पश्चिमी देशों के इतिहास में मृत्युदंड देने के लिए कई तरह के यंत्रों का आविष्कार हुआ. इनमें से कई ऐसे यंत्र थे जिन्होंने हर किसी के दिल में एक सनसनी मचा रखी थी. ऐसा ही एक यंत्र था गिलोटिन, जो मौत का पर्याय बन चुका था.
हालाँकि, असल में इस यंत्र का आविष्कार जल्दी मौत देने और मृत्यु पाने वाले को कम दर्दनाक मौत देने के लिए किया गया था. फिर भी इसने इतिहास में खुद को सबसे खतरनाक मृत्यु यंत्र बना दिया.
इसे देखकर ही लोगों की रूह कांप जाया करती थी. तो चलिए जानते हैं कि आखिर क्यों और कैसे गिलोटिन वजूद में आया–
क्रूर मृत्युदंड ने फैलाया मरने वालों में खौफ!
इतिहास में कई ऐसी घटनाएं दर्ज हैं, जो पुराने समय में दी जाने वाले मृत्युदंड की क्रूरता को दिखाती हैं. इन्हीं में से एक वाक्या है रानी मैरी और रोबर्ट डेवेरेक्स की.
एक गलती के कारण उन दोनों को मौत की सजा दी गई थी. इकसे लिए जल्लाद को उनकी गर्दन काटने का आदेश दिया गया था.
उनका सर धड़ से अलग करने के लिए जल्लाद को तीन बार वार करना पड़ा था. बार-बार कोशिशों के बाद भी वह उन्हें मौत नहीं दे पा रहा था. आखिर में लगातार वार ने उनकी जान ले ली.
दूसरी ओर सेलिस्बरी की काउंटेस, मार्गरेट पोल को मृत्युदंड देने के समय जल्लाद को उनकी गर्दन पर 10 बार वार करना पड़ा!
इन घटनाओं से हम अंदाजा लगा सकते हैं कि उस समय कितने अमानवीय और क्रूर तरीके अपनाये गए थे मृत्युदंड के लिए.
कहते हैं कि लोग मौत से इतना डरते थे कि जल्लाद को घूस देते थे, ताकि वह उन्हें एक वार में मार दें. मौत के ये तरीके दिन ब दिन और खतरनाक होते जा रहे थे.
इसलिए लोगों ने इसके बारे में विचार करना शुरू किया. इसी के साथ 18वीं सदी के अंत तक दुनिया के कई देश एक आसान मृत्युदंड के बारे में विचार करने लगे.
हर किसी को लगा कि मृत्युदंड व्यक्ति से उसकी जिंदगी छीनने के लिए होता है न की उसे क्रूरता से मृत्यु देने के लिए.
इस विचार का सबसे ज्यादा असर फ्रांस में हुआ, जहाँ पर समाज के सभी वर्गों में समानता की मांग उठने लगी और फ्रांस में एक क्रांति की शुरुआत हुई.
फिर इसी क्रांति के तहत अपराधियों को मानवीय तरीके से सजा देने की मांग की गयी. एक दिन डॉक्टर जोसफ इग्नेस गिलोटिन नाम के एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने 1789 में फ्रांस के नेशनल असेंबली में लेख प्रस्तुत किये जिनमें मृत्युदंड के निष्पादन के कई तरीके थे.
उन्होंने मौत के ऐसे तरीके सोचे थे कि जिससे मौत बस चंद पलों में हो जाए. इसके बाद वह इंतजार में बैठ गए उसके पास होने के.
मृत्यु देने का आसान तरीका खोजा मगर...
गिलोटिन का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया. हालांकि इसके बाद भी गिलोटिन रुके नहीं. वह लगातार कोशिश करते ही रहे.
वहीं दूसरी ओर आसान मृत्युदंड की मांग हर जगह होने लगी. उस समय हर कोई चाहता था कि मृत्युदंड की एक ऐसी सजा हो, जो हर वर्ग के लिए एक समान हो.
इतना ही नहीं एक ऐसा तरीका खोजा जाये जिससे अपराधी को त्वरित, मानवीय और कम दर्दनाक सजा दी जा सके.
लोगों की बढ़ती मांग देखकर 1791 की सभा ने गिलोटिन की लिस्ट में से एक मौत के तरीके को चुन लिया. इसके बाद उन्होंने गिलोटिन को इसपर काम करने के लिए भी कहा.
इसी मांग के तहत डॉक्टर गिलोटिन ने फ्रांस के राजा के निजी डॉक्टर एंथोनी लुइस के साथ मिलकर एक नई मृत्युदंड की मशीन बनानी शुरू की.
