आज भारतीय सिनेमा जगत में एक तरफ जहां पुरुषों का दबदबा हैं. वहीं महिलाएं भी उनको बराबरी की टक्कर दे रहीं हैं, फिर चाहे वो अभिनय के मामले में हो या बॉलीवुड से जुड़े अन्य कामों जैसे निर्देशन, स्क्रिप्ट राईटर, आदि हो.
मगर, एक वक़्त ऐसा था, जब सिनेमा जगत में अभिनेत्रियों के अलावा महिलाओं का अन्य कार्यों में भागीदारी न के बराबर थी. ऐसे में इस धारणा को फातिमा बेगम ने तोड़ा. उन्होंने भारतीय सिनेमा को अपना बहुमूल्य योगदान दिया.
उन्होंने फिल्मों में अभिनय के अलावा निर्देशक और राईटर के तौर पर भी अपना दमखम दिखाया. उस दौरान उन्होंने भारतीय सिनेमा जगत के कई बड़े नामों के साथ काम किया था. उनके प्रवेश के बाद अन्य महिलाओं के लिए भी फिल्म उद्योग के रास्ते आसानी से खुल गए.
आज फातिमा बेगम को भारतीय सिनेमा जगत की पहली महिला निदेशक के तौर पर याद किया जाता है.
ऐसे में हमारे लिए बॉलीवुड की मशहूर नायिका व निर्देशक फातिमा बेगम की जिंदगी से रूबरू होना दिलचस्प होगा…
भारतीय सिनेमा की पहली महिला निर्देशक बनीं.
फातिमा बेगम का जन्म 1892 में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. फातिमा भारतीय सिनेमा जगत में अपना करियर बनाना चाहती थी.
फातिमा का यह सपना आसान नहीं था, क्योंकि उस वक़्त बॉलीवुड इंडस्ट्री में महिलाएं महज एक अभिनेत्री के तौर पर ही अपना करियर सवांर सकती थी. इसके अलावा अन्य कार्यों में केवल पुरुषों का ही दबदबा था.
मगर, फातिमा ने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने शुरुआत में उर्दू मंचों से अपनी क़ाबलियत दिखाई.
इनके पारिवारिक जीवन की बात करें तो इनकी शादी नवाब इब्राहीम मोहम्मद याकूत खान तृतीय से हुई थी, लेकिन इस पर भी लोगों की अलग-अलग राय है. इनका नवाब से ताल्लुक था या नहीं इसके ज्यादा प्रमाण नहीं मिलते. वहीं नवाब ने अपने बीवी के साथ ही अपने बच्चों को अपनाने से इंकार कर दिया था.
फातिमा तीन बच्चों की मां थीं. उनमें मूक सुपरस्टार जुबैदा, सुल्ताना और शहजादी का नाम शामिल हैं. इसके बावजूद फातिमा ने बड़ी ज़िम्मेदारी के साथ अपने बच्चों की परवरिश की और खुद लगातार उन्नति की राह पर अग्रसर रहीं.
खैर, नाटक मंचों से अपने करियर की शुरुआत करने वाली फातिमा ने जल्द ही प्रसिद्धि पा ली. इसके बाद उन्होंने 1922 में फिल्म ‘वीर अभिमन्यु’ से भारतीय सिनेमा जगत में प्रवेश किया. उनकी इस मूक फिल्म के निर्माता अर्देशिर ईरानी थे.
इसी के साथ ही उन्होंने इतिहास में अपना नाम बॉलीवुड की पहली महिला निर्देशक के तौर पर दर्ज करवा लिया था.
फिल्म ‘बुलबुल-ए-पारिस्तान’ से मिली कामयाबी!
इसके बाद उन्होंने 1924 में सीता सरदावा, पृथ्वी बल्लभ, काला नाग और गुल-ए-बकवाली जैसी फिल्मों में अभिनय किया. 1925 में 'मुंबई नी मोहनी' में भी अपनी अदाकारी का जलवा बिखेरा.
आगे, उन्होंने 1926 में अपनी एक फिल्म कंपनी शुरू कर दी. इस कंपनी का नाम फातिमा फिल्म्स रखा. दो साल बाद 1928 में फातिमा ने इस कंपनी का नाम बदलकर 'विक्टोरिया फातिमा फिल्म्स' कर दिया था.
