सन 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद से तमाम तरह की नीतियां और योजनाएं शुरू की गई हैं.
शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक कई घोषणा की गईं और तमाम तरह के फायदों को लेकर लोगों को इन नीतियाें के प्रति आश्वस्त किया गया है.
इस साल भी केंद्र सरकार ने एक महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य योजना को बजट में हिस्सा दिया.
लोगों के स्वास्थ्य के लिए, उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना पाबंद की गई है.
इसको सरकार की तरफ से विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना बताया जा रहा है. इसकी तुलना प्रतिष्ठित ‘ओबामा केयर’ से की जा रही है.
वहीं कुछ रिपोर्ट्स ऐसी भी हैं जो इसे पूरी तरह से नाकाफी और भ्रामक बता रही हैं.
ऐसे में इस योजना और इसकी बारीकियों को जान लेना बहुत दिलचस्प रहेगा –
50 करोड़ भारतीयों पर होगा असर
इस योजना का नाम राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना है. सरकार की तरफ से इसे ‘मोदी केयर’ बोला जा रहा है.
एक फरवरी 2018 को इस योजना की घोषणा करते समय केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि भारत में युवाओं की संख्या बहुत अधिक है, लेकिन उनकी शक्ति का फायदा देश को तभी मिलेगा जब वे पूरी तरह से स्वस्थ्य होंगे.
इसी के साथ उन्होंने कहा कि हमारे सभी नागरिक स्वस्थ्य होने चाहिए. इसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए यह योजना लाई गई है.
इस योजना का प्रमुख लक्ष्य लगभग 10 करोड़ जोखिमग्रस्त परिवारों को सस्ती स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाना है. इसके तहत इन परिवारों का पांच लाख रुपए प्रति वर्ष का बीमा दिया जाएगा, पहले यह केवल 30 हजार था.
इस योजना के लागू हो जाने के बाद 10 में से 4 भारतीय द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवाएं बीमा रकम के भीतर हासिल कर सकेंगे.
अगर यह योजना प्रभावी होती है, तो तकरीबन 50 करोड़ भारतीयों के स्वास्थ्य में क्रांतिकारी सुधार देखने को मिल सकता है.
खुलेंगे नए स्वास्थ्य केंद्र
इस योजना के सहायक के रूप में सरकार ने आयुष्मान भारत प्रोग्राम के तहत 1.5 लाख आरोग्य केंद्र खोलने की बात भी कही है. इन आरोग्य केंद्रों में गैर-संक्रामक रोगों का इलाज किया जाएगा. इसके अलावा जच्चा-बच्चा को जरूरी देखभाल और मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाएं भी प्रदान की जाएंगी.
छोटे-मोटे टेस्ट भी इन केंद्रों पर उपलब्ध रहेंगे.
इस समय देश में 479 मेडिकल कॉलेज हैं. इनमें से ज्यादातर शहरी क्षेत्रों में स्थित हैं. इस योजना के तहत देहात और कस्बाई क्षेत्रों में नए मेडिकल कॉलेज खोले जाएंगे.
इसके साथ ही यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि इस योजना के लागू हो जाने के बाद जब स्वास्थ्य सुविधाएं सस्ती हो जाएंगी, तो दूसरी निजी कंपनियों को भी अपनी सुविधाएं सस्ती करनी पड़ेंगी.
इससे कुल मिलाकर फायदा आम लोगों को होगा.
विदेशी योजनाओं से कैसे अलग?
भारत में तो इस योजना की घोषणा अभी हुई है. लेकिन इससे पहले ही विश्व के अन्य देशों में ऐसी योजनाएं जमीनी स्तर पर बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं. इन देशों में ऑस्ट्रेलिया, हांगकांग, डेनमार्क, कनाडा, स्विटजरलैंड, अमेरिका इत्यादि प्रमुख हैं.
अमेरिका में तो 'ओबामा केयर' काफी सफल साबित हुआ है. इसे पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सन 2010 में लागू किया था.
आंकड़ों के अनुसार इस योजना से करीब 5 करोड़ अमेरिकीयों को फायदा मिल चुका है.
ओबामा केयर के तहत प्रत्येक अमेरिकी को स्वास्थ्य बीमा में अपना नाम रजिस्टर करवाना अनिवार्य है. अगर वह ऐसा नहीं करता, तो उसके ऊपर कर लगाया जाता है.
