साल था 1999, तारीख थी 24 दिसंबर. शाम के लगभग साढ़े 4 बजे थे. काठमांडू से इंडियन एयरलाइंस फ्लाइट संख्या आईसी-814 ने काठमांडू से दिल्ली के लिए उड़ान भरी.
काठमांडू से दिल्ली तक का हवाई सफर मात्र 1 घंटा 20 मिनट का था. जहाज में बैठे 189 पैसेंजर्स में से कुछ लोग अपनी मंजिल तक पहुंचने वाले नहीं थे.
नेपाल से छुट्टियां बिता कर लौट रहे विमान में सवार ज्यादातर यात्री इस बात से अंजान थे कि जल्द ही उनका ये सफर एक खौफनाक मंजर में बदलने वाला है. फिर अचानक जहाज में बैठे 5 आतंकवादियों ने विमान को अपने कब्जे में ले लिया. वे इसे अफगानिस्तान के कंधार ले गए.
यहां से उन्होंने विमान में बैठे यात्रियों के बदले भारत सरकार से एक सौदा किया. सौदा! भारत की जेल में बंद खुंखार आतंकवादियों के बदले इन यात्रियों को छोड़ने का.
173 घंटे तक इन यात्रियों के ऊपर मौत का साया मंडराता रहा और आखिरकार भारत को जेल में बंद आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा.
क्या था पूरा घटनाक्रम, आइए एक बार देखते हैं –
भारतीय वायु सीमा में किया गया अपहरण
24 दिसंबर 1999 को इंडियन एयरलाइंस फ्लाइट संख्या 814 या आईसी-814 ने काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से दिल्ली के लिए उड़ान भरी.
विमान में 178 यात्री (24 विदेशी नागरिक मिलाकर) और 11 क्रू मेंबर्स शामिल थे. मौका क्रिसमस का था, नया साल भी कुछ 7 दिन दूर था, इसलिए लोगों में खुशी थी.
शाम के 5 बजकर 30 मिनट पर इस फ्लाइट ने भारत के हवाई क्षेत्र में प्रवेश किया.
इससे पहले कि ये उड़ान दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरती, जहाज में 5 आतंकवादियों ने हवा में अपनी बंदूकें लहरा दीं और प्लेन को हाइजैक कर लिया.
इन अपहरणकर्ताओं में से सबसे पहले मुखौटा पहने एक नाटा सा आतंकवादी अपनी सीट से उठा और उसने विमान को उड़ाने की धमकी दी.
वह जबरन कॉकपिट (जहां से पायलट विमान उड़ाते हैं) में घुस गया और पायलट की कनपटी पर बंदूक रखकर बोला कि विमान को पश्चिम की ओर मोड़ लो.
आतंकवादियों ने विमान में बैठे बच्चों को बड़ों से अलग कर दिया और उनकी सीट बदल दी गईं. इसी के साथ, लाल मास्क पहने ग्रेनेड, पिस्तौल और चाकू से लैस 4 अन्य आतंकवादी विमान में अलग-अलग जगह तैनात हो गए.
आतंकवादी ने विमान के कॉकपिट में बैठे पायलट से विमान को लाहौर ले जाने के लिए कहा. कैप्टन ने बड़ी चतुराई के साथ कहा कि विमान में लाहौर जाने लायक ईंधन नहीं है.
कैप्टन देवीशरण से आतंकवादी ने पूछा कि विमान में कितना तेल है, ये दिल्ली के अलावा कहां जा सकता है. इसके जवाब में उन्होंने कहा कि मुंबई और अहमदाबाद तक ये विमान जा सकता है.
आतंकवादी ने कहा कि अगर विमान मुंबई जा सकता है, फिर लाहौर तो इससे भी पास है, वहां क्यों नहीं जा सकता?
और फिर विमान पश्चिम की ओर एक अंजान मंजिल की तरफ मुड़ गया.
लाहौर ने नहीं दी विमान उतारने की इजाजत
इस समय तक भारत सरकार को ये नहीं पता था कि विमान का अपहरण हो चुका है. बड़ी चुतराई के साथ कैप्टन शरण ने आतंकवादियों की नजर से बचते हुए एक इमरजेंसी ट्रांसपोंडर दबाया.
