19 जून साल 1981 की दोपहर कोलकाता के साउथर्न एवेन्यू की एक बिल्डिंग की पांचवीं मंजिल के फ्लैट से 50 वर्षीय एक शख्स की फंदे से झूलती लाश बरामद होती है.
लाश के पास ही एक सुसाइड नोट भी मिलता है, जिसमें लिखा था “मैं हर रोज इंतजार नहीं कर सकता की हार्ट अटैक आए और मैं मर जाऊं.”
सुसाइड करने वाला शख्स कोई और नहीं बल्कि डॉ सुभाष मुखोपाध्याय थे. डॉ सुभाष मुखोपाध्याय वही डॉक्टर थे, जिन्होंने भारत को टेस्ट ट्यूब बेबी की सौगात दी थी.
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर डॉ मुखोपाध्याय के साथ ऐसा क्या हुआ था, जो उन्हें खुदकशी का रास्ता अख्तियार करना पड़ा?
तो चलिए जानते हैं की आखिर क्या हुआ था उनके साथ ऐसा की उन्होंने खुदखुशी की–
पिता की राह पर चलकर बने डॉक्टर…
भारत में चिकित्सा के क्षेत्र में पश्चिमी घुसपैठ अंग्रेजों के आगमन के साथ ही शुरू हो चुकी थी. शुरू में पश्चिमी चिकित्सा व्यवस्था का फायदा अंग्रेजों व अंग्रेजी हुकूमत के लिए काम करने वाले भारतीयों को ही मिला करता था. बाद में इसका दायरा आम भारतीयों तक बढ़ाया गया. कई अस्पताल खोले गए और कॉलेजों में चिकित्सा की पढ़ाई शुरू की गई.
बीसवीं शताब्दी तक पश्चिमी चिकित्सा व्यवस्था ने भारत में अपनी मुकम्मल जगह बना ली थी. 20वीं शताब्दी के तीसरे दशक में यानी 16 जनवरी 1931 को बिहार के हजारीबाग में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में सुभाष मुखोपाध्याय का जन्म होता है.
उनके पिता डॉक्टर थे, इसलिए उन्होंने भी इसी क्षेत्र में करियर बनाने का फैसला किया. कहते हैं कि उन दिनों मेडिकल की पढ़ाई के लिए पूर्वी भारत में कोलकाता सबसे मशहूर था. सुभाष बंगाली थे, लिहाजा उनके लिए कोलकाता ही सबसे बढ़िया जगह थी.
उन्होंने कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज से 1955 में फिजियोलॉजी में स्नातक किया.
बाद में दो बार डॉक्टरेट की डिग्री भी सुभाष ने ली. पहली डिग्री 1956 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से रिप्रोडक्टिव फिजियोलॉजी में और दूसरी डिग्री रिप्रोडक्टिव एंडोक्रिनोलॉजी में 1967 में स्कॉटलैंड की एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी से.
इसके बाद वह उस वक्त के प्रख्यात चिकित्सकों डॉ सुनीत मुखोपाध्याय और सरोज कांति भट्टाचार्य के साथ काम करने लगे.
Dr. Subhash Created The First Test Tube Baby In India (Pic: topyaps)
मारवाड़ी परिवार बना प्रयोग का जरिया!
डॉ मुखोपाध्याय जब स्कॉटलैंड की एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री लेकर कलकत्ता लौटे, तब तक टेस्ट ट्यूब बेबी पर विश्वभर में चर्चा तेज हो चुकी थी, लेकिन कोई सफल प्रयोग होना अभी बाकी थी. ये अस्सी के दशक के शुरुआती वक्त की बात है. कोलकाता में एक धनाढ्य मारवाड़ी परिवार रहता था. उसकी कोई औलाद नहीं थी.
