किस शहर से हैं आप?
बनारस, कलकत्ता, बंबई या फिर गुडगांव. जी हां चौंकिए मत, आपके आज के शहर पहले इन्हीं नामों से जाने जाते थें.
एक शहर की पहचान जुड़ी होती है उसके अंदर रहने वाले लोगों से. एक शहर अपने नाम के साथ उस जगह की विरासत लिए हुए होता है. उसमें रहने वाले लोगों की पहचान, संस्कृति को समाये हुए होता है.
एक शहर की चारदीवारी में रहने वाले लोग आपस में अपनापन और जुड़ाव महसूस करते हैं.
अब उदहारण के लिए बनारस को ही ले लीजिए. जब बात होगी घाटों की, बनारसी साड़ियों की और लाज़वाब पान की होती है, तो बिना दिमाग पर जोर डाले ही वाराणसी की तस्वीर हमारी आँखों के सामने आ जाती है.
ऐसे में, सालों से चले आ रहे आपके शहर का नाम ही बदल दिया जाए तो बड़ी मुश्किल होती है, पुराने नाम को भुलाने में.
सबसे बड़ी बात तो ये है कि एक इंसान को अपना नाम बदलने में काफी दिक्कतें आती हैं, तो यहाँ तो पूरे शहर का ही नाम बदल दिया गया है.
दिलचस्प बात ये है कि आज़ादी के बाद करीब 100 से भी ज्यादा जगहें ऐसी हैं जिनके नाम बदल दिए गए हैं.
तो आईए, जानते हैं ऐसे ही कुछ शहर के बारे में जिन्होंने अपने नाम बदल डालें-
घाटों वाला शहर पहले कहलाता था बनारस
हिंदी साहित्य उठा कर देखें, तो आज के आधुनिक वाराणसी का बखान हर जगह बनारस के नाम पर ही है. आज भी यह ज्यादातर लोगों की ज़ुबान पर वाराणसी न रह कर बनारस ही रहता है.
मशहूर लेखक केदारनाथ सिंह ने अपनी कविता ‘बनारस’ के जरिये इस शहर को क्या खूब कागज़ पर उतारा है. हज़ारों सालों से संस्कृति का गढ़ माना जाने वाले वाराणसी का नाम वरुण और अस्सी नाम की दो नदियों पर रखा गया है.
गंगा किनारे बसे इस शहर को अपना नया नाम ‘वाराणसी' 1956 में मिला था. ऋग्वेद में दुनिया के सबसे पुराने शहर का वर्णन है. इस शहर का नाम 'काशी' था. काशी को ही आज हम वारणसी के नाम से जानते हैं. समय के साथ इस शहर के कई नामकरण हुए.
ये शहर कभी अविमुक्तका, महास्मासना, सुरंधना, आनंदकानन, ब्रह्म वर्धा, सुदर्सना, रम्या और कसी नामों से भी जाना गया. इस पर अधिपत्य का इतिहास जाने, तो दूसरी सदी में यह आर्य धर्म एंव दर्शन का एक अहम् स्थल रहा.
मध्य युग आते-आते यह कन्नौज राज्य का हिस्सा बन गया था. इसके बाद बंगाल के पाल नरेशों ने इस पर कब्ज़ा कर लिया था. 1194 में शहाबुद्दीन गौरी ने इस शहर को लूटा और काफी नुकसान भी पहुँचाया.
मुग़ल काल में वाराणसी बन गया था 'मुहम्मदाबाद'. 1911 में अंग्रेज़ों ने महाराज प्रभु नारायण सिंह को वाराणसी का राजा बना दिया. 1950 में यह राज्य अपनी मर्ज़ी से भारत में शामिल हो गया.
...और जब कलकत्ता बन गया कोलकाता
अगर बात चली है कोलकाता की, तो आंखों के सामने कुछ लाज़मी तस्वीरें ज़रुर उभरती हैं. जैसे- हावड़ा ब्रिज, दुर्गा पूजा, हाथ रिक्शा और माछ-भात.
ये कहावत तो आपने जरुर सुनी होगी, 'सारे तीरथ बार-बार, पर गंगा सागर एक बार'. कहने का मतलब है कि इस शहर से लोगों की आस्था भी जुड़ी है.
इसके अलावा इसी ज़मीन ने हमें रबीन्द्रनाथ टैगोर और सुभाषचंद्र बोस जैसे महान लोग दिए जिनका योगदान अभूतपूर्व है. अपने बंगाली नाम को कोलकाता ने 2001 में आधिकारिक रूप से धारण किया.
ये नाम ‘कोलीकाता' नामक एक बंगाली शब्द से लिया गया है. दरअसल यहाँ उन तीन गांवों में से नाम से एक है, जो अंग्रेजों के भारत आने से पहले से बसे हुए थे. दो अन्य गाँवों के नाम थे गोविंदपुर और सुतंती.
