तारीख 25 जुलाई, साल 2018.
पाकिस्तान में प्रधानमंत्री पद की रेस होती है. वहां के लोग अपने-अपने मत मतपेटी में डाल देते है. इसके बाद सबकी जुबान पर एक ही सवाल होता है कि इस बार पाकिस्तान का वज़ीर-ए-आज़म कौन!
जल्दी ही नतीजा आया और 1992 विश्वकप की तरह इमरान खान ने अपनी पार्टी को सबसे शीर्ष पर पहुंचाकर एक बार फिर से इतिहास लिख दिया. अब वह पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म बनने के बेहद करीब है.
ऐसे में उनके यहां तक के सफर को जानना सामयिक रहेगा-
परिवार से विरासत में मिला क्रिकेट
इमरान खान का जन्म 5 अक्टूबर 1952 को लाहौर के एक रईस परिवार में हुआ था. उनके पिता सिविल इंजीनियर थे. उनकी मां शौकत खानुम, बुर्की परिवार से थीं. जिन्होंने पाकिस्तान को जावेद बुर्की और माजिद खान जैसे कई मशहूर क्रिकेटर दिए थे.
इमरान की आँखों में इस परंपरा को जारी रखने की ही नहींं, बल्कि इसे एक नयी ऊँचाई तक पहुंचाने की चमक थी. हालांकि वो किस हद तक इसमें कामयाब हो पाते यह देखने में अभी समय था.
उन्होंने अपनी शुरूआती पढ़ाई पाकिस्तान के कैथेड्रल स्कूल और एचिसन कॉलेज, लाहौर से ही की. इसके बाद इंग्लैंड के रॉयल ग्रामर स्कूल, वर्सेस्टर में उनका दाखिला हुआ. यहीं से इमरान ने अपनी माध्यमिक शिक्षा भी प्राप्त की.
आगे उन्होंने 1975 में विश्व की जानी मानी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के केबल कॉलेज से फिलोसोफी, राजनीति और अर्थशास्त्र में ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने राजनीति में दूसरी और अर्थशास्त्र में तीसरी श्रेणी के अंकों से स्नातक की डिग्री हासिल की.
ऑक्सफोर्ड में पढ़ने के दौरान ही उन्होंने क्रिकेट में अपने कदम जमाने शुरू कर दिए.
रिवर्स स्विंग के किंग और ऑलराउंडर
महज़ 16 साल की उम्र में उन्होंने प्रोफेशनल क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था. 1971 में इंग्लैंड के खिलाफ इमरान ने पहला टेस्ट डेब्यू किया. जबकि 1974 में इसी देश के खिलाफ उन्होंने पहला वनडे डेब्यू किया.
हालांकि, वो इन दोनों ही टूर्नामेंट में कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाए. बावजूद इसके वह मैदान पर अपना पसीना बहाते रहे. नतीजा यह रहा कि 1976 के अंत तक आते-आते वो खुद को एक अच्छे क्रिकेटर के रूप में स्थापित करने में सफल रहे.
इसी वर्ष उन्होंने न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज़ के खिलाफ शानदार गेंदबाजी का परिचय दिया. इसके बाद तो इमरान जैसे क्रिकेट में कामयाबी के सभी पड़ाव पार करते चले गए.
सत्तर के दशक में इमरान का अच्छा प्रदर्शन देख कर लोगों ने उन्हें एक भरोसेमंद क्रिकेटर के रूप में देखना शुरू कर दिया. भरोसा इतना कि इमरान पाकिस्तान को उसकी पहली क्रिकेट वर्ल्ड कप ट्रॉफी दिलवा सकते हैं.
इसी भरोसे और उनकी निखरती गेंदबाजी ने इमरान को 1982 में पाकिस्तान की कप्तानी करने का मौका दिलाया.
बताते चलें कि यह वह दौर था, जब इमरान को एक तरफ रिवर्स स्विंग का सरताज कहा जाने लगा था. वहीं दूसरी तरफ वो विश्व भर में ऑलराउंडर के तौर पर भी पहचाने जाने लगे. 1981 से 1983 तक का यह दौर उनके क्रिकेट करियर का सबसे अच्छा समय माना जाता है.