उस जमाने में जैसा कि होता था, बे-औलाद परिवार खासकर महिला को न केवल पारिवारिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता था, बल्कि सामाजिक अत्याचार भी बहुत होते थे. वह मारवाड़ी परिवार भी इसी मानसिक प्रताड़ना से गुजर रहा था. उन्हें कहीं से डॉ मुखोपाध्याय के बारे में जानकारी मिली, तो वे उनसे मिलने साउथर्न एवेन्यू के उनके छोटे से घर में जा पहुंचे.
दंपत्ति ने टेस्ट ट्यूब पद्धति से गोद भर देने की गुंजाइश की. डॉ मुखोपाध्याय भी इसके लिए तैयार हो गए. इस तरह 1977 में छोटे से फ्लैट के बेहद छोटे से कमरे में उन्होंने कुछ यंत्र व रेफ्रिजरेटर की मदद से प्रयोग शुरू कर दिया.
Indian Couple Without A Baby (Representative Pic: goodindiangirl)
भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी ‘दुर्गा’ का जन्म
एक तरफ भारत में डॉक्टर मुखोपाध्याय टेस्ट ट्यूब बेबी पैदा करने की सोच रहे थे. वहीं दूसरी ओर ठीक उसी वक्त इंग्लैंड में भी ऐसा ही एक प्रयोग शुरू हो गया था.
कहानी वही थी. वहां रहने वाले एक दंपत्ति को लंबे समय से कोई बच्चा नहीं हो रहा था, तो उन्होंने प्रख्यात महिला रोग चिकित्सक पैट्रिक स्टेप्टो और रॉबर्ट एडवर्ड्स से मुलाकात की. दोनों डॉक्टरों ने प्रयोग शुरू कर दिया.
इंग्लैड के डॉक्टरों के पास जहां हर तरह के संसाधन थे और सरकार का पूरा सहयोग भी उनके साथ था. वहीं डॉ मुखोपाध्याय को अपने दम पर बिना किसी सरकारी मदद के काम करना पड़ रहा था.
25 जुलाई 1978 को चिकित्सक पैट्रिक स्टेप्टो और रॉबर्ट एडवर्ड्स ने टेस्ट ट्यूब के जरिए बच्चे को जन्म देने की घोषणा कर इतिहास रच दिया. दोनों को विश्व में टेस्ट ट्यूब के जरिए सबसे पहले बच्चे को जन्म देने वाले डॉक्टरों का तमगा मिला.
उस वक्त डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय के लैब में भी एक भ्रूण आकार ले रहा था. 25 जुलाई की घोषणा के महज 67 दिनों के भीतर 3 अक्टूबर 1978 को डॉ मुखोपाध्याय ने भी एक घोषणा की. उन्होंने दुनिया को बताया की टेस्ट ट्यूब के जरिए बच्चे को जन्म देने का उन्होंने भी सफल प्रयोग कर लिया है..!
टेस्ट ट्यूब के जरिए जन्मी बच्ची को नाम मिला ‘दुर्गा’. इस नाम के पीछे की कहानी यह है कि 3 अक्टूबर 1978 को दुर्गापूजा का पहला दिन था, इसलिए उसका नामकरण ‘दुर्गा’ कर दिया गया. अगर 67 दिन पहले दुर्गा का जन्म हुआ होता, तो टेस्ट ट्यूब पद्धति से बच्चे को जन्म देने वाला भारत दुनिया का पहला देश होता. खैर…! थोड़ा देर से सही मगर भारत ने भी इस क्षेत्र में अपने कदम रख ही दिए.
Test Tube Baby (Representative Pic: deviantart)
इनाम की जगह मिला अपमान!
बेहद कम संसाधन व तकनीक के बावजूद डॉ मुखोपाध्याय का प्रयोग शत-प्रतिशत सफल रहा. किसी और देश में अगर वह होते, तो शायद वहां की सरकार उनकी इस कामयाबी को सर आंखों पर रखती, लेकिन उन्हें मिला तो बस अपमान और बेइज्जती!
