इस दुनिया में कई रंग हैं, जिनकी सुंदरता को हम अपनी आंखों के ज़रिए ही देख सकते हैं.
बात सिर्फ रंगों की नहीं है. हर छोटी-बड़ी ज़रूरतों के लिए हम अपनी आंखों पर कितना ज्यादा निर्भर हैं, इस बात की व्याख्या की कोई जरुरत नहीं. टेक्नोलॉजी का युग है. स्मार्ट फोन और लैपटॉप पर पूरा-पूरा दिन बिता देना आम बात है.
किन्तु, कहते हैं न काम को बेहद आसान कर देने वाली टेक्नोलॉजी के साइड इफेक्ट्स भी होते हैं.
बात अगर तथ्यों से करें तो, हाल ही में एम्स ने एक रिपोर्ट ज़ारी की. इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत के स्कूल जाने वाले लगभग 13 प्रतिशत बच्चे मायोपिया यानी निकट दृष्टि दोष के शिकार हैं. ये रिपोर्ट एक भयानक स्तिथि की ओर इशारा करती है.
तो आईए जानते हैं कि आखिर किस बला का नाम है मायोपिया और क्यों यह तेजी से बढ़ रहा है-
क्या है मायोपिया या निकट दृष्टि दोष!
मायोपिया, हमारी आंखों में निकट दृष्टि दोष पैदा करता है.
निकट शब्द मौजूद होने की वजह से आप ये मत समझे कि पास की चींजों को देखने में समस्या होती है. दरअसल, इसके होने से आपको दूर की चीजें दिखाई नहीं देती. अब वो चाहे, दूर मौजूद रोड साइन हो या घर में रखी टीवी.
हां! इसमें पास रखे किसी सामान को देखने में कठिनाई नहीं होती. अब आप सोच रहे होंगे, आखिर ऐसा क्यों?
असल में यह आंख में एक ख़ामी आ जाने की वजह से होता है. इसमे आंख किसी एक वस्तु पर फोकस नहीं कर पाती. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि आंख में जानेवाला प्रकाश रेटिना पर केंद्रित नहीं होता. इसी वजह से तस्वीर धुंधली दिखाई देती.
अगर, आपको 2 मीटर या 6.6 फीट की दूरी के बाद चीजें धुंधली दिखती हैं, तो आप मायोपिया का शिकार हो सकते हैं.
बच्चे हो रहे हैं बड़ी संख्या में इसका शिकार
बात अगर, वैश्विक स्तर पर करें तो अमेरिका की तीस प्रतिशत जनता इसका शिकार है.
वही एशिया के लगभग 13 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं, जो मायोपिया से त्रस्त हैं. इसी क्रम में एम्स की जारी रिपोर्ट के अनुसार, स्कूल जाने वाले लगभग तेरह प्रतिशत बच्चे मायोपिया यानी निकट दृष्टि दोष के शिकार हैं.
गजब की बात तो यह है कि मायोपिया बचपन में ही शुरू हो जाता है.
एक रिसर्च के तहत इंग्लैंड व स्कॉटलैंड के लगभग 60 हजार से ज्यादा पुरुष व महिलाओं के जनेटिक डाटा को देखा गया. जिससे पता चला कि आमतौर पर लोगों के स्कूल से निकलने पर वो मायोपिया का शिकार होते हैं.
यह सुनने में काफी भयावह लगता है. जब पूरे विश्व की आधी आबादी को धुंधला दिखाई देने लगे. एक अनुमान के हिसाब से साल 2050 तक लगभग 5 अरब लोग मायोपिया से ग्रसित हो सकते हैं.
दुःख की बात तो ये है कि दुनिया में, 10 फीसदी लोगों में स्थायी अंधेपन के खतरे को पाया गया है. खासकर एशिया के देशों में यह समस्या ज्यादा पायी गयी है, जिसमें सिंगापुर, साउथ कोरिया व चीन जैसे देश भी शामिल हैं.
बदलता लाइफस्टाइल व टेक्नोलॉजी हैं बड़े कारण
आजकल का बदलता खान-पान और जीवनशैली सब कुछ बड़ी तेज़ी से बदल रहा है. ऐसे में, पर्यावरण में भी जाहिर असंतुलन देखने को मिल रहा है. ये इस बीमारी के बढ़ने की ये वजह मानी गयी हैं.
इसके अलावा, आजकल बड़ों से लेकर बच्चे तक मोबाइल, लैपटॉप आदि पर रोजाना छह से आठ घंटे बिताते हैं.
इस वजह से बच्चे कम उम्र में ही इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं.
लगातार आंखें गड़ा कर फ़ोन देखने से भी आँखों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. अब अगली बार जब कभी आप अपने बच्चे को फोन दें, तो इस बात का ध्यान ज़रुर रखें कि वह अपना सीमित समय ही स्मार्ट फ़ोन पर बिताएं.
भारत सालाना झेलता है 37 बिलियन डॉलर का नुक्सान
आप सोच रहे होंगे कि आखिर दृष्टि दोष का आर्थिक नुकसान से क्या लेना-देना.
दरअसल, कुछ सालों तक तो आपका दिमाग आपकी कम रोशनी की भरपाई कर देता है. मगर फिर एक समय के बाद दिमाग भी काम करना बंद कर देता है. ऐसे में, समस्या और भी बढ़ जाती है. इसलिए तुरंत, इसकी जांच और उपचार करवाना चाहिए.
वैश्विक स्तर पर WHO की रिपोर्ट के अनुसार, करीब 275 बिलियन का आर्थिक घाटा, तो वहीं भारत में 37 बिलियन डॉलर का सालाना घाटा होता है. ग़ौरतलब है कि, लगभग साठ प्रतिशत सड़क हादसे ख़राब दृष्टि की वजह से होते हैं.
इसके अलावा, भारत के 42 प्रतिशत कर्मचारी और ड्राइवर भी ख़राब दृष्टि से ग्रस्त हैं. इससे भी गंभीर बात ये है कि इनमें से ऐसे लोगो की संख्या और भी अधिक है, जो इसका कोई उपचार या उपाय ही नहीं करते.
तो देखा आपने, कैसे यह मायोपिया धीरे-धीरे अपने पैर पसार रहा है.
खासकर बच्चों में ज्यादा तेज़ी से इसके फैलने के आंकड़े काफी परेशान करते हैं. इसीलिए टेक्नोलॉजी के साथ बढ़ना अच्छा है, लेकिन टेक्नोलॉजी हम पर ही हावी न हो जाए, इसका भी ख्याल रखा जाना चाहिए.
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Web Title: By 2050, Half of the World Population Might Suffer Myopia , Hindi Artilce
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