वारा अमेरिका में सर्वेक्षण किया गया.
इसके तहत 65 प्रतिशत लोग इस सिद्धांत को सही मानते हैं. हालांकि बाकी लोगों ने इसे मनगढंत कहानी बताया. यही कारण रहा कि सर्वेक्षण और सच को जानने के बाद यह सिद्धांत एक मिथक बन कर रह गया है!
Albert Einstein Brain. (Pic: Phys)
सिद्धांत से उपजी गलतफहमी
यदि इस सिद्धांत को मान लिया जाए कि मनुष्य केवल अपने मस्तिष्क का 10 प्रतिशत ही प्रयोग करता है, तो शेष 90 प्रतिशत भाग का क्या करता होगा..?
बहरहाल, जब इस सिद्धांत के सच को जानने का प्रयास किया गया, तो एक घटना सामने आती है जो इस सिद्धांत की गलतफहमी के लिए जिम्मेदार हैं.
हमारे मस्तिष्क में 90 प्रतिशत वह कोशिकाएं हैं, जिन्हें ग्लियल कोशिका कहा जाता है. ये सफेद रंग की होती हैं, जो अन्य 10 प्रतिशत कोशिकाओं को जिन्हें ‘न्यूरॉन्स’ कहते हैं, उन्हें पोषण प्रदान करती हैं. इस बात का लोगों ने दूसरा अर्थ निकाल लिया.
लोगों ने यह मान लिया कि मनुष्य केवल 10 प्रतिशत ही मस्तिष्क का प्रयोग करता है. हम न्यूरॉन्स कोशिका की मदद से ही सोचते और निर्णय लेते जरूर हैं, और शेष भाग तो निष्क्रिय है!
लेकिन अध्ययन के बाद पता चला कि हम मस्तिष्क के लगभग सभी हिस्से का प्रयोग करते हैं.
Human Brain Cell Map. (Pic: UCSD)
100 प्रतिशत मस्तिष्क का प्रयोग
आखिरकार इस मिथक से पर्दा उठने लगा और लोगों की मनगढंत भ्रांतियां दूर होने लगीं.
अमेरिकी वैज्ञानिक और न्यूरोलॉजिस्ट बैरी गॉर्डन ने एक इंटरव्यू में कहा कि “10 प्रतिशत दिमाग का उपयोग सिर्फ एक मिथक है, जबकि मनुष्य के मस्तिष्क का लगभग पूरा हिस्सा हमेशा सक्रिय रहता है.”
मानव न्यूरोसाइंस की मैगजीन फ्रंटियर में एक अध्ययन को प्रकाशित किया गया, जिसने मस्तिष्क के 10 प्रतिशत हिस्से के इस्तेमाल वाले मिथक को खारिज कर दिया.
अध्ययन के अनुसार, एक सामान्य मस्तिष्क में ईमेजिंग तकनीक होती है. जिसे ‘कार्यात्मक चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग’ कहा जाता है, जब कोई व्यक्ति अलग-अलग गतिविधि करता है, तो उसे माप सकता है.
इस तरह के कई उदाहरण प्रस्तुत करके शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि हमारा लगभग पूरा मस्तिष्क प्रयोग होता है. भले ही कोई व्यक्ति सरल कार्य कर रहा हो. यहां तक कि जब कोई व्यक्ति आराम कर रहा है या सो रहा होता है, तो भी लगभग पूरा मस्तिष्क सक्रिय रहता है.
कुल मिलाकर सच यह है कि हमारा मस्तिष्क 100 प्रतिशत काम करता है, जिसमें से 90 प्रतिशत ग्लियल कोशिकाएं शेष 10 प्रतिशत न्यूरॉन्स कोशिका को शक्ति प्रदान करती हैं.
Human Brain Use. (Pic: Sensual Thinking)
मानव मस्तिष्क में बदलाव
आप अभी भी यही सोच रहे होंगे कि ये मिथक अभी तक क्यों बना हुआ है, और लोग ऐसा क्यों सोचते हैं कि इंसान केवल 10 प्रतिशत ही दिमाग इस्तेमाल कर पाता है.
बहरहाल सच यह है कि 10 प्रतिशत हिस्से के प्रयोग वाला मिथक आकर्षक लगता है, क्योंकि कुछ लोग इसे मानव क्षमता के अनुरूप देखते हैं. लोगों का मानना है कि हम बहुत कुछ सीख सकते हैं जैसे भिन्न-भिन्न भाषाएं संगीत वाद्ययंत्र, खेल और भी बहुत कुछ, लेकिन हम में हर कोई ऐसा नहीं कर पाता.
ऐसे में दिमाग में आता है कि मस्तिष्क का पूरा हिस्सा प्रयोग न होने की वजह से ही ऐसा हुआ है, लेकिन सच यह है कि जितनी ज्यादा प्रैक्टिस की जाएगी, उतना ही हमारा दिमाग उस चीज को पढ़ने और समझने का आदी हो पाएगा, और उसकी सक्रियता बढ़ेगी.
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के सह निदेशक मार्टा लहर का मानना है कि हजारों साल पहले के पूर्वजों की तुलना में आज का मानव मस्तिष्क दस प्रतिशत छोटा हो गया है.
आज से करीब दो लाख वर्ष पूर्व जो मानव ‘होमो सेपियन‘ थे, उनके दिमाग का वॉल्यूम 1500 क्यूबिक सेंटीमीटर हुआ करता था, जबकि अब यह घटकर 1350 क्यूबिक सेंटीमीटर ही रह गया है.
Boys are Busy in Mobile. (Pic: mariborinfo)
वर्तमान समय में मनुष्य को आधुनिक उपकरणों की मदद लेने की लत लग गई है. उसे ज्यादा चीजों को याद रखने के लिए अपने दिमाग पर जोर देना नहीं पड़ता, क्योंकि उसके पास आज गूगल है. इस कारण वो अपने मस्तिष्क का कम से कम प्रयोग कर रहा है.
तकनीक के उपयोग और उस पर अधिक निर्भरता के दौर में ये चिंता जायज है कि लोग डिजिटल प्रौद्योगिकी पर भरोसा करके मूलभूत जानकारियों को भी याद रखना बंद कर देंगे.
Web Title: Do Humans Use Only 10 Percent of Their Brain?, Hindi Article
Feature Image Credit Representative: Mateusz Wieczorek