इसके लिए डॉक्टर गिलोटिन और उनके साथियों ने पहले से ब्रिटेन में मौजूद सर कलम करने वाली दो मशीनों हैलीफैक्स डिबेट और स्कॉटिश मेडेन से प्रेरणा ली.
उन्होंने इससे बेहतर यंत्र बनाने की ठानी जिससे अपराधियों को मानवीय तौर से मृत्यु की सजा दी जा सके. आखिरकार कुछ महीनों बाद गिलोटिन ने वह मशीन बना ही ली.
हालांकि, इसके बनने के बाद वो हुआ जिसका अंदाजा खुद गिलोटिन को नहीं था. यह मशीन शुरुआत में तो कम आई मगर बाद में यह भी एक काल बन गई.
गिलोटिन की मशीन में एक कुल्हाड़ी के सिरे का इस्तेमाल किया जाता था, जो सीधा गर्दन पर गिरती थी और सिर काट देती थी.
हालाँकि, इस यंत्र से भी हमेशा गर्दन को अलग कर पाना संभव नहीं था. इसे देखकर ही लोगों की धड़कन थम जाती थी.
इसने भी लोगों के दिलों में एक खौफ पैदा कर दिया था. जिस मशीन को एक क्रांति समझा गया था, वह भी एक काल ही निकली.
इसके बाद गिलोटिन के खिलाफ भी लोगों की आवाज उठने लगी.
फिर से बनाया गया गिलोटिन...
जोसफ के बनाए गिलोटिन को एक खराब प्रोजेक्ट बता दिया गया. हालांकि, फिर भी इसे बंद नहीं किया गया. इसकी जगह गिलोटिन का एक नया मॉडल तैयार करने की बात सोची गई.
इसके कुछ महीनों बाद स्ट्रासबर्ग आपराधिक न्यायालय ने एक ऐसे यंत्र की रूपरेखा तैयार की, जो वास्तव में प्रसिद्ध गिलोटिन का प्रारंभिक रूप था.
कमेटी ने उसके सभी डिज़ाइन को स्वीकार कर लिया और टोबीस स्किमिद नाम के एक जर्मन इंजीनियर को इसका प्रोटोटाइप बनाने के लिए नियुक्त किया गया.
टोबीस स्किमिद ने इस यंत्र के डिज़ाइन में थोड़ा फेर बदल करके इसे और बेहतर बनाया. उन्होंने इसमें एक लंबा ब्लेड लगाया जिसका एक सिरा 45 डिग्री का कोण बना रहा था.
इस कोण की वजह से ब्लेड बहुत ही आराम से गर्दन को काट रहा था. कुछ टेस्ट के बाद यह सुनिश्चित भी कर लिया गया कि यह मशीन अब वाकई पहले से बेहतर चल रही है.
इसे ‘प्लेस दे ग्रेवे’ स्थान पर स्थापित किया गया, जहाँ सबसे पहले 25 अप्रैल 1792 को एक लुटेरे को इसके द्वारा मृत्युदंड दिया गया.
इसके बाद फ्रांस की क्रांति के समय गिलोटिन का खूब उपयोग किया गया. बहुत बड़ी संख्या में लोगों को मौत की सजा दी गई थी. कई बार तो एक के बाद एक लोगों को मारा जाता था.
हालांकि, गिलोटिन ने यह काम काफी आसान बना दिया. उसके आने के बाद से एक पल में व्यक्ति की मौत हो जाती थी. उसे असीमित दर्द को नहीं झेलना पड़ता था.
इन सब के बाद भी गिलोटिन की काफी आलोचना की गई. ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें भी कहीं न कहीं इंसान को बहुत बेकार मौत दी जाती थी.
इसका प्रयोग फ्रांस में 20वीं सदी तक किया जाता रहा. हालांकि, 60 और 70 दशक में इसका प्रयोग घटने लगा. उस समय इससे सिर्फ 8 मृत्युदंड ही दिए गए. इसके बाद सितंबर 1981 में फ्रांस ने मृत्यदंड को अस्वीकार कर दिया गया और गिलोटिन का प्रयोग खत्म हो गया.
गिलोटिन हमेशा से ही चर्चा का विषय रहा है. इसे बनाया गया था आसान मौत देने के लिए मगर इसकी खूब आलोचना भी हुई. ऐसा इसलिए क्योंकि ये था तो एक मौत का यंत्र ही. गनीमत है कि अब ऐसे यंत्रों का इस्तेमाल बन कर दिया गया है.
Feature Image: deviantart