डॉक्टर मुखोपाध्याय वैश्विक प्लैटफॉर्म पर जाकर दुनिया को अपने प्रयोग के बारे में बताना चाहते थे, लेकिन तत्कालीन सरकार ने इसकी इजाजत उन्हें नहीं दी. इसके उलट उस वक्त की पश्चिम बंगाल सरकार ने उनके दावों की जांच के लिए 18 नवंबर 1978 को एक कमेटी बना दी.
कमेटी को चार बिंदुओं की जांच करनी थी. कमेटी ने उनसे अजीबोगरीब सवाल पूछे और अंततः उनके दावे को बोगस करार दे दिया. उनका मजाक उड़ाया गया. उन्हें जापान में अपने प्रयोग के बारे में बताने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन सरकार ने उन्हें वहां भी जाने की इजाजत नहीं दी!
और तो और 1981 में सजा के तौर पर उनका ट्रांसफर रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑफ्थॉल्मोलॉजी (कोलकाता) में कर दिया गया.
यह अपमान उनके लिए असह्य था. इस पूरे प्रकरण के बाद उन्होंने खुद को अपने छोटे से घर में कैद कर लिया. अपमान का वह घूंट उनके लिए जहर साबित हुआ. वह तिल-तिल कर मरते रहे और फिर एक दिन उन्होंने अपमान की असह्य पीड़ा से निजात पाने का फैसला कर लिया.
अपने घर की सीलिंग से झूलकर उन्होंने आत्महत्या कर ली. उन्होंने सोचा भी नहीं था की अपनी खोज का उन्हें यह इनाम मिलेगा. इसके साथ ही एक होनहार डॉक्टर इस दुनिया को छोड़कर भाग गया.
Dr. Subhash Hanged Himself (Representative Pic: observerbd)
मौत के बाद मिली पहचान…
कहते हैं कि रोशनी को कभी भी कैद नहीं किया जा सकता है. डॉ सुभाष मुखोपाध्याय रोशनी नहीं एक चमकदार सूरज थे जिनकी रोशनी पूरी दुनिया में बिखरनी थी. वर्ष 1986 में भारत के ही एक डॉक्टर टी. सी. आनंद कुमार ने भी टेस्ट ट्यूब पद्धति से एक बच्चे को जन्म दिया. उन्हें भारत में टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म देनेवाले पहले डॉक्टर का खिताब मिला.
वर्ष 1997 में उनके हाथ वे महत्वपूर्ण दस्तावेज लग गए, जो इस बात की गवाही देते थे कि उनसे पहले डॉ मुखोपाध्याय ने टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म दिया था. सभी दस्तावेजों के गहन अध्ययन के बाद डॉ आनंद कुमार इस नतीजे पर पहुंचे कि भारत को टेस्ट ट्यूब बेबी की सौगात देनेवाले पहले वैज्ञानिक डॉ सुभाष मुखोपाध्याय ही थे.
डॉ आनंद कुमार की पहल के चलते आखिरकार डॉ मुखोपाध्याय को भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जन्मदाता का खिताब मिला. इसी विषय पर 1990 में प्रख्यात फिल्म निर्देशक तपन सिन्हा ने ‘एक डॉक्टर की मौत’ नाम से फिल्म बनाई. फिल्म में मुख्य भूमिका पंकज कपूर ने निभाई थी. इसके बाद पूरी दुनिया में डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय का नाम विश्व भर में प्रसिद्ध हो गया.
डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय की जिंदगी कभी ऐसा मोड़ लेगी यह किसी ने नहीं सोचा होगा. वह दुनिया को बदलने की सोचते थे मगर आखिर में दुनिया उनकी ही पलट गई. आज अगर वह होते, तो शायद भारत टेस्ट ट्यूब बेबी के विषय पर बाकियों से कहीं आगे होता मगर किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था.
Web Title: Dr Subhash Mukhopadhyay Who Created First Test Tube Baby in India, Hindi Article
Feature Image Credit: topyaps/whatclinic