इससे भारतीय एयर ट्रैफिक कंट्रोलर समझ गए कि विमान आईसी-814 का अपहरण हो गया है. जल्द ही इस बाबत जानकारी भारत सरकार को दे दी गई.
कॉकपिट में कैप्टन आतंकवादी से इस बात पर उलझ रहे थे कि विमान पाकिस्तान न ले जाया जाए. कैप्टन शरण विमान को भारत से दूर पाकिस्तान नहीं ले जाना चाहते थे. वे किसी भी कीमत पर उसे भारत में कहीं भी उतारने को तैयार थे. इस बारे में उन्होंने आतंकवादियों को भी बता दिया था.
वहीं, पाकिस्तान इस बात को लेकर चिंतित था कि एक हाइजैक्ड भारतीय प्लेन उनके क्षेत्र में नहीं उतरना चाहिए. इसलिए, लाहौर एटीसी (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) ने विमान को लाहौर में उतारने की इजाजत नहीं दी. साथ ही एटीसी ने अपने विमानों के लिए भी अपनी हवाई सीमा बंद कर दी.
कैप्टन को इसका फायदा मिला. उन्होंने विमान की गति 40 प्रतिशत तक कम कर दी, ताकि विमान को जमीन पर उतारने में समय लगे. उन्हें उम्मीद थी कि विमान को या तो दिल्ली या अमृतसर में उतारा जाएगा.
इस समय तक विमान में तेल काफी कम हो चुका था, जल्द ही विमान को किसी एयरपोर्ट पर उतारना जरूरी हो गया था, वरना ये विमान कभी भी क्रैश कर सकता था.
ऐसे में विमान के पायलट ने आतंकवादियों से कहा कि वह उन्हें विमान को उतारने की इजाजत दें. आतंकवादी जल्द ही इस बात पर राजी हो गए और विमान को तेल भरने के लिए अमृतसर में उतारने की इजाजत दे दी गई.
अमृतसर में उतरा विमान, लेकिन...
नई दिल्ली में आगे की रणनीति पर काम कर रहे प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले आतंकवादी रोधी क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप ने पंजाब पुलिस को विमान में घुसने की इजाजत नहीं दी.
दिल्ली से उन्हें कहा गया कि राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) की टुकड़ी अमृतसर की ओर निकल चुकी है, उनका इंतजार किया जाए.
वहीं, विमान में तेल भरने में भी काफी समय गुजारा गया. उम्मीद थी कि जल्द ही राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड मोर्चा संभाल लेंगे.
देरी देखकर आतंकवादी भी अपना आपा खो रहे थे. आतंकवादियों को डर था कि भारतीय सुरक्षा बल विमान में घुसने की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने पायलट से बिना तेल भरे ही विमान को उड़ाने के लिए कहा, लेकिन कैप्टन अपनी बात पर अड़े रहे कि विमान में तेल नहीं है.
आतंकवादियों में गुस्सा बढ़ता जा रहा था. उन्होंने हवाई अड्डा प्रबंधन पर जल्दी तेल भरने का दबाव बनाना शुरू कर दिया. इसके लिए उन्होंने एक यात्री रुपिन कत्याल को बुरी तरह से पेट में चाकू घोंप दिया. रुपिन खून से लथपत हालत में पड़े थे.
विमान के इंजीनियर जागिया इस खौफनाक मंजर को देख कांप उठे. उन्होंने कैप्टन से कहा कि आतंकवादी लोगों को मार रहे हैं. आतंकवादियों ने कैप्टन से कहा कि अगर जहाज नहीं उड़ा, तो वे सबको मार देंगे.
जल्द ही आतंकवादियों ने यात्रियों को मारने के लिए उल्टी गिनती शुरू कर दी.
कैप्टन असमंजस में थे, उन्हें एटीसी से कोई मदद नहीं मिल रही थी. उन्हें नहीं पता था कि विमान से बाहर क्या रणनीति तैयार की जा रही है, उन्हें इस बारे में कोई भी खबर नहीं थी. उन्हें किसी भी तरह से लोगों को बचाने के लिए कोई फैसला तो करना ही था.
भारत सरकार के लिए भी ये समय हस्तक्षेप करने के लिहाज से बिल्कुल मुनासिब था. सरकार अमृतसर में ही विमान को रोककर यात्रियों की रिहाई पर बातचीत शुरू कर सकती थी.
