विकासशील भारत को विकसित देशों की श्रेणी में कौन नहीं देखना चाहेगा. भारत ने हर क्षेत्र में काफी हद तक विकास किया है लेकिन लिंग समानता के क्षेत्र में अभी भी भारत काफी पीछे है. हमारे देश में महिलाओं के बाहर जाकर काम करने की संख्या बहुत कम है.
वर्ल्ड इकनोमिक फोरम की जेंडर गैप रिपोर्ट में, भारत को 144 देशों में से 108 स्थान मिला, जबकि आर्थिक मोर्चे पर भारत का प्रदर्शन और भी खराब रहा. इसमें आर्थिक भागीदारी और अवसर के मानदंडों पर भारत 139 स्थान पर है.
ये उपरोक्त शब्द बताते हैं कि आज भी महिलाएं समाज में पुरुषों की बराबरी नहीं कर पायी हैं. इस कथन को आपने कई बार सुना होगा और हर दिन बराबरी की बात उठने वाली इन बातों से पक चुके होंगे.
तो फिर, इस बात पर ध्यान दें, जहां एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर भारत में बाहर काम करने वाली महिलाओं की संख्या भी पुरुषों के बराबर हो जाए. ऐसे में, भारत की जीडीपी दुगुनी हो जाएगी.
सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि भारत में महिलाओं की संख्या बढ़ने की जगह और भी कम हो रही है. हाल अगर ऐसा न होता तो भारत 27 प्रतिशत तक ज्यादा अमीर देश बन सकता था.
जानते हैं, महिला कर्मचारियों की कम संख्या होने की वजह और कैसे ये देश की आर्थिक स्थिति को कमजोर करती है-
…और अगर आंकड़ों की माने तो!
साल 2017 में मैकिंसे ग्लोबल इंस्टीट्यूट द्वारा एक अध्ययन किया गया. जिसमें ये पाया गया कि क्योंकि बहुत कम महिलाएं अपने घरों के बाहर काम करती हैं. इसीलिए देश का आर्थिक उत्पादन काफी प्रभावित या कम हो गया है.
इसके अलावा ये भी कहा गया कि यदि अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर हो जाए. जिससे साल 2025 में भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) 60% तक अधिक हो सकती है . साथ ही. बात अगर एशियाई विकास बैंक की बात करें, तो यह भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ने पर उत्पादन में 4.2% तक की सालाना जीडीपी ग्रोथ होने की बात कहते हैं.
इस क्षेत्र में भारत की हालत इतनी खस्ता है कि विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में स्त्री-पुरुषों की श्रम भागीदारी दर में 50 प्रतिशत से अधिक अंतर है, जो कि जी -20 देशों में सबसे ज्यादा है.
इन आंकड़ों को देखकर विकसित भारत का सपना एक झटके में ही टूट कर बिखर जाता है.
दरअसल, पिछले कुछ दशकों में सबसे गतिशील अर्थव्यवस्थाओं में भी महिला कर्मचारियों की संख्या बढ़ी है. इस संख्या में बढ़ोत्तरी बिना पुरुष बेरोजगारी बढ़े हुई है.
ये बड़े-बड़े आंकड़े आपको बोर करेंगे, लेकिन समस्या को गंभीरता से समझने के लिए इनपर एक नज़र डालना बेहद जरुरी है. भारत विश्व के उन देशों में गिना जाता है जहां महिला कर्मचारियों की संख्या बहुत कम है.
आपको बता दें, हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से हम सिर्फ दो प्रतिशत ही आगे हैं. पाकिस्तान में 25 प्रतिशत महिलाएं बाहर काम करती हैं जबकि भारत में 27. ख़ास बात ये है कि पाकिस्तान में तो यह संख्या बढ़ रही है लेकिन भारत में ये संख्या लगातार घट रही है. जो वाकई में एक गहन चिंता का विषय है.
आखिर उनकी संख्या में लगातार कमी आने की क्या वजह हैं…
...शादी, बच्चे और पारिवारिक जिम्मेदारियां!
महिलाओं के बाहर काम करने की ज्यादातर वजहें आम ही हैं. जिसमें श्रमिकों में महिलाओं की संख्या घटने के पीछे शादी, बच्चे के जन्म और अन्य पारिवारिक जिम्मेदारियों का बढ़ना मुख्य है.
इसके अलावा, जब भी शादी के बाद पति-पत्नी में घरेलु ज़िम्मेदारी संभालने की बात आती है. इसके लिए महिलाएं ही त्याग करती हैं या अपनी नौकरी छोड़ देती हैं.
समूचे रोज़गार से जुड़ी बात करें तो आज भी महिलाएं कृषि जैसे श्रम बल क्षेत्रों में ज्यादा संख्या में हैं. उनकी भागीदारी बड़े शहरों में सफेद कॉलर वाली नौकरियों की तुलना में काफी अधिक है.