1987 में उनके नेतृत्व में पाकिस्तान को वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में हार का सामना करना पड़ा. इमरान को इस हार से बड़ा झटका लगा. इसकी एक वजह यह भी थी कि वो ये मैच ऑस्ट्रेलिया से अपनी ही जन्मभूमि लाहौर में हारे थे.
इस नाकामी के लिए खुद को ज़िम्मेदार मानते हुए, उन्होंने क्रिकेट से सन्यास लेने की घोषणा तक कर दी.
रिटायरमेंट के बाद जिताया विश्व कप!
वर्ल्ड कप में जीत के इतनी नज़दीक आकर हार जाने के बाद भी पाकिस्तान की आवाम ने इमरान पर से अपना भरोसा उठने नहींं दिया. अगले ही साल यानी 1988 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक ने उनसे वापस लौट आने का आग्रह किया. इमरान राष्ट्रपति की बात अनसुनी नहींं कर सके.
उन्होंने पाकिस्तान क्रिकेट टीम में नए जज़्बे के साथ वापसी की. वापसी कितनी ज़ोरदार थी इस बात का अंदाज़ा आप इसी से लगा सकते हैं कि बतौर क्रिकेटर 1989 के साल ने उनके लिए सबसे ज्यादा कामयाबियाँ बटोरीं.
इसी वर्ष उन्होंने 26 मैच खेले. आपको यह भी बताते चले कि इमरान ने अपने पूरे करियर में 13 बार मैन ऑफ़ द मैच का खिताब जीता, जिसमें से 6 खिताब उन्होंने इसी साल जीते. जब पाकिस्तान को यह लग रहा था कि इमरान के इतने अच्छे प्रदर्शन में और तरक्की की गुंजाईश नहींं बची, तभी समय आता है 1992 के क्रिकेट वर्ल्ड कप का.
इमरान उस समय कंधे की एक गंभीर चोट के दर्द से गुज़र रहे थे. इस दर्द के बावजूद भी उन्होंने अपनी टीम का हौसला टूटने नहींं दिया. नतीजा यह रहा कि 25 मार्च 1992 को पाकिस्तान ने विश्व कप की ट्राफ़ी अपने नाम की.
यह तारीख इसलिए भी अहम है क्योंकि इसी दिन इमरान ने अपनी जिंदगी का आखिरी मैच खेला था.
पाक के 'प्लेबॉय' और लंदन के 'हाइक्लास रोमियो'
90 के दशक की शुरुआत में जहां लोग उन्हें एक असीम क्षमता वाले क्रिकेटर के रूप में पूजने लगे थे. वहीं एक सामाजिक कार्यकर्ता की रूप में भी उनकी छवि लोगों के सामने आने लगी.
1991 में उन्होंने शौकत खानुम मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना की. यह पाकिस्तान में कैंसर की जागरूकता फैलाने और उसके इलाज के लिए खुलने वाली पहली संस्था थी, जिसका नाम इमरान ने अपनी माँ के नाम पर रखा.
उन्होंने अपने क्रिकेट करियर के दौरान कभी शादी नहींं की, लेकिन तब भी वो अपने अफेयर्स के लिए काफी मशहूर रहे. यहां तक कि उन्हें तो पाकिस्तान के ‘प्लेबॉय' और लंदन के क्लबों में ‘हाइक्लास रोमियो’ के नाम से जाना जाने लगा.
कहा तो यहां तक भी जाता है कि अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बेनजीर भुट्टो के साथ भी कॉलेज के दिनों के दौरान उनका रिश्ता रहा. 1995 में इमरान ने 43 वर्ष की उम्र में ब्रिटेन की जेमिमा गोल्डस्मिथ से शादी कर इस छवि को हटाने की कोशिश की.
उनके मन में अब ख्याल आने लगा कि लोग उन्हें एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में तो जानते ही हैं. साथ ही शादी से उनकी ‘प्लेबॉय' वाली छवि भी कहीं न कहीं धुंधली हो चुकी है. ऐसे में क्यों न राजनीति में शुरुआत की जाए.
1996 में सियासत की पिच पर शुरु की गेंदबाजी
आगे उन्होंने अपने इस ख्याल को हकीकत भी बनाया. 1996 में उन्होंने तहरीक-ए-इंसाफ (पी.टी.आई) नाम की पार्टी बनाई. 1997 में उन्होंने इस पार्टी से अपना पहला चुनाव लड़ा, जिसमें वो क्रिकेट की तरह सियासी पिच पर कोई ख़ास कमाल नहींं दिखा पाए. इस समय उनकी पार्टी विपक्षी दल होने के लिए भी बहुत कमज़ोर थी.