लेकिन ऐसा नहीं हो सका…
इससे पहले कि सरकार कुछ भी कार्रवाई करती, एक घंटे से भी कम समय में विमान ने दोबारा लाहौर के लिए उड़ान भर ली.
पाकिस्तानी थे पांचों अपहरणकर्ता
हवाई अड्डा पर सुरक्षा अधिकारियों से कहा गया कि बाउजर के साथ स्नाइपर को ले जाकर जहाज के टायर को उड़ा दिया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.
बहरहाल, विमान के अमृतसर से उड़ते ही भारत सरकार के पास से अपने लोगों को बचाने का और आतंकवादियों को मार गिराने का एक बेहतरीन मौका हाथ से निकल गया.
आतंकवादी इस बार लाहौर में उतरने को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थे.
विमान का अपहरण करने वाले पाचों आतंकवादी पाकिस्तानी थे. इन आतंकवादियों के नाम थे इब्राहीम अतहर, शाहिद अख्तर सईद, सनी अहमद काजी, मिस्त्री जहूर इब्राहीम और शाकिर. इन सभी आतंकियों का संबंध आतंकवादी संगठन हरकत-उल-मुजाहिद्दीन से था.
लाहौर में उतारा गया जहाज
अब रात हो चुकी थी. जल्द ही विमान भारत की सीमा से पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गया.
पाकिस्तानी सरकार किसी भी तरह से इस विमान को अपने यहां उतारने को तैयार नहीं थी. उन्होंने विमान को मार गिराने की चेतावनी भी दी, लेकिन आतंकवादियों पर इस चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ.
तब लाहौर एयर ट्रैफिक कंट्रोल ने एयरपोर्ट पर नेविगेशन और रनवे दिखाने वाली सभी लाइट बंद कर दीं. इससे विमान को लाहौर में उतार पाना और भी मुश्किल हो गया.
इधर, विमान में भी ईंधन लगभग खत्म हो चुका था. ऐसे में पायलट ज्यादा देर तक जहाज को हवा में नहीं रख सकते थे. उन्होंने जहाज की इमरजेंसी लाइट जला दीं और उसे लाहौर में उतारने लगे.
अंधेरा होने के कारण कैप्टन ने जहाज को लाइट की ओर मोड़ दिया, उन्हें लगा कि वो लाहौर हवाई अड्डे का रनवे है. जब जहाज काफी नीचे आ गया, तब पता चला कि वो असल में एक रोड है.
ऐसे में तत्काल जहाज को फिर ऊपर ले जाया गया.
अब तक लाहौर एटीसी समझ चुका था कि जहाज को उतरने की अनुमति नहीं दी गई, तो वो क्रैश कर सकता है. ऐसे में लाहौर एटीसी ने रनवे की लाइट जला दीं और जहाज सुरक्षित नीचे उतर गया.
लाहौर एयरपोर्ट के अधिकारी किसी भी तरह से इस जहाज से अपना पीछा छुड़ाना चाहते थे. उन्होंने विमान के कैप्टन का ये अनुरोध भी ठुकरा दिया कि जहाज से कुछ घायल और बुजुर्ग-बच्चों को उतारा जाए.
आखिरकार, 3 घंटे में तेल भरने के बाद जहाज फिर से अपने अंजान सफर की ओर निकल पड़ा.
दुबई में 24 बधकों को छोड़ा गया
अब आतंकवादी चाहते थे कि विमान को अफगानिस्तान के काबुल ले जाया जाए. रात में काबुल में विमान उतारने की कोई व्यवस्था नहीं थी.
ऐसे में आतंकवादियों ने संयुक्त अरब अमीरात के दुबई में विमान को ले जाने का आदेश दिया.
आखिरकार, अंधेरी रात में विमान दुबई के रनवे पर उतर गया.
यहां दोबारा से भारत सरकार के पास एक मौका था. वह कमांडो ऑपरेशन कर यात्रियों को सुरक्षित निकाल सकती थी. इस बारे में भारत सरकार ने दुबई की अथॉरिटी से संपर्क किया और उन्हें सैन्य ऑपरेशन के लिए राजी करने की कोशिश की.