वहीं इस शहर के नाम को लेकर ये भी कहा जाता है कि इसका नाम माता 'काली' के नाम पर है. वहीं दूसरी ओर ये भी कहा जाता है कि कोलकाता का नाम ‘किकिला’ शब्द से निकला, जिसका अर्थ होता है, सपाट जगह.
कहते हैं कि अंग्रेजों ने भले ही कोलकाता का नाम कलकत्ता रख दिया था, लेकिन वहां के लोग हमेशा से इसे कोलकाता ही बोलते रहे. यह नाम अब आधिकारिक रूप भी ले चुका है.
बॉम्बे बन गया 'अपना मुंबई'
जैसा की लोग कहते हैं कि, मुंबई एक शहर है और बॉम्बे अपनेआप में एक अहसास. एक ऐसा शहर जहां बसता है सिनेमा, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज, वड़ापाव, भेलपुरी और टपोरी भाषा.
आज की मुंबई समय के साथ अलग-अलग नामों से भी पहचानी गयी थी. 16वीं और 17वीं शताब्दी में मोम्बयन, बोम्बयम, बोम्बैन, बॉम्बे, बून बे और बोम्बैम नाम से भी जाना गई.
भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई को अपना आधिकारिक नाम 1996 में मिला. इसे बॉम्बे से बदलकर मुंबई कर दिया गया. यह नया नाम मुम्बा देवी या महा अम्बा माता के नाम पर रखा गया.
बॉम्बे की मुंबई बनने की कहानी दिलचस्प है.
दरअसल जब 1600 में यह शहर पुर्तगालियों के हाथ में था तब उन्होंने इसका नाम बोम्बैन रखा था. हालांकि 1661 में जब पुर्तगाली रानी कैथरीन दे ब्रागान्ज़ा ने इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय से शादी कर ली तब उन्हें यह कॉलोनी भेट में दे दी गयी.
इसके बाद उन्होंने इसका नाम बोम्बैन से बदलकर बॉम्बे कर दिया, जो 1996 तक चलन में रहा और ऐसे बॉम्बे बन गया मुंबई.
चेन्नई था मद्रास के नाम से मशहूर
कभी मद्रासपट्टनम नाम से मशहूर मद्रास शहर आज का चेन्नई है. ‘मद्रासपट्टनम’ मछली पकड़ने वाले शहर के तौर पर भी जाना जाता था. अंग्रेजों के शासन के समय इसे बदलकर ‘मद्रास’ कर दिया गया, जो 1996 तक इसी रूप में पहचाना गया.
हालांकि 1996 में इसका नाम मद्रास से बदलकर चेन्नई रख दिया गया. चेन्नई नाम रखने के पीछे अलग-अलग मान्यता हैं. एक मान्यता के अनुसार चेन्नई नाम ‘चेन्नाकेसवा पेरुमल मंदिर' के नाम पर रखा गया है.
इससे जुड़ी एक दिलचस्प बात ये भी है कि चेन्नई और मद्रास, दोनों नाम 1639 में ही प्रचलन में थें.
दरअसल, राजा चंद्रगिरी ने अंग्रेजों को मद्रासपट्टनम के पास किला बनाने की इजाज़त दे दी. इसी दौरान कुछ लोकल लोग भी किले के पास आकर बस गए जिसका नाम उन्होंने ‘चेन्नापट्टम’ रखा.
समय के साथ अंग्रेजों ने अपने इलाके का नाम छोटा करके मद्रास रख दिया. वहीं लोकल लोगों ने अपने बसेरे का नाम चेन्नई रख दिया.
खैर, कहानियां तो बहुत हैं फिलहाल कल का मद्रास ही आज का चेन्नई है.
पुडुचेरी का क्या था पुराना नाम?
पुडुचेरी पर कभी फ्रांस ने 1954 तक अधिकार कर रखा था. पहले इसका नाम पांडिचेरी हुआ करता था. इसका नया नामकरण 2006 में किया गया.
यह भारत का केंद्र प्रशासित राज्य है. इसके नाम को बदलने के पीछे भी इस क्षेत्र से जुड़ा इतिहास ही है. दरअसल, यहां के लोगों का मानना है कि पुडुचेरी का नाम हमेशा से यही रहा था.
हालांकि जब फ्रांस ने इसे अपनी कॉलोनी बनाया, तब इसका नाम बदल दिया गया. इसलिए 2006 में यह आधिकारिक रूप से एक बार फिर पुडुचेरी बन गया. इस नाम का मतलब होता है, नया शहर या गांव.
इस लिस्ट कई सारे और भी नाम हैं जिन्होंने इसी तरह किसी न किसी वजह से अपने शहर का नाम बदला. ज्यादातर नाम बदलने की वजह उनके इतिहास से जुड़ी है.
बहरहाल, धीरे-धीरे नए नाम लोग अपना ही लेते हैं, लेकिन उनकी पहचान और संस्कृति पहले जैसी ही होती है.
Web Title: Indian Cities that Changed Their Name, Hindi Article