कंपनी बनाने के बाद उन्होंने तीन साल के अंतराल में लगातार 7 फिल्मों का निर्देशन किया. 1926 में बुलबुल-ए-पारिस्तान, देवी ऑफ़ लव (1927), 1928 में हीर रांझा, चन्द्रावली फिल्मों का निर्देशन किया. वहीं 1929 में शकुन्तला, मिलान, कनकटारा, भाग्य की देवी जैसी अच्छी फिल्मों में काम किया था.
बुलबुल-ए-पारिस्तान उनके द्वारा निर्देशित सबसे प्रसिद्ध फिल्म साबित हुई थी. यहीं से उनके करियर को एक उड़ान मिली. इसके बाद उन्होंने भारतीय सिनेमा जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाई.
इस फिल्म में विदेशी तकनीक में इस्तेमाल होने वाले स्पेशल इफ़ेक्ट का प्रयोग किया गया था. यह एक बड़ी बजट की मूवी थी. आकड़ों की माने तो इस फिल्म को बनाने में कई लाख रूपये खर्च हो गए थे.
बॉलीवुड को दिया अपना बहुमूल्य योगदान और...
फातिमा बेगम ने अपने आप को सिर्फ निर्देशन तक सीमित नहीं किया था, बल्कि उन्होंने कई फिल्मों की स्क्रिप्ट भी लिखी थीं. यही नहीं उन्होंने अभिनय में भी एक ऊँचा मुकाम हासिल किया.
कहते हैं कि फातिमा का रंग गोरा था. वो दिखने में बेहद खूबसूरत लगती थी. इसी के साथ ही जब फातिमा अपने चेहरे पे गाढ़ा मेकअप करती तो उनकी सुंदरता में चार चाँद लग जाया करता था.
उन्होंने विक्टोरिया फातिमा फिल्म्स बैनर के अलावा कोहिनूर और इंपीरियल स्टूडियो के बैनर तले भी कुछ फिल्मों का निर्देशन किया था. उनकी निर्देशित फिल्म ने भारतीय सिनेमा जगत में काफी सफल भी रही और दर्शकों के बीच काफी पसंद भी की गई थी.
फातिमा बेगम ने अपनी आखिरी फिल्म ‘दुनिया क्या कहेगी’ में काम किया. इसके बाद उन्होंने अपनी मर्जी से भारतीय सिनेमा जगत को अलविदा कह दिया. अपने 16 साल के फ़िल्मी करियर में उन्होंने आर्देशिर ईरानी और नानू भाई जैसे मशहूर फिल्म निर्माताओं के साथ भी काम किया था.
बॉलीवुड से अलविदा कहने के बाद फातिमा की विरासत उनकी बेटियों ने संभाला. उन्होंने भारतीय सिनेमा जगत में अपनी मां की तरह अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल हुई थीं. इन्होंने अपनी प्रतिभा से बॉलीवुड की मूक फिल्मों की एक सुपर स्टार के तौर पर मशहूर हुई थीं.
यह वही जुबैदा हैं, जिन्होंने 1931 में पहली बार बोली जाने वाली फिल्म ‘आलम आरा’ में भी काम किया था.
आगे, 1983 में फातिमा बेगम अपने 90 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया और सुपुर्द-ए-ख़ाक हो गईं. इस तरह भारत की एक शक्तिशाली व कुशल महिला का अंत हो गया था.
मगर, आज भी फातिमा बेगम के द्वारा भारतीय सिनेमा जगत में दिए गए बहुमूल्य योगदान की वजह से इनको याद किया जाता है.
तो ये थी भारतीय सिनेमा जगत की पहली महिला निर्देशक फातिमा बेगम से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें, जिन्होंने अपने कठिन परिश्रम से अपने जीवनकाल में एक ऊँचा मुकाम हासिल किया था.
आज भले ही फातिमा बेगम हमारे बीच में मौजूद न हो, मगर उनके ज़ज्बे और हौसले के बाद ही भारतीय सिनेमा जगत में महिलाओं के लिए एक अन्य रास्ता मिला. वो सभी भारतीय महिलाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं
Web Title: Fatima Begum First Female Director of Bollywood, Hindi Article
Feature Image: Wikipedia