यहां आतंकवादियों ने दोबारा से विमान में तेल भरवाने का दबाव बनाया. ऐसे में दुबई अधिकारियों ने आतंकवादियों को तेल और भोजन के बदले कुछ बंधकों को छोड़ने के लिए राजी कर लिया.
आतंकवादियों के लिए ये सौदा बुरा नहीं था. ऐसे में उन्होंने 24 बंधकों को छोड़ दिया, जिसमें ज्यादातर घायल, बच्चे और महिलाएं थीं.
इसके अलावा आतंकवादियों ने रुपिन कत्याल के शव को भी दुबई अधिकारियों के हवाले कर दिया. रुपिन की मौत शायद दुबई पहुंचने से कुछ देर पहले ही हो गई थी. इनकी शादी 20 दिन पहले ही हुई थी, वह नेपाल से हनीमून मनाकर भारत लौट रहे थे. उन्हें क्या पता था कि उनकी ये हनीमून यात्रा उनकी जिंदगी की आखिरी यात्रा साबित होगी.
बहरहाल, ईंधन भरने के बाद आईसी-814 फिर से उड़ गया.
...और तालिबान लड़ाकों ने घेर लिया विमान
अब तक सुबह हो चुकी थी. 25 दिसंबर को विमान अफगानिस्तान के दक्षिण में पाकिस्तान सीमा के पास कंधार में उतर गया.
जल्द ही विमान को चारों ओर से टोयोटा ट्रकों में सवार हथियारबंद तालिबानी लड़ाकों ने घेर लिया. तालिबानी उस जहाज को भारतीय सुरक्षा बलों से सुरक्षा प्रदान कर रहे थे.
उस दौर में अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन था. वहां की तालिबानी हुकूमत दुनिया में अपने नाम का खौफ बैठाने की जुगत में लगी हुई थी. ये मौका उनके लिए बड़ा ही महत्वपूर्ण था.
भारत अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत को मान्यता नहीं देता था. ऐसे में भारत के सामने तालिबान ही वो महत्वपूर्ण संगठन था, जिससे अब उसे कोई उम्मीद थी.
तालिबान की मंजूरी के बिना भारत अफगानिस्तान में कोई भी सैन्य ऑपरेशन शुरू नहीं कर सकता था. इस बाबत जल्द ही तालिबान के नेताओं से संपर्क साधा गया.
मौलाना मसूद अजहर को छोड़ने की मांग
27 दिसंबर को अपहरणकर्ताओं से बातचीत करने के लिए भारत सरकार की ओर से एक टीम को कंधार भेजा गया. भारत सरकार की ओर से टीम को लेकर गए विमान में विशेष तौर पर प्रशिक्षित कुछ कमांडोज भी गए थे, जो विमान में छिपे रहे.
इस बात से तालिबान लड़ाके और अपहरणकर्ता अंजान थे.
भारत से गई वार्ताकारों की टीम ने विमान से उतर कर देखा कि तालिबानी लड़ाके हमले की मुद्रा में वहां तैनात थे. ऐसे में भारतीय कमांडोज ऐसा कोई भी ऑपरेशन नहीं कर सकते थे.
अब सभी रास्ते बंद हो चुके थे. ऐसे में अपहरणकर्ता से बातचीत ही एक आखिरी रास्ता शेष बचा था.
ख़ुफ़िया ब्यूरो के प्रमुख अजीत डोभाल उस समय अपहरणर्ताओं के साथ भारत सरकार की ओर से प्रमुख वार्ताकार थे. उन्होंने तालिबान को अपने भरोसे में लेने की कोशिश की थी. असल में भारत सरकार वहां कमांडो कार्रवाई की योजना बना रही थी. इसके लिए उन्हें तालिबान की मदद की जरूरत थी. ऐसे में भारत ने उनसे मदद करने की गुहार लगाई.
तालिबान ने मदद की इस गुहार को ये कहते हुए खारिज कर दिया कि उनकी धरती पर खून नहीं बहना चाहिए. हालांकि तालिबान अपहरणकर्ताओं और भारत सरकार के बीच मध्यस्थता करने को राजी था, लेकिन उसने भारत को किसी भी प्रकार की सैन्य कार्रवाई करने की इजाजत नहीं दी.
उसका साफ कहना था कि अफगानिस्तान में किसी का खून नहीं बहेगा.