2002 में उनकी पार्टी फिर चुनाव में खड़ी हुई, लेकिन इस बार पार्टी से सिर्फ इमरान को एक सीट हासिल हुई. इस राजनीतिक जद्दोजहद के बीच उनकी निजी ज़िंदगी में भी बहुत कुछ हुआ. वो दो बेटों के बाप बन चुके थे, लेकिन जेमिमा के साथ उनकी वैवाहिक ज़िन्दगी बिखरने लगी थी. आपसी मतभेद के चलते शादी के 9 साल बाद, 2004 में दोनों के बीच तलाक हो गया.
नवंबर 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशरर्फ ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी. इमरान ने इसका कड़ा विरोध करते हुए छात्रों को मुशर्रफ़ के खिलाफ एकजुट करने का प्रयास किया, जिसके लिए उन्हें जेल जाना पड़ा.
व्यक्तिगत जिंदगी में चल रही उलझन और राजनीतिक जगत में एक अच्छी पहल न मिलने के दबाव में उन्होंने 2008 में चुनावों का बहिष्कार कर दिया. माना जाता है कि एक कारण यह भी था कि उनकी पार्टी उस समय चुनाव के लिए तैयार नहींं थी.
2013 में उनकी ये समझ काम आई. इस बार उन्होंने “नया पाकिस्तान” का नारा देते हुए पाकिस्तान की आवाम से वोट देने की अपील की. उनकी पार्टी भले चुनावों में जीत नहींं पाई, लेकिन अब वह देश की दूसरी सबसे ताकतवर विपक्षी पार्टी बन चुकी थी.
चुनावों में जान झोंक चुके इमरान अब फिर से एक बार निजी जिंदगी पर ध्यान देना चाहते थे.
विवादों के बावजूद जनता ने बनाया वज़ीर-ए-आज़म
2015 में उन्होंने पाकिस्तान की टीवी एंकर रेहम खान से शादी कर ली. उनकी यह शादी बेहद नाकाम रही और एक साल तक भी वो दोनों साथ नहींं चल सके. शादी टूटने के बाद रेहम ने इमरान पर यौन शोषण तक के आरोप लगाए.
2018 के पाकिस्तान चुनाव से कुछ समय पहले ही उनकी एक किताब डिजिटल माध्यमों पर रिलीज़ भी हुई, जिसमें उन्होंने इमरान की खुल कर आलोचना की. इसमें उन्होंने इमरान के कई अवैध रिश्तों और औलादों के बारे में भी लिखा.
इन इल्जामों को सिरे से नकारने के लिए इमरान ने सन 2018 में 65 वर्ष की उम्र में धार्मिक गुरु बुशरा मनिका से शादी कर ली. मज़े की बात तो यह है कि बुशरा ने इमरान से शादी से पहले ही कहा था कि उनके प्रधानमंत्री बनने के लिए तीसरी शादी जरूरी है. तब शायद ही किसी ने यह सोचा हो कि बुशरा की यह भविष्यवाणी जल्द ही सच भी होने वाली थी.
जुलाई 2018 में वो फिर चुनावों के लिए खड़े हुए. इस बार उनकी पार्टी ने पूरी तैयारी के साथ चुनावी मैदान में कदम रखा और एक बड़े अंतर से जीत हासिल की. अब इमरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने के बेहद नजदीक हैं.
इस तरह इमरान खान ने खुद को 1992 की विश्व विजेता रही पाकिस्तान क्रिकेट टीम के सफल कप्तान की तरह राजनीति में भी स्थापित किया. क्रिकेट के सफ़र की तरह ही उनका राजनीतिक सफ़र भी समय के साथ नई ऊंचाइया छूता नज़र आ रहा है.
खैर अगर वह पाकिस्तान के प्राधनमंत्री बनते हैं, तो उन पर दुनिया का नज़र रहेगी. खासकर उनकी कार्यशैली पाकिस्तान का भविष्य तो तय करेगी ही.
क्यों सही कहा न?
Web Title: Imran Khan, From Being A Cricketer to Becoming A Politician, Hindi Article
Feature Image Credit: ikca.org