ऐसा भी देखा गया है कि जैसे-जैसे घर अमीर हो जाते हैं, वे महिलाओं को घर के बाहर काम न करने देना पसंद करते हैं. समाज की रूढ़िवादी सोच की वजह से एक लड़की को नौकरी करने के लिए पहले अपने परिवार को मनाना पड़ता है. यहाँ तो जैसे तैसे वो अपने परिवार को मनाकर नौकरी करने लगती हैं.
लेकिन शादी के बाद आम तौर पर वह ससुराल वालों और खुद को सामाजिक अलगाव से बचाने के लिए अकसर अपने कदम पीछे कर लेती हैं. साल 2012 में एक सर्वे में 84% भारतीय इस बात पर सहमत हुए कि कम नौकरियां होने की स्तिथि में महिलाओं को काम करने का कम अधिकार है. ऐसी स्तिथि होने पर पुरुषों को नौकरी में ज्यादा वरीयता देनी चाहिए.
उनका मानना है कि दुर्लभ होने पर स्त्रियों की तुलना में पुरुषों के पास काम करने का अधिक अधिकार होना चाहिए. बता दें कि साल 2005 में पुरुषों ने भारत के 36 मिलियन से अतिरिक्त नौकरियों में से 90% प्रतिशत पर कब्ज़ा किया था.
और जो लोग कहते हैं कि महिलाएं स्वयं काम नहीं करना पसंद करती हैं. उनके लिए आंकड़े एक अच्छा जवाब है. दरअसल, जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि अगर नौकरियां उपलब्ध हों तो घर पर रहने वाली महिलाओं में से एक तिहाई काम करना पसंद करेंगी.
दूसरी समस्या रोजगार के अवसरों की कमी है. जिसमें कृषि क्षेत्र में कार्यबल महिलाओं की नौकरियां मशीनीकरण से विस्थापित हो रही हैं.
भारत की 90 प्रतिशत महिलाएं असंगठित क्षेत्र में काम कर रहीं है. जिसमें न केवल महिलाओं के लिए मजदूरी कम होती है. साथ ही, लचीलापन और शिशु देखभाल लाभ प्रदान करने में असमर्थता महिलाओं के लिए घर के बाहर काम करने के लिए असंतोष पैदा करती है.
तो आखिर कैसे भरी जा सकती है ये बढ़ती खाई!
हम हमेशा किसी भी समस्या का सबसे पहला हल शिक्षा को बढ़ावा देना ही मानते आए हैं. लेकिन इस सन्दर्भ में एक आंकड़े की माने तो, एक भारतीय महिला को जितनी अधिक स्कूली शिक्षा मिलती है, उतनी कम संभावना है कि वह काम करे. चौंक गए न!
लिहाज़ा, इसके लिए सरकार को अन्य कदम उठाने बेहद जरुरी हैं. जैसे- मैटरनिटी लीव, औरतों के लिए कार्यस्थल को ज्यादा सुरक्षित और उनके अनुकूल बनाना.
साथ ही भारत के श्रम बाजार में सुधार करना बहुत ज़रूरी है ताकि महिलाओं को नौकरियों में बड़े पैमाने पर रोज़गार दिया जा सके.
इसके अलावा, विनिर्माण और औद्योगिक गतिविधि को बढ़ावा देने के प्रयासों को बढ़ाया जाना चाहिए ताकि भारत वैश्विक वैल्यू चैन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाए.
एडीबी ने अपनी रिपोर्ट में इस तथ्य को उजागर किया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में चीन के एकीकरण के परिणामस्वरूप महिलाओं के लिए काफी लाभ हुए हैं. इससे उनके लिए रोजगार के अवसर पैदा हुए. उदाहरण के लिए, चीन में मैनेजमेंट नौकरियों में महिलाओं का हिस्सा 1982 में 10% से बढ़कर 2010 में 25% हो गया.
ऐसे में, भारत को भी अपने इंडस्ट्रियल सेक्टर के विकास पर ज्यादा जोर देना चाहिए. इन सबके अलावा, समाज को भी अपने नज़रिए को बदलने की जरुरत है. अक्सर देखा जाता है कि लोग लड़कियों को सिर्फ इसलिए पढ़ाते हैं ताकि उन्हें एक अच्छा वर मिल सके.
जिस दिन हमारा समाज इन छोटी-छोटी सोच से ऊपर उठ जाएगा, उस दिन एक अलग ही भारत की छवि उभरेगी.
वैसे भी एक देश निर्माण में महिलाओं का योगदान सबसे ज्यादा होता है. ऐसे में, उन्हें किसी भी तरीके से कम आंकना बेवकूफी ही होगी.
Web Title: How Working Women Can Make India A Richer Country, Hindi Article
Feature Image Credit: vanillanews