वहीं, ब्रिटेन में भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य स्कीम बहुत कारगर सिद्ध हुई है. इसको ब्रिटेन की लेबर सरकार ने सन 1948 में शुरू किया था. इसके तहत ब्रिटेन का प्रत्येक नागरिक मुफ्त में जरूरी स्वास्थ्य सुविधाएं हासिल कर सकता है.
हालांकि, इसमें दांत-आंख से जुड़ी कुछ बीमारियां शामिल नहीं हैं, जबकि भारत में अभी केवल 40 प्रतिशत लोगों को ही इसका लाभ मिलेगा.
कैसे बन सकती है और असरदार
रिपोर्ट्स के अनुसार, मोदी सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना में कई खामियां भी हैं, जिन्हें सुधारकर इस योजना को और बेहतर बनाया जा सकता है. वहीं, कुछ रिपोर्ट्स तो इस योजना की मंशा पर ही सवाल खड़े कर रही हैं.
मोदी सरकार की यह योजना कोई नई पहल नहीं है. पिछले साल भी ऐसी ही एक योजना चल रही थी. सरकार ने अभी तक यह नहीं बताया है कि पिछले साल की योजना से कितने लोगों को फायदा हुआ है. बिना किसी ठोस आकलन के नई योजनाओं के लागू होने में दिक्कत ही होगी.
वही, सरकार ने 1.5 लाख आरोग्य केंद्र खोलने के लिए केवल 1,200 करोड़ रुपए का बजट दिया है. ऐसे में प्रत्येक केंद्र पर केवल 80,000 रुपए ही खर्च होंगे. जो किसी भी तरह से काफी नहीं कहे जा सकते.
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रत्येक एक लाख लोगों पर केवल 80 डॉक्टर हैं, जोकि बहुत कम हैं.
वहीं, हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी किए गए सर्वे से पता चलता है कि ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों की हालत बहुत खस्ता है. ऐसे में इतने कम बजट में इनकी हालत सुधारना और नए केंद्र खोलना असंभव नजर आता है.
2018-2019 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को 52,800 करोड़ रुपए का ही बजट जारी किया गया था. 2017-18 में यह 51,500 करोड़ था.
इस प्रकार इसमें केवल 2.5 प्रतिशत की ही बढ़ोतरी हुई है और जिस प्रकार से जीडीपी में इजाफा हुआ है, उस हिसाब से यह 2.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी बहुत कम है.
बजट में हुई मामूली बढ़ोतरी
2016 में भी सरकार ने घोषणा की थी कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत एक लाख रुपए का बीमा उपलब्ध कराया जाएगा. इसके लिए 15,000 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया था.
हालांकि, बाद में इसे संशोधित करके 500 करोड़ कर दिया गया और बीमा की रकम भी घटाकर 30 हजार रुपए कर दी गई.
ऐसे में अब सरकार बजट में 2,000 करोड़ रुपए बढ़ाकर 5 लाख का बीमा कैसे देगी, यह समझना कठिन है.
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति खर्च केवल 267 यूएस डॉलर प्रतिवर्ष है. यह खर्च विश्व के औसत खर्च 1,271 डाॅलर से काफी कम है.
किसी भी सरकार ने इसको बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है.
इसके अलावा यह नई योजना उन्हीं पुरानी नीतियों पर आधारित हैं, जिनसे गरीबों को कोई खास फायदा नहीं हुआ.
ये नीतियां न तो गरीबों की जेब पर खर्च का भार कम कर पाई हैं और ना ही उन्हें ढंग की स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करा पाई हैं. अगर सरकार सच में भारत में स्वास्थ्य की दशा और दिशा बदलना चाहती है तो उसे इन नीतियों को बदलना होगा.
इसके अलावा यह योजना केवल 10 करोड़ परिवारों को ही स्वास्थ्य सुरक्षा देने की बात करती है.
मतलब कि भारत की आबादी का केवल 40 प्रतिशत हिस्सा ही इस योजना से लाभ उठा पाएगा. हालांकि, यह कम नहीं है. लेकिन काफी भी नहीं है.
ये योजना सम्पूर्ण स्वास्थ्य सुरक्षा की परिभाषा में फिट नहीं बैठती है.
समय-समय पर बहुत सी सरकारी समितियों ने सलाह दी है कि स्वास्थ्य पर जीडीपी का 2.5 से 3 प्रतिशत हिस्सा खर्च किया जाए, लेकिन हर साल यह केवल 1 से 1.2 प्रतिशत ही रह जाता है.
ऐसे में सरकार को इसे बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए.
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Web Title: National Health Protection Mission: How ModiCare Will Improve the Health of Indian Families, Hindi Article