जल्द ही अपहरणकर्ताओं ने अपनी मांगें भारत सरकार के सामने रखीं. उन्होंने अपने आका मौलाना मसूद अजहर को रिहा करने की मांग रखी.
हरकत-उल-मुजाहिद्दीन का सैक्रेटरी जनरल मौलाना मसूद अजहर 1994 में गिरफ्तार किया गया था. तब ये जम्मू की कोट भलवाल जेल में बंद था. विमान का अपहरण करने वाले आतंकवादियों में से मुख्य अपहरणकर्ता मौलाना मसूद अजहर का छोटा भाई था.
लगभग 30 घंटे की मेहनत के बाद भारत सरकार के वार्ताकार अपहरणकर्ताओं की सभी मांगों को उलगवा पाए. अपहरणकर्ता 35 अन्य आतंकवादियों की रिहाई, आतंकवादी सज्जाद अफगानी का ताबूत और 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर की फिरौती की मांग कर रहे थे.
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आतंकवादियों के आगे साफतौर पर झुकने को तैयार नहीं थे. उन्होंने कहा कि ऐसे वहशियाना कदमों के आगे भारत झुकेगा नहीं.
मांगों से पीछे हटे अपहरणकर्ता
अपहरणकर्ताओं के लिए मौलाना मसूद अजहर की रिहाई प्रमुख थी. उसके बाद उसने कश्मीरी अलगाववादी सज्जाद अफगानी का शव और करोड़ों डॉलर की फिरौती के लिए भी भारत पर दबाव बनाना चाहा.
इधर, तालिबान भारत सरकार और अपहरणकर्ताओं के बीच मध्यस्थता कर रहा था. उसने भारत सरकार के ऊपर मांगों को जल्दी मानने का भी दबाव बनाया और उधर, अपहरणकर्ताओं से रुपए और शव की मांग छोड़ने की गुजारिश भी की.
जल्द ही अपहरणकर्ताओं ने सज्जाद अफगानी के शव और रुपए को लेने की अपनी मांग छोड़ दी. हालांकि वे अभी भी मौलाना के साथ 35 अन्य आतंकवादियों की रिहाई चाहते थे.
तालिबान पहले ही कह चुका था कि उनकी जमीन पर कोई खून नहीं बहेगा. ऐसे में उनका कहना था कि ये मामला जल्दी से खत्म हो, नहीं तो वे अपहृत विमान में घुस जाएंगे.
हालांकि अभी तक तालिबान केवल विमान को सुरक्षा प्रदान कर रहा था. आखिरकार, अपहरणकर्ता अपनी कुछ मांगों से पीछे हटे और बंधकों को छोड़ने पर राजी हुए.
छोड़ दिए गए 3 आतंकवादी
तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश चंद्र मिश्रा के अनुसार, तालिबान और अपहरणकर्ताओं के साथ बातचीत के बाद भारत सरकार संभी बंधकों की रिहाई के बदले 3 उग्रवादियों को छोड़ने के समझौते पर राजी हो गई.
छोड़े जाने वाले 3 खुंखार आतंकवादियों में हरकत-उल-मुजाहिद्दीन का सरगना मौलाना मसूद अजहर था. दूसरा आतंकवादी लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स से पढ़ा ब्रिटिश नागरिक और मसूद अजहर का कट्टर चेला उमर शेख उर्फ अहमद उमर सईद शेख था. इसे कश्मीर में विदेशी नागरिकों के अपहरण के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. तीसरा आतंकवादी अल-उमर मुजाहिद्दीन आतंकी संगठन का मुख्य कमांडर मुश्ताक अहमद ज़रगर था.
विमान को अपहरण करने के 8 दिन के बाद 31 दिसंबर को सभी 3 आतंकवादियों को पहले दिल्ली, फिर विशेष विमान से कंधार ले जाया गया.
कंधार पहुंचते ही सभी आतंकवादी एयरपोर्ट पर खड़ी गाड़ियों से रवाना हो गए और इधर आईसी-814 के सभी बंधकों को छोड़ दिया गया.
Web Title: IC 814: The Story of Kandahar Plane Hijacking, Hindi Article
On 24 December 1999, Indian Airlines Flight IC-814 was hijacked.
Feature Image Credit: thequint